कविता :- 20(09) , वृहस्पतिवार , 27/05/2021 , साहित्य एक नज़र अंक - 17

कविता :- 20(09)

नमन 🙏 :- साहित्य एक नज़र 🌅
दिनांक :- 27/05/2021
दिवस - गुरुवार
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कविता -
आया चक्रवाती तूफ़ान यास है ।।

संकट पर संकट इस कोरोना
काल में भी आया चक्रवाती
तूफ़ान यास है ,
इस मुसीबत पल में भी
पुलिस को घूस की तलाश है ।
नेताओं को जनता नहीं
सत्ता पाना ही ख़ास है ,
तब बताओं यारों
अब होने वाला नहीं विकाश है ।।

उन्नति होना अब संभव नहीं ,
वह भी अब नहीं ।
नेताओं के नज़रों में है सब सही ,
जनता के साथ हम है नहीं
ये बात उन्होंने कब कही ।।

जीने योग्य ये काल
और मास नहीं ,
कैसे न बाहर जाऊं
खाने के लिए पैसा पास नहीं ।
हम रोशन , हम गरीबों की ये स्थिति
ये हमारी बकवास नहीं ,
अब हमें इन ग़द्दारों नेताओं पर
विश्वास नहीं ,
इनसे होने वाला अब विकाश नहीं ।।

✍️ रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज, कोलकाता
ग्राम :- झोंझी , मधुबनी , बिहार,
( गंगाराम ), मो :- 6290640716
कविता :- 20(09) , गुरुवार , 27/05/2021

बचपना भारत की मिथिला भूमि पर

विषय :- बचपना भारत की मिथिला भूमि पर

बात उन दिनों की है जब ,झोंझी गांव से प्रियंका,दीपक,रीचा , दो बहन एक भाई साथ रोशन और मनीषा बग़ल के गांव लोहा में डॉ. देवेन्द्र विद्यालय में एक साथ पढ़ने जाते थे,सभी का एक अलग अलग या घर से दिया हुआ नाम इस प्रकार रहा ,प्रियंका नाम जुनजुन ,दीपक नाम गोलू , रीचा नाम बिट्टू, रोशन नाम गंगाराम वही मनीषा नाम मिली, वह बचपना का उमंग,क्या बताऊं, विद्यालय गर्मी के दिनों में सुबह की हो जाती, और गर्मी के बाद डे की, तो बात गर्मी की है अर्थात् मॉर्निंग शिफ्ट यानि विद्यालय सुबह पाली की थी, सभी एक साथ ही विद्यालय जाते, एक दिन गंगाराम उन लोगों के साथ न जाकर मंटू भईया के साईकिल पर जाने वाला रहा, और मंटू भईया को कॉलेज जाना रहा, उस गांव से लोहा जाने के लिए दो रास्ते थे एक फाटक पर से यानि मुख्य सड़क होते हुए तो दूसरी पैदल जाने वालों के लिए खेतों खेतों के बीच से ईंटा भट्ठा के तरफ जाने वाले रास्ता का नाम थरहा रहा,लोग मैथिली भाषा में कहते भी ” थरहा दअ कऽ जेएबेए तअ जल्दी पहुँच जेबै ” मतलब मुख्य रास्ता से न जाकर इस रास्ते से जाने पर समय बहुत ही कम लगता, थरहा और जो मुख्य सड़क जहां लोहा के रास्ते में मिलते, गंगाराम तो साईकिल पर रहा बाकी सब थरहा के रास्ते से उस मोड़ पर पहुंचने वाले रहें, और गंगाराम और बाक़ी की भेंट होने से पहले ही चिल्लाने लगता है , वह अज्ञानता देखने को मिलता है कि क्या बताऊं, वह इस प्रकार चिल्लाता है , जो मैथिली भाषा में वर्णित है :-
मंटू भईया जल्दी – जल्दी चलूं ,
देरी भोअ जेएत , साईकिल में हवा नैई छैय ,
मतलब गंगाराम साईकिल के आगे बैठे रहे, कहीं कोई पीछे न बैठ जाएं, वह इसलिए बोला , सच में बचपना में हमें सही का ज्ञान नहीं रहता ,और जब बचपना बीत जाते तो हम उस पल को याद करते, याद करके दुख ही मिलता, फिर भी बचपना के वह सुनहरे दिन याद आ ही जाते, वर्तमान में सभी अपने अपने लक्ष्य पाते हुए जीवन की सफ़र कर रहे है, कोई साहित्य सेवा तो कोई समाज सेवा करके , वही गोलू आज दीपक झा मैथिली गायक के रूप में प्रसिद्ध है ।
सच में भारत माँ की मिथिला की भूमि हीरा उपजाती है, मिथिलांचल वही है जहां माँ सीता जन्म ली , विद्यापति जैसे भक्त , महाकवि का जन्म स्थान, जिन्हें सेवा करने स्वंय महादेव उगना बनकर आये,बाबा नागार्जुन जैसे कवि यही जन्में, धन्य है यह भारत माँ की मिथिला की भूमि जहां भगवान राम तक आये.

✍️ रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज, कोलकाता
ग्राम :- झोंझी , मधुबनी , बिहार,
कविता :- 16(97) , रविवार , 19/07/2020
मो :- 6290640716

20:19 , WhatsApp status
आ. प्रवीण भाई जी पर।
हार्दिक शुभकामनाएं सह बधाई 🙏 बड़का भाई जी 🙏
कविता :- 20(09)

रोशन कुमार झा
हे मेरे राम काव्य संग्रह
पृष्ठ - 39
Roshan Kumar Jha
77/R Mirpara Road ( Ashirbad Bhawan  )
Liluah Howrah - 711203
Mob no :- 6290640716
200 भेजें , गुरुवार , 27/05/2021 कविता :- 20(09)
6/7/8 रामलाल मुखर्जी लेन हावड़ा हिन्दी हाई स्कूल पास गये जहां साईकिल रखते रहें मैदान पास 4 तल्ला पर 1000 में पापा 100 दिए हमको   फिल्टर लेने लॉकडाउन रहा बामनगाछी ब्रिज पर पुलिस सब रहा 10 बजे तक ही खुला रहता है । 10:30 हो रहा था चक्रवर्ती तूफ़ान यास आया रहा । पूजा का जीजा जो बैंक में काम करते थे दीदी भी बैंक में ही जीजा को सांस लेने में समस्या रहा पटना हॉस्पिटल में ही ख़त्म हो गये ।

[27/05, 6:13 PM] Babu 💓: Babu jija ji death kr gye
[27/05, 6:13 PM] Babu 💓: 5 :30 me hi
[27/05, 6:13 PM] Roshan Kumar Jha, रोशन: Ohh
[27/05, 6:13 PM] Babu 💓: 😭😭😭😭😭😭
[27/05, 6:13 PM] Roshan Kumar Jha, रोशन: My god
[27/05, 6:13 PM] Roshan Kumar Jha, रोशन: 😭😭😭😭😭😭
[27/05, 6:14 PM] Roshan Kumar Jha, रोशन: Didi ka halat karav
[27/05, 6:14 PM] Roshan Kumar Jha, रोशन: Pic bhejho na unka
[27/05, 6:14 PM] Roshan Kumar Jha, रोशन: Man sad ho Gaya jaan
[28/05, 6:34 AM] Roshan Kumar Jha, रोशन: Good morning Babu

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साहित्य एक नज़र 🌅 अंक - 17
आ. प्रवीण झा जी

[27/05, 8:52 PM] Prabin Bhaiya: 😇 सब अहाँक सहयोग आइछ ओ एकर असली हकदार अहिं छि
[27/05, 8:52 PM] Prabin Bhaiya: 🥰
[27/05, 8:53 PM] Roshan Kumar Jha, रोशन: नैय भाई जी 🙏💐
[27/05, 8:53 PM] Roshan Kumar Jha, रोशन: बस अप्पन पत्रिका अछि अखरा बढ़बअ के छैय 🙏🙏🙏🙏
[27/05, 8:54 PM] Prabin Bhaiya: बिल्कुल बहुत रास रचना आइछ बस कनेक समय भेटय फेर अहाँके भेजब
[27/05, 8:55 PM] Roshan Kumar Jha, रोशन: ठीक छैय 🙏 भाई जी 🙏
[27/05, 8:55 PM] Prabin Bhaiya: 🤗🥰😘
[27/05, 9:33 PM] Roshan Kumar Jha, रोशन: स्वागतम् 🙏 भईया जी
[27/05, 9:46 PM] Prabin Bhaiya: 🤗🙏
[27/05, 9:59 PM] Prabin Bhaiya: 🤗🙏
[27/05, 9:59 PM] Prabin Bhaiya: 👌🏻
[28/05, 6:31 AM] Roshan Kumar Jha, रोशन: 🙏🙏🙏🙏

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[27/05, 6:53 PM] Up Sahitya: परम् आदरणीय भाई साहब सादर अभी आज दिनांक 27/05/2021 का अंक नहीं आ रहा है क्या।
[27/05, 8:15 PM] Roshan Kumar Jha, रोशन: आयेगा
[27/05, 9:27 PM] Up Sahitya: परम् आदरणीय भाई साहब सादर कृपया दिनाँक 28/05/2021 की कविता को छाप दिया है और 27/05/2021  की कविता को छोड़ दिया है।
निवेदन है कि कल दिनाँक 28/05/2021 को आपके पास मेरी कविता "व्याकरण , तुम एक अति प्राचीन , महिला हो किन्तु , एक नई नवेली सी , तुम्हारा नाम है , संज्ञा " इस को ज़रूर छापना है । इस कविता का विषय और भाव बहुत ही मार्मिक एवं बोधगम्य हैं।
आपको बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाओं सहित हृदयाभिनन्दन धन्यवाद।
रामकरण साहू "सजल" बबेरू (बाँदा) उ०प्र०
[27/05, 9:32 PM] Roshan Kumar Jha, रोशन: भेजिए , जब एक रचना प्रकाशित हो जाएं तब दूसरी रचना भेजिए सादर निवेदन 🙏💐

