कविता :- 20(12) , रविवार , 30/05/2021 , साहित्य एक नज़र 🌅 अंक - 20, 12 रिजल्ट चार साल हो गया, ग़लत नहीं, ग़लत होने की कारण !:

रोशन कुमार झा


कविता :- 20(12)
ग़लत नहीं, ग़लत होने की कारण !:

कोलफील्ड मिरर में प्रकाशित
दिनांक :- 30/05/2021 ,
दिवस :- रविवार

मैथिली कविता

कोरोना जेबाअ के जेबए करतैय ,
घर पर बैठ कऽ केतक दिन लोग
पेट भरतैय ,
लॉकडाउन पर सँ लॉकडाउन
आब प्रशासन आर सरकार पर
लाठी चलतैय ,
तहने इअ अंधा सरकार किछ
करतैय ।।

परीक्षा लेतैय नैय खाली
चुनाव लड़तैय ,
फेर पाँच साल बाद वोट,
भीख में
मांगअ शहर और गाँव ऐतैय  ।
तहन की कहूँ हम गंगाराम
कनअ इअ जीवन कटठैय ,
करूँ अंधकार राह रोशन
हे भगवान कखन ईअ कोरोना हटतैय ।।

गंगाराम कुमार झा
झोंझी , मधुबनी , बिहार
30/05/2021 , रविवार ,
कविता :- 20(12)
मो - 6290640716

मिथिलाक्षर साक्षरता अभियान से मिथिलाक्षर सीखैत रहैय ।
सच में मेहनत किए हुए थकान भूल जाता हूँ ।

77/R Mirpara Road Liluah Howrah Ashirbad Bhawan
में रहते रहें 30/05/2021
12 वीं रिजल्ट का 4 साल
30/05/2017 , मंगलवार
http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/05/2004-22052021-12.html

22/05/2015, शुक्रवार, दस का रिजल्ट निकला रहा छः साल पहले ।
B.Road , Gupta school के पास से रिजल्ट निकाले रहें ।
Roshan Kumar Jha
Father - Shreestu jha
Roll - 209731B , No - 0079
Ghusuri sree Hanuman jute mill Hindi High school
Registration no :- 2141-193510
Examination centre
Salkia - 2
Salkia sree satyanarayan Madhab Mishra vidyalaya
Date of birth :- 13/06/1999

लंगड़ा बाड़ी में रहते रहें , रिजल्ट के समय दीपक भईया बाड़ी झील रोड़ में ।
12 वीं का चंदन दा सी रोड़ से 30 मई 2017 , 10:30 , राजन हमें फोन करके बता दिया रहा ।

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कोलफील्ड मिरर
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English , मैथिली कविता
कविता
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साहित्य संगम संस्थान हरियाणा इकाई

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फेसबुक हरियाणा इकाई
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मुख्य मंच
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फेसबुक
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आप सभी को हिन्दी पत्रकारिता दिवस की शुभकामनाएं -
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हिन्दी पत्रकारिता के लिए 30 मई को बहुत अहम दिन माना जाता है क्योंकि आज के दिन ही हिन्दी भाषा में पहला समाचार पत्र " उदन्त मार्तण्ड " का प्रकाशन हुआ था। पंडित जुगल किशोर शुक्ल जी ने 30 मई, 1826 को इसे कलकत्ता ( कोलकाता ) से एक साप्ताहिक समाचार पत्र के तौर पर शुरू किया था।

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साहित्य संगम संस्थान हरियाणा इकाई फिर रचा इतिहास -

साहित्य एक नज़र
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साहित्य संगम संस्थान हरियाणा इकाई

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साहित्य एक नज़र

साहित्य एक नज़र 🌅 , कोलकाता , 29 मई 2021

साहित्य संगम संस्थान हरियाणा इकाई शुक्रवार 28 मई 2021 को बेटी विषय पर कविता , गीत , ग़ज़ल विधा में सृजन करने के लिए साहित्यकारों को आमंत्रित किए । जैसा कि आपको विदित है कि नवरात्र में हमने अपना यूट्यूब चैनल आरंभ किया था और सर्वश्रेष्ठ वीडियोस यूट्यूब चैनल पर अपलोड की थी ।उसी श्रृंखला को आगे बढ़ाते हुए आज बेटी विषय पर आपकी वीडियोस आमंत्रित हैं। आज बेटी विषय  पर ही आप वीडियोस प्रेषित करेंगे। आईए बेटी विषय पर सृजन  कर वीडियोस बनाएँ व यूट्यूब पर अपलोड करवाएँ । इस कार्यक्रम में मुख्य आयोजक अध्यक्ष हरियाणा इकाई आदरणीय विनोद वर्मा दुर्गेश जी आयोजक डॉ दवीना  अमर ठकराल जी , अलंकरण प्रमुख डॉ अनीता राजपाल जी डॉ दवीना अमर ठकराल जी महागुरुदेव डॉ. राकेश सक्सेना जी (अध्यक्ष उत्तर प्रदेश इकाई) । राष्ट्रीय अध्यक्ष महोदय आ. राजवीर सिंह मंत्र जी , कार्यकारी अध्यक्ष आ. कुमार रोहित रोज़ जी , सह अध्यक्ष आ. मिथलेश सिंह मिलिंद जी, संयोजिका आ. संगीता मिश्रा जी ,  पश्चिम बंगाल इकाई अध्यक्षा आ. कलावती कर्वा जी ,  राष्ट्रीय सह मीडिया प्रभारी व पश्चिम बंगाल इकाई सचिव रोशन कुमार झा  ,आ. अर्चना जायसवाल जी , अलंकरण कर्ता आ. स्वाति जैसलमेरिया जी, आ. मनोज कुमार पुरोहित जी,आ. रजनी हरीश , आ. रंजना बिनानी जी, आ. सुनीता मुखर्जी , आ. मधु भूतड़ा 'अक्षरा' जी , आ. रीतु गुलाटी जी ,आ. भारत भूषण पाठक जी ,  समस्त सम्मानित पदाधिकारियों व साहित्यकारों के सहयोग से एक दूसरे की रचनाएं को वीडियो के माध्यम से सुनकर सार्थक टिप्पणी करते हुए लगभग  1800  कॉमेंट्स आएं जो कि संस्थान के लिए एक बड़ी उपलब्धि है ।

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30/05/2021 , रविवार
[29/05, 10:07 PM] प्रमोद ठाकुर: रोशन जी आज की पत्रिका में 4 पेज संगम साहित्य संस्थान से भरे है ये वही बात हो जाएगी जो मैंने आप से कही थी कि उनकी पत्रिका हमारी वजह से चल रही है। कृपया थोड़ा ध्यान दीजिए।
और कल मैं दो समीक्षा लिख कर आपके इसी नम्बर पर भेजूगां।
[29/05, 10:07 PM] Roshan Kumar Jha, रोशन: जी 🙏
[29/05, 10:08 PM] Roshan Kumar Jha, रोशन: हरियाणा इकाई वाले खुद दिए रहें सर जी
[29/05, 10:08 PM] Roshan Kumar Jha, रोशन: और एक आ. मंजू जी समीक्षा की है ।
[29/05, 10:08 PM] प्रमोद ठाकुर: ग्रुप मैं ही डालूँगा जिससे और लोग तेजी से अपना नाम लिस्ट में जोड़ेंगे
[29/05, 10:09 PM] Roshan Kumar Jha, रोशन: जी 🙏 स्वागतम् 🙏💐
[29/05, 10:11 PM] प्रमोद ठाकुर: मैनें देख ली लेकिन ये आप और हमें ध्यान रखना है एक दिन आगे पीछे करके चले नहीं तो जो पत्रिका से जुड़े लोग है चाहे ग्रुप में  हो या फेसबुक पर गलत मैसेज जायेगा। मुझे लगा तो मैंने कहा दिया बाकी आप स्वयं भी समझदार है
[29/05, 10:13 PM] Roshan Kumar Jha, रोशन: आप सही कहे है सर जी 🙏
[29/05, 10:13 PM] Roshan Kumar Jha, रोशन: 👍👍👍👍👍
[30/05, 8:23 AM] Roshan Kumar Jha, रोशन: क्या करूं आज फिर बोले है -
[30/05, 8:24 AM] Roshan Kumar Jha, रोशन: विवश हूँ मीडिया प्रभारी पद लेकर
[30/05, 8:24 AM] Roshan Kumar Jha, रोशन: और बाद में बोलेंगे मेरे संस्थान से ही साहित्य एक नज़र चलती है ।
[30/05, 8:29 AM] प्रमोद ठाकुर: कहना खबर को एडिट कर के भेजिये सर आज मेटर बहुत है सभी को स्थान देना है।
जब बीमारी बड़ी हो तो धीरे धीरे कम करों
[30/05, 8:30 AM] Roshan Kumar Jha, रोशन: जी 🙏 आज नए सदस्य भी आएं हैं ।
[30/05, 8:30 AM] प्रमोद ठाकुर: बाकी पत्रिका आप की है आप भी चाहेगें की पहले औरों को स्थान मिले
[30/05, 8:30 AM] प्रमोद ठाकुर: इस बोलिये
[30/05, 8:31 AM] Roshan Kumar Jha, रोशन: नहीं सर जी आप ही का सहयोग है ।
[30/05, 8:31 AM] Roshan Kumar Jha, रोशन: ठीक है
[30/05, 8:32 AM] प्रमोद ठाकुर: इस उनको बोलना है
[30/05, 8:32 AM] Roshan Kumar Jha, रोशन: हां हां , लाठी भी न टूटे सांप भी मर जाएं
[30/05, 8:32 AM] Roshan Kumar Jha, रोशन: जी 🙏
[30/05, 8:32 AM] प्रमोद ठाकुर: राजनीति
[30/05, 8:33 AM] प्रमोद ठाकुर: बो अपना आधिपत्य जमाना चाहते हैं
[30/05, 8:35 AM] Roshan Kumar Jha, रोशन: जी 🙏💐
[30/05, 8:36 AM] Roshan Kumar Jha, रोशन: इसीलिए कभी खुद तो कभी अन्य पदाधिकारियों के द्वारा भेजते हैं ।
[30/05, 8:36 AM] Roshan Kumar Jha, रोशन: आप समीक्षा कर लिए क्या
[30/05, 8:37 AM] प्रमोद ठाकुर: भाई अर्चना जी की कोई रचना प्रकाशन है हेतू पड़ी हो तो कोशिश करना आज प्रकाशित हो  जाये ये दबाब नहीं है प्रार्थना है।
[30/05, 8:37 AM] Roshan Kumar Jha, रोशन: आज कल आप अपनी रचनाएं नहीं दे रहें है ।
[30/05, 8:37 AM] प्रमोद ठाकुर: कल दो समीक्षा भेज दूँगा
[30/05, 8:37 AM] Roshan Kumar Jha, रोशन: आप कामेंट बाक्स में भेजें है क्या
[30/05, 8:37 AM] Roshan Kumar Jha, रोशन: ठीक है
[30/05, 8:38 AM] प्रमोद ठाकुर: वो झाँसी गया था इस वजह से बैसे भी औरों को पहले स्थान मिलना चाहिए
[30/05, 8:39 AM] Roshan Kumar Jha, रोशन: जी 🙏💐
[30/05, 8:39 AM] Roshan Kumar Jha, रोशन: कहां पर है इनकी रचना
[30/05, 8:40 AM] Roshan Kumar Jha, रोशन: पर आपके लिए हर दिन जगह है
[30/05, 8:40 AM] प्रमोद ठाकुर: कमिंट बॉक्स में फिर भी अभी दुबारा भेज रहीं है
[30/05, 8:41 AM] Roshan Kumar Jha, रोशन: ठीक है 🙏 स्वागतम्
[30/05, 8:41 AM] प्रमोद ठाकुर: आप जैसे मनीषी और बुद्धिजीवी व्यक्ति को मेरा सादर प्रणाम। हर संस्था की या पत्रिका की अपनी गरिमा होती है। और सभी के सम्मान पत्र एवं सम्मान की समान मान्यता होती है।
[30/05, 8:41 AM] Roshan Kumar Jha, रोशन: कुछ तो एक ही रचना को बार-बार प्रकाशित करवाना चाहते है , कितना ध्यान रखें ।
[30/05, 8:42 AM] प्रमोद ठाकुर: ये मैंने राजवीर जी को भेजा है
[30/05, 8:42 AM] Roshan Kumar Jha, रोशन: शानदार 🙏
[30/05, 8:42 AM] प्रमोद ठाकुर: एक रचना दो बार मत छापिये कोई भी हो
[30/05, 8:43 AM] Roshan Kumar Jha, रोशन: कोई पोस्टर को पढ़ते ही नहीं है ।
[30/05, 8:44 AM] Roshan Kumar Jha, रोशन: एक रचना के जगह एक ही में तीन चार रचना भेज देते है ।
[30/05, 8:50 AM] प्रमोद ठाकुर: कृपया सभी रचना कारों से मेरा हाथ जोड़ कर विनम्र निवेदन है एक दिन में एक ही रचना भेजें जब वो रचना प्रकाशित हो जायें तब दूसरी प्रेषित करें।
रचनायें काफी आ रही हैं हमे भी परेशानी होती है कृपया सहयोग बने रखें
प्रमोद ठाकुर
ग्वालियर
[30/05, 8:56 AM] Roshan Kumar Jha, रोशन: शानदार सम्बोधित
[30/05, 9:25 AM] Roshan Kumar Jha, रोशन: बस रचना प्रकाशित करवाना ही आज के साहित्यकारों का धर्म है ।
[30/05, 11:55 AM] प्रमोद ठाकुर: कहते है कलम किसी की मोहताज़ नही होती।
इसके आगे किसी ताज की कोई औकात नही होती।
1 जून 2021 को "समीक्षा स्तम्भ" के अंतर्गत मिलिये प्रखर साहित्कार श्री अनिल "राही" तानसेन नगरी ग्वालियर मध्यप्रदेश एवं अपनी कविताओं में राजस्थान की माटी की खुशबू बिखेरती आदरणीय सुप्रसन्ना झा जोधपुर राजस्थान से।
[30/05, 11:56 AM] प्रमोद ठाकुर: रोशन जी ये न्यूज प्लीज़ लगा दी जिये
[30/05, 11:56 AM] Roshan Kumar Jha, रोशन: जरूर प्रथम पृष्ठ पर ही
[30/05, 11:57 AM] Roshan Kumar Jha, रोशन: फोटो है क्या ?
[30/05, 11:57 AM] प्रमोद ठाकुर: जी इन दोनों की फ़ोटो के साथ
[30/05, 11:57 AM] Roshan Kumar Jha, रोशन: अर्चना जी की रचना हमें नहीं मिली है ।
[30/05, 11:57 AM] प्रमोद ठाकुर: जी
[30/05, 11:58 AM] प्रमोद ठाकुर: आज के लिए
[30/05, 11:58 AM] Roshan Kumar Jha, रोशन: 🙏🙏🙏💐
[30/05, 11:58 AM] प्रमोद ठाकुर: फेसबुक पर है सर
[30/05, 12:03 PM] Roshan Kumar Jha, रोशन: यदि आपको मिले तो भेजिए आ. अर्चना जोशी की रचना
[30/05, 1:05 PM] प्रमोद ठाकुर: शानदार
[30/05, 1:05 PM] Roshan Kumar Jha, रोशन: इसे आज प्रकाशित करनी है क्या
[30/05, 1:05 PM] Roshan Kumar Jha, रोशन: स्वागतम् 🙏
[30/05, 1:06 PM] प्रमोद ठाकुर: नही 1 जून के लिये है
[30/05, 1:07 PM] प्रमोद ठाकुर: ऊपर हैड लाइन देदीजिये समीक्षा  स्तम्भ
[30/05, 1:07 PM] प्रमोद ठाकुर: 1 जून से प्रति दिन
[30/05, 1:14 PM] प्रमोद ठाकुर: नाम-   श्रीमती सुप्रसन्ना झा
जन्म-  बिहार,  सहरसा
वर्तमान- जोधपुर, राजस्थान
शिक्षा-   हिंदी ग्राइज्वेशन 
           (वीमेंस कालेज)
               सहरसा
         बिहार , यूनिवर्सिटी
            म्यूजिक प्रभाकर
         इलाहाबाद ,यूनिवर्सिटी
          2009 से 2016 तक
            ( अध्यापन कार्य)
                भरतनाट्यम
                 (संचालिका)
      बासनी ब्रांच, सरस्वती नगर,
            जोधपुर , राजस्थान।

