कविता :- 20(31) , शुक्रवार , 18/06/2021, साहित्य एक नज़र 🌅 अंक - 39
कविता :- 20(31)
नमन 🙏 :- साहित्य एक नज़र
विषय :- गिराकर आगे बढ़ना ठीक नहीं ।
विधा :- कविता
किसी को गिरा कर आगे
बढ़ना ठीक नहीं ,
चाहिए हमें ये भीख नहीं ।।
मेहनत के हिसाब से ही
चाहिए फल
चाहिए उससे अधिक नहीं ,
मंजिल तक जाना पड़ता
मंजिल किसी के नज़दीक नहीं ।।
✍️ रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज,कोलकाता
रामकृष्ण महाविद्यालय, मधुबनी , बिहार
ग्राम :- झोंझी , मधुबनी , बिहार,
शुक्रवार , 18/06/2021
मो :- 6290640716, कविता :- 20(31)
✍️ रोशन कुमार झा , Roshan Kumar Jha , রোশন কুমার ঝা
साहित्य एक नज़र 🌅 , अंक - 39
Sahitya Ek Nazar
18 June 2021 , Friday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর
फेसबुक - 1
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फेसबुक - 2
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--------------
सुबह में गुड्डू भईया मिलरकीन , आ. ज्योति सिन्हा जी पूर्व साहित्य संगम संस्थान बिहार इकाई अध्यक्षा फोन की
19:33 , आशीष, रोबिन आया रहा झोंझी , वारिश होती रही , जिसके कारण देरी से आया । घर देखा , मंटू भाई जी के माँ रहथिन , बिजली लाइन चैल गेल रहैया , समोसा नहीं रहा , 2 करके लिट्टी , 10 का चाउमीन , छोटकी आनंदी को भी लिट्टी दिए , नीतीश बोला गंगाराम , अंधकार हो गया रहा हम अकेले पैदल , आशीष रोबिन साईकिल से रहा , छोड़ आएं अप्पन कोलम तक 19:33 दिखा दिए ।
आनंद आया रहा काजू पैकट फाड़े पूजा जो दी रहीं , बम एक तीन समोसा लाएं रहें , कल 100 दिए रहें 3 समोसा 10 का चाउमीन छोटकी आनंदी लाई रही 10 रुपया मुन्ना कम दिया रहा आज मुन्ना बेटा रहा फिर दादी गई तब 11 रुपया लाई ।
कुछ लोग बैंक में अंदर जाकर फॉर्म भर रहा था हम गये तो बोला मत जाने कैश है , हम बोले नियम सभी के लिए होना चाहिए , वे सभी स्पेशल है क्या ?
फिर उसी के पैसा दिए बोला पाँच मिनट में चल जाएगा ।
14000 , भेजें , सेंट्रल बैंक ऑफ़ इण्डिया लोहा ब्रांच
मुंबई के लिए 10000 बड़की दीदी वाला , 2000 हम दिए पूजा वाला , 2000 खेत के मिट्टी वाला दादी दी
[15/06, 15:57] Roshan Kumar Jha, रोशन: छोटका पेड़
[18/06, 07:02] Rajan Jio: Account number : 3835718238
[18/06, 07:03] Roshan Kumar Jha, रोशन: Branch
[18/06, 07:03] Rajan Jio: Salkia
[18/06, 07:03] Roshan Kumar Jha, रोशन: Name Rajan Kumar jha
[18/06, 07:03] Rajan Jio: Ha
[18/06, 11:47] Roshan Kumar Jha, रोशन: 5 मिनट
[18/06, 11:47] Roshan Kumar Jha, रोशन: Me chala jayaga
[18/06, 11:48] Rajan Jio: Ok
77/ R Mirpara Road Liluah Howrah Ashirbad Bhawan
कल पापा और राजन के तबीयत ख़राब भो गेल रहैया , राजू भईया दवा ला दिए , खाना बनाकर दिए । बाड़ी वाला