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[27/05, 5:56 PM] प्रमोद ठाकुर: सर आज की पत्रिका नहीं आयी
[27/05, 6:30 PM] Roshan Kumar Jha, रोशन: कैरेंट नहीं रहा
[27/05, 6:30 PM] Roshan Kumar Jha, रोशन: बना रहे है सर जी

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[26/05, 11:45 PM] डॉ सुनील जी, अभिव्यक्ति: नमस्कार मित्र
आपके ग्रुप पर फेसबुक पर
रिक्वेस्ट भेजी है।एप्रूव कीजिए
हम भी ई पत्रिका निकालते हैं।
अनियमित।
एक अंक भेज रहा हूं। शुभेच्छु
अनिल
[26/05, 11:45 PM] Roshan Kumar Jha, रोशन: ठीक है 🙏💐 सादर स्वागतम् 🙏💐
[27/05, 6:31 AM] Roshan Kumar Jha, रोशन: जी 🙏 बहुत सुंदर अंक

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साहित्य एक नज़र ग्रुप में

[27/05, 8:31 PM] +91 आ. सपना जी 43: बहुत बहुत बधाई आदरणीय।
[27/05, 9:11 PM] प्रमोद ठाकुर: प्रवीण जी आपको हार्दिक बधाई
[27/05, 9:49 PM] Prabin Bhaiya: आभार अनुज🤗 - हमें
[27/05, 9:50 PM] Prabin Bhaiya: सहृदय आभार बहना🙏🙏 - आ. सपना जी को
[27/05, 9:51 PM] Prabin Bhaiya: आत्मीय आभार सह प्रणाम आदरणीय🙏🙏
[27/05, 10:11 PM] आ. शायर देव जी: वाह्ह्ह्ह्ह जी
सराहनीय, वन्दनीय 🙏🌹
[27/05, 10:39 PM] डॉ सुनील जी, अभिव्यक्ति: हमारे अभिव्यक्ति ग्रुप में जुड़े
जो मित्र पत्रकारिता भी कर रहे हैं, करते हैं उनको पत्रकारिता दिवस पर सम्मानित करने का निर्णय लिया गया है।कृपया 29-5-2021 की शाम तक अपना नाम, पत्रकारिता में सेवा के वर्ष की जानकारी हमारे पटल पर भेज दीजिए। जो मित्र चाहे वो निम्न लिंक से पटल पर जुड़े और वांछित जानकारी भेजें
https://chat.whatsapp.com/KGNb5qtXPp69MLXKjTJsCm
[27/05, 10:40 PM] डॉ सुनील जी, अभिव्यक्ति: आप अपने व संपादक मंडल के मित्रों का नाम अभिव्यक्ति ग्रुप में भेजिएगा🙏
[28/05, 6:30 AM] Roshan Kumar Jha, रोशन: जी शुभ प्रभात धन्यवाद सह सादर आभार 🙏💐
--------------------

साहित्य संगम संस्थान पश्चिम बंगाल इकाई
विषय प्रवर्तन
आ. कुमार रोहित रोज़ जी

https://m.facebook.com/groups/1719257041584526/permalink/1927541597422735/?sfnsn=wiwspmo

सादर नमन

*"हे मेरे राम"* पुस्तक का प्रकाशन ISBN नंबर के साथ किताब महल प्रकाशन दिल्ली से किया जा रहा है। जिसमें हर रचनाकार को *₹200 में दो प्रतियां* देने का निर्णय लिया गया है। तो सभी सहयोगी रचनाकारों से निवेदन है कि कृपया आप नीचे दिए गए माध्यम से ₹200 जमा कीजिए और हमें सूचित कीजिए *स्क्रीनशॉट* के साथ।

Phone Pe
9480006858

Google Pay
9480006858

Bank account details
Name :- SUNIL PARIT
A/C No. 05182180000150
IFSC :- CNRB0000518
Bank :- CANARA BANK
Branch :- BAILHONGAL

(यह पावन पवित्र राम काज है और इस राम काज सेवा में जो भी हमें अधिक से अधिक आर्थिक रूप में सहायता करना चाहते हैं उनका हार्दिक स्वागत है।)

सहयोग राशि जमा करने के बाद सूची में अपना पूरा नाम, पूरा पता पिन कोड सहित और मोबाइल नंबर दर्ज कीजिए ताकि हम आपके पते पर किताबें भेज सके।

🙏धन्यवाद🙏

*सं. डॉ सुनील कुमार परीट*
मो. 9480006858
8867417505

कविता :- 20(09) , गुरुवार, साहित्य एक नज़र अंक - 17
77/R Mirpara Road Liluah Howrah Ashirbad Bhawan
यास तूफ़ान आने वाला रहा
, नेहा , शूभांगी , अजितेश को सपना में देखें नेहा मेरे पास आई बोली सर जी ।

__________________
[26/05, 11:45 PM] +91 971 , डॉ अनिल शर्मा ' अनिल जी '

: नमस्कार मित्र
आपके ग्रुप पर फेसबुक पर
रिक्वेस्ट भेजी है।एप्रूव कीजिए
हम भी ई पत्रिका निकालते हैं।
अनियमित।
एक अंक भेज रहा हूं। शुभेच्छु
अनिल
[26/05, 11:45 PM] Roshan Kumar Jha, रोशन: ठीक है 🙏💐 सादर स्वागतम् 🙏💐
[27/05, 6:31 AM] Roshan Kumar Jha, रोशन: जी 🙏 बहुत सुंदर अंक

__________________
आ. कलावती कर्वा दीदी जी

[26/05, 5:42 PM] Roshan Kumar Jha, रोशन: बहुत सुंदर ढंग से लिखें है ।
[26/05, 5:51 PM] कलावती कर्वा दीदी जी 🙏: और कुछ लिखना हो तो बताओ
[26/05, 6:41 PM] Roshan Kumar Jha, रोशन: नहीं दीदी जी 🙏 ठीक है ।
[27/05, 6:29 AM] Roshan Kumar Jha, रोशन: शुभ प्रभात 🙏 दीदी जी नमस्ते , सही बताएं है राष्ट्रीय अध्यक्ष महोदय जी 🙏💐
देखें - 26/05/2021

कविता :- 20(09) , गुरुवार, साहित्य एक नज़र अंक - 17

कविता :- 20(09)
http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/05/2009-27052021-17.html

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विश्व साहित्य संस्थान
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अंक - 17
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कविता :- 20(07)
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अंक - 16
http://vishnews2.blogspot.com/2021/05/16-26052021.html

वृहस्पतिवार , 27/05/2021
कविता :- 20(10)
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अंक - 18 🌅
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28/05/2021 , शुक्रवार , आनंद जन्मदिन

कविता :- 20(11)

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अंक - 19
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27 मई 2021
   गुरुवार
ज्येष्ठ कृष्ण प्रतिपदा संवत 2078
पृष्ठ -  1
प्रमाण पत्र - 15  ( आ. प्रवीण झा जी )
कुल पृष्ठ - 16

साहित्य एक नज़र  🌅 , अंक - 17
Sahitya Ek Nazar
27 May , 2021 ,  Thursday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর
27 मई 2021 ,  गुरुवार
ज्येष्ठ कृष्ण प्रतिपदा संवत 2078

_____________________________
नमन :- माँ सरस्वती
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आमंत्रित
रचनाएं व साहित्य समाचार आमंत्रित -
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दिनांक :- 28/05/2021 , सुबह 11 बजे तक
दिवस :- शुक्रवार
इसी पोस्ट में अपनी नाम के साथ एक रचना और फोटो प्रेषित करें ।

सादर निवेदन 🙏💐

समस्या होने पर संपर्क करें - 6290640716

आपका अपना
✍️ रोशन कुमार झा

एक रचनाकार एक ही रचना भेजेंगे । एक से अधिक रचना या पहले की अंक में प्रकाशित हुई रचना न भेजें ।

अधिक रचनाएं होने के बाद पहले जो रचनाकार अपनी रचना प्रेषित किए होंगे उन्हीं की रचना को पत्रिका में शामिल किया जाएगा ।

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🏆 सम्मान - पत्र 🏆

प्र. पत्र . सं - _ 008 दिनांक -  _  27/05/2021

🏆 सम्मान - पत्र 🏆

आ.  _ _  प्रवीण झा _ _  जी

ने साहित्य एक नज़र , कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका अंक  _ _ 1 - 17  _ _  में अपनी रचनाओं से योगदान दिया है । आपको

         🏆 🌅 साहित्य एक नज़र रत्न 🌅 🏆
सम्मान से सम्मानित किया जाता है । साहित्य एक नज़र आपके उज्ज्वल भविष्य की कामना करता है ।

रोशन कुमार झा   , मो :- 6290640716

आ. प्रमोद ठाकुर जी
अलंकरण कर्ता - रोशन कुमार झा

_____________________________

🌅 साहित्य एक नज़र 🌅
कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका

1.

खुशखबरी ! खुशखबरी ! खुशखबरी !