सम्मानित रचना
1.जय माँ
2.संकल्प
3.स्वपरिचय
4.वैशाखी
5.हम-तुम
6.हे कंत! तुम बिन मेरे वसंत

अप्रकाशित कहानी
1. जिंदगी का सफर
2.तेरा अक्स चाँद मे
3.परिचय
4.तेरा आशियाना
5.वो आंटी
      
भावांजलि (कविता संग्रह)
[30/05, 1:14 PM] प्रमोद ठाकुर: "वेदना"
कोरोना हैं डरावना,
हर दिशा में हो रहा उठावना।
ऐसे में किसका मन न होगा
विकल।

पल - पल सुनकर मौत सुनकर मौत की ख़बर,
लगता बड़ा भयावना।
नहीं, नहीं, होता नहीं,
मुझसे अब आराधना।

भगवान अगर तुम हो तो फिर,
ये कोहराम कैसा हो रहा।
अगर नही हो तो फिर,
तेरा नाम कैसा हो रहा।

हर तरफ मानव दहशत में जी रहा।
घुट-घुटकर आँसुओं का घुट पी रहा।
आशाओं के दीप थामें , लौ को हवाओं से बचा रहा।
होकर कैद घण्टों प्रतिपल क़ैदियों सा जी रहा।

हा, हा भगवन तुम ये सब,
निर्दयी बन क्यों देख रहा।
मानव का जीवन तो इस पल,
ना इधर रहा ना उधर रहा।

सुप्रसन्ना झा
जोधपुर
राजस्थान
[30/05, 1:15 PM] प्रमोद ठाकुर: "समीक्षा"
आदरणीय सुप्रसन्ना जी द्वारा रचित ये रचना आज फैली महामारी की वेदना को दर्शाती है कि मनुष्य आज इस महामारी से कितना लाचार है। इस इतना भयवीत है कि पता नहीं कब कौन सी अप्रिय घटना सुनने को मिल जाये बस उस भगवाग से प्रार्थना है कि अगर तुम हो तो इतना कोहराम क्यो है।और तू इतना निर्दयी होकर ये सब क्यों देख रहा है। अब मुझसे तेरी पूजा भी नहीं होती।हर इंसान साँसों के दीप ज़हरीली हवाओं से बचने का असफल प्रयास कर रहा है।
सुप्रसन्ना जी की रचना यथार्थ से लबरेज़ है।

सुप्रसन्ना जी की कई रचनाओं को राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित किया जा चुका है।आपका एक कविता संग्रह भावांजलि भी है। मैं ऐसी प्रखर लेखनी को नमन करता हूँ।
[30/05, 1:15 PM] प्रमोद ठाकुर: इस तरह समीक्षा स्तम्भ रहेगा
[30/05, 1:16 PM] प्रमोद ठाकुर: अभी अनिल राही ग्वालियर का और भेज रहा हूँ
[30/05, 1:20 PM] Roshan Kumar Jha, रोशन: जी शानदार समीक्षा किए हैं ।
[30/05, 1:32 PM] प्रमोद ठाकुर: जी धन्यवाद मैं अनिल जी की समीक्षा लिख रहा हूँ वो भी थोड़ी देर में भेज रहा हूँ ये दोनों 1 जून के लिये है
[30/05, 2:21 PM] प्रमोद ठाकुर: अनिल राही
शिवालय 93 मनोहर एनक्लेव
सिटी सेंटर ग्वालियर
मध्यप्रदेश 474011
9425407523
प्रवन्धक
अपैक्स बैंक
सिटी सेंटर शाखा
ग्वालियर
उपलब्धियाँ*****
देश के विभिन्न साहित्य समूहों से जुड़कर अपनी रचना के माध्यम से अपने सृजन में निखार लाना प्रोतसाहन के रूप में प्राप्त ढेरों प्रमाणपत्र, कहानी,कविता,लेख,समीक्षाओं में गहन अभिरुचि, सामाजिक उत्तरदायित्व को अखिल विश्व गायत्री परिवार शांति कुंज हरिद्वार से जुड़कर मिशन के कार्यों में शाखा ग्वालियर के माध्यम  से गतिशीलता प्रदान करना आदि आदि
[30/05, 2:22 PM] प्रमोद ठाकुर: रचना
"पंचतत्व"

क्षिति, जल, पावक, गगन समीर
पंच रचित यह अधम शरीर।
पाँच तत्व से बनी यह काया
फिर क्यों गुमान करो इस पर
क्यों इस पर इतना इतराना।

इक दिन माटी में , है मिल जाना।

पंच तत्व मिल करकें,
दे रहे जीवन का संदेश।
धरती पर सुख से रहना  सीखों
संम्मान करों पवित्र माटी का
यही रीत हम सबको है निभाना।

इक दिन माटी में, हैं मिल जाना।

जल को पवित्र बनाकर,
प्रदूषित रहित है बनाना
जल ही जीवन है सबका
इस संदेश को हर घर है पहुँचाना।

इक दिन माटी में , है मिल जाना।

हवा में ज़हर घोलकर,
पूरा वायू मंडल अशुद्ध कर दिया
वायू मंडल से इसे है हटाना

इक दिन माटी में, है मिल जाना।

शुद्ध स्वच्छ निर्मल रहेगा आकाश
निश्चन्द निर्वात परिन्दें उड़ते पक्षी
इंद्र धनुषी छटा से बिखरा
नील गगन आकाश
धरती पर छनके स्वर्णमयी,
आयेगा प्रकाश
आकाश की इस सुंदरता को
प्रखर है बनाना।

इक दिन माटी  में, है मिल जाना।

अनिल राही
ग्वालियर
[30/05, 2:23 PM] प्रमोद ठाकुर: समीक्षा
अनिल राही जी की लेखनी जब कागज़ पर विचरण करती है तो बिल्कुल आज़ाद परिंदे की तरह कागज़ पर शब्दों को उनके भावों को उकेरती चली जाती है और सृजन होता है न भूलने बाली एक अद्भुत रचना का इस रचना में भी उन्होंने कितनी सहजता से कितना अद्भुत सन्देश छोड़ा है कि मनुष्य का शरीर  पाँच तत्वों से बना है फिर भी हम भौतिक वस्तूओं के पीछे भागते रहतें है और प्रकृति को कितना नुकसान पहुचते हैं इसी का नतीजा है कि आज हम कितनी ही महामारियों से जूझ रहे है हमने भौतिक वस्तूओं का भोग करतें करतें अपने चारों और प्रदूषण की एक चार दिवारी बना ली इतना दिखावा क्यों जब सभी को इक दिन इसी मट्टी में मिल जाना है।

अनिल जी से कोई भी विषय अछूता नही रहा हर विषय पर इनकी कलम ने अपने जौहर दिखाए है।तानसेन की नगरी ग्वालियर की मिट्टी ही ऐसी है
इस मिट्टी  को शत शत नमन।
[30/05, 2:23 PM] प्रमोद ठाकुर: ये भी 1 जून के अंक के लिए है
[30/05, 2:24 PM] Roshan Kumar Jha, रोशन: जी धन्यवाद 🙏
[30/05, 2:24 PM] प्रमोद ठाकुर: जी शुक्रिया
[30/05, 2:24 PM] Roshan Kumar Jha, रोशन: अर्चना जी की रचना देखकर बताइए
[30/05, 2:29 PM] प्रमोद ठाकुर: आज  मुझे  तीनों मिल गये
  भूत , भविष्य ,और वर्तमान