गुरुवार , 17/06/2021
आशीष, रोबिन से मिले बलईन होकर आएं अंशु मुकुंद बड़ी बहन शादी नरही में ठीक हो गया , मुकुंद ट्यूशन जिसको पढ़ाता रहा उसके चाची से ही प्यार हो गया ।
https://hindi.sahityapedia.com/?p=130387
मिथिलाक्षर
https://youtu.be/R82iS_q4CIw
[18/06, 14:06] उदय जी: 88. आदरणिये
नमन
मैं उदय किशोर साह
पत्रकार = दैनिक भास्कर जयपुर जिला बाँका बिहार I
मैं श्रीमान के र्पात्रका में अपनी रचना ( कविता ) भेजना चाहता हूँ ॥ कृपया मेल मे या इसी व्हाट्सएप पर भेजे I कृपया मार्ग दर्शन करे
[18/06, 15:32] Roshan Kumar Jha, रोशन: फेसबुक पर कामेंट बाक्स में भेजिएगा
[18/06, 21:55] प्रमोद ठाकुर: शुभेच्छा
श्री प्रमोद ठाकुर जी के संदेश से यह सूचना प्राप्त हुई है कि उनके द्वारा अंतर्राष्ट्रीय काव्य संग्रह 'साहित्य सरिता' का संपादन कर प्रकाशित किया जा रहा है।
प्रमोद जी एक लंबे समय से काव्य जगत में अपनी सक्रिय उपस्थिति दर्ज करवा रहे हैं। उनके लेखन में राष्ट्रीय चेतना और भारतीय सांस्कृतिक परंपरा का प्राधान्य हम सबको उनके रचना कर्म से जोड़ता है।
मुझे आशा ही नहीं बल्कि पूर्ण विश्वास है कि इस अंतरराष्ट्रीय काव्य संकलन में न केवल भारत भर के रचनाकार बल्कि अप्रवासी भारतीय रचनाकारों को भी स्थान प्राप्त होगा और प्रोत्साहन मिलेगा।
इन दिनों इस तरह के अंतरराष्ट्रीय उपक्रमों में कई बार भारतीय जीवन मूल्यों की अवहेलना भी दिखाई देती है किंतु इस पुस्तक का संपादन श्री प्रमोद ठाकुर के हाथों में होने से मैं आश्वस्त हूं कि इस संग्रह में भारतीयता पूरे काव्य संग्रह की आत्मा बनकर प्रकट होगी।
अपनी ओर से इस संकलन के प्रकाशन के लिए हार्दिक शुभकामनाएं प्रेषित करता हूं।
सदैव सा
डॉ विकास दवे
निदेशक, साहित्य अकादमी
म प्र शासन, भोपाल
[18/06, 21:56] प्रमोद ठाकुर: रोशन जी कल की पत्रिका में ये न्यूज़ लगानी है।
[18/06, 22:01] प्रमोद ठाकुर: ऊपर मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद का logo एवं विकास जी की फ़ोटो एक ही पेज पर शुभकामना फिर उनके हस्ताक्षर कल की पत्रिका में अगर न्यूज़ लगाएंगे तो बड़ी महरबानी होगी।
[18/06, 22:19] Roshan Kumar Jha, रोशन: जी कल काफी जगह रहेगा
[18/06, 22:27] Roshan Kumar Jha, रोशन: हार्दिक शुभकामनाएं सह बधाई 🙏
साहित्य संगम संस्थान बिहार इकाई पूर्व अध्यक्षा
आ. ज्योति सिन्हा जी
22.47 + 31. 21 = 54 मिनट 08 सेकेंड बात की पहली बार फोन पर साहित्य एक नज़र से कमाने के लिए , बौआ करके बात करती रही , झंझारपुर आई हुई है ।
61 से
[18/06, 09:06] Roshan Kumar Jha, रोशन: नमस्ते 🙏💐 दीदी जी
[18/06, 09:07] Roshan Kumar Jha, रोशन: अध्यक्ष के लिए
[18/06, 09:18] ज्योति दीदी जी 01: 👍🏻😂
