साहित्य एक नज़र , अंक - 372 , 17/05/2022 , मंगलवार , कविता - 23(63)

साहित्य एक नज़र   , अंक - 372 , 17/05/2022 , मंगलवार , कविता - 23(63)




साहित्य एक नज़र   , अंक - 372 , 17/05/2022 , मंगलवार , कविता - 23(63)




साहित्य एक नज़र   , अंक - 372 , 17/05/2022 , मंगलवार , कविता - 23(63)




साहित्य एक नज़र   , अंक - 372 , 17/05/2022 , मंगलवार , कविता - 23(63)


साहित्य एक नज़र , अंक - 10
( कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका )

https://online.fliphtml5.com/axiwx/kwzu/

https://fliphtml5.com/axiwx/kwzu

🌅 साहित्य एक नज़र  🌅
Sahitya Eak Nazar
20 May , 2021 , Thursday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর

अंक - 10
20 मई 2021
   गुरुवार
वैशाख शुक्ल 8 संवत 2078
पृष्ठ - 1
प्रमाण पत्र - 12
कुल पृष्ठ - 13

1.
साहित्य संगम संस्थान बिहार इकाई के समस्त सक्रिय सदस्यों को सम्मानित किया गया ।

साहित्य एक नज़र 🌅 , गुरुवार , 20 मई 2021

साहित्य संगम संस्थान, रा. पंजी . संख्या एस 1801/2017 ( नई दिल्ली )  के संयोजिका आ. संगीता मिश्रा जी की करकमलों से गुरुवार 20 मई 2021 को साहित्य संगम संस्थान बिहार इकाई  के सक्रिय सदस्य आ. पल्लवी रानी जी , आ. मृदुला श्रीवास्तव जी , आ. नीतू रानी जी एवं आ. रामबाबू प्रसाद जी को उत्तर प्रदेश संगम सलिला सम्मान से सम्मानित किया गया । महागुरुदेव डॉ. राकेश सक्सेना जी (अध्यक्ष उत्तर प्रदेश इकाई) इकाई की प्रगति में समस्त सर्वाधिक सक्रिय सदस्यों का भी अहम योगदान मानते हैं इसलिए सक्रिय सदस्यों को संगम सलिला से सम्मानित किया जाता है। राष्ट्रीय अध्यक्ष महोदय आ. राजवीर सिंह मंत्र जी , कार्यकारी अध्यक्ष आ. कुमार रोहित रोज़ जी , सह अध्यक्ष आ. मिथलेश सिंह मिलिंद जी, संयोजिका आ. संगीता मिश्रा जी ,  पश्चिम बंगाल इकाई अध्यक्षा आ. कलावती कर्वा जी ,  राष्ट्रीय सह मीडिया प्रभारी व पश्चिम बंगाल इकाई सचिव रोशन कुमार झा , आ. स्वाति पाण्डेय 'भारती' जी  ,आ. अर्चना जायसवाल जी , अलंकरण कर्ता आ. स्वाति जैसलमेरिया जी, आ. मनोज कुमार पुरोहित जी,आ. रजनी हरीश , आ. रंजना बिनानी जी, आ. सुनीता मुखर्जी , आ. मधु भूतड़ा 'अक्षरा' जी , आ. रीतु गुलाटी जी ,आ. भारत भूषण पाठक जी , आ. अर्चना तिवारी जी , संगम सवेरा के संपादक आ. नवल किशोर सिंह जी , वंदना नामदेव जी समस्त सम्मानित पदाधिकारियों व साहित्यकारों उपस्थित होकर  सम्मानित हुए पदाधिकारियों व सक्रिय सदस्यों को बधाई दिए ।

2.

हिन्दू धर्म में सीता नवमी बहुत बड़ा महत्व रखतीं है। हिंदू धर्म में सीता नवमी का उतना ही महत्व है, जितना राम नवमी का है। चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को भगवान श्रीराम का जन्म हुआ था, तो पवित्र नारी , मिथिला पुत्री व माता सीता वैशाख शुक्ल नवमी को प्रकट हुई थी । वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को सीता नवमी या जानकी नवमी कहा जाता है।  पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इसी तिथि को पुष्य नक्षत्र में मिथिला के महाराजा जनक यज्ञ की भूमि तैयार करने हेतु हल से जमीन जोत रहें थे, तभी भूमि से कन्या प्रकट हुई, जिनका नाम सीता रखा गया।

जन्म ली रहीं आज ही के दिन मिथिला पुत्री सीता ,
मिलें आदर्श पति श्रीराम , कहलाएं मिथिला के राजा जनक पिता ।।

सीता नवमी आज गुरुवार 20 मई एवं 21 मई 2021 शुक्रवार दो दिन मनाई जा रही है इस वर्ष ।

🌅 साहित्य एक नज़र 🌅 अंक  - 10
मो. - 6290640716
साहित्य एक नज़र 🌅 , गुरुवार , 20 मई 2021

3.
आज हिंददेश परिवार गाजियाबाद इकाई का उद्घाटन समारोह ।

साहित्य एक नज़र 🌅 , गुरुवार , 20 मई 2021

हिंददेश परिवार गाजियाबाद इकाई का उद्घाटन समारोह आज है।  कार्यक्रम सुबह आठ बजे से रात्रि दस बजे तक का फेसबुक मंच पर आयोजित किया गया है । इस कार्यक्रम में अध्यक्ष व संस्थापिका आ. डॉ अर्चना पांडेय 'अर्चि' जी , सह अध्यक्ष आ. डॉ स्नेहलता द्विवेदी जी , महासचिव आ. बजरंगलाल  केजडी़वाल जी , आ. प्रियंका अलकनन्दनी जी  गाजियाबाद का अध्यक्ष , अंतरराष्ट्रीय मीडिया प्रभारी आ. राजेश कुमार  पुरोहित जी, पश्चिम बंगाल मीडिया प्रभारी रोशन कुमार झा, हिंददेश परिवार के समस्त सम्मानित पदाधिकारियों व साहित्यकारों उपस्थित होकर रात्रि दस बजे कार्य  पाठ करेंगे ।।

4.

इंकलाब काव्य महासंग्राम - 2 में प्रथम स्थान प्राप्त किया उत्तर प्रदेश का कृष्ण गोपाल शर्मा  -

साहित्य एक नज़र 🌅 , गुरुवार , 20 मई 2021

इंकलाब प्रकाशन एवं साहित्यिक मंच मुंबई भारत सरकार द्वारा पंजीकृत  MH-18-0063950 . गुरुवार 20 मई 2021 को मंच संस्थापक आ. रमाकांत यादव ( सागर यादव ज़ख्मी ) जी सहायक संपादक आ. पिंकी सिंघल जी , डॉ. शिवधनी पांडेय जी को वरिष्ठ समीक्षक एवं मार्गदर्शक, डॉ विनय कुमार श्रीवास्तव जी  वरिष्ठ सहयोगी ,मीडिया प्रभारी  आ. रवींद्र त्रिपाठी जी व आ. सुरेन्द्र दुबे जी को एवं सह मीडिया प्रभारी रोशन कुमार झा जी व समस्त निर्णायक मंडल के सुझाव से इंकलाब काव्य महासंग्राम - 2 , हौसलों की जीत विषय का परिणाम रखा गया , जिसमें बरेली उत्तर प्रदेश का आ. कृष्ण गोपाल शर्मा जी प्रथम स्थान प्राप्त किया , एटा , उत्तर प्रदेश का पुनेश समदर्शी जी द्वितीय व भदोही उत्तर प्रदेश का आ. ज्योति प्रकाश राय जी तृतीय स्थान प्राप्त किए । इस प्रतियोगिता में देशभर के साहित्यकारों भाग लिए रहें । सम्मानित साहित्यकारों को इंकलाब मंच के समस्त पदाधिकारियों व साहित्यकारों शुभकामनाएं प्रदान किए ।।

5.

साहित्य संगम संस्थान नई दिल्ली द्वारा आयोजित दैनिक लेखन ने फिर रचा एक नई इतिहास -

साहित्य एक नज़र 🌅 , गुरुवार , 20 मई 2021

साहित्य संगम संस्थान नई दिल्ली द्वारा दैनिक लेखन के अंतर्गत बुधवार 19 मई 2021 को जीवन विषय पर कविता लिखना रहा । जिसके विषय प्रदाता आ. संगीता मिश्रा जी व विषय प्रवर्तन कार्यकारी अध्यक्ष आ. कुमार रोहित रोज़ जी के करकमलों से किया गया ‌ । देशभर के सम्मानित साहित्यकारों ने भाग लिए रहें एवं एक दूसरे की रचनाएं पढ़कर सार्थक टिप्पणी करते हुए लगभग  1700  कॉमेंट्स आएं जो कि संस्थान के लिए एक बड़ी उपलब्धि है । इस उपलब्धि में महागुरुदेव डॉ. राकेश सक्सेना जी (अध्यक्ष उत्तर प्रदेश इकाई) । राष्ट्रीय अध्यक्ष महोदय आ. राजवीर सिंह मंत्र जी , कार्यकारी अध्यक्ष आ. कुमार रोहित रोज़ जी , सह अध्यक्ष आ. मिथलेश सिंह मिलिंद जी, संयोजिका आ. संगीता मिश्रा जी ,  पश्चिम बंगाल इकाई अध्यक्षा आ. कलावती कर्वा जी ,  राष्ट्रीय सह मीडिया प्रभारी व पश्चिम बंगाल इकाई सचिव रोशन कुमार झा  ,आ. अर्चना जायसवाल जी , अलंकरण कर्ता आ. स्वाति जैसलमेरिया जी, आ. मनोज कुमार पुरोहित जी,आ. रजनी हरीश , आ. रंजना बिनानी जी, आ. सुनीता मुखर्जी , आ. मधु भूतड़ा 'अक्षरा' जी , आ. रीतु गुलाटी जी ,आ. भारत भूषण पाठक जी ,  समस्त सम्मानित पदाधिकारियों व साहित्यकारों का हाथ हैं ।।