तीनों से बहस हो गई   ,भूत ने
भविष्य से   से कहा देखो

मैंने भविष्य को खा लिया ,
हो सके तो वर्तमान को बचा लो

हर पल को जीलो , जीवन तो
क्षणभंगुर हो गया ,

देखो , बुजुर्ग तो जा रहें हैं, पर जवान भी
नहीं बच  पा रहे हैं ,अब  बच्चे जो है

बेचारे वे भी तो ज़ंग लड़ रहे हैं
चलो वक्त को देख लो हो सके

तो भूत , भविष्य छोड़ो , वर्तमान बचा लो
वैसे भी सब तो राख हो रहा है ,

राख में ही अलख जगा लो,सब में जीवन होता है
ये बात है बस वर्तमान बचा लो

तो भूत भविष्य सब बच जाएगा
जिंदगी से जीवन संवर जाएगा

अर्चना जोशी
भोपाल मध्यप्रदेश
[30/05, 2:29 PM] प्रमोद ठाकुर: अगर ये पहले प्रकाशित हो चुकी हो तो प्रकाशित मत कीजिये
[30/05, 2:30 PM] Roshan Kumar Jha, रोशन: नहीं हुई है
[30/05, 2:31 PM] प्रमोद ठाकुर: जी धन्यवाद
[30/05, 3:55 PM] प्रमोद ठाकुर: साहित्य संगम संस्थान द्वारा अब तक निकाली गई पत्रिकाएं

इनमें से कुछ तो चार वर्षों से नियमित प्रकाशित हो रही हैं। कुछ बाद में आरंभ हुईं।

मात्र पचीस ही हैं।
😂🙏😀🙏😂

https://drive.google.com/folderview?id=10lp6s3QEpZhrXLy6YDtvnRXeTTwy9wyO
[30/05, 3:55 PM] प्रमोद ठाकुर: रोशन जी इस पोस्ट को ध्यान से पढ़ो
[30/05, 4:55 PM] Roshan Kumar Jha, रोशन: देखें रहें ।
[30/05, 7:36 PM] प्रमोद ठाकुर: रोशन जी अभी समय लगेगा
[30/05, 7:48 PM] Roshan Kumar Jha, रोशन: थोड़ा समय लगा ।
[30/05, 7:50 PM] प्रमोद ठाकुर: जी कोई बात नहीं
[30/05, 8:40 PM] प्रमोद ठाकुर: सर क्या हुआ
[30/05, 8:52 PM] प्रमोद ठाकुर: सर हुआ क्या है कुछ तो बताइए
[30/05, 9:01 PM] Roshan Kumar Jha, रोशन: बस कुछ देर और
[30/05, 9:01 PM] प्रमोद ठाकुर: ओके
[31/05, 12:04 AM] Roshan Kumar Jha, रोशन: 🙏🙏🙏🙏💐

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साहित्य एक नज़र 🌅 , व्हाट्सएप ग्रुप
[30/05, 8:50 AM] प्रमोद ठाकुर: कृपया सभी रचना कारों से मेरा हाथ जोड़ कर विनम्र निवेदन है एक दिन में एक ही रचना भेजें जब वो रचना प्रकाशित हो जायें तब दूसरी प्रेषित करें।
रचनायें काफी आ रही हैं हमे भी परेशानी होती है कृपया सहयोग बने रखें
प्रमोद ठाकुर
ग्वालियर
[30/05, 8:56 AM] Roshan Kumar Jha, रोशन: जी 🙏 सर जी 🙏
[30/05, 3:21 PM] साहित्य राज: साहित्य संगम संस्थान द्वारा अब तक निकाली गई पत्रिकाएं

इनमें से कुछ तो चार वर्षों से नियमित प्रकाशित हो रही हैं। कुछ बाद में आरंभ हुईं।

मात्र पचीस ही हैं।
😂🙏😀🙏😂

https://drive.google.com/folderview?id=10lp6s3QEpZhrXLy6YDtvnRXeTTwy9wyO
[30/05, 3:38 PM] +91 : 🤗🤗🤗🙏

[30/05, 3:59 PM] प्रमोद ठाकुर: आदरणीय हमारी एक ही है। और आपकी पिछले 4 बर्षो से निकल रही है हमें आज का अंक मिलाके 20 दिन हो जायेगें हम अभी 4 साल की बराबरी नही कर सकते ईश्वर करे आपकी पत्रिका निरंतर निकलती रहें। हमे भी दुआ दे कि हम भी आगे बढे।

[30/05, 4:19 PM] ( आ. राजवीर सिंह मंत्र जी ) साहित्य राज: सतत विकास की कामना है। इसीलिए साथ हूँ, समयाभाव है तथापि।
🙏💐🙏
[30/05, 4:22 PM] +91 : 🙏🙏
[30/05, 9:22 PM] +91 आ. सचिन जी , : पृष्ठ नम्बर 4 पर मेरी 🍂🍃रचना को स्थान देने के लिए मैं पूरी संपादक टीम का तहे दिल से शुक्रिया करता हूँ🙏🏻
[30/05, 9:28 PM] +91 आ. नीरज सेन जी : बहुत आभार, तहदिल से धन्यवाद आदरणीय संपादक महोदय,🙏🌷🥰
[30/05, 9:38 PM] डॉ - श्याम लाल गौड़: 💐💐💐बधाई
[30/05, 9:39 PM] +91 : मनोबल बढ़ाने के लिए बहुत आभार, साहित्य एक नज़र🙏🌷

___________________________________
[30/05, 9:38 PM] सरीता साहित्य: Sir meri poem ki bhi magazine me ni aayi..?
[30/05, 9:40 PM] सरीता साहित्य: Kb ayegi..
[30/05, 9:40 PM] Roshan Kumar Jha, रोशन: कल
[30/05, 9:41 PM] Roshan Kumar Jha, रोशन: ये आपकी अपनी पत्रिका है । जब चाहे तब ही , पर दूसरों को भी जगह देना है ।
[30/05, 9:41 PM] सरीता साहित्य: जी बिल्कुल...
[30/05, 9:41 PM] सरीता साहित्य: Oky
[30/05, 9:41 PM] Roshan Kumar Jha, रोशन: 🙏🙏🙏🙏🙏💐
___________________________________
[30/05, 7:49 AM] रोहित रोज़ जी: 3700 कमेंट का नया रिकार्ड
खबर बनाईये बढिया सी और छापिये अनुज
[30/05, 8:14 AM] Roshan Kumar Jha, रोशन: जी 🙏 गुरु जी 🙏

आ. सुधीर श्रीवास्तव जी फोन पर बात किए पत्रिका के बारे में रचना भेजें , कवि श्रवण कुमार जी पर्सनली रचना भेजें , आ. शायर देव मेहरानियाँ  जी राशि से सहयोग देने के लिए बोले ।
___________________________________

हिन्दी कविता-12(33)
30-05-2019 वृहस्पतिवार 10:08
*® रोशन कुमार झा
•रेल सुरक्षा अभियान!

जीवन जीऊँ पक्षी बनकर जाऊँ उड़
पास नहीं पहुँचू दूर!
खुद हटाऊँ काँटा पर बनकर रहूँ फूल
रेल सुरक्षा अभियान के बारे में जाननें
और बताने आया हूँ हावड़ा बामनगाछी
से सिंगुर !

मानेंगे नियम
आप और हम!
इस जीवन पर करेंगे रहम
अब ना उठायेंगे रेल लाइन पर
अपना कदम!

पुल करेंगे पार
चाँहे कैसा भी हो हाल!
आप और हम पर टिका है भविष्य काल
तो क्या है रेलवे सुरक्षा पर आपका विचार!

प्रकट कीजिए अभी आज नहीं इसी साल
और करना है हम आप को
रेलवे सुरक्षा का प्रचार!
राह रोशन करना है हटाकर अंधकार
नियम मानियें डरकर नहीं रखकर
जीवन पर ख़्याल!

*®• रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज कोलकाता भारत
मो-6290640716,(8420128328)
9433966389(कविता-12-33
30-05-2019 वृहस्पतिवार 10:08
The Bharat scouts & Guides
Eastern Railway Howrah
Bamangachi नहीं हम कामारकुण्डु
N.D.college st John Ambulance
Roshan Kumar Jha(31st Bengal
Bn Ncc Fortwilliam Kolkata-B
Reg no-WB17SDA112047
गंगाराम कुमार झा झोंझी मधुबनी बिहार
लिलुआ ड्युटी से-08:33
Amrita बात ncc

----------------

अंक - 20
🌅 साहित्य एक नज़र 🌅
कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका
मो - 6290640716
✍️📖
  हिन्दी पत्रकारिता दिवस
📙 🗞️📝
30/05/2021, रविवार
ज्येष्ठ कृष्ण 4 संवत 2078
पृष्ठ -  1
प्रमाण पत्र - 13 ( आ.  नीरज सेन ( क़लम प्रहरी ) )
कुल पृष्ठ - 14
✍️📖
   📙
🗞️📝
साहित्य एक नज़र  🌅 , अंक - 20
Sahitya Ek Nazar
30 May , 2021 ,  Sunday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর
30 मई 2021 ,  रविवार


अंक 20
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साहित्य एक नज़र अंक - 20
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अंक -  19 - 21


यूट्यूब - आ. रंजना बिनानी जी
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नमन :- माँ सरस्वती
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आमंत्रित
रचनाएं व साहित्य समाचार आमंत्रित -
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अंक - 19

अंक - 20

अंक - 21
दिनांक :- 30 मई 2021 , सुबह 11 बजे तक
दिनांक - 29/05/2021 से 31/05/2021 के लिए
दिवस :- शनिवार - सोमवार
इसी पोस्ट में अपनी नाम के साथ एक रचना और फोटो प्रेषित करें ।

यहां पर आयी हुई रचनाएं में से कुछ रचनाएं को अंक - 19 तो कुछ रचनाएं को अंक 20 एवं बाकी बचे हुए रचनाओं को अंक - 21 में शामिल किया जाएगा ।

सादर निवेदन 🙏💐

समस्या होने पर संपर्क करें - 6290640716

आपका अपना
✍️ रोशन कुमार झा

अंक - 18

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अंक - 17
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एक रचनाकार एक ही रचना भेजेंगे । एक से अधिक रचना या पहले की अंक में प्रकाशित हुई रचना न भेजें ।


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अंक - 17

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अंक - 16
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_____________________________
🌅 साहित्य एक नज़र 🌅
कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका
    

🏆 सम्मान - पत्र 🏆

प्र. पत्र . सं - _ 011 दिनांक -  _  30/05/2021

🏆 सम्मान - पत्र 🏆

आ.  _  नीरज सेन ( क़लम प्रहरी )  _  जी

ने साहित्य एक नज़र , कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका अंक  _  1 - 20  _   में अपनी रचनाओं से योगदान दिया है । आपको

         🏆 🌅 साहित्य एक नज़र रत्न 🌅 🏆
सम्मान से सम्मानित किया जाता है । साहित्य एक नज़र आपके उज्ज्वल भविष्य की कामना करता है ।

रोशन कुमार झा   , मो :- 6290640716

आ. प्रमोद ठाकुर जी
अलंकरण कर्ता - रोशन कुमार झा

_____________________________

🌅 साहित्य एक नज़र 🌅
कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका

1.

खुशखबरी ! खुशखबरी ! खुशखबरी !