[18/06, 10:09] Roshan Kumar Jha, रोशन: 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏💐
[18/06, 22:43] Roshan Kumar Jha, रोशन: https://online.fliphtml5.com/axiwx/qdxz/
[18/06, 23:45] ज्योति दीदी जी: जगह बचे तो
हमारी कोटेशन को जगह दे दो 😁
[19/06, 06:11] Roshan Kumar Jha, रोशन: ठीक है दें देंगे दीदी जी 🙏 स्वागतम् शुभ प्रभात 🙏💐
[19/06, 06:15] ज्योति दीदी जी: सुप्रभात भाई हमेशा खुश रहो
अंक - 39
https://online.fliphtml5.com/axiwx/qdxz/
अंक - 38
https://online.fliphtml5.com/axiwx/lnjf/
जय माँ सरस्वती
साहित्य एक नज़र 🌅
कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका
अंक - 38
रोशन कुमार झा
संस्थापक / संपादक
मो - 6290640716
आ. प्रमोद ठाकुर जी
सह संपादक / समीक्षक
9753877785
अंक - 39
18 जून 2021
शुक्रवार
ज्येष्ठ कृष्ण 8 संवत 2078
पृष्ठ - 1
प्रमाण पत्र - 5 - 6
कुल पृष्ठ - 7
मो - 6290640716
🏆 🌅 साहित्य एक नज़र रत्न 🌅 🏆
84.आ. डॉ . श्याम लाल गौड़ जी ( 1 - 38 )
85. आ. धीरेंद्र सिंह नागा जी ( 1 - 39 )
सम्मान पत्र - 1 - 80
https://www.facebook.com/groups/287638899665560/permalink/295588932203890/?sfnsn=wiwspmo
सम्मान पत्र - 79 -
https://m.facebook.com/groups/287638899665560/permalink/308994277530022/?sfnsn=wiwspmo
अंक - 34 से 36 तक के लिए इस लिंक पर जाकर सिर्फ एक ही रचना भेजें -
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फेसबुक - 1
https://www.facebook.com/groups/1113114372535449/permalink/1137494113430808/
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फेसबुक - 2
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आपका अपना
रोशन कुमार झा
संस्थापक / संपादक
मो :- 6290640716
अंक - 39 , शुक्रवार
18/06/2021
साहित्य एक नज़र 🌅 , अंक - 39
Sahitya Ek Nazar
18 June 2021 , Friday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর
_________________
1.
परिचय -
✍️ रामकरण साहू"सजल"ग्राम-बबेरू
जनपद - बाँदा , उत्तर प्रदेश , भारत
शिक्षा- परास्नातक
प्रशिक्षण- बी टी सी, बी एड, एल एल बी
संप्रति- अध्यापन बेसिक शिक्षा
सम्पर्क सूत्र- 8004239966
2.
समीक्षा स्तम्भ - काव्य संग्रह - " मुक्तावली " ( समीक्षा )
आज मैं बात करने जा रहा हूँ द्वितीय चरण की समीक्षा की जी हाँ आप सही समझें श्री रामकरण साहू "सजल" जी के काव्य संग्रह "मुक्तावली" की छः खण्डों उत्साह, मुस्कान ,प्रेम, आशा,सम्बन्ध और ममता इन छः खण्डों में विभाजित किया गया है। अवस्थाओं की बात करें तो शायद ऐसी होगी एक बगीचे में जब माली एक बीज को रोपता है तो बड़े उत्साह से उस बीज से एक पौधा अंकुरित होता है और उस में लगती है एक कली जैसे कोई किशोर