माँ सरस्वती, साहित्य एक नज़र दैनिक पत्रिका मंच को नमन 🙏 करते हुए आप सभी सम्मानित साहित्य प्रेमियों को सादर प्रणाम 🙏💐।

साहित्य एक नज़र दैनिक पत्रिका  "पुस्तक समीक्षा स्तम्भ" में चयनित पुस्तकों के लेखकों की सूची जससे साहित्कारों को समीक्षा प्रमाण पत्र दिया जा सके जून 2021 माह के लिए केवल 60 स्थान है ।

1. श्री रामकरण साहू "सजल" बबेरू (बाँदा) उ.प्र.
2. अजीत कुमार कुंभकार
3.राजेन्द्र कुमार टेलर "राही" नीमका , राजस्थान
4.निशांत सक्सेना "आहान" लखनऊ
5. कवि अमूल्य रतन त्रिपाठी
6.डॉ. दीप्ती गौड़ दीप ग्वालियर
7. अर्चना जोशी भोपाल मध्यप्रदेश
8. नीरज सेन (कलम प्रहरी)कुंभराज गुना ( म. प्र.)
9. सुप्रसन्ना झा , जोधपुर
नोट:- कृपया अपना नाम जोड़ने का कष्ट करें कृपया सहयोग राशि 30/- रुपये इसी नम्बर 9753877785 पर फ़ोन पे/पेटीएम/गूगल पे करकें स्क्रीन शॉट भेजने का कष्ट करें।

आपका अपना
किताब भेजने का पता
प्रमोद ठाकुर
महेशपुरा, अजयपुर रोड़
सिकंदर कंपू,लश्कर
ग्वालियर
मध्यप्रदेश - 474001
9753877785
रोशन कुमार झा
2.

साहित्य संगम संस्थान महाराष्ट्र इकाई

https://m.facebook.com/groups/319856025911121/permalink/472185297344859/


साहित्य संगम संस्थान महाराष्ट्र इकाई सहयोग
लेखनभाषा-  मराठी/ हिंदी
🙏पर मराठी में लिखें तो हिंदी मैं सार अवश्य समझाएं🙏

विषय प्रवर्तन-
आज रात मैंने एक स्वप्न देखा जिसमें मैं गोकुलधाम सोसायटी गया था। वहां जेठालाल और उनके पिताजी सहित तारक मेहता जी से मिला। हम सब मिलकर ख़ूब हंसे और मस्ती की। उसके बाद उनकी कोई मीटिंग होने वाली थी तो मैं वहां से निकल पड़ा। उसके बाद शुरू होती है कहानी। मैं मेन रोड आने के लिए मुंबई की गलियों में भटक रहा था। मैं बाइक में था, दो-तीन घंटे भटकता रहा। वास्तविक जीवन में मैं शहरों में मार्ग याद नहीं रख पाता। जब भी कार स्वयं ड्राइव करता हूँ तो बगल वाली सीट में बैठी मेरी संगिनी ही मेरी गाइड होती है। मुंबई में जिससे भी रास्ता पूछता कोई भी सही से सहयोग नहीं कर रहा था। सब अपने - अपने काम में इतना व्यस्त थे कि कोई गंभीरता से मेरी समस्या को ले ही नहीं रहा था। मैं खुद को बहुत निरीह और असहाय महसूस कर रहा था। कल बिटिया (शिवानी परिवर्तित और मेरे द्वारा प्यार से पुकारा जाने वाला नाम)भी तो इस विषय पर मुझसे परिचर्चा करने लगी कि महामारी के आने से कितने फायदे हुए हैं! सबसे पहले तो प्रकृति ☃️ माता को बहुत राहत मिली है और दूसरा मानव की अंधी दौड़ में कुछ तो रिलेक्स हुआ है। आज वह अपने परिवार के लिए समय निकाल सका है। सारे लोग और बच्चे अपने - अपने कार्य और पढ़ाई छोड़कर घरों में एकत्रित हैं। पर्यावरण प्रदूषण पूरे विश्व का नियंत्रित हो गया है। मैं उसकी तर्कपूर्ण बातें सुनकर मुस्कुरा रहा था पर अपनों के जाने के गम से अंदर ही अंदर संवेदित हो रहा था। मुंबई में हाइवे खोजते-खोजते मुझे व जाने कितनी रेलवे लाइनों को बाइक सहित पार करना पड़ा और न जाने कितनी गंदी बस्तियों से गुजरना पड़ा, मैं हाइवे खोजते-खोजते बहुत थक चुका था। पर कोई सहायता कहीं से मिलती दिखाई नहीं दे रही थी। अंत में एक नवयुवक ने बड़ी आत्मीयता से थोड़ी मदद की पर हाइवे तब भी नहीं मिला। पुलिस का रवैया तो खैर सहयोगी ही था। बहुत बाद में याद आया कि मैं इतना क्यों परेशान हो रहा हूँ? मेरे पास तो आधुनिक मोबाइल है। उसके गूगल मैप के जरिए तो मैं मंगल ग्रह तक जा सकता हूँ, हाइवे को कौन पूछता है? और नींद खुल जाती है।😀

इस दुनिया में सबसे अच्छा तो साहित्य संगम संस्थान है जो यहां सब एक दूसरे का सहयोग करके परस्पर प्रोत्साहन प्रदान करते हैं। इस थोड़े - थोड़े सहयोग से आज आभासी दुनिया का एक विशाल मंच बन चुका है संगम और न जाने कितने लोगों ने काव्य सर्जन से लेकर साहित्यालंकरण और संपादन आदि के गुर सीखे हैं। कुछ ने सिखाया भी है।😀

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। इसके जीवन के समस्त कार्य बिना किसी के सहयोग के हो ही नहीं सकते। नौकरीपेशा को यदि किसान का सहयोग न मिले तो वह खाएगा क्या? प्राचीनकाल में विनिमय प्रणाली चलती थी। एक किलो गेहूं दीजिए तो एक किलो या उसकी उपलब्धता के अनुसार आधा किलो सब्जी ले लीजिए। यह विनिमय प्रणाली गांवों में अभी भी चलती है। पर बीच में पैसा/धन आ गया है। जो सभी बीमारियों की जड़ है। मानव जन-गण-मन छोड़ धन के पीछे दीवाना हो उठा है। उसके लिए उसे कुछ भी करना पड़े करने के लिए तैयार है। अपने बिकने तक के हर संभव प्रयास करने पर उतारू है। सहयोग और सेवा का माध्यम भी अब धन हो गया है। जनसेवा अब किताबों में स्थान ले रही है।

आज का मानव यांत्रिक होता जा रहा है। यंत्रों पर भरोसा है उसे। क्योंकि मानव विश्वसनीय रहा ही नहीं। वह सहायता भी करता है तो उसके पीछे कोई न कोई उसका स्वार्थ छिपा होता है। ऐसे उदाहरण संसार में ज्यादा देखने को मिल रहे हैं। पर निस्वार्थ सेवियों का अभी अकाल नहीं पड़ा है। वरना साहित्य संगम संस्थान नहीं चल पाता। देखते हैं आज कितने साहित्यकार साथी और बहनें मेरे विषय प्रवर्तन में मेरा #सहयोग करने आगे आते हैं। पर पहले विषय प्रवर्तन पढ़ने का #सहयोग करें तो कुछ बात बनें। आजकल लोग पढ़ते ही नहीं, बिना पढ़े वाह - वाह करते रहते हैं। पता नहीं क्यों? पढें तो फिर विचारों का झोंका जरूर आएगा और लिखने को मजबूर हो जाएंगे।


✍️ राजवीर सिंह मंत्र जी
राष्ट्रीय अध्यक्ष
साहित्य संगम संस्थान नई दिल्ली

3.
*(जीवन सन्देश)* उन्नतशील जीवन के लिए हर पहलू का लेखा-जोखा अर्थात जीवन-प्रबंधन पर हमें ध्यान देना जरूरी है। क्योंकि इसके जरिए हम खुद का आँकलन कर सकते हैं कि अपना समय और ऊर्जा कहाँ-कितना खर्च कर रहे। कितना व्यर्थ गवा रहे? इसमें से कितना बचा सकते हैं?

हमारी हर क्रिया के पीछे एक प्रबंधन, एक मनोवैज्ञानिकता, बेहतर सोच और नजरिया जरूर होनी चाहिए। जो कमी हो उसे सुधारते चलें। बेहतर बनाते चलें।  यह बहुत जरूरी है। यदि हमें यह पता नहीं चलता कि आज का दिन कैसे बीत गया तो यह भी पता नहीं चल पाएगा कि जिंदगी कैसे बीत रही है।

हर नया दिन ईश्वरीय शक्ति की ओर से मिलने वाला एक उपहार है। इस उपहार के एक-एक पल को निखारना ही जीवन की सार्थकता और श्रेष्ठता है। किन्तु हमारी सबसे बड़ी समस्या यही है कि हम अपने ही जीवन का लेखा-जोखा नहीं रखते। खुद के प्रति ही उदासीन बने रहते हैं। जमाने भर की बातों और लोगों का हिसाब-किताब करते रहेंगे लेकिन खुद का नहीं।

एक दुकानदार को अपनी दुकान की एक-एक बात पता होती है। दुकान में कौन-सा सामान कितना है। क्या पर्याप्त है? क्या समाप्त हो गया? कितनी आय हुई? कितना व्यय हुआ? सब कुछ पता होता है। तभी वह सफल व्यवसासी बनता है।

किन्तु हम कितने लापरवाह हैं कि अपने जीवन का प्रबंधन नहीं कर पाते। कभी कोई हिसाब किताब नहीं लगाते और न ही जीवन-शैली को लेकर कोई लेखा-जोखा तैयार करते हैं। हमें पता ही नहीं होता कि हम समय और ऊर्जा कहाँ खर्च कर रहे? कहाँ खर्च करना चाहिए और कहाँ नहीं? यदि जीवन में सफल होना है, बेहतर जीवन की कामना है तो अपने जीवन के प्रति जागरूक बनें। स्पष्ट प्रबन्धन करें। उन्नति के लिए यह जरूरी है।

✍🏻 * सत्यम सिंह बघेल *
       * लखनऊ (उ.प्र.)*

4.
आराध्य देव महादेव कृपा से मिले मुझे मित्र  कृपाशंकर
हैं सौम्य, सरल, सादा जीवन, वो  कृपा पात्र  शिवशंकर
मै काव्य लेख सब सीख सकूं,जा पहुंचा  मै इमली  गांव
माँ सरस्वती पुत्र कृपा करो, मुझमे  काव्य  दोष  भयंकर