माँ सरस्वती, साहित्य एक नज़र दैनिक पत्रिका मंच को नमन 🙏 करते हुए आप सभी सम्मानित साहित्य प्रेमियों को सादर प्रणाम 🙏💐।

साहित्य एक नज़र दैनिक पत्रिका  "पुस्तक समीक्षा स्तम्भ" में चयनित पुस्तकों के लेखकों की सूची जससे साहित्कारों को समीक्षा प्रमाण पत्र दिया जा सके जून 2021 माह के लिए केवल 60 स्थान है ।

1. आ. श्री रामकरण साहू "सजल" बबेरू (बाँदा) उ.प्र.
2. आ. अजीत कुमार कुंभकार
3.आ. राजेन्द्र कुमार टेलर "राही" नीमका , राजस्थान
4.निशांत सक्सेना "आहान" लखनऊ
5. आ. कवि अमूल्य रतन त्रिपाठी
6. आ. डॉ. दीप्ती गौड़ दीप ग्वालियर
7. आ. अर्चना जोशी जी भोपाल मध्यप्रदेश
8. आ. नीरज सेन (कलम प्रहरी) जी कुंभराज गुना ( म. प्र.)
9. आ. सुप्रसन्ना झा जी , जोधपुर
10. आ.  श्री अनिल "राही" जी

नोट:- कृपया अपना नाम जोड़ने का कष्ट करें कृपया सहयोग राशि 30/- रुपये इसी नम्बर 9753877785 पर फ़ोन पे/पेटीएम/गूगल पे करकें स्क्रीन शॉट भेजने का कष्ट करें।

आपका अपना
किताब भेजने का पता
प्रमोद ठाकुर
महेशपुरा, अजयपुर रोड़
सिकंदर कंपू,लश्कर
ग्वालियर
मध्यप्रदेश - 474001
9753877785
रोशन कुमार झा

2.
आप सभी को हिन्दी पत्रकारिता दिवस की शुभकामनाएं -
✍️📖
🌅 साहित्य एक नज़र 🌅
कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका
   📙
🗞️📝

हिन्दी पत्रकारिता के लिए 30 मई को बहुत अहम दिन माना जाता है क्योंकि आज के दिन ही हिन्दी भाषा में पहला समाचार पत्र " उदन्त मार्तण्ड " का प्रकाशन हुआ था। पंडित जुगल किशोर शुक्ल जी ने 30 मई, 1826 को इसे कलकत्ता ( कोलकाता ) से एक साप्ताहिक समाचार पत्र के तौर पर शुरू किया था।
3.

" समीक्षा स्तम्भ "

कहते है कलम किसी की मोहताज़ नहीं होती।
इसके आगे किसी ताज की कोई औकात नहीं होती।
1 जून 2021 को "समीक्षा स्तम्भ" के अंतर्गत मिलिये प्रखर साहित्कार श्री अनिल "राही" जी  तानसेन नगरी ग्वालियर मध्यप्रदेश एवं अपनी कविताओं में राजस्थान की माटी की खुशबू बिखेरती आदरणीया सुप्रसन्ना झा जी जोधपुर राजस्थान से।

4.
जब हवा बाग से गुज़री,
बरबस एक कली से टकरा गयी।
उसकी ख़ुशबू,
उसके ज़हन में समा गयी।
अब वक़्त वे वक़्त हवा का,
कली से टकराना।
उसकी खुशबू का अहसास पाना।
ऐसा ही हाल कली का रहने लगा।
एक - दूसरे का एहसास न पाकर,
मन बेचैन रहने लगा।
एक दिन जब हवा बाग से गुजरी,
कली को न पाकर बेचैन हो गयी।
बाग के दरख़्तों से पूछती,
मेरी कली कहाँ गयी।
तभी हवा की नज़र,
मुस्कुरातें फूल पर गयी।
फूल ने मुस्कुरा कर कहा,
तुम्हारी कली अब जवां हो गयी।

✍️ प्रमोद ठाकुर
ग्वालियर
9753877785

5.
#नमन मंच
#साहित्य एक नजर
#अंक 19 से 21 तक के लिए
#विधा 

कविता
पिता

माँ  की ममत्व  की छाँव  में,
पिता का प्यार कमतर हो जाता है,
माँ का प्यार  वटवृक्ष मानो  तो,
पिता का प्यार सूरज हो जाता है।
सूरज ना हो गर  जग में तो,
घनघोर  अंधियारा छा जाता है,
पूज्य  पिता हो  जीवन  में,
उजियारा ,रौशन कर जाता है  ।
पिता एक ऐसा इंसान जिसका प्यार,
छिपा जाता उसका सख्त व्यवहार है,
अनुशासन का माप दंड का पालन ही,
बना जाता हमें काबिल इंसान है ।
पिता  करता  रात-दिन  एक है,
कभी अस्पताल के चक्कर काटता,
दफ़्तर, व्यवसाय, परिवार के बीच,
सामंजस्य बिठाता एक इंसान हैं।
कई जख्म, दुःखों को छिपाता फिरता,
सामाजिक, पारिवारिक मर्यादाओं ,
सारे मुश्किलों को सुलझाता फिरता,
यश-अपयश ढोता वह एक इंसान है।
करता रखता प्यार,ख्याल सबों का वो
प्रायः मगर बुढ़ापे में अपनों का ही,
पाने को प्यार तड़पता, तरसता,
नज़र आता लाचार, बेवस इंसान वो।
दुआ, विनती,  कामना मेरी ,
रहे मिलती छाया, प्रेरणा उनकी,
कभी ना भींगे  आँखे उनकी,
क्योंकि वो भी एक इंसान है।

✍️ दिनेश कौशल
कवि एवं शिक्षक
लक्ष्मीसागर , दरभंगा ( बिहार )

6.
कविता का शीर्षक
“ कहाँ गया वो ज़माना “

मेरी अंगीठी के कोयले
माँ की याद दिलाते हैं।
गोबर की उपलों
बैरी की छत
बुआ का घर महकाते हैं।
गली में गडवी ले,
राम राम जपते जाना
पेड़ से कचनार तोड़
सब्ज़ी बनाना
गाय को पेड़ा खिलाना
धूप में धागे में पीरो
शलगम सुखाना
मलमल की साड़ी का पल्ला
पानी में निचोड़ मुँह
पर बिखराना
उज्जवैन को नमक में
मिला फककी मार जाना
दादी का मुझ को खिला
पेट दर्द दूर भगाना
मेरा रंगीन गीटों का उछलना
और मिट्टी में सटापू खेल जाना
दादी की काँगड़ी ले
रज़ाई में बैठ जाना
कहाँ गया वो ज़माना?
कहाँ गया वो ज़माना?

कवयित्री , विशेष शिक्षिका
✍️ मधु खन्ना
आस्ट्रेलिया ।

7.

जिंदगी.

जिंदगी में.
बिखराव अंतर का हो तो
खुद को समेटना ही ज़रूरी है.
हालात मन के हों जब बेकाबू
तब ठहराब ज़रूरी है..
कुछ लोग हों अपने साथ
में ये टूटी आस में ज़रूरी है..
रुके जजवात हों दिल में
तब दर्द बह जाना ज़रूरी है.
आँसू पोंछ दें चुपके से वे लोग
"जिंदगी "में ज़रूरी हैं..
दस्तक बहुत थी खुशियों  में
लोगों की मेरे  दर पर..
अँधेरों ने जब घेरा तब लोग
जो आए जिंदगी में..
वही ज़रूरी हैं...
दरवाजे घर के खुले थे
हमेशा ही लेकिन...
किसी की आहट  मुश्किल में
आना तो ज़रूरी है....
. खबरों के इंतजार में
कान तो लगे हैं सबके..
लेकिन हौले से
कानों में जो गुनगुनाये...
"मैं हूँ ना " बस अवाज
यही आना ज़रूरी है..
आहट अपनों के क़दमों की..
महसूस करना ज़रूरी है....
  यूँ तो रीत दुनिया की है यही दोस्तो...
सलाम करती है ये दुनिया
चढ़ते सूरज को...
ढलते सूरज के तो बस
बनाती किस्से कहानी है...
अपने तो खबर ही नहीं
लेते किस हाल में हैं...
जिनके वास्ते कभी ये
जान भी हाजिर थी...
यही तो दस्तूर है दुनिया का
इसे ही लोग कहते ...
दुनियदारी हैं ...
अरे ओ सीख ले "गाफिल "
यही तो असल दुनियादारी है...
लोग सच ही कहते हैं
अकल के कच्चे उनको..
खेलना आया नहीं
जिनको जज़्बातों से....
कैसे अनाड़ी से वे
कच्चे खिलाड़ी हैं...

✍️ पूजा नबीरा
काटोल , नागपुर, महाराष्ट्र
स्वरचित

पृष्ठ 5 अंक 20
8.
आप सभी को राम राम जी।।
मैं समूह से नया जुड़ा हूँ,

मेरी पहली रचना प्रकाशित होने के लिए💐

वर्तमान समय में देश में एक वाद/विवाद चल रहा है दवाइयों की महत्ता को लेकर,
उस पर कुछ शब्द लिखने का प्रयास किया है👇🏻

कैसा दौर आ गया है
अब लड़ने लगी दवाई,
एलोपैथी या आयुर्वेद
दोनों ने जान बचाई,
आयुर्वेद उपचार पुराना,
सतयुग, त्रेता, द्वापर
वैध राज जी घोल पिलाये,
लाय हनुमत जाकर
कर्तव्य बनता है पहले
,समझ लो मेरे भाई
एलोपैथी या आयुर्वेद,,
कोई छोटा बड़ा नही है,
मन में दुविधा भारी
दोनों का उपचार बराबर,
मिलती सुविधा जारी
दोनों की ऊँची पदवी ये,
एक दूजे की परछाई
एलोपैथी या आयुर्वेद,,
कठिन दौर में क्यों कर
बैठे,आपस में हम झगड़ा
पहले देश बचालो यारों,
फ़िर कर लेना रगड़ा
हाथ जोड़कर कहता सचिन
, थोड़ी करो समाई
एलोपैथी या आयुर्वेद,,
कैसा दौर आ गया है
अब लड़ने लगी दवाई,
एलोपैथी या आयुर्वेद
दोनों ने जान बचाई,

✍️ सचिन गोयल
गन्नौर शहर सोनीपत हरियाणा

29-05-2021
Insta@,,
Burning_tears_797

9.

शीर्षक-

"सुबह का वंदन"

कर लो स्वीकार सुबह का वंदन,
सबको करता हूँ मैं अभिनंदन,
सबके जीवन ऐसे महके,
जैसे वन में महके चंदन।
राम नाम का जो करते चिंतन,
बाधाएं होते उनके खंडन,
हरपल चेहरे ऐसे खिले,
जैसे वन में खिले उपवन।
मेहनत से मिलते है कुंदन,
भाग्य पर कभी करो न रोदण,
कर्म से ही भाग्य बदलते,
ऐसी बातें कहे थे गुरुजन।
माँ-बाप के जो पूजते चरण,
वही पुत्र कहलाते श्रवण,
चारों धामों की जरूरत न होते,
रहते उन पर सब देवताओं प्रसन्न।

         ✍️ श्रवण कुमार

10.
सायली छंद
पंचदेव

क्षमा
करो प्रभु
बहुत हो चुका
पीड़ा हरो
विनती।

महामारी
चतुर्दिश भारी
सुनो विनय हमारी
भोले भंडारी
शरणम्।

नाथ
मौन तोड़ो
भूल माफ करो
कष्ट हरो
त्रिपुरारी।

विनाश
सामने खड़ा
मुस्कुरा रहा है
आँखे खोलो
त्रिनेत्रधारी।

आखिर
कब तक
मौन रहोगे प्रभु
इरादा क्या
समूलनाश ।

✍️ सुधीर श्रीवास्तव
      गोण्डा, उ.प्र.
   8115285921

11.