अवस्था मे युवती हो जब कली किशोर अवस्था के अंतिम चरण में होती है तो उसके यौवन में और निखार आता है । एक दिन उस कली की नज़र पास के फूल पर पड़ती है। फूल को देख कर कभी कभी कली मुस्कुरा देती है। फूल भी चोर नज़रों से कली को ताकता है जैसे पूरे यौवन से भरी युवती किसी युवक को प्यार भरी नज़र से देखती है। कभी कभी जब पुरवाई चलती है तो फूल का स्पर्श काली से हो जाता है। और अंतर मन पुलकित हो जाता है जैसे ज़वानी की दहलीज़ पर खड़े जोड़ों के बीच जो भावनाएं जाग्रत होती है। जब कभी पुरवाई नहीं चलती तो दोनों के चेहरे उदास नज़र आते है । जैसे किसी प्रेमी को जब अपनी प्रयसी नज़र नहीं आती। दोनों फूल और कली आशा करते है कि जब माली हमें तोड़े तो एक ही माला में गूंथे जिससें हमारा सम्बन्ध हमेशा साथ रहे। यही दो प्यार करने बालो की तमन्ना होती है। जब वही दो प्रेमी परिणय सूत्र में बंध जाते है और अपनी संतान को जन्म देते है तो वही चक्र फिर शुरू हो जाता है । श्री साहू जी ने इस काव्य संग्रह में यही वर्णित करने का प्रयास किया है जिसका नाम है "मुक्तावली" ।
अच्छा तृतीय चरण की समीक्षा में फिर मिलूँगा। तब तक के लिए
राम-राम
समीक्षक ✍️ आ. प्रमोद ठाकुर जी
ग्वालियर , मध्य प्रदेश
9753877785
3.
जो लोग आज
तुझ पर हँसतें है।
कल वही अपने
आप पर हँसेगें।
दुर्गम सही वो पथ
तू चल तो सही।
एक दिन रास्ते
खुद व खुद बनेगें।
अखबारों की चिंता
छोड़ न छपे तेरा नाम।
देखना एक दिन तेरे
शब्द शिलालेख बनेंगे।
✍️ प्रमोद ठाकुर
ग्वालियर , मध्यप्रदेश
4.
उसका मुकद्दर यू रूठ गया ,
बकरा कसाई हाथ लग गया।
वो दिल में आ बत्तियां बुझा
नभाक कर गया,
कोई जुगनू पकड़ दामन
फिर उजाला कर गया।
तुम अच्छे हो अच्छे ही सही
हम बुरे हैं बुरे ही सही,
देख लेते जो अच्छी नजर से
बुरे हम भी नहीं।
कहते हो जीरो हमें कोई
मलाल नहीं
तुम्हें मिला जो ताज दहाई का
इकाई को दहाई बनने में
जीरो का ही हाथ है।
क्या क्या नहीं किए
उसकी नजरों में उठने के लिए,
कितनी कितनी बार गिरे
अपनों की नजरों में,
माना कि शिक्षित बहुत है
पर संस्कार से नीचे है।
उसके शब्दों के तीर चले हैं ऐसे
दिल में एक घाव गंभीर है,
दर्द में आंखें गमगीन है,
मन व्यथित, रो रहा गगन है
गिरे जो आंसू सहमी धरती है
है उम्मीद की आंसुओं से
सिंचित पुष्प खिलेंगे,
खुशबू मिल हवाओं में
गगन तक जाएगी,
हर्ष उल्लास कायनात में
फिर आएंगी।
जिन आशियानों में है उजाला
वो समझते है जुगनू को कहां?
जो समझते हैं जुगनू को
उन आशियानों में अंधेरा कहां ?
बड़े महफूज जिंदगी है वो
जो समझते मां-बाप के
कदमों को जन्नत,
कम अक्ल है वो
जो बहाए इक अश्क इनके।
सम्मुख शिकायत करें
तो हिदायत है,
पीठ पीछे करें तो सियासत है।
✍️ धीरेंद्र सिंह नागा
( ग्राम -जवई,तिल्हापुर, कौशांबी )
उत्तर प्रदेश
5.