जाना मैने क्या होता  है नित  नव  मात्रिक  छंद का ज्ञान
काव्य जगत मे शब्द शिल्प से मिलता  कवि को  सम्मान
उनके पिता,बाबा जी से मेरे पिता जी से था स्नेह, लगाव
वो मित्र परम्परा सदा बनी रहे अब न हो  कोई  व्यवधान

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

आदरणीय कृपाशंकर पाण्डेय जी निवासी इमलीगाँव कौशाम्बी से आज मिलकर हिंदी साहित्य की चर्चा हुई | कृपाशंकर जी हिंदी साहित्य के उत्कृष्ट कवि, लेखक एवं संस्कृत के प्रकांड विद्वान् के रूप मे जाने जाते हैं |

   मुंगेर विश्वविद्यालय बिहार मे आप संस्कृत प्रवक्ता के रूप मे कार्यरत हैं | पूर्व मे आप कौशाम्बी मे ही प्राथमिक विद्यालय मे शिछक के रूप सेवा प्रदान कर रहे थे |
इलाहाबाद विश्वविद्यालय मे आपने विद्यार्थी जीवन मे परीछा मे टॉप करके गोल्ड मैडल का सम्मान प्राप्त
किया था | मेरे स्वर्गीय पूज्यनीय पिता जी से आपके पिता जी, बाबा जी से बहुत ही मधुर सम्बन्ध थे | लक्ष्मी बुक स्टोर हमारा पुराना व्यापारिक प्रतिष्ठान से आप सभी परिजनों का विशेष जुड़ाव था | कुछ माह पूर्व ही आप मेरे फेसबुक मित्र बने,  इनकी उत्कृष्ट कविताएं मै फेसबुक मे देखता, पढ़ता रहता था |पर कभी मै इनसे मिला नही था |

हाल ही मे उनकी एक पोस्ट से मुझे मालूम हुआ कि वो अपने जन्मभूमि गृहग्राम इमलीगांव आए हुए हैं.. मैंने पाण्डेय जी को फोन करके मिलने की इच्छा प्रकट की, संयोग से मुझे अपने व्यापार के कार्य से प्रयागराज जाना था | "एक पंत दो काज" का पूर्ण लाभ लेते हुए मै कृपाशंकर जी से मिला तत्पश्चात् प्रयागराज के लिए प्रस्थान किया |

                   ✍️सुजीत जायसवाल 'जीत'
                        सरायआकिल कौशाम्बी
                          प्रयागराज उत्तर प्रदेश

5.
मां शारदे को नमन

2122 1122 1122 22 (112)
काफ़िया:आना स्वर, रदीफ़: होगा
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गर रुलाया कभी हमको भी मनाना होगा।
जख्म दोगे तो मरहम भी लगाना होगा।।
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प्यार दो मीत हमें संग रहो मेरे अब ।
जिंदगी साथ अभी और निराला होगा।।
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प्यार है साथ मिले गर अभी तेरा मुझको।
थाम लो हाथ न जीवन अभी प्यारा होगा।।
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दर्द ए गम न हमें  दो अभी दो अब उल्फ़त।
जिंदगी संग जीने में ये बहाना होगा।।
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बस जरूरत है अभी साथ जिंदगी भर दो।
दर्द ए गम न कभी और हमारा होगा ।।
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तुम न रूठो कभी भी और मिरे खातिर तो।
प्यार दे तुम अभी परिवार तुम्हारा होगा।।
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*तुम यूँ मुँह मोड़ के जाओ न कहीं भी हमसे*।
*गर किये वादे अगर संग निभाना होगा*।।
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अब हमें  भी जरूरत प्यार कि दे उल्फ़त तुम।
गर करो प्यार हमें तो न युँ बिखरा होगा।
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गर है उल्फ़त हमीं से जब तो दिखाओ अब तुम।
जब हमें प्यार किये तो ये दिखाना होगा।।
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जिंदगी में मिले गर दर्द *अजी* को  अब तो।
दर्द में हो कमी तो प्यार बहाना होगा।।

अजीत कुमार ,
✍️ कुमार कुंभकार
ग्राम +पोस्ट: खरसावां,
सरायकेला - खरसावां ,झारखंड  833216

6.
** आँसू बह रहे हैं (ग़ज़ल) **
****222  222 122****
**********************
आँसू  आँखों से  बह  रहे  हैं,
गाथा  गम की वो कह रहे हैं।

मन की पीड़ा कोई न समझे,
व्यथा उर की हम सह रहे हैं।

मातम ने आत्मा  है हिलायी,
दुख  के गोले  भी तह रहे हैं।

फूलों  सा  है  प्यारा  हमारा,
नैनों  के  तारे   वह  रहे   हैं।

ख्यालों में कब से है बसाया,
स्वप्न  जीवन के  यह  रहें हैं।

मनसीरत ने हिय में सजाया,
जलधारा पर  बन चह रहें हैं।
**********************
✍️ सुखविन्द्र सिंह मनसीरत
खेडी राओ वाली (कैथल)

7.
सावधान

" ताऊ ते" गया ,
"यास " आया,
भयंकर चक्रवाती
ये तूफान है ।
तबाही मचाएगा,
तभी यास जाएगा,
भयभीत इससे
आज इंसान है ।।
सावधानी झट पट,
बंगाल , उड़ीसा तट,
अयोध्या, अमेठी तक
रहना सावधान है ।
राहत और बचाव हो,
यास का न प्रभाव हो,
प्रार्थना प्रभु की करें ,
वही दया वान है ।।

✍️ प्रणय श्रीवास्तव "अश्क़ "

8.
कदमों में थोड़ा ठहराव लाओ
घर से ना यूं तुम बाहर जाओ
बाहर अभी खतरे का सिग्नल है
घर में शांत बैठोगे तो यकीनन
सुरक्षित आने वाला कल है !!!!

अभी करोना का कहर है
बन्द हर कस्बा और शहर है
बाहर थोड़ा देखभाल कर चलना
उपाय नही है कोई बीमारी का
इसलिए जरूरी है इससे डरना !!!!!

हर नागरिक की तय जिम्मेदारी हो
सबकी नजर में दुश्मन महामारी हो
आपस में ना बैर किसी से रखना
निपटना है यदि करोना से तो
मिलकर इसका मुकाबला करना !!!!!

हम सब एकजुट गर जो होंगे
तो जीत निश्चित हांसिल होगी
इस मुसीबत को हराना है तो
बस साथ ना छोड़ना किसी का
फिर से खुशियां हममें शामिल होंगी!!!!!

✍️ आरती गौड़
(लेखिका)
9.
परम् आदरणीय प्रकाशक महोदय यह सामग्री
दिनाँक 28/05/2021 के प्रकाशन हेतु है।
कृपया फोटो आपके पास है।
**********************************

लिखना
चाहता था
मैं एक कविता
किन्तु क्या करूँ --!
क़लम दगा दे गई
लिखना
चाहता था
एक रोटी का निवाला
प्यासे का एक घूँट पानी
फटेहाल के कपड़ों के चिथड़े
उनका फावड़ा
उनकी कुदाल
लिखना
चाहता था
आँखों से टपकते आँसू
बदन से बहती पसीने की धार
उनके मोती जैसे कण
माथे पर पड़ी
चिंता की लकीरें
पैरों की बेवाईयों से रिश्ता रक्त
लिखना
चाहता था
बच्चों के सूखते होंठ
पेट के भूँख की तीब्र आग
बेरोजगारों के हाथों की आशाएँ
मजबूर किसान की आत्म हत्याएँ
लिखना
चाहता था
बेटियों की सिसकन
उनके रूप लावण्य की डकैती
राहों पर मनचलों की चंचलता
संस्कार और संस्कृति
लिखना
चाहता था
देश का उज्ज्वल भविष्य
देश की गौरवशाली गाथा
देश की एकता एवं अखंडता
निजीकरण के गुण और दोष
किन्तु क्या करूँ ----------- !
क़लम दगा दे गई

✍️ रामकरण साहू "सजल"
बबेरू (बाँदा)  उ०प्र०

10.
ग़ज़ल

कोरो'ना की लहर घातक,यहाँ अब चलने लगी है।
जिंदगी मौत के साए में',अब ढलने लगी है।
                  
बेरुखी सी लगी बढने, दरम्याँ अब अपनों' के ही,
चाह दीदार की ना जाने' क्यों,अब खलने लगी है।
            
लग गया ये, कैसा अम्बार लाशों का इस जहाँ में,
फिर से कोई चिता अगले ही पल में, सज़ने लगी है।

आ गई ये कयामत कैसी, इन बेबस मजलुमों पर,
रूह माँ भारती की भी, ये देखकर जलने लगी है।
               
इस कहर के बा'दल को भी,सिमटना तो अब पडेगा,
सोच के देव बस ये, जिंदगी फिर पलने लगी है।
✍ शायर देव मेहरानियाँ
       अलवर,राजस्थान
   (शायर,कवि व गीतकार)

11.
🙏 नेताओं की पक गई वोटों की फसल 🙏

नेताओं के वोटों की
फसल पक गई है जबरदस्त,
अब नेता सब है
अपने-अपने हाल में मस्त,
देकर अपने
मत का दान जनता बड़ी है त्रस्त,
मेरे देश का कैसा है ये लोकतंत्र ?
बंगाल में आज अत्याचार
और दरिंदों की दहशतगर्दी,
चारों तरफ़ लूट-हिंसा जारी है
और आगजनी की वारदातों का दर्द,
क्यों जल रहा है आज बंगाल ?
बस यही है क्या भारतीय लोकतंत्र
जहां जनता ने विकास की आशा से
अपना मत था दिया,
कुर्सी की चाहत ने
नेताओं को अंधा बना दिया,
भ्रम जनता का टूट रहा है
आदरणीय मोदी जी,
देकर वोट आपको
जो पाल रखा था मन
में भ्रम मोदी जी,
वो सब्र सब जनता
में आज टूट रहा है,
ममता जी तो ऐसे रुठ गई है
जीत के बाद मन से अपने,
जैसे उनके घर आ गई है
कोई उनकी सौतन,
जीत के बाद माहौल
शांति का होना चाहिए,
श्रीमति जी के गुंडाराज में
गुंडों ने वो हश्न किए,
जल रहे घर-लूटी जा रही
बहन बेटियों की असमते,
ले रही है बदला जाने
किस बात का ममता,
लगता है ये कहीं पूर्व पुनः
काश्मीर न बन जाय,
बंगाल का हाल कश्मीर-सा बन जाय,
बंद करो मोदी जी दूध पिलाना 
आस्तीनों के सांपों को,
अभी वक्त है झटका दे दो
ऐसे कर्महीन नेताओं को !!