#नमन मंच
#विषय मां

माँ

हे मां ममता की
मूरत तू जीवन पतवार
मै तेरा वजूद तू मेरी
जान अपरम्पार।।
तेरे बिना मां मेरा
जीवन नहीं बारम्बार
मां मै तेरा वजूद तू
ही मेरी पालनहार।।
हे माँ मै इस दुनिया
में तेरा वजूद होऊ
बिन बारिश बन छोटा
तेरी गोदी में सोऊ
तेरा आंचल पकड़कर
  मां सदा तेरे संग
तेरी बाहों में हौले
हौले मीठी नींद जोऊ।।
मेरा जीवन मां तेरी
देन तू मेरा हाथ सदा
तेरे आंचल में मां
हमेशा रहना चाहता हूं।।
तेरे संग  जीवन  का
सुख दुख  बांटना
मै हमेशा मां तेरा
प्यार दुलार चाहता हूं।।
तेरी गोदी से मां मैं
चन्दा मामा को पल
पल झोली भर कल्पना
साकार चाहता हूं।
तेरे हाथों से दूध,
खाना, पीना चाहता हूं।।
हे मां मै  तेरे
निस्पृह, निर्भय  बनना है।।
बचपन की  परियो
की कहानी चाहता हूं।।
हे मां तुम स्नेह प्रेम
की सहज रूप मूरत
मै तेरे चरणों की की 
रज को  माथे पर
संसार में दुःख सुख
का संवर्धन चाहता हूं।।
मां    प्यार के बिना
सब  सुना लगता है
हर किसी की शक्ल में
खुदा नजर..आता है
मेरे  दर्द  की  कोई   
दवा  नहीं यारो
किसी गैर में भी
प्यार नजर...आता है।
कभी किसी से
नहीं मिली उल्फत यारो,
ये माना हमने जिंदगी
अभी नहीं.. .हारा है।
कभी किसी के प्यार को
कमजोर मत समझो
ये प्यार मौत के मुंह से
भी खींच ....लाता है।
ये बात सच है प्यार में 
इंसान टूट  जाता है,
इंसान क्या नफरत में
खुदा भी छूट. ..जाता है।
इस कदर  हावी था इश्क
  का  सितम  मेरे,
उनको नफरत में भी मां
ही नजर .आता है।

✍️ कैलाश चंद साहू
बूंदी राजस्थान

12.

||ॐ श्री वागीश्वर्यै नमः||

कविता
मानव धर्म त्यजो नहीं

मानव देह मिली तुम्हें है,
मानव धर्म त्यजो नहीं|
सद्भाव सदा रहे हृदय में,
दुर्भाव से तुम जुड़ो नहीं||
महारोग का काल चल रहा,
इसमें सभी बंधु होते हैं|
बंधुत्व को जिसने भी त्यागा
,इक दिन वे सब रोते हैं||
सुख दुःख दोनों अनुगामी
हैं, सदा बदलते रहते हैं|
तिरस्कार क्यों दुःखी जनों का,
दुःखों से कुंदन बनते हैं||
धनलिप्सा में लिपटा तू है,
दुःखियों को तू लूट रहा है|
किसी की जीवन डोर टूटती,
प्राणवायु पर टूट रहा है||
शवों को जीवित बता-बताकर
, वेंटीलेटर लिटा रहा है|
झूठी आशा दिखा-दिखाकर,
अंधी लूट मचा रहा है||
सेवा-धर्म का व्रत लिया था,
उसको क्यों तू भुला रहा है|
इस भवसागर में मानव तू,
निज नौका क्यों डुबा रहा है||
शाश्वत नहीं कभी धन रहता,
इसके लिए धरम खोता है|
शाश्वत धवल कीर्ति है होती,
क्यों नहीं अर्जित करता है||

✍️ गणेश चन्द्र केष्टवाल
मगनपुर किशनपुर
कोटद्वार गढ़वाल उत्तराखंड
२८-०५-२०२१

13.

साहित्य एक नजर  दैनिक पत्रिका
नमन मंच🙏
अंक 19
  
बेटी
  
बेटी नारी का रूप है
इस जगत का स्वरूप है
बेटी से घर का संसार प्यार
बेटी से है खुशियां अपार
बेटी है तो कल है
आने बाले सुंदर पल है
बेटी है तो माँ है
बेटी है तो पत्नी है
बेटी है तो पुत्री है
और बेटी है तो बहिन है
बेटी है तो रिश्ते अपार
इस जग का बेटी ही आधार
बेटी ही सारे कर्तव्य निभाती
करूणा, प्रेम,दया की मूर्ती कहलाती
बेटी है तो खुशियां पलती
ममता की मूर्ती झलकती
बेटी है तो जीवन की आस
कभी न करना उसको निराश
बेटी जब परायी हो जाती
जाकर दूजे घर को सजाती
वहां की सारी रश्में निभाती
सब के दिलों में वह छा जाती
चाहे कुछ भी पाना खोना
पर हर घर में बेटी का होना
बेटी है तो बड़े गर्व की बात है
बेटी है तो वह हरदम साथ है
हरदम साथ है
हरदम साथ है

✍️ अनिल राही
ग्वालियर मध्यप्रदेश

14.
साहित्य एक नजर.
अंक - 19.
  29/5/2021.
        *

भागी हुई लड़की.

                1.
मन में बिस्तर बिछाने वालों का
बिस्तर तक ले जाने वालों का
दिन के पर्दे में छिपायी गई
अंधेरों की बनी साज हूँ
रातों की एक राज हूँ
एक भागी हुई लड़की हूँ.
             2.
आंखें भरी है दिल खाली है
गला सूखा है गाल गिली है
शादी की रात
आकांक्षाओं की खिड़की से
भागी हुई एक लड़की हूँ.
             3.
काम से नाम कमाने में
मिहनत देखी न लगन
कुछ और देखने की नजर से
बदनामी कमाने वाली नाम
भागी हुई लड़की हूँ.
            4.
अंधेरों के तलबगारों     
शराफत का चोला पहन
मेरे कपड़े उतारते लोगों
मेरे अलावे सभी जहाँ
शरीफ बनते नजर आते हैं
गर खोल दी मैंने
अपने नारे उजाले में
पसीने छूट जायेंगे तुम्हारे.
              5.
हवस की बदहवास चीखों में
रात की कुचली चादरों की
सिलवटों में दर्ज अंर्तमन से       
अंधेरों को तीरती हुई आंधी हूँ.
               6.
संविधान के पन्नों में अदृश्य
संसदीय गलियारे में गुम
खेतों मेड़ों हवेलियों में कुचली
शासन की चिता पर सजी
लाडली की जलाती लाश
अंग प्रत्यंग से मातम मनाती
भागी हुई एक लड़की हूँ.
                   7.
  बीहड़ों की अबुझ घाटियाँ हूँ
वियावन वनों में संघर्षन से
खिलखिलाती प्रज्वलित लौ से
अनिल में अनलरूप विस्तारित
काल को परकाल से मापती      
करती प्रकंपित वसुधा से व्योम
लहालोट लोमहर्षक विहसित   
चहुँदिश व्याप्त अग्निपुष्प हूँ
हां मैं एक भागी हुई लड़की हूँ.

✍️ अजय कुमार झा.
   16/5/2021.

15.
परम् आदरणीय भाई साहब सादर यह सामाग्री दिनाँक 29/05/2021 की है।

लगता है  कुछ लिखना होगा ,
नभ  के तारे गिनना होगा ।
सुलग  रहे  कुछ  हँसते  नारे
, रो - रो उनसे मिलना होगा ।।
फूल  नहीं  पत्ती  लिखना है
सूर्य   मोमबत्ती  लिखना  है ,
छोड़ो  चाँद  गंगन  के ऊपर
जल की  परछाई लिखना है ,
जुगुनू के  झुरमुट  को छोड़ो
झिलमिल जो तरंग लिखना है ,
दीपक की लव बची नहीं अब
नीचे छिपा तिमिर लिखना है ,
टूट  गया  जो देखा  सपना ,
उन ख्वाबों से मिलना होगा ।
लगता है  कुछ लिखना होगा ,
नभ के तारे गिनना  होगा ।।
कोठी  क्या  छप्पर लिखना है
बेदी  क्या  खप्पर  लिखना है ,
टूट   रहा  श्रम  से  सारा  तन
घूँसा  क्या थप्पड़  लिखना है ,
हँसती  हुई  शाम   को  छोड़ो
रोती   हुई   रात   लिखना  है ,
वादा  कर के  मुकर  गया जो
केवल  वही  बात  लिखना है ,
अश्क़ बह रहे जिन आँखों से ,
उन नैनों से मिलना  होगा ।
लगता है  कुछ लिखना होगा ,
नभ के  तारे गिनना  होगा ।।
आटा  क्या  रोटी   लिखना  है
जनमत  क्या गोटी  लिखना है ,
नहीं   पराए   सब  अपने   पर
कुछ  रकमें  मोटी  लिखना  है ,
गाँव  नहीं  गलियाँ  लिखना है
बाग  नहीं कलियाँ  लिखना है ,
गीत  सुनाता मधुर - मधुर जो
केवल वह  छलिया लिखना है ,
सिसक रहा तन जिन घावों से,
उन जख़्मों से मिलना होगा ।
लगता  है  कुछ  लिखना होगा ,
नभ के तारे गिनना  होगा ।।
पैर   नहीं   छाले   लिखना  है
क़ैद  नहीं   ताले   लिखना  है ,
मकड़ी  अवरोधित करती पथ
कर्म  नहीं   जाले  लिखना  है ,
मधुप नहीं मधुकर लिखना है
स्वरस नहीं मधुरस लिखना है ,
कन्द और  मकरन्द  नहीं अब
तीर  नहीं  तरकस  लिखना है ,
"सजल"फूल पर शूल चुभोया ,
उन काँटों से मिलना होगा ।
लगता है  कुछ लिखना होगा ,
नभ  के तारे  गिनना  होगा ।।

✍️ रामकरण साहू "सजल"
बबेरू (बाँदा) उ०प्र०

16.

सुरेश शर्मा
साहित्य एक नज़र
अंक-19
दिनांक-28-05-21

विधा- शे'र

ग़फ़लते-बेख़ुदी जो
उन आँखों के मयखानों में थी,
सच कहूँ ए-ख़ुमिस्तां!
कहाँ  वो तेरे पैमानों में थी!!
रक्खा नहीं गया गोया
दिल ख़ुद का सम्भाल कर,
अब इल्ज़ाम ये के ले
गया कोई निकाल कर।
मैं मुस्कान हूँ, दुआ करो
हर होंठ पे ठहर जाऊँ,
लफ़्ज़ों से उड़े खुशबू,
महकता ग़ुलाब हो जाऊँ!
अपनी ही ख़ताओं पे जब
वो ख़ुद ही रूठ जाता है,
सच कहूँ तो उसकी इस
अदा पे बहुत प्यार आता है।
कौन है जो आईने में अपना
रुख़-ए-ज़माल देखता है!
आईना भी कभी कभी
ऐसे क़माल देखता है!!
इक चुप ने क्या
ख़ूब फ़ैसले कर दिये!
किस बेरुख़ी से नज़र के
आइने बदल दिये!
झूमने लगे हैं गुंचे,
लड़खड़ाती हर डाली है,
वाह!क्या ख़ूब मयफ़शां
नज़र तुम्हारी है।
महफ़िल थी शायरों की
इक इरशाद से तमहीद हुई,
इक वाह मुझे भी मिलती,
जो उनकी दीद ले गई।
लरज़ते लब, झुकी नज़रें,
उस पर कमसिनी ऐसी!
संभाल पायेगा दिल उनका,
उल्फ़त सी शै का वज्न भी!!
काश के वो पल भी आ जाते!
जब 'मैं'और 'तुम', 'हम' हो जाते!

✍️ सुरेश शर्मा
17.
साहित्य एक नजर मंच
अंक _ 19 _ 21
दिनांक _ 29/05 _31/05
*********************

पुष्प की वेदना ......