6.
श्रेष्ठ रचनाकार सम्मान से सम्मानित हुई आ. अर्चना जायसवाल सरताज जी साहित्य संगम संस्थान पश्चिम बंगाल इकाई से ।

साहित्य एक नज़र 🌅 , गुरुवार , 20 मई 2021

साहित्य संगम संस्थान पश्चिम बंगाल इकाई के अंतर्गत होने वाली लेखन में 17 मई 2021 से 19 मई 2021 , बुधवार तक खौफ और विश्वास विषय पर गीत रचना रहा । विषय प्रदाता आ. अर्चना जायसवाल सरताज जी एवं विषय प्रवर्तन पश्चिम बंगाल इकाई उपसचिव  आ. सुनीता मुखर्जी की करकमलों से किया गया रहा ।  खौफ और विश्वास विषय पर देशभर के साहित्यकारों ने गीत रचे रहें । 20 मई 2021 को पश्चिम बंगाल उपाध्यक्ष आ. मनोज कुमार पुरोहित जी के सहयोग से परिणाम घोषित किया गया , जिसमें श्रेष्ठ रचनाकार सम्मान से आ. अर्चना जायसवाल सरताज जी , आ. रजनी हरीश जी , आ. जय हिंद सिंह हिंद जी को , एवं श्रेष्ठ टिप्पणीकार सम्मान से आ . मीना गर्ग जी को पश्चिम बंगाल इकाई सचिव व राष्ट्रीय सह मीडिया प्रभारी रोशन कुमार झा के करकमलों से सम्मानित किया गया । महागुरुदेव डॉ. राकेश सक्सेना जी (अध्यक्ष उत्तर प्रदेश इकाई) । राष्ट्रीय अध्यक्ष महोदय आ. राजवीर सिंह मंत्र जी , कार्यकारी अध्यक्ष आ. कुमार रोहित रोज़ जी , सह अध्यक्ष आ. मिथलेश सिंह मिलिंद जी, संयोजिका आ. संगीता मिश्रा जी ,  पश्चिम बंगाल इकाई अध्यक्षा आ. कलावती कर्वा जी , आ. स्वाति पाण्डेय जी , अलंकरण कर्ता आ. स्वाति जैसलमेरिया जी , आ. रंजना बिनानी जी , आ. मधु भूतड़ा 'अक्षरा' जी , आ. रीतु गुलाटी जी ,आ. भारत भूषण पाठक जी , आ. राम प्रकाश अवस्थी रूह जी, समस्त सम्मानित पदाधिकारियों व साहित्यकारों सम्मानित सदस्यों को बधाई दिए ।।

7.

मिथिला / मधुबनी पेंटिंग

✍️  पूजा कुमारी
रामकृष्ण महाविद्यालय मधुबनी बिहार
राष्ट्रीय सेवा योजना
साहित्य एक नज़र 🌅
अंक - 10
गुरुवार , 20/05/2021
8.

मिथिला / मधुबनी पेंटिंग
✍️  सरस्वती गुप्ता
( स्वाति ) राजनगर

9.

अहम

हम दोनों अपने अहम में जीते हैं !
वक्त बे वक्त झांक पड़ता है ये अहम
करवटों तले।
वो हँसता है हम चिढ़ते हैं
किसी गली मोहल्ले से
नदी नालो के रस्ते
इनके निकलने की
कोई गुंजाईश नही होती।
जब टूट पड़ता है
अहम का दवाजा
तो टप-टप बूंदों सा
बह जाता है
चला जाता है कोई दूर देश।
बड़ा ही बेपरवाह
बे हिचक सा होता है
इसका चेहरा।
इसमें भावनाओं की कोई क़द्र नही
परत दर परत पिरोता है
मगर कुछ भूली हुई बात।
इसमें रिहाई की कोई वजह नही
होता है बस समझौता।
बे आवाज सा कदमो से समा जाता है
कांच के बर्तनों सा रूह में!
उसे खरोचता है दिन प्रति दिन
और चीखता है!
फिर होता है प्रत्यक्ष ये अहम्
अपने भयावाह रूप में!!

Pooja Singh  ✍️ पूजा सिंह

10.

ग़ज़ल

हर कोई खाए तरस ऐसी जगह
वार तुमने कर दिया ज़ख्मी जगह

ख़ूब ठंडक देंगे तुमको दोस्तो
तुम लगाओ पौधें ए.सी. की जगह

आज के बच्चे लिए फिरते हैं बस
फोन हाथों में किताबो की जगह

ज़िन्दगी में नौकरी में इश्क़ में
हम हुए नाक़ाम सारी ही जगह

लड़कियाँ ख़ुद इश्क़ हैं और इश्क़ पर
फूल बरसाओ तुम एसिड की जगह

✍️ जावेद पठान सागर

11.
******* पेड़ लगाओ ********
*************************

आओ मिल जुल कर पेड़ लगाएं,
धरती को  निर्मल,मनोरम बनाएं।

तरुवर शीतल  घनी छाया हैं देते,
पग पग पर तरु  लगाते ही जाएं।

पेड़ बचाओ कभी मत कटवाओ,
वृक्षारोपण से वसुधा को  सजाएं।

मानव मन बन गया बहुत शैतानी,
एक दूसरे को रहते रहें  समझाएं।

घर  आँगन की  रौनक रहें बनते,
घर  और  बाहर खूब पेड़ उगाएं।

इंसान बनो मत बनो  तुम हैवान,
प्राकृतिक रूप की शोभा बढ़ाएं।

आयुर्वेदिक  दवाओं से  भरे हुए,
अंग्रेजी  दवाओं को  दूर भगाएं।

जीने के  लिए  शुद्ध वायु हैं देते,
पेड़ लगा के ऑक्सीजन बढ़ाएं।

हरियाली मन  को सदा है भाती,
हरा भरा सूंदर सा संसार बनाएं।

मनसीरत कोरोना काल भयंकर,
दरख्तों से अपना जीवन बचाएं।
*************************

✍️ सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

12.
"" ख़ामोशी ""

ख़ामोशी बहुत कुछ
अपने हृदय में
छिपाए हुए वो निरंतर
अपने लक्ष्य पर
पहुंचने के लिए
अपने लक्ष्य के साथ
सदैव आगे की ओर
अग्रसर रहती है
क्योंकि उसकी सोच सदा
सकारात्मक होती है
और इसी के बल पर वह
निश्चित ही एक दिन
अपना लक्ष्य पाने में
सफल भी हो जाती है।।

✍️ मनोज बाथरे चीचली
जिला नरसिंहपुर मध्य प्रदेश

13.

कविता -
कुछ कर दूँ इस शरीर से ,

कुछ कर दूँ इस शरीर से ,
थोड़ी न दो हज़ार बीस
आयेंगे फिर से ।।
डर लगता न हमें भीड़ से ,
जो भी करता हूँ ,
करता हूँ दिल से ।।

राह पर चलना कितना
कठिन होता पूछो
उस मुसाफ़िर से ।
जो टकरा कर वापस
आ गये एक
छोटी सी लकीर से ।।
तो हमें टकराना है
पर वापस आना है न भीड़ से ,
कुछ कर दूँ इस शरीर से ,
क्या ?
पता कल साँस लूँ या न लूँ फिर से ‌।।

✍️ रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज,कोलकाता
कलकत्ता विश्वविद्यालय
ग्राम :- झोंझी , मधुबनी , बिहार,
मो :- 6290640716, कविता :- 20(01)

🌅 साहित्य एक नज़र 🌅 अंक - 10
Sahitya Eak Nazar
20 May , 2021 , Thursday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর

14.

भारत की पावन माटी को प्रणाम

रहे तिरंगा सदा लहरता
भारत के आकाश में ,
करता रहे देश नित उन्नति
इसके धवल प्रकाश में ॥
लाखों वीरों ने बलि देकर
के इसको फहराया है
आजादी का रथ रक्तिम पथ
से ही होकर आया है ॥ 1 ॥

यह भारत की माटी
पावन इसमें चन्दन - गंध है ,
अमर शहीदों का इसमें
इतिहास और अनुबंध है ॥

उनके उष्ण रक्त से रंजित
अगणित मर्म व्यथाएँ हैं ,
सतत प्रेरणादायी भावुक
कई गौरव - गाथाएँ हैं ॥2 ॥

मनस्वियों औ ' तपस्वियों
से इसका युग का नाता है ,
राम - कृष्ण , गाँधी - सुभाष
हम सबकी प्रेमल माता है ।

वीर प्रसू यह भूमि पुरातन
बलिदानी , वरदानी है ,
मानवीय संस्कृति की हर
कण में कुछ लिखी कहानी है ॥ 3 ॥

आओ इससे तिलक करें हम
सुदृढ़ शक्ति फिर पाने को ,
नई पीढ़ी को अमर शहीदों
की फिर याद दिलाने को ॥

जन्मभूमि यह कर्मवती
धार्मिक ऋषियों का धाम है ,
इसको शत - शत नमन हमारा ,
बारम्बार प्रणाम है ॥ 4 ॥

✍️  प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव, जबलपुर

15.
             