✍🏻 चेतन दास वैष्णव
गामड़ी नारायण
बाँसवाड़ा , राजस्थान

12

आशाओं के दीप....

आशाओं के दीप जलाएं
आशाएं आरोग्य का
आशाएं कल्याण का
आशाएं शुभागमन का
आशाएं प्रसन्नताओं का
आशाएं सुख-समृद्धि का
आशाएं विद्यालय जाते हुए बच्चों का
आशाएं आफिस खुलने का
आशाएं परिवर्तन का
आशाएं सन्नाटाओं के हटने का
आशाएं प्रतिकूल से अनुकूल का
आशाएं गीत गाते बच्चों का
आशाएं मुस्कुराते पलों का
आशाएं प्रगतिभरे जीवन का
आशाएं इस निराशा से उजाले का
आओ एक खुशी का दीप जलाएं
जग से गम के तम को दूर भगाएं।

✍️ श्रीमती सुप्रसन्ना झा
      जोधपुर

नमन मंच
अंक- 17
तिथि-27, 5,2021

बचपना भारत की मिथिला भूमि पर

विषय :- बचपना भारत की मिथिला भूमि पर

बात उन दिनों की है जब ,झोंझी गांव से प्रियंका,दीपक,रीचा , दो बहन एक भाई साथ रोशन और मनीषा बग़ल के गांव लोहा में डॉ. देवेन्द्र विद्यालय में एक साथ पढ़ने जाते थे,सभी का एक अलग अलग या घर से दिया हुआ नाम इस प्रकार रहा ,प्रियंका नाम जुनजुन ,दीपक नाम गोलू , रीचा नाम बिट्टू, रोशन नाम गंगाराम वही मनीषा नाम मिली, वह बचपना का उमंग,क्या बताऊं, विद्यालय गर्मी के दिनों में सुबह की हो जाती, और गर्मी के बाद डे की, तो बात गर्मी की है अर्थात् मॉर्निंग शिफ्ट यानि विद्यालय सुबह पाली की थी, सभी एक साथ ही विद्यालय जाते, एक दिन गंगाराम उन लोगों के साथ न जाकर मंटू भईया के साईकिल पर जाने वाला रहा, और मंटू भईया को कॉलेज जाना रहा, उस गांव से लोहा जाने के लिए दो रास्ते थे एक फाटक पर से यानि मुख्य सड़क होते हुए तो दूसरी पैदल जाने वालों के लिए खेतों खेतों के बीच से ईंटा भट्ठा के तरफ जाने वाले रास्ता का नाम थरहा रहा,लोग मैथिली भाषा में कहते भी ” थरहा दअ कऽ जेएबेए तअ जल्दी पहुँच जेबै ” मतलब मुख्य रास्ता से न जाकर इस रास्ते से जाने पर समय बहुत ही कम लगता, थरहा और जो मुख्य सड़क जहां लोहा के रास्ते में मिलते, गंगाराम तो साईकिल पर रहा बाकी सब थरहा के रास्ते से उस मोड़ पर पहुंचने वाले रहें, और गंगाराम और बाक़ी की भेंट होने से पहले ही चिल्लाने लगता है , वह अज्ञानता देखने को मिलता है कि क्या बताऊं, वह इस प्रकार चिल्लाता है , जो मैथिली भाषा में वर्णित है :-
मंटू भईया जल्दी – जल्दी चलूं ,
देरी भोअ जेएत , साईकिल में हवा नैई छैय ,
मतलब गंगाराम साईकिल के आगे बैठे रहे, कहीं कोई पीछे न बैठ जाएं, वह इसलिए बोला , सच में बचपना में हमें सही का ज्ञान नहीं रहता ,और जब बचपना बीत जाते तो हम उस पल को याद करते, याद करके दुख ही मिलता, फिर भी बचपना के वह सुनहरे दिन याद आ ही जाते, वर्तमान में सभी अपने अपने लक्ष्य पाते हुए जीवन की सफ़र कर रहे है, कोई साहित्य सेवा तो कोई समाज सेवा करके , वही गोलू आज दीपक झा मैथिली गायक के रूप में प्रसिद्ध है ।
सच में भारत माँ की मिथिला की भूमि हीरा उपजाती है, मिथिलांचल वही है जहां माँ सीता जन्म ली , विद्यापति जैसे भक्त , महाकवि का जन्म स्थान, जिन्हें सेवा करने स्वंय महादेव उगना बनकर आये,बाबा नागार्जुन जैसे कवि यही जन्में, धन्य है यह भारत माँ की मिथिला की भूमि जहां भगवान राम तक आये.

✍️ रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज, कोलकाता
ग्राम :- झोंझी , मधुबनी , बिहार,
कविता :- 16(97) , रविवार , 19/07/2020
मो :- 6290640716

https://hindi.sahityapedia.com/?p=130553

कविता :- 20(09) , गुरुवार , 27/05/2021
🌅 साहित्य एक नज़र  🌅 , अंक - 17
Sahitya Eak Nazar
27 May , 2021 , Thursday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর



13.
साहित्य एक नजर
नमन मंच🙏
अंक 17
दिनाँक 26/05/2021
*************            
पथिक

ओ पथ के राही
जरा सम्हल जरा सम्हल
शूल भरे पथ में
सम्हल के पैर धर
जरा सम्हल जरा सम्हल
पथ में ज्वार
पथ में भाटा
जरा सम्हल के चल
जरा सम्हल जरा सम्हल
मुसीबतों के पहाड़
चट्टानें बेशुमार
सम्हल के चढ़
जरा सम्हल जरा सम्हल
कष्टों का दरिया
कांटों का उफान
हर कोई परेशान
सम्हल के पार कर
जरा सम्हल जरा सम्हल
जिंदगी की दूरियाँ
पास की मजबूरियाँ
सम्हल के बात कर
जरा सम्हल जरा सम्हल
वर्तमान हालात
कैसे पाएं निजात
धैर्य से काम ले
जरा सम्हल जरा सम्हल
ओ पथ के राही
जरा सम्हल जरा सम्हल

✍️ अनिल राही
✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️
🌷🌷🌷🌷🌷🌷

14.
अंक 17हेतु

किस दौर में जी रहें हैं ये क्या हो रहा है
अवाम बेफ़िक्र है और सियासत रो रहा है।
मिलकियत जिनकी,हैं मातम वही मनाते
और वक्त बहती  गंगा में हाथ धो  रहा है।
मुश्किलें तो मशगूल हैं महफिलें ज़माने में
मसीहा मूंद कर आँखे चुपचाप सो रहा है।
गज़ब अंदाज़ है गरीबी में जीने वालोँ का
होने देता है उसके साथ,जो कुछ हो रहा है ।
तू क्यों अजय इतनी बेगारी करता रहता है
बंज़र गजलों में हालात के बीज बो रहा है ।

-✍️ अजय प्रसाद ,
अण्डाल वेस्ट बंगाल

15.

प्यारा हिन्दुस्तान
प्यारा हिन्दुस्तान हमारा प्यारा हिन्दुस्तान
तुझमें बसता प्राण हमारा प्यारा हिन्दुस्तान
     उत्तर में तेरे हिमालय
      ऊंचे मंदिर हैं शिवालय
      तेरी दिव्य धारायें
      करती सबका त्राण है ..
प्यारा हिन्दुस्तान..
कल-कल कर मां गंगा बहती
शीतल पावन सबको करती
तप्त धरा में अमृत जल से
मां तू भरती प्राण है...
प्यारा हिन्दुस्तान हमारा..
          बर्फीले तूफान को सहता
          सैनिक रक्षा सीमा की करता
         पुण्य भूमि भारत मां पर
       करता न्यौछावर प्राण है....
प्यारा हिन्दुस्तान हमारा..
केसरी,श्वेत और हरे रंग से
है सजा तेरा ध्वज जैसे
चक्र मध्य चौबिस तीली
दृढ करती स्वाभिमान है...
प्यारा हिन्दुस्तान..
         रंग श्वेत है शांति प्रदाता
         हरा रंग खुशहाली लाता
         केसरिया स्मरण कराता
         पूर्वजों का बलिदान है...
प्यारा हिन्दुस्तान..
  
✍️ डॉ०अनिल कुमार
रा०इ०कालेज बड़खेत पैनोरमा
रिखणीखाल पौड़ी गढ़वाल
उत्तराखण्ड

16.
जब भी वो आता था
उग आता था गमलों में बसंत
फिर वो राह देखता था
तितलियों के आने का...
पत्तों के रंग बदल जाने का
गांव का सीधा-साधा
औसत सी काया
खिली धूप जैसी पिताम्बरी रंग
हाथों में खुरपा लिए
हंसता मुस्कुराता कुछ गुनगुनाता
वो माली....
रोप आता था नन्हें नन्हें पौधे, गमलों में
जैसे किसी नवजात  को रख आया हो                       पालने में........
और सुरक्षित कर आया हो
पौधों का भविष्य...
पर लगता है फुलों की
नजर लग गई थी उसे
उस दिन
कुछ सुरभित फूल झडे
कुछ बेमौसम टहनियां सुखी
वो चला गया था वहां
जहां से लौट कर कोई नहीं आता.....
यकीन नहीं होता
पर फिर भी है यकीन
वो फिर से उग आयेगा
एक दिन
किसी गमले में बसंत लिए..