कलि से कुसुमित, होने को है सुमन
बार बार सोचती,  करती  वह मनन,
प्रारब्ध उसे अब,  किधर ले जाएगी
क्या मंदिरों में, समर्पित की जाएगी,
या, वेणियों में, गूंथ कर  भी तो वह
प्रियतमा की, चोटियों  में इतरायेगी,
या,किसी की शव_शैय्या पर ले जा
खूबसूरती से ही, वो सजाई जाएगी ।
कितने ही जतन से,ऐ मेरे वनमाली
तूने मुझको स्नेह प्यार से था सींचा,
अपनी उन अंगुलियों को समेट कर
मेरे पत्र_ दलों को था धीरे से भींचा,
तात का रिश्ता,तूने था जो निभाया
प्रेम भाव भी,मुझपर खूब बरसाया,
देख तुझको मैं,होती थी खूब मगन
तुझमें रहती थी,  वो कितनी लगन ।
कल तोड़ मुझे,जा कहीं दे जाओगे
कर्तव्य से ये तुम, मुक्त हो जाओगे,
बाबुल का घर,अब मैं ये छोड़ चली
तुझसे निवेदन करती,जो यह कली,
नहीं चढ़ाना तू मुझको, ये मूरत पर
या, नहीं सजाना, वो मृत सूरत पर,
वेणियों में सज मैं, कुचली जाऊंगी
उर व्यथित होंगे,सिसकती जाऊंगी,
मुझे रख देना तू,  बस  उस पथ पर
गुजरें सारे सैनिक, बढ़ें  जो रथ पर ।

✍️ अवधेश राय
नई दिल्ली l

18.
स्वरचित

ये  जो  स्याह अंधेरे है
रंग इनके बहुत गहरे हैं     
अपनी ही  थैली भर रहे
इंसा कहाँ आकर ठहरे हैं
अपने ही खुद को गिरा रहे
सोच  पर इनके  पहरे हैं
जीना इतना आसान कहाँ
दर्द  की कितनी लहरें हैं
सिर्फ एक नहीं यहां तो हर
आदमी के कई  चेहरे हैं
जन गण मन की कौन सुने
साहिब मुसाहिब बहरे हैं
    
✍️ मंजुला धीर  " जांगिड*"
        *नीमच* *मध्य प्रदेश*

* देश हमारा स्वाभिमान है *

भारत देश महान है,
भारत मेरी जान है  l
भारत के सदके में मेरा,
जानो-दिल कुर्बान हैl

भारत भूमि गौरवशाली,
राम-कृष्ण भगवान की l
ईसा,मूसा,नानक,गौतम,
महावीर भगवान की l
शूर वीर बलवानों का
यही जन्म स्थान है l

हर मज़हब के फूल खिले हैं,
भारत के गुलदान में l
प्रेम ,मुहब्बत भाईचारा,
देखा हर इंसान में l
मिली-जुली तहजीब यहां,
मानव एक समान है l

जब जब संकट आया सबने,
रक्षा की इस देश की l
आज  ज़रूरत पड़ी तो,
मिट जाएंगे खातिर देश की l
देश हमारा स्वाभिमान है,
ज़िन्दगी की शान है l

* ✍️ डॉ. दीप्ति गौड़ दीप*
शिक्षाविद् एवम् कवयित्री
ग्वालियर मध्यप्रदेश
सर्वांगीण दक्षता हेतू राष्ट्रपति भवन
नई दिल्ली की ओर से भारत के
भूतपूर्व राष्ट्रपति महामहिम स्व.
डॉ. शंकर दयाल शर्मा स्मृति स्वर्ण
पदक, विशिष्ट प्रतिभा सम्पन्न
शिक्षक के रूप में राज्यपाल
अवार्ड से सम्मानित



19.
अंक - 22
http://vishnews2.blogspot.com/2021/05/22-01062021.html

http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/05/2014-01062021-22.html

अंक - 23
http://vishnews2.blogspot.com/2021/05/23-02062021.html

http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/05/2015-02062021-23.html

अंक - 24
http://vishnews2.blogspot.com/2021/05/23-03062021.html

http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/05/2016-03062021-24.html

*हिंदी पत्रकारिता दिवस एक अध्याय*

शब्दों की माला में पिरोकर हर वक्त सच्चाई का परिणाम मिलता है...
उदंत मार्तंड के आगाज़ से हिंदी पत्रकारिता को नाम मिला है.....

        भारत में 30 मई का दिन हिंदी समाज- साहित्य के लिए एक खास दिन है। क्योंकि वर्ष 1826 के 30 मई को यानी ब्रिटिश काल में कोलकाता से  राममोहन राय के संरक्षण में भारत का पहला हिंदी समाचार पत्र उदंत मार्तंड निकला था, इसलिए इस दिन को हिंदी पत्रकारिता दिवस के रूप में मनाया जाता है। हिंदी पत्रकारिता के इतिहास में पंडित योगल किशोर शुक्ल जी का योगदान अमूल्य है। सर्वप्रथम इसमें विशेषकर अवधी एवं ब्रज मिश्रित भाषा का प्रयोग किया गया था। इसका संपादन, प्रचार-प्रसार में खुद बहुभाषज्ञ शुक्ल जी ने अपनी भागीदारी दी। यह एक सप्ताहिक समाचार पत्र था। बहुत ही अल्प समय के लिए प्रकाशित हुई इस समाचार पत्र ने हिंदी जगत के लिए एक अभिनव अधाय प्रतिष्ठित कर गए थे। 500 प्रतियां तक प्रकाशित हुई यह समाचार पत्र 1827 को अंतिम 79 वा अंक प्रकाशित हुआ था। भले ही समय के साथ हिंदी पत्रकारिता बहुत सारे चुनौतियों से गुजरा; समय के साथ स्वरूप भी बदली परंतु हिंदी पत्रकारिता का आज वैश्विक स्तर पर अपनी गरिमा कम नहीं हुई है और इसका श्रेय सभी पत्रकार एवं पाठकों को जाता है।
      समाचार पत्र समाज का दर्पण होता है। नियमित रूप से अखबार पढ़ने वाले लोगों की दिनचर्या नियमित हो जाती है स्कॉटलैंड में हुई एक शोध के मुताबिक जो लोग नियमित रूप से अखबार पढ़ते हैं उनका स्वास्थ्य समाचार पत्र न पड़ने वाले व्यक्तियों की तुलना में 20% अच्छी है वह तनाव मुक्त और पूरी पूरा दिन खुशनुमा रहता रहते हैं। अखबार पढ़ने से देश के, समाज के अलग-अलग विषयों में रुचि बढ़ती है। रोज अखबार पढ़ने वालों की भाषिक सुधार होती हैं।
समाचार पत्र को देश का चतुर्थ स्तंभ होने का स्वीकृति प्राप्त है अतः जो वस्तु जितनी अधिक महत्वपूर्ण होती है उसका दायित्व भी उतना ही अधिक होता है, पत्रिकारिता स्वतंत्र, निर्भीक,निष्पक्ष, सत्य तथा समाज के पक्ष में होना जरुरी है तथा पत्रकार को उनका लगातार जागरूक होना भी जरूरी है। समाज के अत्याचार अनाचार अंधविश्वास अन्याय और को कर्मों का विशेष विरोध करना है समाचार पत्र का दायित्व होता है। आज हिंदी पत्रकारिता से जुड़े सभी जन को इस आलेख के माध्यम से हिंदी पत्रकारिता दिवस की अनेकों बधाई देती हूं।

✍️ मंजूरी डेका
शिक्षिका
नाइट उच्चतर माध्यमिक विद्यालय,
गुवाहाटी, असम ।

20.

30 मई 1826 को  पण्डित जुगलकिशोर शुक्ल जी ने अपने साप्ताहिक समाचारपत्र "उदन्त मार्तण्ड" के रूप में हिन्दी पत्रकारिता की जो प्रचंड ज्योति प्रज्जवलित की उससे सम्पूर्ण पत्रकारिता जगत ज्ञान की ज्योति से जगमगाते हुए मानव कल्याण के लिए सतत प्रयासरत है | अंग्रेजो के समय मे भारत मे ऐसे कई वरिष्ठ एवं बुद्धिजीवी हिंदी पत्रकार हुए जिन्होंने अपनी निष्पक्ष लेखनी से सम्पूर्ण राष्ट्र के हित को ध्यान मे रखकर लेखन कार्य किया | साहित्यकार एवं पत्रकार समाज के दर्पण होते हैं अतः बिना किसी लोभ एवं चाटुकारिता के बिना लिखे हुए लेख को ही उत्कृष्ट श्रेणी मे रखा जाता है |

पत्रकारिता  दिवस  की आज  लीजै मधुर  बधाई
जुगलकिशोर ज्ञान दीप से ही यह शुभ घड़ी आई
आंग्ल साशकों के सम्मुख वो लड़े लेखनी के बल
रहे निडर,सदमार्ग राष्ट्र प्रति प्रीति ही सदा निभाई ।

✍️ सुजीत जायसवाल 'जीत'
(युवा कवि एवं मंच संचालक)
नगर पंचायत सरायआकिल
कौशाम्बी, उ० प्र०
मोबाइल -8858566226
ईमेल-sujeetuptiger@gmail.com

21.
कातिल हवा

बाहर की हवाएं कातिल है,
ऐसे में अपना घर ही प्यारा है।।
अभी की ये फिज़ा और मौसम भी,
खूनी है हत्यारा है।।...बाहर..
नजर उठा कर जिधर भी देखो
उधर ही हाहाकार मचा है।
सम्भल कर रहे घर के अंदर,
जिन्हे अपनी जान प्यारी है
,जहान प्यारा है।।
UK का दूसरा कोरोंना स्ट्रेन है आया,
जो काफी घातक और
सितम है ढाया।
वुहान का तो लोगों में सम्पर्क
से था आया,
पर ये तो वायु के स्पर्श से ही
कहर बरपाया है।।
फिर देख कोरोना का यह ठाट - बाट,
कैसे वापस आया है
लेकर अपना राज - पाट ।
टीका भी लग रहा बड़े -
बुजुर्गों और सेवा कर्मी को,
जो संकट में भी डटे
रहे अपनी ड्यूटी पर,
हर शहर, गांव और बाट - बाट।।
तीसरी लहर भी आयेगा,
लोगों में तबाही भी मचाएगा।
न भीड़ में जाना है,
भला दूर ही रहना है
खुद सतर्क रहें,, पर लोग
सुरक्षित हो यह बताना है।।
  लगाओ मास्क, करो
सैनिटाइजर का उपयोग,
सामाजिक दूरी बनाना
ही उपाय न्यारा है।
बेवजह निकलते घर से वो बाहर,
जिन्हें अपनी जान
प्यारी है, जहान प्यारा है।।
चलो कोविड़ का वैक्सीन लगाएं ,
कोरोना को अब हम दूर भगाएं।
टीका हमने लगाया है,
चलो सब लोग लगाएं।
महामारी से बचने का एकमात्र सहारा है।।
खुद जगे ,लोगों को जगाएं।
बार- बार साबुन से हाथ को धोना है।
लॉक डाउन का पालन कर हम
रहें सुरक्षित खुशहाल रहे परिवार हमारा,
ये भीम का नारा है।।.
बाहर...।।

   ✍️   भीम कुमार
   गांवा, गिरिडीह, झारखंड
                     (मौलिक रचना)
पृष्ठ 4 , अंक 20

22.
▪︎▪︎ चलो नूतन  का अभिनन्दन करते हैं ▪︎▪︎▪︎

जहाँ टूट गया~
वहां नया खिला।
फिर  बिखरे फूलों का
क्यूं शोक मनाते हैं?
जो नया खिला▪︎▪︎▪︎
उसकी सुन्दरता को तकते हैं।
जो खिलने को है~
उसको सिंचित करते हैं।
हम अपनी बगिया
फिर नूतन बनाते हैं।
दुःख तज बिखरन का▪︎▪︎▪︎
नवीनतम का 
अभिनन्दन  करते हैं।
जीवन के अंकुरण का
यशोगान करते हैं।
सृजन का नव उत्सव मनाते हैं।
चलो अपनी बगिया को
फिर से सजाते हैं।

         ✍  डाॅ पल्लवी कुमारी "पाम"

23.