            मजदूर ।

दिन की तपती दोपहर
मे जब बदन जलने
लगता है प्यास पानी
पीने से भी नही बुझती
बेहाल कर देता है
चार कदम पैदल चलना
नंगे पैर अध नंगे बदन
कई किलो वजन
लादे कमर पर
कई कई मंजिल
चढता है जो मजदूर
जिसके दम पर सुन्दर
आकार लेती है ऊँची ऊँची
इमारते ...और एक दिन
वही अपवित्र
समझा जाता है
उनमें प्रवेश वर्जित हो
जाता है  उसके
लिए ........
कुछ संवेदना जरूरी है
इस वेदना के लिए
आखिर इन्सान है
मजदूर भी हमारी
ही तरह

✍️ डॉ. प्रमोद शर्मा
नजीबाबाद बिजनौर

  16.               

             जिन्दगी

जिन्दगी भर वफा की हमने
बेवफाई की आज  तक भी नही|
बेसबब आँख दुखती रहती है
नींद इनमे पर आज तक भी नही|
जिन्दगी क्यों यूँ तंज कसती है
ये खबर कुछ आज तक भी नही|
रोज अपनो ने मुझको मारा है
मौत आई है  आज तक भी नही|
यूँ तो दुनिया मे सब ही सच्चे हैं
झूठ से मुक्ति आज तक भी नही|
क्यों तू कहता है याद करता हूँ
घर तो आया आज तक भी नही|
मेरे दिल की जमी तो प्यासी है
इसपे बारिश आज तक भी नही|
प्रेम बाकी हो तुम कहीं मुझमे
भूल पाया मै आज तक भी नही|

✍️ डॉ. प्रमोद शर्मा
नजीबाबाद बिजनौर

17.
मंच को नमन
विषय- पर्यावरण
विधा-  कविता

मानव विकास के होड़ में यूं बढ़ गया,
आज वो खुद ही संकटो से घिर गया,
देख रहे पर्यावरण पर खुद संकट लाया,
आज के हालात का खुद जिम्मेदार पाया,
काट दिए जंगल के जंगल बना
दिया कंक्रीट का जंगल धरती पर,
धरती पर रहने नहीं आया प्लॉट
काट रहा है मंगल पर,
मचा हुआ है जो आज महामारी
का प्रकोप धरा पर,
कुपति हो गई है प्रकृति मानव
के दमनतात्मक कार्य पर,
जल को देखो तालाब
गायब-कुएं गायब नलों से
बोतलों में बिक रहा है,
विकास के नाम पर जंगल काटते रहे,
अब भी यदि मानव नहीं चेता
तो कर रहा है बड़ी गलती,
जब जगा तब सवेरा मानकर
सुधार ले अपनी गलती,
हम देख रहे है अस्पतालों
में दवा नहीं
और हवा नहीं,
पल पल मौत का कर
रहा आज इंतज़ार यहीं,
श्मशानों में भी जगह नहीं है
और जलाने को लकड़ी नहीं,
अपने ही हाथों अपने पैरों
पर मार रहा है कुल्हाड़ी यहीं,
जो भी बच जा रहे इस महामारी
से वो भी करें आज प्रतिज्ञा,
हो जाय वो भी जो ऑक्सीजन
के लिए तरस रहे है वो भी करें प्रतिज्ञा
सब मिलकर एक-एक नहीं 
लगाए कई पेड़ भरपूर,
इस धरती को फिर से करें
हम मिलकर रहाभरा,
पर्यावरण प्रदुषण की चपेट में आया
पर्यावरण को मानव ने खूब ही सताया
फिर भी इस मानव को
अब भी समझ नहीं आया !!

✍🏻 चेतन दास वैष्णव
गामड़ी नारायण
बाँसवाड़ा , राजस्थान

  18.
                    
इश्क इबादत है तो इश्क कीजिए
नहीं कुछ तो मोहब्बत ही कीजिए

रात दिन का सूकून इसमें  ,
बस  से खौफ सी बातें
रात दिन ख्आबो में  ,
यूं ही बस कभी खोजा फूलों में

कभी बहती  ब्यारो में ,कभी
फूलों से आती महक में
कभी झलकती हुई मादकता में

बस इश्क कीजिए ,कभी
चांद ,कभी चमचमाती किरणों में,
मेहबूब का दीदार कीजिए

नहीं कुछ तो इश्क कीजिए
बस एक सरोकार सा है
तुमसे पता नहीं क्या रिश्ता है तुमसे

बस एक इबादत कीजिए है,
अगर इश्क तो इश्क
कीजिए

✍️ अर्चना जोशी
भोपाल मध्यप्रदेश


19.

☂️☔  छाता...  🌂⛱️

बारिश की शुरुआत होते ही,
उसे छाते का ख्याल आया,
पेंशन के पैसों से,
छाता खरीदना भी उसे भारी लगा,
पूराने कबाडों से आखिर ढूंढ ही लिया,
उसने अपना पुराना छाता,
बड़े प्यार व जतन से,
उसने लगी धूल मिट्टी पोछा सहलाया,
कुछ पुरानी स्मृतियों जुडी थी,
जब वो अपनी संगनी व बच्चों को,
समेटे फिरा करता था......
जैसे ही बारिशों की बूंदें,
गिरनी शुरू हुई,
वो छाता लेकर सड़क पर आ गया,
पर हवा के झोंको से
कमानियां छिटक गई,
छाते के डंडे को सीने से लगाए,
वो भींगता वापस घर आ गया,
उसे अपनी छाती की कमांनिया भी,
छाते की तरह कमजोर व जर्जर लगी,
किसी भी थपेड़ों को सहने में,
असमर्थ.....

✍️ पुष्प कुमार महाराज
गोरखपुर

20.

मेरे मरने के उपरांत

मेरे मरने के उपरांत
मेरी आत्मा
शून्य में विलय हो जाएगी,
देह अग्नि में जलकर
भस्म हो जाएगी,
मेरी गाथाएं
वक्त के संदूक में
कैद हो जाएंगी,

मेरे मरने के उपरांत
सूर्य शीध्र अस्त नहीं होगा
चाँद नियत समय पर ही आएगा
सुबह भी होगा
शाम भी ढ़लेगी
पवन मंद - मंद मुस्काएगा
पंछी मीठे स्वर में गाएंगे
पतझड़ में वृक्ष के पत्ते गिरेंगे
वसंत में
फिर नए पत्ते लग जाएंगे

बस परिवार के सदस्य थोड़ा
आँसू बहाएंगे
सगे संबंधी भी आकर
शोक मनाएंगे
चंद दिनों तक
कुछ रस्म रिवाज़ निभाएं जाएंगे,
फिर सब विस्मरण कर
अपने अपने कार्य में
संलग्न हो जाएंगे,

नहीं पड़ेगा दुनिया की गति पर
कोई फ़र्क
ना ही कोई चिर काल तक
आँसू बहाएगा
क्योंकि मृत्यु एक सामान्य प्रक्रिया है
और एक अटल सत्य ।

      ✍️ आलोक पराशर, मुजफ्फरपुर

21.
"कविता"
कविता दायरे से दूर, सीमाओं से परे है!
कविता और न केवल, कलम के आसरे है!!
कविता देश ना भाषा, विचारो से बंधी है,
कविता से सजी गजले, कवि के गीत उजरे है!!

कविता आंख का जल है, कविता है तो काजल है!
कविता कोर है कलेजे की, हमारे एक दूजे की!
कविता से कबीरा है, कविता है तो मीरा है!
कविता तार सप्तक है, सुरो का सार जब तक है!

कविता से कुमुदिनी है, कवि की मां से दूनी है!
कवि तो कोरा पन्ना है, कविता हीरा पन्ना है!
कविता सूर वीरो की, ये गाथा है अधीरो की!
कवि आवाम का जरिया, उगलती आग का दरिया!

कविता प्रेम की प्याली, छुपे किरदार की जाली!
कविता शोषण से मुक्ति, दिमागी पोषण की युक्ति!
कविता है तो गीता है, कविता है तो सीता है!!
क़लम कागज़ बिना कोई ,कवि निष्प्राण जीता है!!
         
✍️ आरक्षक नीरज सेन (क़लम प्रहरी)
कुंभराज, गुना ( म. प्र)

22.
गीत का शीर्षक,,,,, याद तुम्हारी सुबहो आई
रचनाकार,,,,,,,,,,,,,  डॉक्टर देवेंद्र  तोमर

याद तुम्हारी सुबहो आई
दोपहरी फिर  शाम।
रात खड़ी है दरवाजे पर
लेकर फिर पैगाम।

बचपन वाले खेल तमाशे
आए मुझको याद
संग तुम्हारे खुशियां रहतीं
सूनापन था बाद
बारिश का एहसास कराती
संग तुम्हारे घाम।
रात खड़ी है दरवाजे पर
लेकर फिर पैगाम।

हम पर रूप जवानी जैसे
बनकर आया काल
प्रतिबंधों के दो पल जैसे
लगते हमको साल
मुजरिम दोनों हुए प्यार के
करे चौकसी गाम।
रात खड़ी है दरवाजे पर
लेकर फिर पैगाम।

अक्सर जैसा होता वैसा
हुआ हमारे साथ
दरवाजे पर रुकी तुम्हारे
दूल्हा संग बारात
आसमान तक पहुंचे सपने
आकर गिरे धड़ाम।
रात खड़ी है दरवाजे पर
लेकर फिर पैगाम।

याद तुम्हारी सुबहो आई
दोपहरी फिर शाम।
रात खड़ी है दरवाजे पर
लेकर फिर पैगाम।

✍️ डॉक्टर देवेंद्र तोमर
अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष
विश्व साहित्य सेवा संस्थान

23.
* वो कौन ?*

कमसिन,मासूम,भोली सूरत,
मन पर छा गई वो मौन।
छिप गई दो पल झलक दिखाकर,
सखि ना जाने थी वो कौन ?