✍️ पुष्प कुमार महाराज,
गोरखपुर
दिनांक..26.05.2021

17.
शीर्षक : भरोसा

भरोसा रखो
एक दिन सब बदल जाएगा
है ये महामारी का मुश्किल वक्त
इसका भी अंत हो जाएगा
हो गए है अपने भी पराए
लूटखसोट और बढ़ गया है अन्याय
हर घर बीमारी की लहर है
शारीरिक और मानसिक
तनाव की हर जगह समी है
हर एक के चेहरे से हंसी बेखबर है
दिन हो या रात हर पहर
दहशत से परिपूर्ण है
यत्र तत्र सर्वत्र संवेंदनहीनता
का परिवेश है
मजबूरी का फायदा उठाना
ही केवल उद्देश्य है
समय का पहिया चलता जाएगा
भरोसा रखो
एक दिन सब बदल जाएगा।

✍️ --इं. निशांत सक्सेना "आहान"

18.
  
सोचता हूँ छप्पर में पैबंद लगा दूँ,
कमबख़्त चाँद झाँकता हैं।
अब मुझसे सहन नहीं होता,
मेरे हुजरे में मेरा महबूब  सोता हैं।

जब से गये हैं बो मेरी ज़िंदगी से,
दिल-ए-मकां सुना सा रहता है।
देखता हूँ छप्पर के उन सुराखों को,
कमबख़्त अब चाँद भी नहीं झाँकता।

✍️ प्रमोद ठाकुर
ग्वालियर , मध्यप्रदेश
9753877785

19.

||ऊँ श्री वागीश्वर्यै नमः||
         वो दरवाजे पर मेरे आई
          ******************
            (कविता, छंदमुक्त)

वो दरवाजे पर मेरे आई,
देख उसे आँखें जगमगाई|
मैंने भी घर का दरवाजा खोला,
आदर से कुछ यूँ बोला|
तुम्हारा गर्मजोशी से स्वागत है,
यही संस्कृति की ताकत है|
वह मुस्कराकर अंदर आई,
आँखें चारों ओर घुमाई|
मीठी वाणी में यूँ बोली,
मन की उसने गाँठें खोली|
घर तुम्हारा बहुत छोटा है,
जिसमें मुझे कष्ट होता है|
मैंने भी ज्ञान का पोथा खोला,
मुख से कुछ यूँ फिर बोला
घर तो स्वर्णपिंजर भी होता है,
उसके वासी को कहाँ सुख होता है?
जिसमें भावनाओं का सम्मान
होता है, वही जग में सच्चा घर होता है
तनिक यहाँ ठहरो तो.........
इतने में भूचाल जो आया,
घर संग उसने मुझे हिलाया
जोर से पत्नी जब बोली,
सुनकर मैंने आँखें खोली
किस सपने में खोए हो?
क्यों अब तक सोए हो?
हो गई सुबह मतवाली है,
मेज पर रखी चाय-प्याली है
मैं पत्नी से तब यूँ बोला,
मन का सारा भेद भी खोला
मुझे अभी नहीं जगना था,
अतिथि धर्म पूरा करना था...
***
रचयिता-
✍️ गणेश चन्द्र केष्टवाल,
मगनपुर किशनपुर कोटद्वार
गढ़वाल उत्तराखंड
२६-०५-२०२१

20.

नमन मंच
अंक-१७
दिनाँक-२६-५-२०२१

शीर्षक- सम्भल जाइए...

हवा भी अब कम हो गई,
     जरा सम्भल जाइए।
         मर रहे है रब के बंदे दम घुटकर,
             सब सचते हो जाइए।।
तीसरी लहर भी आनी है,
     अभी जरा मान जाइए।
         हवा भी अब नही मिल रही है,
             बाहर मास्क लगाकर जाइए।।
बुझ न जाये घर का चिराग,
     अब घर मे रुक जाइए।
          सभी रखे अपना ख्याल,
               खबरदार हो जाइए।।
मिटाने आया ये कोरोना,
    सोच कर घर से बाहर जाइए।
       सब छोड़ सरकार पर,
            बाहर न घूमने जाइए।।
घर मे रहकर बचना हैं,
     अब सबको बताते जाइए।
          अपनो साथ जिंदगी को,
               सुख से जी बस जान जाइए।
उड़ने लगे है रंग बहार के,
     अब तो होशियार ही जाइए।
         अपने घर मे बड़ो व बच्चों को,
               हर पल समझाते जाइए।
ईश्वर सब को सुखी रखे,
     सबको समझाते जाइए
          जरूरतमंद की सहायता
               हो सके तो बस करते जाइए।

✍️ डॉ मंजु सैनी
गाजियाबाद
घोषणा:ये मेरी स्वरचित रचना हैं

21.
🙏 जवाहरलाल नेहरू की पुण्यतिथि पर मेरा नमन🙏

भारत के प्रथम प्रधानमंत्री और बच्चों के प्यारे चाचा नेहरू पंडित जवाहरलाल नेहरू की आज पुण्य तिथि हैं।१४ नवंबर१८८९ को पंडित जी का जन्म हुआ था।उच्च शिक्षा के साथ ही अपना राजनीतिक सफर एक स्वाधीनता सेनानी के रूप में किया था।महात्मा गांधी जी के जीवन से बहुत प्रभावित थे।किशोरावस्था से ही गांधी जी के आंदोलन से जुड़ गए थे।न जाने कितनी बार जेल भी गए।कई बार स्वाधीनता सेनानियों के लिए इन्होंने कोर्ट में वकालत भी की।

१५ अगस्त १९४७ को भारत के आजाद होने तथा भारत-पाकिस्तान त्रासदीपूर्ण बंटवारे के समय उन्होंने देश की बागडोर संभाली और देश को विकास की राह पर ले जाने का कार्य किया। उन्होंने आजादी के बाद देश के विकास के लिए कई पंचवर्षीय योजनाएं आरंभ की और देश को गुलामी के अंधकार से निकाल कर विकास के मार्ग की राह दिखाई।आज हम उन पर गर्व करते हैं।उनकी योजनाओं से लाभान्वित भी होते है।वो एक अच्छे लेखक भी थे अपनी जेल यात्रा के दौरान कई पुस्तकें लिखी।इनमें "द डिस्कवरी ऑफ इंडिया काफी चर्चित हैं।देश की सेवा करते हुए२७ मई१९६४ इन्होंने आपकी जीवन यात्रा पूरी की।भारत इनके योगदान को हमेशा याद करेगा।आइए हम की अपने समूह की ओर से श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं।

✍️ डॉ मंजु सैनी
गाजियाबाद

22.

अंक 17 हेतू
सादर
           ग़ज़ल

जिन्दगी इतनी  लाजबाब नहीं
रंजो गम का कोई हिसाब नहीं |1

माना थोड़ा नशा तो है मुझको
पीता लेकिन कभी शराब नहीं |2

मुफलिसी में हूँ ..नुक्स है सारे
यूँ तो मै आदमी... खराब नहीं |3

सब कहाँ ....कामयाब होते है
ठोकरों का मगर .हिसाब नहीं |4

तन है मीटर में इन्च  मे कपड़े
छोडें जोडेंगें क्या हिसाब नहीं |5

वक्त से कौन ..जीत सकता है
कोई इससे ...बडा नवाब नहीं |6

धोखे खाये हैं ..प्रेम सब ही ने
इश्क की है कोई किताब नहीं |7

✍️ डॉ. प्रमोद शर्मा प्रेम
नजीबाबाद बिजनौर

23.

नमन मंच
साहित्य एक नज़र  दैनिक पत्रिका
अंक ... 17
कविता ...शीर्षक

             *      निराकार    *

                  मैं नहीं कहती
                  लोग कहते हैं ,
                  जीवन को विभिन्न रंगों में        
                  रंगने वाला ,
                  वो अजीब चित्रकार है ।
                  किसी को श्वेत
                  किसी को श्याम करना ,
                  ये उसकी तूलिका का कमाल है ।
                   दुःख और सुख के
                   दो पहियों से ,
                   चलाता वो जीवन का चक्र है ।
                   इसीलिए शायद
                   उस निराकार को ही ,
                   लोग कहते भगवान है ।
                             
✍️     अनीता नायर "अनु ''
नागपुर ( महाराष्ट्र )

24.
साहित्य एक नजर
नमन मंच
अंक _ 17
दिनांक _ 26/05/2021
********************
कैक्टस के फूल

मरुस्थल की उस,  शुष्क रेणुका पर
फैला दूर तक,  वो ढेर सारा कैक्टस,
और, उसमें प्रस्फुटित होता  उसका
मनोरम और, अनुरक्त  से भरा फूल,
झेलती सूरज की, तीव्र  तपन वेदना
सहती हवाओं के, तेज  शुष्क थपेड़े
और, दिन भर खाती, रेत  भरा धूल ।

बड़ी ही मायूसी से भरी,थी वह पड़ी
अपने लिखे प्रारब्ध से, थी वह जड़ी,
विवशता अपनी ये, किसे वह दर्शाए
उर के हर भाव, किसे जा वह बताए,
अपनी भीनी सी गंध, किसको दे वह
अपनी रंगों की आभा,किसको दे वह,
हर तरफ घिरे हैं, उसके शूलों से साए
देख इन्हें, ये अलि भी पास नहीं आए ।