बॉलीवुड का भद्दा और अश्लील सच

गीत ~  देख के बॉलिवुड की फिल्में..

देख के बॉलिवुड की फिल्में,
आज यार सब हिल जायेंगे।
कपड़ो में से जिस्म झाँकता,
किसिंग सीन भी मिल जायेंगे।।
बेडरूम के बिना सीन के,
फिल्म कभी ना होती पूरी
लग जाते फिर कदम बहकने,
ख्वाहिशें भी रह जाती अधूरी
देख हाशमी जी के
चुम्बबन-होंठ आपके सिल जायेंगे।
कपड़ो में से जिस्म झाँकता,
किसिंग सीन भी मिल जायेंगे।।
हीरोइन की बात करें, हर
एक अदा है उसकी न्यारी,
अभिनय से क्या लेना
देना-जिस्म के पीछे मारा मारी,
देख के इनके आइटम सांग को,
पत्थर दिल भी हिल जायेंगे।
कपडों में से जिस्म झांकता,
किसिंग सीन भी मिल जायेंगे।।
कपड़ो में से जिस्म झाँकता,
किसिंग सीन भी मिल जायेंगे।।
बात आ गयी अब हीरो की-
नहीं नया कुछ वो सिखलाते,
जहाँ भी मिलता मौका
उनको-बॉडी अपनी
वो भी दिखलाते,
विग्यापन की खातिर यारो-सरे
बाजार ये बिक जायेंगे
कपड़ो में से जिस्म झाँकता,
किसिंग सीन भी मिल जायेंगे।।
छा गई लियोनी पर्दे पे,
अब कोई क्या रह पाएगी
नुमाईश देख-देख जिस्म की
, शर्मो-हया बह जाएगी
रौनक सी आने लागी फिजाँ में,
बेशर्मी के गुल खिल जाएँगे
कपडों में से जिस्म झाँकता,
किसिंग सीन भी मिल जायेंगे।।
   देख के बॉलिवुड की फिल्में,
आज यार सब हिल जायेंगे।
कपडों में से जिस्म झाँकता,
किसिंग सीन भी मिल जायेंगे।।

✍️ शायर देव मेहरानियाँ
अलवर, राजस्थान
(शायर, कवि व गीतकार)
_7891640945

24.

आज  मुझे  तीनों मिल गये
  भूत , भविष्य ,और वर्तमान
तीनों से बहस हो गई   ,भूत ने
भविष्य से   से कहा देखो
मैंने भविष्य को खा लिया ,
हो सके तो वर्तमान को बचा लो
हर पल को जीलो , जीवन तो
क्षणभंगुर हो गया ,
देखो , बुजुर्ग तो जा रहें हैं,
पर जवान भी
नहीं बच  पा रहे हैं
,अब  बच्चे जो है
बेचारे वे भी तो ज़ंग लड़ रहे हैं
चलो वक्त को देख लो हो सके
तो भूत , भविष्य छोड़ो ,
वर्तमान बचा लो
वैसे भी सब तो राख हो रहा है ,
राख में ही अलख जगा लो,
सब में जीवन होता है
ये बात है बस वर्तमान बचा लो
तो भूत भविष्य सब बच जाएगा
जिंदगी से जीवन संवर जाएगा

✍️ अर्चना जोशी
भोपाल मध्यप्रदेश

25.

मैथिली - कविता

कोरोना जेबाअ के जेबए करतैय ,
घर पर बैठ कऽ केतक दिन लोग
पेट भरतैय ,
लॉकडाउन पर सँ लॉकडाउन
आब प्रशासन आर सरकार पर
लाठी चलतैय ,
तहने इअ अंधा सरकार किछ
करतैय ।।

परीक्षा लेतैय नैय खाली
चुनाव लड़तैय ,
फेर पाँच साल बाद वोट,
भीख में
मांगअ शहर और गाँव ऐतैय  ।
तहन की कहूँ हम गंगाराम
कनअ इअ जीवन कटठैय ,
करूँ अंधकार राह रोशन
हे भगवान कखन ईअ कोरोना हटतैय ।।

✍️ गंगाराम कुमार झा
झोंझी , मधुबनी , बिहार
30/05/2021 , रविवार ,
कविता :- 20(12)
मो - 6290640716

26.

साहित्य मणि व उत्तर प्रदेश संगम सलिला सम्मान
पर हुई समीक्षा ने इतिहास रच दिया ।

साहित्य एक नज़र 🌅 , रविवार , 30/05/2021

साहित्य संगम संस्थान रा. पंजी . संख्या एस 1801/2017 ( नई दिल्ली ) द्वारा दैनिक लेखन के अंतर्गत शनिवार को समीक्षा करवायी जाती है , 29 मई 2021 को साहित्य मणि व उत्तर प्रदेश संगम सलिला सम्मान पर समीक्षा करना रहा , विषय प्रदाता आ. राजवीर सिंह मंत्र जी , और विषय प्रवर्तन आ. कुमार रोहित रोज़ जी के करकमलों से किया गया । इस विषय पर सम्मानित साहित्यकारों , समीक्षकों , राष्ट्रीय अध्यक्ष महोदय आ. राजवीर सिंह मंत्र जी , कार्यकारी अध्यक्ष आ. कुमार रोहित रोज़ जी , सह अध्यक्ष आ. मिथलेश सिंह मिलिंद जी, संयोजिका आ. संगीता मिश्रा जी ,  पश्चिम बंगाल इकाई अध्यक्षा आ. कलावती कर्वा जी ,  राष्ट्रीय सह मीडिया प्रभारी व पश्चिम बंगाल इकाई सचिव रोशन कुमार झा  ,आ. अर्चना जायसवाल जी , अलंकरण कर्ता आ. स्वाति जैसलमेरिया जी, आ. मनोज कुमार पुरोहित जी,आ. रजनी हरीश , आ. रंजना बिनानी जी, आ. सुनीता मुखर्जी , आ. मधु भूतड़ा 'अक्षरा' जी , आ. रीतु गुलाटी जी ,आ. भारत भूषण पाठक जी ,  समस्त सम्मानित पदाधिकारियों  ने समीक्षा करते हुए एक-दूसरे के समीक्षा को पढ़कर सार्थक टिप्पणी किए । लगभग 3700  कॉमेंट्स आएं जो कि संस्थान के लिए एक बड़ी उपलब्धि है ।
27.

कोलफील्ड मिरर
✍️📖
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🗞️📝

English , मैथिली कविता
कविता
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साहित्य संगम संस्थान हरियाणा इकाई

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कविता :- 20(09)
http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/05/2009-27052021-17.html

साहित्य संगम संस्थान पश्चिम बंगाल
http://sahityasangamwb.blogspot.com/2021/04/blog-post_16.html

विश्व साहित्य संस्थान
http://vishshahity20.blogspot.com/2021/02/11.html

अंक - 17
http://vishnews2.blogspot.com/2021/05/17-27052021.html

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कविता :- 20(07)
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अंक - 16
http://vishnews2.blogspot.com/2021/05/16-26052021.html

वृहस्पतिवार , 27/05/2021
कविता :- 20(10)
http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/05/2010-28052021-18.html
अंक - 18 🌅
http://vishnews2.blogspot.com/2021/05/18-28052021.html

28/05/2021 , शुक्रवार , आनंद जन्मदिन

कविता :- 20(11)

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अंक - 19
http://vishnews2.blogspot.com/2021/05/19-29052021.html

कविता :- 20(12)
http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/05/2012-30052021-20.html

http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/05/2004-22052021-12.html

अंक - 20

अंक 20
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http://vishnews2.blogspot.com/2021/05/20-30052021.html

कविता :- 20(13)
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अंक - 21

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साहित्य संगम संस्थान - साहित्य मणि एवं संगम सलिला सम्मान , समीक्षा