या थी कोई भक्त पूजारिन,
सूने मंदिर में शंख बजाए ।
या थी वो एक सागर कन्या,
यादों के कई मोती बरसाए ll

या थी वो स्वाति की बदली,
चातक की जैसे प्यास बढ़ाई ।
या थी कोई लहर मौज सी ,
आई, टकराई और चली गई ll

सहसा एक दिन उतरी थी वो,
जीवन के सूने आंगन में l
अनाम सा रिश्ता बना दिया,
नजरों के एक बहाने से ll

सच बड़ी निर्मोही थी वो,
मग में अकेला छोड़ गई l
दो पलो के संगम में वो,
यादों का सागर जोड़ गई ll

✍️ डॉ. अरविन्द कुमार व्यास *
सहायक आचार्य
जे.आर.कॉलेज,रेलमगरा,
जिला राजसमन्द ( राजस्थान )

24.

ऐ बेग़ैरत इंसा,
तूने मुझें दोष देकर
अपनी फ़ितरत बदली।

मैंने तो आसमा
एक बनाया था,
तूने घरौंदे बनाकर
छतें अलग करली।

ऐ बेग़ैरत इंसा,
तूने मुझें दोष देकर
अपनी फ़ितरत बदल ली।

मैंने तो ज़मी एक बनाई थी
सरहदें बना कर अपनी-अपनी
ज़मी अलग कर ली।

ऐ बेग़ैरत इंसा,
तूने मुझें दोष देकर
अपनी फ़ितरत बदल ली।

मैंने तो इंसा भी एक बनाया था।
तूने धर्म बनाकर अपनी
जतियाँ अलग करली।

ऐ बेग़ैरत इंसा,
तूने मुझें दोष देकर
अपनी फ़ितरत बदल ली।

मैंने तो इबादत भी एक ही बनायी थी
मंदिर-मस्ज़िद बनाकर
तूने इबादत भी अलग करली।

ऐ बेग़ैरत इंसा,
तूने मुझें दोष देकर
अपनी फ़ितरत बदल ली।

✍️ प्रमोद ठाकुर
ग्वालियर
मध्यप्रदेश

25.

जानकी नवमी पर विशेष

जानकी अवतरण

जनकपुरी पड़ा भारी
दुर्भिक्ष अकाल भया
ऋषि श्रेष्ठ ने सुझाया तब
हलेषठी यज्ञ किया

भू पाप मिटावन खातिर
लक्ष्मी अंश अवतारी
घट के अंदर थी विराजी
बन के जनक कुमारी

हल जो चलाएं जनक
फल टकराया घट से
अवतरित हुई जानकी
कल कल हुआ थल जल से

हृदय प्रसन्न मिथिलेश
प्रसन्न हुए मिथिला वासी
लक्ष्मी अंश रूप धर के
जानकी बनी मिथिला निवासी

जानकी अवतरण से हुए
सुर नाग मानव हर्ष विभोर
जानकी के बाल रुदन से
संसार सुखमय हुआ चहुंओर

✍️ रेखा शाह आरबी
जिला बलिया उत्तर प्रदेश

26.
जीवन में आत्मविश्वास की महत्ता

किसी भी स्त्री और पुरुष की सफलता का इतिहास देखिए तो उसकी कामयाबी में आत्मविश्वास का बहुत बड़ा हाथ होता है। आत्मविश्वास से लबरेज इंसान के लिए कोई भी कार्य नामुमकिन और असंभव नहीं होता तथा उसके कार्य करने की गति भी दोगुनी हो जाती है। यदि हम अपने अंदर आत्मविश्वास से परिपूर्ण हैं तो हमारे शरीर मे अनेकों शक्तियां उत्पन्न होकर हमारे कार्य को पूरा करने में सहायक बन जाती हैं ।आत्मविश्वास के दम पर दुनिया का कठिन से कठिन काम भी सरलतम किया जा सकता है और उस से बेहतर तरीके से पूरा किया जा सकता है।

आत्मविश्वास के अभाव में कोई भी व्यक्ति कामयाब नहीं हो पाता आत्मविश्वास ना होने पर मनुष्य सपने तो देख सकता है ।पर उसे पूरा नहीं कर सकता । जब तक स्वयं पर विश्वास ना हो कि मैं यह कार्य कर सकता हूं उसमें अपना शत प्रतिशत नहीं दे सकता । विश्वास ना होना तथा आत्मविश्वास में काफी फर्क है कुछ लोग  घोर निराशावादी होते हैं वह सोचते हैं जो भाग्य में लिखा है वही होगा वक्त से हम कितना भी मेहनत करें मेहनत फल नहीं देगी जब तक तकदीर का साथ ना हो । यही भावना उनके अंदर घर बना लेती है और यही भावना उसे निराशा और नाकामयाबी की ओर उन्मुख करती है।

जब हम महात्मा गांधी के जीवन चरित्र की ओर दृष्टि डालते हैं । तो हमें मालूम होता है कि उस दुबले पतले आदमी ने अपने आत्मविश्वास के बल पर भारत को स्वतंत्र कराया था।   इब्राहिम लिंकन ने अमेरिका में इसी आत्मविश्वास के बल पर राष्ट्रपति का चुनाव लड़ा था।  जबकि उस समय अमेरिका में गृह युद्ध छिड़ा हुआ था कोई भी साधारण मनुष्य इस बात की कल्पना नहीं कर सकता था। कि उनकी इस हालात में विजय होगी ।लेकिन लिंकन  अपने आत्मविश्वास के बल पर चुनाव जीतकर अमेरिका के राष्ट्रपति बने थे।
यदि हम अपने संपूर्ण साहस हिम्मत और कार्य शक्ति को बटोर कर कोई भी लक्ष्य केंद्रित करें तो कामयाबी अवश्य मिलेगी । हो सकता है कुछ लोग नाहक ही वह बरगलाए, फुसलाए ,अकारण आपके कार्य में त्रुटियां निकाले ,व्यर्थ ही हतोत्साहित करें पर यदि हम अपने मन विश्वास पर अडिग रहें । तो सफलता निश्चित मिलेगी आत्मविश्वास के बल पर वैज्ञानिकों ने बड़े-बड़े आविष्कार कर दिखाए।  उन्होंने अनेकों कष्ट सहकर अपने लक्ष्य को प्राप्त किया यह सब मात्र आत्म विश्वास के कारण ही संभव हो सका।

आजकल के युवकों और युवतियों में बहुत बड़ी समस्या है । वह अपने अंदर आत्म विश्वास उत्पन्न तो कर लेते हैं
पर उसमें निरंतरता कायम नहीं रख पाते उनके भीतर का जोश और हौसला कुछ दिनों के उपरांत ही दम तोड़ने लगता है । यदि जीवन के किसी क्षेत्र में उतरना चाहते है। तो  पल पल आने वाले संकटों से टकराना चाहते है जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में विजय पताका फहराना चाहते हो तो आत्मविश्वास को अपना अभेद्य सुरक्षा कवच बना कर रखना पड़ेगा ।आत्मविश्वास एक अनमोल निधि है जो पल-पल हमारी मदद करता है और हमारे काम आता है इस अनमोल निधि को पहचानिए परखिए मजबूत पकड़ के साथ संभाले रखिए आप दुनिया के कठिन से कठिन काम को भी हंसते खेलते पूरा कर सकते हैं आज तक जितने भी वीर पुरुष और महापुरुष इस धरा पर पैदा हुए हैं सब अपने हिम्मत और आत्मविश्वास के बल पर ही कामयाब और शिखर पर पहुंचे। मनुष्य के अनेकों गुणों में आत्मविश्वास निसंदेह एक श्रेष्ठ गुण है

✍️ रेखा शाह आरबी
जिला बलिया उत्तर प्रदेश

अंक - 10
20 मई 2021
   गुरुवार
वैशाख शुक्ल 8 संवत 2078
पृष्ठ - 1
प्रमाण पत्र - 12
कुल पृष्ठ - 13
साहित्य एक नज़र 🌅
मो - 6290640716

अंक - 10

जय माँ सरस्वती

🌅 साहित्य एक नज़र 🌅
कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका
    

🏆 सम्मान - पत्र 🏆

प्र. पत्र . सं - _ _ 001 दिनांक -  _ _  20/05/2021

🏆 सम्मान - पत्र 🏆

आ.  _ _ _  प्रमोद ठाकुर _ _ _  जी

ने साहित्य एक नज़र , कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका अंक  _ _ 1 - 10 _ _ _ _ _ _  में अपनी रचनाओं से योगदान दिया है । आपको

         🏆 🌅 साहित्य एक नज़र रत्न 🌅 🏆
सम्मान से सम्मानित किया जाता है । साहित्य एक नज़र आपके उज्ज्वल भविष्य की कामना करता है ।

रोशन कुमार झा   , मो :- 6290640716
अलंकरण कर्ता - रोशन कुमार झा

___________

कोलफील्ड मिरर व साहित्य एक नज़र में प्रकाशित :-
20/05/2021 , गुरुवार
कोलफील्ड मिरर
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjXhy0XD6Vwbm_APOne59ec6d2Ciu1pXZR30_IY5SmaFxx3J4QxYIatmOg6RhqeJ2Qa9HL5k3EGYZ4ppz8hzB7C081hjStwgnj39QERlR3BK1FT-Fp0zV6IOhwQI-ZzAsQltdI6t4jsA8U/s2048/CFM+HINDI+20.05.201+8.jpg

साहित्य एक नज़र

https://online.fliphtml5.com/axiwx/myoa/
साहित्य संगम संस्थान जम्मू-कश्मीर इकाई के समस्त पदाधिकारियों एवं सक्रिय सदस्यों साहित्यकारों को सम्मानित किया गया ।