कांटों से घिरी, वो  थी पड़ी सिसकती
भृंगो के ये न आने से, वो थी तड़पती,
विवशता कितनी है, उसके खिलन में
मगन है फिर भी वो, धूप के जलन में,
अंतर्द्वंद्व में वह, अपने  को  पकड़ कर
कृषता में वह, अपने  को  जकड़ कर,
नहीं प्रवृत्ति,  आर्त_भाव के दिखन में
कितना  सुख है यह,  विरह_लगन में ।

कितनी अधीर सी, हो रही थी जो वो
कलतक, कलि से कुसुमित होती वो,
अंतस उसका, हो रहा था जो उत्फुल
उस अनुराग, और माधुर्य में व्याकुल,
पर आज वेदना से,  म्लान हो गई वो
निःशब्द हो, नयन नीर से भर गई वो,
जीवन का अन्त है,  प्रणय_मिलन में
ये सच्चा सुख है,  विप्रलंभ_अगन में ।

निस्सत्व सा दिखता, उसका  जीवन
असार्थ और निरवता से, भरा है मन,
उत्सर्जित सी, उसकी हृदयग्रही छटा
झंझावत होता उर, घिरी काली घटा,
अपने को कैसे,  प्रकृत्त  कर पाए वो
प्रणय_ ज्योति कैसे, अब जलाए वो,
चित्कार करता, अंतस जोरों से फटा
जीने की लालसा, अब हृदय से हटा ।

✍️ अवधेश राय
नई दिल्ली ।
( स्वरचित )******

25.
#विषय. शब्द
अंक 17

शब्द , शब्द का प्रयोग जीवन
शब्द शब्द का इस्तेमाल
शब्द शब्द को मेरा सलाम
शब्द से संबोधित सारा जग
हर शब्द होता मालामाल।।
शब्दों का सफर आसान
शब्दों से होता जग निहाल
शब्दों को पिरोए हर बार
कटु वचन राक्षस समान
मीठे वचन देवो समान।।
हर शब्द है हमारी वाणी
हर शब्द हमारी आवाज
इस कदर शब्द शब्द की
उत्पत्ति देता गहरा प्रभाव
शब्द शब्द है हमारी जान।।
शब्द से बनता शब्द यहां
शब्द से जन्मा सारासृजन
शब्द से संबोधित दुनिया
शब्द से जन्मा सारा माल
शब्द है सारा खेल अपार।।
शब्द है अजीब खेल अपार
शब्द से बनता सारा जग
शब्द होता प्रेम शब्द ही यथार्थ
शब्द है अजीब खेल अपार
शब्द से बनता जग महान।।
शब्द संप्रेषण, शब्द गंगा की धारा
शब्द ज्ञान की गंगा हर शब्द गंभीर
शब्द देता गहरा घाव प्रभाव
हर शब्द रामायण हर शब्द पुराण
हर शब्द नारायण देव समान
हर शब्द कवि हर शब्द मान।।

✍️ कैलाश चंद साहू
मो - 9928325840
बूंदी राजस्थान

26.

- मौत का मंजर-

मौत के मंजर कि मैं किताब लिखता हूँ,
लोगों के बिखरते हुए सपनों का
मैं हिसाब लिखता हूं ||

मछली की तरह तड़प रहे हैं जो,
उन लोगों के मन का मैं भाव लिखता हूं ||

जीवन के लिए जरूरी है जो,
उन सांसो का मैं आभाव लिखता हूं||

रोते बिलखते रह गए जो मां बाप के लिए,
उन बच्चों के मैं तन्हा ख्वाब लिखता हूं||

लिखता हूं उनके ख्वाब भी
जिनके बेटे बेटी चले गए,
यह कविता उन मां-बाप की 
मालिक मैं तेरे नाम लिखता हूं ||

खत्म कर मौत का खेल
अब मेरे मालिक,
यह प्रार्थना तुझको मैं सुबह
शाम लिखता हूं||

दुख के भाव से भर गया है सागर,
सागर के हृदय का मैं तुझको
पैगाम लिखता हूं||

- ✍️ वीरेंद्र सागर
- शिवपुरी मध्य प्रदेश

27.

🙏 गुरु 🙏

गुरु तुम दीपक मैं अंधकार ,
किए हैं मुझपे आप उपकार,
पड़ा है मुझपर ज्ञान प्रकाश,
बना है जीवन ये उपवास,
करें नित मुझ पर बस उपकार ,
सजे मेरा जीवन घर द्वार,
गुरु से मिले जो ज्ञान का नूर,
हो जाऊं मैं जहां में मशहूर
गुरु से मिले हैं जो मार्गदर्शन,
हो गए हैं मुझको रब के दर्शन
गुरु तुम दीपक मैं अंधकार,
किए हैं मुझपे आप उपकार।

लेखक– ✍️ धीरेंद्र सिंह नागा
ग्राम -जवई,  तिल्हापुर,
(कौशांबी ) उत्तर प्रदेश - 21221

28.

नमन साहित्य एक नज़र
अंक :-17

शीर्षक :- क्यों है ?
     
भाग दौड़ वाली ज़िन्दगी में
अब सब रुका रुका सा क्यूँ है?
बड़े बेफुरस्त बने फिरते थे हमसब
अब सिर्फ फुर्सत ही फुर्सत क्यूँ है?

करली थी तरक्की छू लेने
की आसमानों को
फिर आज उसी  प्रकृति
की जरूरत क्यूँ है?
चले थे दूसरे जहाँ में
आशियाना बनाने को
अब इस जहाँ के अस्तित्व
बचाने की बेचैनी क्यूँ है?

उजाड़ प्रकृति को,तूने महल
अट्टालिका बनाया
कृत्रिम हवा की जगह,आज़
पेड़ों की जरूरत क्यूँ है?
सोंधी मिट्टी की खुशबू, स्वच्छ हवा
मिली थी तुझको
सोच रे मानव!आज तुझे साँसों को
खरीदने की जरूरत क्यूँ है?

✍️ संतोष सिंह राजपुत
मेदिनीनगर, पलामु झारखंड।।

29.

नमस्ते -मंच
दिनांक 27. 5 2021
दिन- गुरुवार
विधा -कविता
शीर्षक - दुर्दशा के 10 दोहे #साहित्य एक नजर

**** दुर्दशा के दश दोहे * **
    🙏🙏🙏🙏🙏      
              01
दगाबाज चाइना करे,
भरपाई करेअब कोय।
विश्व रुदन सारा करे,
आहें भर भर  सब रोय।।
             02
आन पड़ी महामारी यह,
गरीबन को बहुत संताय।
गरीबन की गरीबी बड़ी,
डूबि डूबि मरि जाय।।
             03
गरीबन को काम गयो,
भये सब बेकार ।
कौन उभारे फिर इन्हें,
कौन मिटाये बेगाार।।
           04
हजार मील पैदल चले,
जान जोखिम डारि।
इस पीड़न को गरीब सब,
आजीवन भुला न पाइ।।
          05
बंद पड़े ये घर सभी,
बंद पड़ा बाजार ।
दुर्दिन आयो सोचि फिर
रोये बारम्बार।।
              06
इस घटना को देख के,
ईश्वर भी विलगाई।
मानव दानव होत यह,
देख प्रकृति अधराई।।
            07
दोहन शोषण होत है,
प्रकृति कोप बड़ी जाय।
प्रकृति के इस कोप को,
विज्ञान बचा न पाय।।
            08
तंत्र मंत्र सब मौन हैं,
माला जपि न जाय।
डॉक्टर होम्योपैथिक भी,
देखि  देखि  घबराइ।।
           09
मानव दानव होत है,
लूटि लूटि सब खाय।
एक दूजन की पीड़ा देख ,
हंसि हंसि करि लजाय।।
          10
माहामारी के कारणे,
हाहाकार मचि जाई।
रुपइया रुतबा व्यर्थ सब,
सार समझ  यह आई।।

✍️ डॉ श्याम लाल गौड़
सहायक प्रवक्ता
श्री जगद्देव सिंह संस्कृत महाविद्यालय
सप्त ऋषि आश्रम हरिद्वार।।

30.

अंक १७ हेतु
कविता
रंग बदल दे जीवन का

मन का कागज, कागज ऐसा
जो कभी नहीं भर पाये मित्र।
नित भाव अनेक लिखे जाते,
अंकित होते हैं अनेक चित्र।।
इस कागज पर जो कुछ भी,
हो जाता अंकित एक बार।
आसानी से वह नहीं मिटे,
कोशिश कर ले कोई हजार।।
सब भाव इसी पर हैं अंकित,
हर क्रिया इसी से प्रभावित।
इस कागज को पढ़ लेते जो,
कर लेते आकलन संभावित।।
मन का कागज होता विशेष,
हर कोई इसे न पढ़ पाये।
चेतन - अवचेतन को जो पढ़े
जीवन पथ पर बढ़ता जाये।
उन्नति करता वह नित्य प्रति
पढ़ता कागज जो निज मन का।
मन का कागज वह ग्रंथ मित्र,
जो रंग बदल दे जीवन का।।

- ✍️ डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर उत्तर प्रदेश
संपादक - ई प्रकाशन अभिव्यक्ति

31.

साहित्य एक नजर
अंक - 17.
27/5/2021.

चुनावी चौसर.

वाक्छल की बहती
आंधी में जिंदगी को
लाजबाब झूठ के आगे
सच को हारते देखा
सत्ता युद्ध के समरांगन में
नागरिकों को ललकारते देखा
शपथ की परिभाषाओं में
संविधान को कांपते देखा
तंत्र की तानाशाही में
लोक का विस्थापन देखा
बहुसंंख्यकता की होड़ में
अल्पसंख्यकता की चिंघाड़ से
जहरीली साम्प्रदायिक नदी में
वोटों से वैतरणी पार होते देखा
क्रूरता की निगाहों में
जिंदगी को हांफते देखा
घूरते संविधान में
लोकतंत्र को कांपते देखा
गोडसे की प्रेत छाया देख
गांधी को चीखते देखा
मार्क्सवादी परिधान को
चिथड़ों में बिखड़ते देखा
रामनामी राष्ट्र कृष्णमय हो
लहुलुहान हस्तिनापुर देखा
जंगल के वियावन में
लोकतंत्र को भटकते देखा.