नमन 🙏 :- साहित्य एक नज़र
विषय :- गिराकर आगे बढ़ना ठीक नहीं ।
विधा :-
कविता -
गिराकर आगे बढ़ना ठीक नहीं ।
किसी को गिरा कर आगे
बढ़ना ठीक नहीं ,
चाहिए हमें ये भीख नहीं ।।
मेहनत के हिसाब से ही
चाहिए फल
चाहिए उससे अधिक नहीं ,
मंजिल तक जाना पड़ता
मंजिल किसी के नज़दीक नहीं ।।
✍️ रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग
कॉलेज,कोलकाता
रामकृष्ण महाविद्यालय,
मधुबनी , बिहार
ग्राम :- झोंझी , मधुबनी , बिहार,
शुक्रवार , 18/06/2021
मो :- 6290640716,
कविता :- 20(31)
Roshan Kumar Jha ,
রোশন কুমার ঝা
साहित्य एक नज़र 🌅 , अंक - 39
Sahitya Ek Nazar
18 June 2021 , Friday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর
6.
बेटियां
बेटियां भी बेटों से कम नहीं है,
युग परिवर्तन के साथ-साथ
बेटियां भी बदल रही है,
देश मेरा आगे बढ़ रहा है
बेटियां भी तो आगे बढ़ रही है,
बेटों की तरह बेटियां
भी हर क्षेत्र में ।
अपना परचम फहरा रही हैं,
गाँव से देश की सीमाओं तक
रसोई से ले करके रण-क्षेत्र तक
हल से ले कर हवाई जहाज
तक चला रही है,
अपने देश तो क्या विदेशों तक
अपना हर कर्म का कमान
संभाल रही है,
ईश्वर की अद्भुत कारीगरी है बेटियां,
आज के युग में एक मिसाल है बेटियां,
जीवन की चलती गाड़ी के दो
पहियों में से एक पहिया ही है बेटियां,
मत रोको इनको आगे बढ़ने भी दो,
बेटों की तरह बेटियों को भी पढ़ने दो,
इनके हौसलों को हौसला
-अफजाई करो तुम,
उनके भी सपनों को साकार
करने करने दो तुम,
बढ़ती है बेटियां उनको तुम बढ़ने दो,
बेटियां बढ़ेगी तभी तो सृष्टि बढ़ेगी,
✍️ चेतन दास वैष्णव
गामड़ी नारायण
बाँसवाड़ा , राजस्थान
7.
विधा- कविता
शीर्षक- "
कविता -
कत्ल इज्ज़त का करते हो"
ज़माने के उन अदीबों से
सवाल किया करते हैं,
ख़ुद के क़ल्ब से आवाक
किया करते हैं,
बेशक हैं कुसूर मेरे
इरादों का अब,
हम खामोशी से बस
वफ़ा किया करते हैं।
बेहद मशहूर थे जब
खता किया करते थे,
उन कायदों के गुरूर
को तोड़ा करते थे,
समेट लिया है जिंदगी
के दायरों में,
तनहा अब गमों को अपने
नाम किया करते हैं।
इस पाबंदी में भी
आजमाईश हमसे करते थे,
आरज़ू जिस्म की थी और
इकरार- ए- मुहब्बत करते थे,
दासतां इस जालिम जहां
का बखूबी पता है हमें,
इरादा इश्क का नहीं
कत्ल इज्ज़त का करते थे।
कैद किया है जो इन
कायदों में कुबूल करते हो,
हमें वास्ता इस दुनियां
जहां ख़ुदा की देते हो,
औरत का वजूद क्या है
पता नहीं है तुम्हें,
दुवाओं की पनाह में हो,
सौदा आंचल की करते हो।
✍️ कीर्ती चौधरी
पता- जमानियां,
गाज़ीपुर (उत्तर प्रदेश)
8.
||ॐ श्री वागीश्वर्यै नमः||"
आश्चर्य होता है -
आश्चर्य होता है जब,
लोग कहते हैं
समाज टूट रहा है
रिश्ता बचाने में जन-
जन का पसीना छूट रहा है |
हमारी असंख्य कोशिशों
और दुआओं के बाद,
सुशीला सुंदर कमाऊ
बहू घर आई थी |
न जाने क्यों उसने बसे
घर में हलचल मचाई थी?