साहित्य एक नज़र 🌅 , बुधवार , 19 मई 2021

बुधवार , 19 मई 2021 को साहित्य संगम संस्थान के संयोजिका आ. संगीता मिश्रा जी की करकमलों से
साहित्य संगम संस्थान जम्मू-कश्मीर इकाई  के पदाधिकारियों व सक्रिय सदस्यों को सम्मानित किया गया । आ. प्रदीप मिश्र अजनबी जी ,आ. भूपेंद्र कुमार भूपी जी , आ. मदन गोपाल शाक्य जी , आ. हर किशोर परिहार जी , आ. शिव सन्याल जी को साहित्य मणि सम्मान से विभूषित किया गया, सक्रिय सदस्यों
आ. अर्चना श्रीवास्तव जी , आ. अजय तिरहुतिया जी , आ. बेलीराम कंसवाल जी , आ. गिरीश पांडे जी , आ. हंसराज सिंह हंस जी को उत्तर प्रदेश संगम सलिला सम्मान से सम्मानित किया गया । महागुरुदेव डाॅ० राकेश सक्सेना जी (अध्यक्ष उत्तर प्रदेश इकाई) इकाई की प्रगति में समस्त सर्वाधिक सक्रिय सदस्यों का भी अहम योगदान मानते हैं इसलिए सक्रिय सदस्यों को संगम सलिला से सम्मानित किया जाता है। राष्ट्रीय अध्यक्ष महोदय आ. राजवीर सिंह मंत्र जी , कार्यकारी अध्यक्ष आ. कुमार रोहित रोज़ जी , सह अध्यक्ष आ. मिथलेश सिंह मिलिंद जी, संयोजिका आ. संगीता मिश्रा जी ,  पश्चिम बंगाल इकाई अध्यक्षा आ. कलावती कर्वा जी ,  राष्ट्रीय सह मीडिया प्रभारी व पश्चिम बंगाल इकाई सचिव रोशन कुमार झा , आ. स्वाति पाण्डेय 'भारती' जी  ,आ. अर्चना जायसवाल जी , अलंकरण कर्ता आ. स्वाति जैसलमेरिया जी, आ. मनोज कुमार पुरोहित जी,आ. रजनी हरीश , आ. रंजना बिनानी जी, आ. सुनीता मुखर्जी , आ. मधु भूतड़ा 'अक्षरा' जी , आ. रीतु गुलाटी जी ,आ. भारत भूषण पाठक जी , आ. अर्चना तिवारी जी , संगम सवेरा के संपादक आ. नवल किशोर सिंह जी , वंदना नामदेव जी समस्त सम्मानित पदाधिकारियों व साहित्यकारों उपस्थित होकर  सम्मानित हुए पदाधिकारियों व सक्रिय सदस्यों को बधाई दिए ।

________

हिन्दी कविता:-12(21)
19-05-2019 रविवार 19:19
*®• रोशन कुमार झा
-:रविवार की पल !:-

जीवन में खूब लुटाये लुटने वाला
लूटे और लूटी,
उसी वज़ह से बहुत कुछ छूटी!
पर आज जाना नहीं है ड्यूटी,
क्योंकि मनाना है आज रविवार की छुट्टी!

करना है आराम,
जाना है धर्म स्थान घुसड़ीधाम!
जपना है नाम राम-राम,
पार्क मैदान में ही बीतेंगी आज की शाम!

बहुत किया परवाह,
दुख कोई और नहीं दुख तो दिया है
खुद की चॉह,
रोशन करना है राह,
अकेले ही ठीक है चाहिए ना
किसी की छाँह!

जाऊँ ना किसी के विरुद्ध,
देख लिया हूँ खुद!
अब करना है मन शुद्ध!
वहीं राह अपनाना है जो राह अपनायें
रहे गौतम बुद्ध!

अपना दिन रविवार,
जो आज है फ़िलहाल!
पूंजीपति मजदूर की त्योहार,
आज तो छुट्टी मना लो यार!

पर जाना नहीं है हार,
देखनी है यह संसार!
भले मैं रहूँ कुमार,
पर मनाते रहूँ रविवार!

*®• रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज कोलकाता भारत
मो:-6290640716,(8420128328)
9433966389(कविता:-12(21)
19-05-2019 रविवार 19:19
The Bharat scouts & Guides
Eastern Railway Howrah
Bamangachi(200-दिये दीदी
31st Bengal Bn Ncc Fortwilliam
Kolkata-B
Reg no-WB17SDA112047

हिन्दी कविता:-12(22)
20-05-2019 सोमवार 13:45
*®• रोशन कुमार झा
-:यह जीवन यह है !:-

यह जीवन रेलगाड़ी है
सुख-दुख सारी है!
जिसे तन-मन से पाली है
सच में यह जीवन भारी है!

फिर भी चलाना है
जीवन के पार जाना है!
सुख दुख खाना है
अंधकार में रोशन करने को माना है!

होगी प्रकाश
यह जीवन है मालिक और दास!
जो है आपके पास
अपने आप को मानीयें कि हम भी है ख़ास!

और है हम रेल की पटरी
जाना है गली-गली!
आज फूल कल रहें कली
सुख-दुख से ही यह जीवन है भरी!

जो समाज में बसती है
जो दुख में भी हँसती है!
वही मानव की जीवन हीरा की बस्ती है
जीवन महँगी है कौन कहा
है कि सस्ती है !

जीवन रेलगाड़ी है
जो हम नर और नारी है!
एक-दूसरे पर नज़र डाली है
जीया हूँ जी रहा हूँ और जीने की चाँह
जारी है!

*®• रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज कोलकाता भारत
मो:-6290640716,(8420128328)
9433966389(कविता-12(22)
20-05-2019 सोमवार 13:45
Roshan Kumar Jha(31st Bengal
Bn Ncc Fortwilliam Kolkata-B
Reg no-WB17SDA112047
Narasinha Dutt college St John
Ambulance(Pmkvy Liluah
Eastern Railway Scouts Howrah
सियालदह मुन्ना मिली मुनचुन राहुल भाई
घर में

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लिंक
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[16/05, 10:21] Roshan Kumar Jha: https://online.fliphtml5.com/axiwx/rmls/
[16/05, 10:49] Roshan Kumar Jha: http://roshanjha9997.blogspot.com/2022/05/371-16052022-2362.html
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[16/05, 10:49] Roshan Kumar Jha: http://roshanjha9997.blogspot.com/2022/05/2022.html
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साहित्य एक नज़र , अंक - 11

( कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका )


https://online.fliphtml5.com/axiwx/qlzb/


 🌅 साहित्य एक नज़र  🌅

Sahitya Eak Nazar

21 May , 2021 , Friday

Kolkata , India

সাহিত্য এক নজর


अंक - 11

21 मई 2021

   शुक्रवार

वैशाख शुक्ल 9 संवत 2078

पृष्ठ -  1

प्रमाण पत्र -  10

कुल पृष्ठ -  11


1.


साहित्य संगम संस्थान साक्षात्कार संगम मंच पर एक मुलाक़ात उमा मिश्रा और ज्योति सिन्हा के बीच ।


साहित्य एक नज़र 🌅 , शुक्रवार , 21 मई 2021


साहित्य संगम संस्थान नई दिल्ली के साक्षात्कार संगम मंच पर शुक्रवार 21 मई 2021 को दोपहर बारह बजे मंच संचालक व सांस्कृतिक प्रचार सचिव नारी मंच के  आ. उमा मिश्रा प्रीति जी और साक्षात्कार सदस्य व साहित्य संगम संस्थान बिहार इकाई के अध्यक्षा आदरणीया ज्योति सिन्हा के बीच एक मुलाक़ात के दौरान परिचर्चा हुई । महागुरुदेव डॉ. राकेश सक्सेना जी (अध्यक्ष उत्तर प्रदेश इकाई) । राष्ट्रीय अध्यक्ष महोदय आ. राजवीर सिंह मंत्र जी , कार्यकारी अध्यक्ष आ. कुमार रोहित रोज़ जी , सह अध्यक्ष आ. मिथलेश सिंह मिलिंद जी, संयोजिका आ. संगीता मिश्रा जी ,  पश्चिम बंगाल इकाई अध्यक्षा आ. कलावती कर्वा जी ,  राष्ट्रीय सह मीडिया प्रभारी व पश्चिम बंगाल इकाई सचिव रोशन कुमार झा  ,आ. अर्चना जायसवाल जी , अलंकरण कर्ता आ. स्वाति जैसलमेरिया जी, आ. मनोज कुमार पुरोहित जी,आ. रजनी हरीश , आ. रंजना बिनानी जी, आ. सुनीता मुखर्जी , आ. मधु भूतड़ा 'अक्षरा' जी , आ. रीतु गुलाटी जी ,आ. भारत भूषण पाठक जी , आ. अर्चना तिवारी जी , संगम सवेरा के संपादक आ. नवल किशोर सिंह जी , वंदना नामदेव जी एवं समस्त सम्मानित पदाधिकारियों व साहित्यकारों उपस्थित होकर कार्यक्रम को सफल बनाएं ।।


2.


साहित्य संगम संस्थान के महासचिव आदरणीय. तरुण सक्षम जी को उनके अवतरण दिवस एवं आदरणीया दीप माला तिवारी जी को वैवाहिक वर्षगांठ पर समस्त साहित्य संगम संस्थान परिवार की ओर से हार्दिक शुभकामनाएं सह बधाई 🙏🏻🙏🏻🌹🎁💐🎉🍰🎈🎂🎂🎉🎂


3.

हिंददेश परिवार के पदाधिकारियों -

4.


मिथिला / मधुबनी पेंटिंग 


✍️ पूजा कुमारी


रामकृष्ण महाविद्यालय मधुबनी बिहार

राष्ट्रीय सेवा योजना


5.