@ ✍️अजय कुमार झा.
    7/5/2021.

32.

नमस्कार, साहित्य एक नजर मंच,
अंक:17
27/5/2021  के प्रकाशन हेतु
,( स्वलिखित एवम मौलिक लेखन )

* खामोशियों के घाव *  ~

शब्दों से घाव मिलते  है ये तो सुना था,
पर कोई खामोश हो जाए तो उसके घाव
  शब्दों के घाव से भी ज्यादा गहरे होते है,
भरी महफिल में किसी एक का
खामोश होना कई लोगो को अखरता है,
कोई चाहने वाला आपको
खामोश नहीं देख सकता ..
उसी तरह जो आप से ईर्षा या
प्रतिस्पर्धा करता है ,उसे भी बड़ा अखरता  है,
है न ये ताज्जुब की बात!!
पर ये जो खामोश हो गए उनका क्या??
खामोश होने वाला ,
यूहीं खामोश  नहीं होता
उसे घाव मिला होता है
भावनाओसे खिलवाड़ हुआ हो,
उम्मीदों  को आहत किया हो,
टूटने पर मजबूर किया हो,
धोखा मिला हो, जिस पर
यकीन किया हो वो ही सबसे
ज़्यादा स्वार्थी बन,
हमारे यकीन करने पर हंस रहा हो,
तब बिखरती है एक गहरी खामोशी...
     ये वो घाव होते है जो इंसा 
किसी को दिखा नहीं सकता,
बस वो खामोश हो जाता है, 
ओर ये ' खामोशियों के घाव '
लिए वो मुस्करा ता है.....

कलमकार: ✍️ सौ. अल्पा कोटेचा,
महाराष्ट्र.

33.
सुरेश शर्मा
साहित्य एक नज़र
अंक-17
दिनाँक-27-05-21

विधा-  क़तआ

1 सूख गये आँसू, अब सवाल कैसा!
    भूल गये शिक़वे तो मलाल कैसा!
    घर में पड़े-पड़े, देखा तो है सवेरा,
    ज़िंदा तो हो ना, फिर बवाल कैसा!!
2  आँखें नम थीं, दिल था भारी,
     ख़त ने कहा दीं, बातें सारी,
     ऐसी भी अब क्या लाचारी!
     बिछड़ गये सब बारी-बारी!!
3  जां को हमारी यूँ बहाल किया है!
    पर क़तर के ये आसमान दिया है!
    दिखती नहीं, हमारी ये बदहाल ज़िंदगी,
     क्या ख़ूब!अपनों ने इंतज़ाम किया है!!
4  हौसला तब ख़ुद अपना ईनाम होता है,
     डर डर के जीना जब मुहाल होता है,
     मिला के आँख, मुसीबतों से कह दो,
     ए ग़म! तेरा भी यहाँ अहतराम होता है।
5  कैसी मुरव्वत तुम्हें, इस ज़माने से चाहिये?
    आँधी के आमों पे भी तिज़ारत चाहिये?
    फ़रियाद है बेकार, ज़मीं वालों से करना,
     ख़ुदा की यही मर्ज़ी है, चुप से निकल जाइये।
        
           ✍️ सुरेश शर्मा

34.

बचपना भारत की मिथिला भूमि पर

विषय :-  बचपना भारत की मिथिला भूमि पर ...

बात उन दिनों की है जब ,झोंझी गांव से प्रियंका,दीपक,रीचा , दो बहन एक भाई साथ रोशन और मनीषा बग़ल के गांव लोहा में डॉ. देवेन्द्र विद्यालय में एक साथ पढ़ने जाते थे,सभी का एक अलग अलग या घर से दिया हुआ नाम इस प्रकार रहा ,प्रियंका नाम जुनजुन ,दीपक नाम गोलू , रीचा नाम बिट्टू, रोशन नाम गंगाराम वही मनीषा नाम मिली, वह बचपना का उमंग,क्या बताऊं, विद्यालय गर्मी के दिनों में सुबह की हो जाती, और गर्मी के बाद डे की, तो बात गर्मी की है अर्थात् मॉर्निंग शिफ्ट यानि विद्यालय सुबह पाली की थी, सभी एक साथ ही विद्यालय जाते, एक दिन गंगाराम उन लोगों के साथ न जाकर मंटू भईया के साईकिल पर जाने वाला रहा, और मंटू भईया को कॉलेज जाना रहा, उस गांव से लोहा जाने के लिए दो रास्ते थे एक फाटक पर से यानि मुख्य सड़क होते हुए तो दूसरी पैदल जाने वालों के लिए खेतों खेतों के बीच से ईंटा भट्ठा के तरफ जाने वाले रास्ता का नाम थरहा रहा,लोग मैथिली भाषा में कहते भी ” थरहा दअ कऽ जेएबेए तअ जल्दी पहुँच जेबै ” मतलब मुख्य रास्ता से न जाकर इस रास्ते से जाने पर समय बहुत ही कम लगता, थरहा और जो मुख्य सड़क जहां लोहा के रास्ते में मिलते, गंगाराम तो साईकिल पर रहा बाकी सब थरहा के रास्ते से उस मोड़ पर पहुंचने वाले रहें, और गंगाराम और बाक़ी की भेंट होने से पहले ही चिल्लाने लगता है , वह अज्ञानता देखने को मिलता है कि क्या बताऊं, वह इस प्रकार चिल्लाता है , जो मैथिली भाषा में वर्णित है :-
मंटू भईया जल्दी – जल्दी चलूं ,
देरी भोअ जेएत , साईकिल में हवा नैई छैय ,
मतलब गंगाराम साईकिल के आगे बैठे रहे, कहीं कोई पीछे न बैठ जाएं, वह इसलिए बोला , सच में बचपना में हमें सही का ज्ञान नहीं रहता ,और जब बचपना बीत जाते तो हम उस पल को याद करते, याद करके दुख ही मिलता, फिर भी बचपना के वह सुनहरे दिन याद आ ही जाते, वर्तमान में सभी अपने अपने लक्ष्य पाते हुए जीवन की सफ़र कर रहे है, कोई साहित्य सेवा तो कोई समाज सेवा करके , वही गोलू आज दीपक झा मैथिली गायक के रूप में प्रसिद्ध है ।
सच में भारत माँ की मिथिला की भूमि हीरा उपजाती है, मिथिलांचल वही है जहां माँ सीता जन्म ली , विद्यापति जैसे भक्त , महाकवि का जन्म स्थान, जिन्हें सेवा करने स्वंय महादेव उगना बनकर आये,बाबा नागार्जुन जैसे कवि यही जन्में, धन्य है यह भारत माँ की मिथिला की भूमि जहां भगवान राम तक आये.

✍️ रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज, कोलकाता
ग्राम :- झोंझी , मधुबनी , बिहार,
कविता :- 16(97) , रविवार , 19/07/2020
मो :- 6290640716

https://hindi.sahityapedia.com/?p=130553

कविता :- 20(09) , गुरुवार , 27/05/2021
🌅 साहित्य एक नज़र  🌅 , अंक - 17
Sahitya Ek Nazar
27 May , 2021 , Thursday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর

35.

नमन 🙏 :- साहित्य एक नज़र 🌅
दिनांक :- 27/05/2021
दिवस - गुरुवार

कविता -
आया चक्रवाती तूफ़ान यास है ।।

संकट पर संकट इस कोरोना
काल में भी आया चक्रवाती
तूफ़ान यास है ,
इस मुसीबत पल में भी
पुलिस को घूस की तलाश है ।
नेताओं को जनता नहीं
सत्ता पाना ही ख़ास है ,
तब बताओं यारों
अब होने वाला नहीं विकाश है ।।

उन्नति होना अब संभव नहीं ,
वह भी अब नहीं ।
नेताओं के नज़रों में है सब सही ,
जनता के साथ हम है नहीं
ये बात उन्होंने कब कही ।।

जीने योग्य ये काल
और मास नहीं ,
कैसे न बाहर जाऊं
खाने के लिए पैसा पास नहीं ।
हम रोशन , हम गरीबों की ये स्थिति
ये हमारी बकवास नहीं ,
अब हमें इन ग़द्दारों नेताओं पर
विश्वास नहीं ,
इनसे होने वाला अब विकाश नहीं ।।

✍️ रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज, कोलकाता
ग्राम :- झोंझी , मधुबनी , बिहार,
( गंगाराम ), मो :- 6290640716
कविता :- 20(09) , गुरुवार , 27/05/2021

कविता :- 20(09)
http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/05/2009-27052021-17.html

http://sahityasangamwb.blogspot.com/2021/04/blog-post_16.html

विश्व साहित्य संस्थान
http://vishshahity20.blogspot.com/2021/02/11.html

अंक - 17
http://vishnews2.blogspot.com/2021/05/17-27052021.html

https://online.fliphtml5.com/axiwx/gyjn/
कविता :- 20(07)
http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/05/2007-15-25052021.html
अंक - 16
http://vishnews2.blogspot.com/2021/05/16-26052021.html

वृहस्पतिवार , 27/05/2021
कविता :- 20(10)
http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/05/2010-28052021-18.html
अंक - 18 🌅
http://vishnews2.blogspot.com/2021/05/18-28052021.html

28/05/2021 , शुक्रवार , आनंद जन्मदिन

कविता :- 20(11)

http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/05/2011-29052021-19.html
अंक - 19
http://vishnews2.blogspot.com/2021/05/19-29052021.html





रोशन कुमार झा



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