जितना कमाया था उसने,
सूद समेत मुआवजे में
वह हमसे ले गई थी |
नाक कट गई हमारी,
जो समाज में बहुत ऊंची थी |
हमारे बेटे का तो
चमन ही उजड़ गया है,
एक साल पहले ही तो
चालीस में शादी रचाई थी |
हो गया है जीवन उसका अँधेरा,
चली गई वह ज्योति जो
उसके जीवन में आई थी|
न जाने यह समाज
कहाँ जा रहा है ?
विघटन रिश्तों का
लूट मचा रहा है |
गलती अपनी इंसान
नहीं देख पा रहा है,
निर्लज्ज हो बेढंगी रचना
वह रचा रहा है |
पैंतीस लाख बेटे का पैकेज,
फिर भी कमाऊ
बहू ही चाह रहा है |
जो योग्यता कमाने
की रखती है,
वह भी तो कुछ
अपेक्षाएं रखती होगी |
भावनाएं आहत
होगी जब उसकी,
तभी विग्रह मार्ग पर
पद रखती होगी |
धिक्कार उन रुपयों लाखों को,
जिनमें परिवार पालने का
नहीं विश्वास होता है|
इन्हीं अपेक्षाओं से तो नर,
स्वयं को और समाज
को भी खोता है |
संस्कृति और संस्कार
की करके उपेक्षा,
संबंध आधार "स्टेटस"
जब होता है|
तब जीवन में निश्चय ही,
सद्भावनाओं का प्रायः
अभाव होता है |
आधार जब रिश्तो का पैसा हो
वह चंचला-लक्ष्मी की तरह
कहाँ स्थिर होता है?
✍️ गणेश चंद्र केष्टवाल,
ग्राम मगनपुर, पोस्ट-किशनपुर
वाया कोटद्वार, गढ़वाल (उत्तराखंड)
9.
मैथिली - कविता
बात- बात पर लड़ैत एलहुँ
कहियो नहि हम भेलहुँ एक
जाति-पाति मे बंटि गेलहुँ
संस्कारकेँ देलहुँ कतओ फेक
जपैत छी हर- हर गंगा
करू नहि कहियो मारि आ दंगा।
सीताक भाइ अहाँ छी,
राम केँ छी साला
मर्यादि आर त्यागी बनू अहाँ
खोलि अकलक ताला
जखन अहाँक बास दरभंगा
औ जपि फेर हर-हर गंगा
करू नहि कहियो मारि आ दंगा।
विद्यापतिक गान अहाँ
मंडन-अयाचिक छी स्वाभिमान
मिसरी स' मीठ बोल "मैथिली"
सगरो बनल हमर पहचान
ली नहि बिनु मतलब केर पंगा
जपि नित हर-हर गंगा
करू नहि कहियो मारि आ दंगा।
गार्गी-भारती माइ -बहिन
जनक बनलाह हमर राजा
दर-दर केर तैयो ठोकर खाइत
आइ मैथिल बनल अभगला
पेटक सोहारी जुरय नहि
तन पर शोभय नहि अंगा
तैयो नहि मान बेचय ओ
बस रटैत रहय हर-हर गंगा
करय नहि कहियो मारि ओ दंगा।
✍️ प्रवीण झा
10.
अंक - 37
http://vishnews2.blogspot.com/2021/06/37-16062021.html
कविता :- 20(29)
http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/06/2029-15062021-37.html
अंक - 38
अंक - 38
http://vishnews2.blogspot.com/2021/06/38-17062021.html
कविता :- 20(30)
http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/06/2030-17062021-38.html
अंक - 39
http://vishnews2.blogspot.com/2021/06/39-18062021.html
कविता :- 20(31)
http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/06/2031-18062021-39.html
अंक - 40
http://vishnews2.blogspot.com/2021/06/40-19062021.html
कविता :- 20(32)
http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/06/2032-19062021-40.html
अंक - 34
http://vishnews2.blogspot.com/2021/06/34-13062021.html
अंक - 36
http://vishnews2.blogspot.com/2021/06/36-15062021.html
http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/06/2028-15062021-36.html
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