* खेल *


काश, जिंदगी भी एक खेल  जैसी होती..

जब चाहते,  नए सिरे से सुरु होती..


काश होती बचपन की जिद जैसी, 

रोते ही मिल जाती, चीज मनचाही..


होती क्रिकेट या फुटबाल के खेल सी

अपने टीम में कौन , कौन नहीं बता देती,


या, होती जिंदगी लूडो के खेल सी, 

कौन आगे कौन पीछे,  

कौन करने वाला वार,

हर बार,हर बात  दिखला देती,


असली रंग हर किसिके ,

होली के रंगों सी बता देती...


काश जिंदगी भी खेल सी होती.. 

जब चाहे नए सिरे से सुरु होती.......


रचनाकार ✍️  सौ अल्पा कोटेचा,

जलगांव, महाराष्ट्र।


6.


* सौंदर्य बोध *


सौंदर्य के मापदंड  क्या हैं?

कोई जानता है क्या ? 

तन की धवलता या मन की धवलता ? 

क्या स्त्री है सौंदर्य की प्रतिमूर्ति,

यदि है गौरांगी?

तो क्या नहीं जीना चाहिए  

श्याम वर्णी स्त्रियों को?

जो बनाती हैं मजबूत हाथों से,

मकानों की दीवारें।

सिर पर रखकर टोकरियां ।

हाथों को धूल मिट्टी से सानकर 

बना देती हैं अट्टालिकाएं

विशाल रंगीली इमारतों के शीशों से,

झलकते सौंदर्य को गौर से देखना।

श्वेत श्याम की परिपाटी से मुक्त होकर

तभी होगा सच्चा सौंदर्य बोध।


✍️ रचनाकार

डॉ. दीप्ति गौड़ "दीप" 

शिक्षाविद् एवम् कवयित्री

ग्वालियर मध्यप्रदेश भारत 

सर्वांगीण दक्षता हेतू राष्ट्रपति भवन 

नई दिल्ली की ओर से भारत 

के भूतपूर्व राष्ट्रपति 

महामहिम स्व. डॉ. शंकर दयाल शर्मा 

स्मृति स्वर्ण पदक, विशिष्ट प्रतिभा सम्पन्न 

शिक्षक के रूप में राज्यपाल

 अवार्ड से सम्मानित


7.


नहीं सुनता  मेरी, मुझसे कहानी छीन लेता है

कतारों में लगाकर ये जवानी छीन लेता है

*

उसे बहता हुआ पानी कभी अच्छा नहीं लगता

बना कर बांध नदियों की रवानी छीन लेता है

*

कहां ढूंढे, तलाशें अब नदी के इन मुहानों पर

मरे बेमौत लोगों से निशानी छीन लेता है

*

नहीं खुद का कोई विरसा,यही तकलीफ है उसकी

सभी से इसलिए चीजें पुरानी छीन लेता है

*

बड़ी मुश्किल से होता है गुजारा आजकल अपना

कमाई पाई पाई तो अडानी छीन लेता है

*

तुझे दिखता नहीं है, या कि तू देखा नहीं करता

हमारे रंग सारे आसमानी छीन लेता है

*


✍️  राकेश अचल


8.


******** दादी माँ का प्यार *******

******************************


 भुलाए नहीं  भूलता दादी माँ का प्यार,

नसीबों से है मिलता दादी माँ का प्यार।


याद आती रहती परियों की कहानियाँ,

पास बस रह गई अम्मा की निशानियाँ,

बहती नैनों में अश्रुधारा,दादी का प्यार।

नसीबों से है मिलता दादी माँ का प्यार।


गोदी में सुलाती थी गा गा कर लोरियाँ,

माथे पर कभी भी  देखी नहीं त्योरियाँ,

पल आएंगे न दुबारा दादी माँ का प्यार।

नसीबों से है मिलता दादी माँ का प्यार।


चुपके से देती  खाने को मीठी गोलियाँ,

शरारत  करने  पर मिलती थी गालियाँ,

खट्टा  मीठा  नजारा दादी माँ का प्यार।

नसीबो से हैं मिलता दादी माँ का प्यार।


साहूकार को जैसे मूल से प्यारा ब्याज,

दादी का था हमारे राग से बजता साज,

राग मल्हार था जैसा दादी माँ का प्यार।

नसीबों से है मिलता दादी माँ का प्यार।


मनसीरत को दिल से लाड़ था लड़ाया,

दिन में ना जाने  कितनी बार नहलाया,

दुलार से  पुचकारा  दादी माँ का प्यार।

नसीबों से है मिलता दादी माँ का प्यार।


भुलाए नही भूलता  दादी माँ का प्यार।

नसीबों से है मिलता दादी माँ का प्यार।

******************************

✍️ सुखविंद्र सिंह मनसीरत 

खेड़ी राओ वाली (कैथल)


9.


* जिंदगी के रंग *


जीवन में हालातों के उलटफेर से

जो उतार-चढ़ाव जीवन में आते हैं

यही उतार-चढ़ाव जीवन के,,,,

जिंदगी के रंग कहलाते हैं !!!


कभी जीवन में रंग रलियाँ होती हैं

कभी मातम के बादल छाते हैं !!!

कभी महफ़िल में गुजरतीं हैं शामें

कभी तन्हाई से घबराते हैं !!!!


कभी गुस्से में लाल हो जाते हैं

कभी करुणा सब पर बरसाते हैं

कभी डर से पीले पड़ जाते हैं

कभी दबंग रूप दिखाते हैं!!!


कभी स्वार्थ के वश अंधे होकर

अपनों को धोखा दे जाते हैं !!!

कभी छद्म वेश धारण करके 

मुँह काला भी कर जाते हैं !!!!


अपराध बोध से ग्रसित हो फिर

मन ही मन पछताते हैं!!!

और मारे शर्म के सारी दुनियाँ से

चेहरा भी अपना छुपाते हैं !!!!


शर्मो-हया ईर्ष्या-द्वेश घृणा, कृपणता

हर्षोल्लास ,मातम , प्रेम , चपलता

कभी हेकड़ी , कभी भय ग्रस्तता

कभी दयालुता , कभी निकृष्टता 


यही तो जिंदगी के रंग हैं सारे 

जिनमें हम रंग जाते हैं !!!!

कोई नहीं इनसे है अछूता 

सबके जीवन में असर ये दिखाते हैं 


वक्त का पहिया जैसा घूमे

वैसे हम चलते जाते हैं !!

कभी उठते कभी गिरते हैं हम 

इन रंगों में रँगते जाते हैं !!!


एक रंग अभिमान का भी है

पर इसमें रँगना ठीक नहीं !!

वक्त कभी ना एक सा रहता

इसलिए अकड़ना ठीक नहीं ।


मानवता का रंग सबसे चोखा

इस रंग में सराबोर जो होता

वही इहलोक-परलोक दोनों में

जीवन के रंगों का आनंद लेता !!

जीवन के रंगों का आनंद लेता!!


लेखिका/कवयित्री- 

✍️ प्रतिभा द्विवेदी मुस्कान ©

सागर मध्यप्रदेश 


10.


शीर्षक- आँखे 👁️👁️


आँखों में हज़ारों ही ख़्वाब बसते हैं

बहुत उलझे हुए से आँखों के रस्ते हैं.. 


आँख से ही ख़ूबसूरत से नज़ारे मिले 

आँख से ही नटखटी से इशारे मिले

जोड़ती हैं दिलों को ये आँखे हमारी

आँखे से ही देख कुछ अपने हमारे मिले..

नैना ही अपनो को देखने को तरसते है 

आँखों में हज़ारों ही ख़्वाब बसते हैं.. 


अंगुलियों पर नचाती हैं आँखे किसी को

कभी देख शर्माती हैं ये आँखे किसी को

दस्ताने शुरू हो मोहब्बत की आँखों से ही 

रात भर जगती और जगाती किसी को..

आँखों में ही इश्क़ के सुहाने चित्र सजते है

आँखों में हज़ारों ही ख़्वाब बसते हैं.. 


आँखें इश्क में दिल की जुबानी कहे

इशारों में ये कितनी ही कहानी कहे

बेचैन बेताब रहती ये यार के दीदार बिन

भावनाओं को ये पागल दिवानी कहे..

आँखों में मोहब्बत की नई दुनिया बसती है 

आँखों में हज़ारों ही ख़्वाब बसते हैं.. 


आँखों की नजाकत सभी लगती शराबी

मन की करती शैतानियाँ जैसे हो नवाबी

नाज़ुक बहुत ये, इनमें आकर्षण का हुनर 

नूर आँखों का लगता है जैसे आफताबी..

आँखे पलकों की ख़ूबसूरती से सजती हैं

आँखों में हज़ारों ही ख़्वाब बसते हैं.. 


आँखों के नशे के कितने ही दीवाने हुए

डूब झील सी आँखों में जग से बेगाने हुए

दौर गुज़र गया सदियों पहले ही इश्क़ का 

पर न भूले वो आँखें प्यारी हम ज़माने हुए..

रात सोता तन पर आँखे मन संग जगती हैं 

आँखों में हज़ारों ही ख़्वाब बसते हैं.. 


आँखें ख़ुशी ग़म दोनों में साथ देती

अश्रुओं से परे सुकूं का हाथ देती

आँखों से ही उतरे चित में चितेश्वर 

सौभाग्यशाली दरस में नाथ देती..

आँखे रंगीं खूबसूरती का महत्व बताती हैं

आँखों में हज़ारों ही ख़्वाब बसते हैं.. 


✍️ अनामिका वैश्य आईना

लखनऊ

11.


* बाल श्रम *


आओ मिलकर हम सब

सुंदर भारत का निर्माण करें....