🙏🌹🌲जीवेम शरद: शतम्🌲🌹🙏

सम्मान पत्रों/प्रमाणपत्रों पर एक बार परामर्श मंडल फेसबुक पर बहस रखी गई थी। बहुत से लोगों ने सम्मान पत्रों को उत्साह की संजीवनी और कुछ लोगों ने साहित्य सेवा में बाधक बताया था। हमारे आदर्श साहित्य पुरुष ने इकाई पदाधिकारिणी को इकाई द्वारा जारी होने वाले सम्मानपत्रों में पृथक् रखने का ग्राह्यानुग्राह्यानुकरणीय आदेश दिया। हमारा मानना है कि प्रोत्साहन की शक्ति संसार की सबसे बडी शक्ति है। यदि संस्थान के संचालक और स्तंभ प्रोत्साहन से वंचित रहें तो यह कारवां चलाएगा कौन ? सभी इकाइयों में सुबह से विषय और विधा पर दैनिक कार्यक्रम और उद्धाटन समारोहों की व्यस्तता के कारण यह समस्या यथावत बनी हुई थी। किससे बोलें और किससे कहें कि यह विचार है। किसी के पास समय नहीं। बड़ी चिंता लगी रहती थी। कई बार विविध बहाने लेकर पदाधिकारियों को केंद्रीय इकाई से सम्मानित करने के छोटे स्तर पर उपक्रम हुए पर ऐसा विशाल आयोजन नहीं हो पा रहा था कि जिसमें संस्थान के सभी कर्णधार सम्मानित हो सकें। अनुज नवीन और स्व० मनोज कुमार सामरिया ने कभी सम्मानमेध किया था। एक तरफ सम्मान भिक्षुकों ने समय-समय पर इतना परेशान किया कि अब तो और चिंता बढ़ने लगी कि हमारे सभी पदाधिकारी भी मानव ही हैं और संसार में तीन इच्छाएं सबसे बड़ी और बलवती मानी जाती हैं। वित्तैषणा, पुत्रैषणा और लोकेषणा। यहां साहित्यिक मंचों में निस्वार्थ सेवी भी कहीं न कहीं लोकैषणा के वशीभूत होकर ही अहर्निश साधना करते रहते हैं। अन्यों की क्या कहें मैं स्वयं इस इच्छा पर विजय नहीं पा पाया हूँ। जबकि साहित्य सेवा करते हुए मैं दंभ भरता हूँ कि मानापमान- सुख-दुख, हानि-लाभ प्रूफ हो गया हूँ। पर सम्मान और सराहना किसे नहीं प्यारे होते। मैं तो नीति भी पढ़ा हूँ जिसमें उत्तम प्रकृति के नर सम्मान ही चाहते हैं। धन एक बार न मिले तो चलेगा। मेरी इस चिंता के उहापोह को शायद क्रांतिकारी/कार्यकारी अध्यक्ष महोदय जान चुके थे। पर आजकल वे भी घर में संगम सेवक की उलाहना के दंश झेलते रहते हैं। आज से चार या पांच साल पहले एक पंडित जी ने मुझसे जब संपर्क किया था और बोले कि आप बताइए कि क्या सेवा कर सकता हूँ मैं? तो छूटते ही मैंने उनसे संगम साहित्यकारों को सम्मानित करने का निवेदन किया। वे तो भड़क गए और मेरे पीछे ही पड़ गए। उनसे पीछा छुड़ाने के लिए मुझे उन्हें ब्रह्मराक्षस की उपाधि से सम्मानित करना पड़ा। चार-पांच साल हो गए उन्होंने आज तक अपना सुंदर चेहरा नहीं दिखाया। नामोल्लेख उचित न होगा। पर सम्मान ही विद्वानों का धन होता है यह मैं अच्छी तरह से जानता हूँ। अतः साहित्यिक मंच को चलाने को लिए सम्मान पत्र वितरित करते रहने की अहमियत मैं बखूबी समझता हूँ और सबको समझाता भी हूँ। एक महामानव मिले बीच में, तो उन्हें अलंकरणशाला में अलंकरण सिखाया और प्रमाणन अधिकारी बनाया तो मौका मिलते ही उन्होंने  एक मंच के संस्थापक से ही छः हज़ार रुपए ठग लिए। तमाम लोग ऐसे आए कि सब कुछ सीखा और अपने मंच बनाकर खुद संस्थापक बन बैठे और हमें ही सिखाने लगे। इस पूरी जद्दोजोहद में कोई मुक्ति का मार्ग नज़र नहीं आ रहा था। इसी बीच महामारी ने आक्रमण कर दिया। तो दूसरी ओर ईश्वर ने एक देवदूतनी भेज दी। जो ख़ुद पूरे परिवार के साथ महामारी का शिकार थी। पर मुझे ऐसे ट्रीट कर रही थी जैसे परिचारिका हो और बडा संबल बढ़ाती। साथ ही अप्रत्याशित ढंग से संगम के मंचों पर साहित्यमणि और संगम सलिला सम्मान से पदाधिकारियों को सम्मानित करती। योजना और प्रयास क्रांतिकारी अध्यक्ष महोदय का रहा होगा। महामारी के कारण उन्होंने मुझसे इस संबंध में कोई परिचर्चा नहीं की। क्योंकि संस्थान में सबसे निवेदन कर रखा है कि कोई भी अच्छा कार्य करना हो तो किसी से पूछने की आवश्यकता नहीं है। पहले कीजिए अच्छे कार्य तो कामयाबी स्वयं शोर मचाएगी और दुनिया का पता चल जाएगा। आज संस्थान की समस्त इकाइयों और शालाओं के पदाधिकारी सम्मानित हो चुके हैं। जिसका पूरा का पूरा श्रेय अनुजा संगीता मिश्रा को जाता है। इतनी त्वरित गति से यह कार्य करती है कि उसके तुरंत बाद दिमाग खाना भी शुरू कर देती है। मैं तो बहुत परेशान हो उठता हूँ। इनबॉक्स में आने का शख्त प्रतिबंध लगा दिया और कहा कि सिर्फ़ समूह सेवा ही संगम की रीति है। इसकी तीव्रता और समझदारी से आज संपूर्ण संस्थान प्रभावित है और संस्थान की रीति-नीति के अनुसार उसे भरपूर प्यार और सम्मान भी मिल रहा है। पर इसका एक दूसरा पहलू भी है कि किसी असम्मानीय को सम्मानित करना कितना भारी पड़ सकता है मेरे बाद यह बहुत अच्छी तरह से सीख गई है। आज जब उसका जन्मदिन है और सभी लोग बधाई दे रहे हैं तो दूसरी ओर वह इतनी व्यथित है शायद ही कोई जानता हो। तीसरा पक्ष भी है जिससे पूरा संस्थान अपरिचित है और मैं भी बाध्य हूँ कि उसकी अनुमति के बगैर कुछ भी नहीं अभिव्यक्त कर सकता। किसी की उपलब्धियों से जलने वाले लोग उसकी अच्छाइयों से यदि सीख लेकर अच्छे काम करने लगें तो ज्ञान-विज्ञान-विद्या-हिंद और हिंदी का महदुपकार हो। अच्छे-अच्छे लोगों को सच्चे साधकों की साधना से ईर्ष्या करते पाया मैंने। सम्मानमेध की यह वह्नि प्रमाणन अधिकारी साहित्य संगम संस्थान अनुजा संगीता मिश्रा प्रज्वलित रखेंगी ऐसी आशा करता हूँ। लोग तो वही करेंगे जो उनकी नियत है। आपकी नियत यदि अच्छी है तो आप अच्छे कार्य करना बंद मत करना। जन्मदिन का यही सबसे बड़ा तोहफा होगा आज एक सीख के रूप में देना चाहता हूँ कि सम्मान बांटो और रिटर्न गिफ्ट के रूप में आगामी सौ वर्षों तक ही नहीं सहस्त्रों वर्षों तक सम्मान पाती रहो, तब भी जब हम न रहें। हिंदी माता की सेवा कर अजर-अमर हो जाओ।

https://drive.google.com/file/d/1ENpwSjRSJcxkrbN3xB00j0iqY3_P3ekR/view?usp=drivesdk
साहित्य मणि सम्मान एक साथ संपूर्ण 🙏


https://drive.google.com/file/d/1aXceMTB0R4-o794-UR2ewHsp92XPKx44/view?usp=drivesdk
संगम सलिला सम्मान 🙏

✍️ राजवीर सिंह मंत्र जी
राष्ट्रीय अध्यक्ष
साहित्य संगम संस्थान नई दिल्ली

_____________

 

ग़लत नहीं, ग़लत होने की कारण !:
https://hindi.sahityapedia.com/?p=130587
कहानी :- 16(14) हिन्दी ✍️ रोशन कुमार झा 🇮🇳
कहानी :- 1(01) हिन्दी

कहानी
-: ग़लत नहीं, ग़लत होने की कारण !:-

बात है कुमारपाड़ापुर की झील रोड की , बंगाराम, तोताराम,अंतिमराम, तीनों भाई में से बंगाराम बड़े थे, तीनों संग- संग स्कूल आया-जाया करते थे, बंगाराम आठवीं , तोताराम सातवीं और अंतिमराम दूसरी कक्षा में पढ़ते थे, बंगाराम बड़े शांत स्वभाव के थे , जब बंगाराम आठवीं कक्षा पास कर लिए, तब बंगाराम के सामने एक संकट छा गया, बंगाराम जिस नेहरू जी के स्कूल में पढ़ते थे ,वह विद्यालय आठवीं तक ही था ,बंगाराम नौवीं कक्षा में नामांकन करवाने के काफी कोशिश किया ,पर सब व्यर्थ गया, कोई भी स्कूल के नवीं कक्षा में सीट ही नहीं थी , या और कारण रहा होगा, इसके नामांकन के लिए मात-पिता भी परेशान रहते थे , अंत में पिता किसी से कह सुनकर नामांकन नवीं में न करवाकर पुनः आठवीं में हावड़ा हिन्दी हाई स्कूल में करवां दिये, वह विद्यालय बारहवीं तक रहा,
पर फिर से आठवीं में नामांकन करवाने के कारण
बंगाराम गलत रास्ते पर चलने लगते हैं, वह दिन- रात
सोचने लगता है , सोचता है पढ़ाई लिखाई करूं ,
या न करूं ,बंगाराम धार्मिक,विक्रम बजरंगी
हनुमान व मां सरस्वती जी के पूजा पाठ बचपना
से ही करते थे ,अंत में वे ईश्वर से प्रार्थना किये ,
हे ! भगवान तूने ये क्या किया, मेरे साथ पढ़े सहपाठी
आगे हम फिर से आठवीं में पढ़ूं हमसे नहीं होगा ,
वह यह निर्णय लेकर ग़लत रास्ते पर चलने लगा ,
वह घर से निकलता विद्यालय के लिए पर विद्यालय
जाता नहीं, वह ट्रेन से इधर-उधर घूमने लगा था,
कैसे न घूमता , विद्यार्थियों का तो रेल का टिकट
लगता ही नहीं था, इसके बारे में उसके माता-पिता
को पता भी नहीं चलता था, क्योंकि वह स्कूल
के समयानुसार ही आया-जाया करता था , पर एक दिन उसका गांव का प्रकाश- रोशन भईया देख लिया, रेलवे स्टेशन पर ! , पर उससे कुछ न कहा,
वह सीधे उसके पिता के पास फोन किया, बोला
चाचा बंगाराम को आज घूमते हुए देखें है स्टेशन पर,
फिर क्या रात में पिता के दफ़्तर से आते ही , पिता से
पहले ही सारी बातें बता दिया, क्योंकि अपने गांव
वाला को स्टेशन पर वह भी देखा रहा , और कहा
पापा हम पांच महीने में सिर्फ पन्द्रह ही दिन स्कूल
गये होंगे, पिताजी अब हममें हिम्मत नहीं है कि
फिर से आठवीं की पढ़ाई करूं, तब ही मां बोली
बेटा तुम तो जानते ही हो तुम भी और पिता भी
तुम्हारे नौवीं कक्षा में नामांकन करवाने के लिए
भरपूर कोशिश किया ,

पर हुआ नहीं न, क्या करोगें बेटा एक साल की बात है पांच महीने बीत ही गये अच्छा से पढ़ाई कर लो मजबूत हो जाओगे ! उसी वक्त बंगाराम बोलने लगा , माँ आप समझती नहीं हों , आप एक साल कह दिये , यहां लोग एक दिन ज़्यादा या कम होने के कारण सरकारी नौकरी के फॉर्म नहीं भर पाते हैं और आप एक साल कहती हैं , पापा – पापा मेरे पास एक सुझाव है, यदि आप चाहें तो मेरा नामांकन नौवीं कक्षा में हो जायेगा, पिता वह कैसे अभी तो सितंबर हो गया, अभी नामांकन होता है क्या , कहां होता है कहो मैं जरूर पूरा करूंगा ! पापा एक स्कूल हैं , जिसमें मेरा नामांकन नौवीं में हो जायेगा , पर वह प्राईवेट है , तब ही पिता कहा कहो बेटा हम कैसे तुम्हें प्राईवेट में पढ़ा सकते , प्राईवेट स्कूल की फीस हर महीने सात-आठ सौ रुपया कहां से दें पायेंगे, बोलो बेटा पापा सिर्फ एक बार आप कष्ट करिए, सिर्फ एडमिशन के लिए पच्चीस सौ रुपये दे दीजिए, उसके बाद आप जो हमें ट्यूशन पढ़ाते हैं , अब से ट्यूशन नहीं पढ़ेंगे और उसी ट्यूशन के पैसों से स्कूल के फीस भरेंगे, इस प्राईवेट स्कूल की ज़्यादा फीस नहीं है , जैसा कहें पापा आप ,फिर क्या पिता ब्याज पर लाकर पैसे दे दिया , और बंगाराम का नामांकन नौवीं कक्षा में हो गया ,जब बंगाराम के बारे में ट्यूशन के सर को पता चला , तो बंगाराम को बुलाया और कहें तुम ट्यूशन पढ़ने आओगे , और चाहो तो तुम्हें हम अपने ट्यूशन के कुछ बच्चों को पढ़ाने के लिए देते हैं, जिससे तुम अपने विद्यालय के फीस भर पाओगे ! इस तरह फिर बंगाराम सही रास्ते पर आ गया, दिन-रात मेहनत करने लगा, और अपने मंजिल के तरफ बढ़ने लगा !

शिक्षा :- कोई इंसान ग़लत नहीं होता हैं , ग़लत बनने
का कुछ न कुछ कारण होता है, और वही कारण
उसे गलत दिशा में ले जाकर गलत बना देता है !
अतः बिना जाने किसी को ग़लत कहना उचित नहीं है !
पहले कारण जानना चाहिए वह कैसे ग़लत हुआ ,
हुआ तो उसे कैसे सही रास्ते पर लाया जाये !

® ✍️ रोशन कुमार झा 🇮🇳
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज , कोलकाता
02-05-2020 शनिवार 19:15
कहानी :- 16(14) हिन्दी
कहानी :- 1(01) हिन्दी
मो:-6290640716
রোশন কুমার ঝা, Roshan Kumar Jha
यह हमारे द्वारा हम पर लिखी हुई प्रथम कहानी है !
नाटक भी 2 तारीख को ही लिखें रहें
02-10-2018 मंगलवार :- 8(01)
साहित्य एक नज़र अंक - 20
कविता :- 20(12), रविवार 30/05/2021

http://kalamlive.blogspot.com/2020/05/blog-post_3.html?m=1

https://hindi.sahityapedia.com/?p=130587



 

रोशन कुमार झा



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