किसी बच्चे का दामन

न छूटे अपने बचपन से

रोंदे न कोई उसके सपनों को

बाल श्रम के घन से

कोई छीने न इनसे इनका भोलापन

फिर न कोई छोटू मज़बूर हो 

 दुकान पर दिन रात 

काम करता दिखे....

कड़कड़ाती ठंड में 

काँपते हाथों से लोगों को 

चाय बाँटता मिले ....


...ऐसी ही कहानी 

लक्ष्मी की भी होगी

गुड्डों से खेलने की उम्र में

दूसरों के यहाँ

झाड़ू- पोंछा करना होता होगा

दिल उसका भी पसीजता होगा..

ज़रा ज़रा सी बात पर

रोज़ मार वह खाती होगी....


..चन्दू की भी यही कहानी होगी

पढ़ने लिखने की बजाए

सड़कों पे पेन, किताब बेचता फिरेगा

यक़ीनन मन उसका भी करता होगा

वह भी कागज़ पर कुछ अपनी 

मन की लिखे....

....पर भूखा ज़िस्म लिखना भूल 

काम पर फिर लग जाता होगा।


आओ सब संकल्प करें

अब संकल्प करें

मिटायें देश से बाल श्रम को

थामकर इनका हाथ

इनका सहारा हम बनें...


देश में ऐसा माहौल बनाऐं

बचपन हो खुशहाल

शिक्षा पर सबका अधिकार


ऐसे प्यारे भारत का ध्यान करें 

आओ मिलकर हम सब

सुंदर भारत का निर्माण करें....

  

       

 ✍️  सपना  " "नम्रता"

           दिल्ली


12.


एक तो जनता भूखी है दूजी बेरोजगारी है

उस पर भी निर्दोषों का दमन सीधा गद्दारी है


दमन चक्रों का प्रतिफल क़भी विकास नहीं होता

सीधी साधी जनता का इस तरह उद्धार नहीं होता


मजहबी दंगों से जब जब समाज जलाया जाता है

तब तब आरोप अपनों पर ही लगाया जाता है


इतनी सी समझदारी बस अबके  दिखा देना

कातिलों के बदले निर्दोषों को सजा मत देना।


✍️  पी के सैनी

राजस्थानी


13.


आरोप प्रत्यारोप


मैं कौन? तुम कौन?

ये शासन और प्रशासन कौन?

हम या हममें से कौन?

आखिर इन तैरती लाशों का

मानवता पर तमाचे का

जिम्मेदार कौन?


सब बताते किसकी ज़िम्मेदारी?

पर अपनी ज़िम्मेदारी लेगा कौन?

मानव कहलाने वाला कौन?

इसका जवाब देगा कौन?


दूसरों से सवाल हुआ बहुत

अब खुद से जवाब मांगेगा कौन?


✍️ मनोरंजन कुमार श्रीवास्तव

संपादक विविधा सृजन संगम 

मासिक ई पत्रिका एवम् पुस्तक श्रृंखला

तथा संस्थापक मनोहर साहित्यिक

 क्रिएशंस प्रकाशन,

लखनऊ, उत्तर प्रदेश

8787233718


14.


*(जीवन सन्देश)* गौतम बुद्ध ने एक बार अपने शिष्यों से कहा था, 'तुम वीणा के तारों को इतना न कसो कि वे टूट जाएं और न ही इतना ढीला छोड़ो कि उनसे स्वर न निकले'। कहने का आशय यह है कि हमें हमेशा भावनात्मक रूप से संतुलित एवं विवेकशील होना चाहिए। 


अपनी भावनाओं को संतुलित कर पाना कोई आसान काम नहीं है, लेकिन ऐसा कर पाने में हम सक्षम हुए, तो लगभग आधी समस्याओं से छुटकारा मिल जाता है, क्योंकि इंसान अपनी भावनाओं को नियंत्रित करना सीख लेता है तो वह स्वत: भावनात्मक परिपक्वता अर्थात समझदारी की ओर बढ़ने लगता है और सही निर्णय लेने में सक्षम होता है। 


यदि हम शांतिपूर्वक अकेले बैठे हों तब तटस्थ हो कर दूसरों की नजर से स्वयं का आत्मविश्लेषण करें, तो हम अपनी भावनाओं को अच्छी तरह समझने में सक्षम हो सकते हैं। इससे अपने मनोभावों को नियंत्रित और संतुलित करना हमारे लिए सहज होगा।


साथ ही प्रेरक विचार/लेख पढ़ें, सकारात्मक दृष्टिकोण एवं अनुशासित जीवनशैली अपनाएं तो भावनाओं को एक सीमा तक संतुलित कर सकते हैं और दुःख-संताप-क्रोध-ईर्ष्या-द्वेष जैसी भावनाओं से काफी हद तक ऊपर उठ सकते हैं।


✍🏻 * सत्यम सिंह बघेल *

       * लखनऊ (उ.प्र.) *

15.


✍🏻 मेरी कलम गद्दार लिखेगी ✍🏻


करनी थी आपदा से लड़ाई

करने लगे है आपदा में कमाई,


ऐसे गद्दारों को ग़द्दार ही लिखूंगा

बार-बार ही सही हर बार लिखूंगा,


इस आपदा को वो अवसर समझ बैठा

कोरोना मरीजों को मजबूर समझ बैठा,


मरीजों में लहू की लहर जमने लगी है

जमते लहू के थप्पों से "जाने" जाने लगी है,


बच्चें-बुढ्ढे और जवान सब अपनी जान गवाने लगे है

ऐसे में ये काली कमाई करने वाले अपनी जेबें भरने लगे है,


फल से लेकर दवाइयां और बेड से लेकर ऑक्सीजन

यहां तक कि मंहगें दामों में बिक रहे है आज इंजेक्शन,


लगता है ऐसे की मानो लहू से चुपड़ी चपातियां

और

ये रुपया-पैसा नहीं जैसे नोंच खा रहे है बोटियां,


करने वाले काला-बाजारियों का जिस्म-ज़मीर जैसे मर गया है

धिक्कार है ऐसे गद्दारो को जो मद्दत की जगह लुटेरों है,


मैं और मेरी कलम तुम पर  "थू" लिखेगी

एक बार नहीं हजार बार गद्दार लिखेगी,


ये मत समझो गद्दारो हिसाब तो तुम्हें भी देना पड़ेगा

यहां नहीं तो उसको एक दिन हिसाब तो देना पड़ेगा !!


✍🏻 चेतन दास वैष्णव

गामड़ी नारायण

बाँसवाड़ा , राजस्थान


  16.              

             

"" मैं चाहता हूं ""


मैं चाहता हूं कि 


वसुंधरा पर रहें सदा


एकता और भाईचारा


बहती रहें इस धरा पर 


प्रेम


उल्लास


सद्भभावना 


शांति उमंग की


अविरल धारा


होगा हमारे जीवन में


खुशियों संग


अनेक तरह का 


उजियारा।।


✍️ मनोज बाथरे चीचली 

जिला नरसिंहपुर मध्य प्रदेश


17.


मैंने भी 

सितारों से दोस्ती कर ली है

उन्मुक्त आकाश में

तन्हां तन्हां अपनों की तलाश में

अतीत की यादें भुलाने

पुराने दोस्तों से हाथ मिलाने

 मैंने भी

सितारों से दोस्ती कर ली है...

छोड़ दिया 

अब सपनों का पीछा करना

अपनों से दूर रहकर

आंखें नम करना

अब न हैं वो उलाहनें

न शिकायतें न दूरी

ना ही कोई वितृष्णा या मजबूरी...

छुपी छूपाई के खेल में जहां

जो छुप गए न जाने कहां

मुझे पूछना है.....

उन आधे अधूरे सपनों का क्या...

जो  टूट गये

उन रिश्तों का क्या..

जो निभाने से पहले 

ही छूट गये...

तुम हवा में घूल गये हो

या मिट्टी में मिल गये हो

चले गए हो कहीं

इस किनारे से उस किनारों तक

आकाश या पाताल से दूर

या चले गये हो सितारों तक...

देखना मैं तुम्हें ढूंढ ही लूंगा......


✍️ पुष्प कुमार महाराज ,

 गोरखपुर

18.


रवि कई दिनों से 

लुकाछिपी खेल रहे थे

 कभी छुपे पर्वत पीछे 

,कभी तरूवर पिछे


बरखा रानी भी कम नहीं थी , 

ढूंढती रही खोजती रही

बस सब जगह बूंदों से 

बरखा रानी भिगोती रही


कि रवि दिख जाएं  

पर नहीं दिखे , कहने लगे

ठंडी हवा चल रही है, 

मैं नहीं आऊंगा बहार


बरखा भी कम न थी , 

मेंघ से लड़ पड़ी  मेघों को

भी धक्का दिया 

वे बेचारे डर गये,


छोड़ रवि दादा को 

बरखा संग चले गए

तभी स्वर्णिम प्रकाश हुआ , 

सुप्रभात सवेरा हुआ


बरखा कि बूंदें मेरे पास 

आई , झरोखे से झांककर

कह उठी देखो अर्चना 

मैंनै रवि को 

खोज लिया    


अब तुम भी जाग जाओ 

सुप्रभात की बेला में

सुप्रभात कह जाओ , 

रवि दादा भी हंस पड़ें


प्रभात की बेला में 

मुस्कुरा कर सुप्रभात कह उठे

कहने लगे मान लिया अर्चना जी

आप ने हमें खोज लिया , 

चलो सुप्रभात कहा जाए


बहुत दिनों से चाय नहीं पी , 

चलो चाय हो जाए।


✍️ अर्चना जोशी

भोपाल मध्यप्रदेश


19.


अब जो बात चली है तो दूर तक जाएगी

वो आए, ना आए उनकी यादें जरूर आएगी

जब आएगा यादों के दौर का  सिलसिला

तो हिचकियाँ और सिसकियाँ भी साथ लाएगी

मान लेंगे, हिचकियों में याद किया उन्होंने हमें

और सिसकियों में...

उनके अनकहे अल्फ़ाज़ खुल हमसे कुछ कह जाएगी

अब जो बात चली है तो दूर तक जाऐगी

वो आए, ना आए उनकी याद जरूर आएगी


●●●

✍️ ज्योति झा

बेथुन कॉलेज, कोलकाता


20.


अपना स्वदेश


वह वक्त भी कितना अच्छा होगा

जब मंदिर में कुरान और

 मस्जिद में रामायण होगा

ना होगा हिंदू-मुस्लिम में कोई फासला

तब हर तरफ इंसान होगा।।


यह जाति धर्म मजहब 

नाम के रह जाएंगे

जब पूरी दुनिया अपना परिवार होंगे

ना होंगे कोई विवाद आपस में

तब घर घर में खुशियां हजार होंगे।।


तब होंगे हर घर में प्रेमचंद की ईदगाह

होंगे रसखान के कृष्ण

गाए जाएंगे गुणगान हर घर में

तो मिलेंगे हर घर में राम और रहीम ।।


ना कोई घृणा होगा 

ना होगा कोई द्वेष

पूरी जहां एक होगा

तब बनेगा अपना स्वदेश ।।


वह वक्त भी कितना अच्छा होगा

जब ये जहां अपना होगा

जब हर इंसान सच्चा होगा ।।


✍️ संजीत कुमार निगम

फारबिसगंज अररिया , बिहार

मोबाइल:  7070773306


21.


विषय :- रिश्तों में फूहड़ता ।।

विधा :- कविता


मेरे प्यारें पाठकों आज दें 

रहा हूँ एक बात बता  ,

कैसे हो रही है रिश्तों में फूहड़ता ।।


छोटी साली आधी घरवाली 

कहना हमारा संस्कार नहीं ,

माँ समान होती थी भाभी ,

पर अब मानव में 

वह तनिक विचार नहीं ।।


कोई लड़की भाई कहें तो हमें

उसका ख्य़ाल नहीं ,

पर कोई लड़की , प्रिय कह दें

तो उसके अलावा मेरा कोई संसार नहीं ।।


इस तरह हो रहीं हैं

 रिश्तों में फूहड़ता ।।

तब कैसे न लिखूँ

इस विषय पर एक 

कविता और कथा ।।


✍️ रोशन कुमार झा

सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज,कोलकाता

ग्राम :- झोंझी , मधुबनी , बिहार, 

मो :-6290640716, कविता :- 20(03)


🌅 साहित्य एक नज़र  🌅

Sahitya Eak Nazar

21 May , 2021 , Friday

Kolkata , India

সাহিত্য এক নজর

22.


😀🙏 विंडो फैन🙏😀


विंडो एसी की तरह विंडो फैन भी होता है। एसी लगवाने की सामर्थ्य जिनकी नहीं होती वे विंडो फैन से काम चला लेते हैं। यह बहुत छोटा, सस्ता और देखने में अत्यंत प्यारा होता है। एक दिन मेरी नज़र पड़ गई विंडो फैन पर तो मैं भी फैन हो गया विंडो फैन का। पैसे नहीं थे तो ख़रीद नहीं सका। पर मन में था कि एक दिन इसे खरीदूंगा ज़रूर। जैसे ही मासिक वेतन मिला सबसे पहले मैं उसी दुकान पहुंचा और सगर्व उसे खरीद लाया। रात में विंडो में लगाकर रख दिया तो सुबह तक मेरी हालत खस्ता हो गई। रात भर कांपता रहा मैं। अगले दिन मैंने दो कंबल निकालने का आग्रह गृहलक्ष्मी से जोर देकर किया। दरअसल जहां मैं रहता हूँ यहां नदी, पहाड़ और एसिया ( एशिया ) का सबसे बड़ा वनप्रदेश है। अब तो लोहे की असीमित खानों के खुल जाने के कारण वातावरण प्रदूषित हो गया है, नहीं तो कभी गर्मियों में यहां पसीना नहीं आता था। आज विकास के नाम पर विनाश की ओर अग्रसर हैं हम। विंडो फैन इतना शालीन और श्रमजीवी है कि बड़ी शांति से चलता है पर बाहर की सारी फ्रेस हवा अंदर ले आता है और स्वास्थ्य वर्धन का कार्य करता है। उसकी कर्मठता और उपयोगिता को देख गृहशोभा ने कहा कि एक और विंडो फैन ले आइए, अतिथि कक्ष के लिए। गृहशोभा की बात मुझे भी जंची। क्योंकि लॉकडाउन में हॉस्टल से बेटियों के घर आ जाने के कारण अब मेरा शयनकक्ष वहीं हो गया है। पर मेरे स्वास्थ्य और लॉकडाउन के कारण दूसरे विंडो फैन की अगवानी नहीं हो पा रही थी। मैंने दुकानदार को दसियों बार फोन करके उसका जीना हराम कर दिया। आख़िर में बड़े अहसान के साथ दुकानदार ने एक और विंडो फैन पहुंचा दिया। जैसे ही उसे चलाने की कोशिश की वह अड़ गया, नहीं चला। मैंने पुनः दुकानदार को परेशान करना शुरू कर दिया। दुकानदार अच्छा मिस्त्री भी है। उसके आते ही और छूते ही श्रीमान जी चल पड़े, जैसे किसी जादूगर ने छू लिया हो, बड़ा आश्चर्य हुआ। दुकानदार ने कहा सर, "इसे आप दो चार दिन चलाकर देख लीजिए पैसे उसके बाद ही देना।"


शाम को मैंने उसे विंडो पर सेट किया और चलाया तो फिर नहीं चला। अब तो बड़ा क्रोध आ रहा था उस पर। वहां से उठाकर दूसरे प्वाइंट पर लगाया तो थोड़ा हिला। दुकानदार ने कहा था कि दिक्कत करे तो ले आना, मैं हूँ न! पर मैं जोश में आ गया। उसे नीचे से खोलकर उसके लूज प्वाइंट टाइट किए और फिर चलाया तो चल पड़ा। इस विंडो फैन की इतनी स्पीड है कि रातभर में अपने सारे बोल्ट ढीले कर लिए और कुछ तो निकलकर गिर पड़े, उद्घोष ऐसा जैसे बज्रपात हो रहा हो। रातभर सोने नहीं दिया। मैनें जहां - जहां के बोल्ट निकल गए थे, वहां उसे तार से उसे बांध दिया। जब चालू किया जाता है तो वह बड़ी जोर से पहले हिलता है, फिर ऐसे भागता है जैसे उसके पीछे कोई कुत्ता पड़ा हो। बेचारे ने अपनी इस स्पीड के कारण अपना अस्ति-पंजर पूरा ढीला कर लिया। इतना कि जहां बेल्डिंग थी वह भी खुल गई। इसका निर्माता/असेंबलकर्ता/जनक कोई निकम्मा मिस्त्री रहा होगा। ऐसे लोग अपनी संतानों का निर्माण और परवरिश सही से नहीं करते। जबकि पहले वाला विंडो फैन एकदम सही है। उसका जनक मेहनती और लगनशील रहा होगा। ऐसे ही जब कोई मास्टर पढ़ाता नहीं तो अपनी कक्षा में पहुंचते ही अपने विद्यार्थियों को जोर से डांटता है और कुछ काम देकर या तो फरार हो जाता है या फिर अपने काम में मशगूल हो जाता है या मोबाइल में लग जाता है। ऐसे उदाहरण ही समाज में निष्ठावानों को भी बदनाम करते हैं और ऐसे लोग डींगे इतनी बड़ी- बड़ी हांकते हैं कि मेहनती लोगों की बोलती बंद हो जाती है। वे जो समाज में अच्छे मिस्त्री, अच्छे मास्टर, अच्छे पिता होते हैं वे ऐसे लोगों के कारण बदनाम होते हैं। समाज में उनकी छवि धूमिल होती है। मेरे स्कूल से २२ किमी दूर एक मास्टर ने दुर्व्यवहार किया तो हम लोग शर्म से पानी-पानी हो रहे थे। खैर, उसकी जहां से बेल्डिंग हट गई थी वहां भी मैंने उसे तार से बांध दिया। अब वह चल तो ठीक रहा है। पर मैं उसे देखकर अंदर ही अंदर इतना आह्लादित होता हूँ कि जितनी औकात नहीं उससे ज़्यादा सेवा दे रहा है। जब उसे बंद करता हूँ तो पूरा हिल जाता है और चालू करने पर भी कुछ यही हाल होता है। उसका साथी जिसे फर्राटा कहते हैं वह उसके सामने अब वैसा प्रतीत होता है जैसे कोई बुजुर्ग थक और शिथिल होकर अपने अस्तित्व के लिए जान हथेली पर रखकर नवयुवकों के साथ दौड़ लगाता है। जद्दोजोहद करके जीवनयापन कर रहा है।


संसार गरीबों और श्रमजीवियों के श्रम और निष्ठा से चलता है। दुनिया के जितने भी बड़े प्रतिष्ठान हैं वे किसी न किसी गरीब-लाचार श्रमजीवी महामानव के श्रम की गाथा हैं। एक - एक ईंट *राज* मिस्त्री जोड़ता है और मज़दूर कड़ी धूप में खून-पसीना एक करके ताजमहल खड़ा करते हैं। उसके बाद महान ऐसे मिस्त्रियों के हाथ कटवा वह ताजमहल अपनी मुमताज़ को गिफ्ट कर देते हैं। लोग ज़्यादातर इस फ़िराक़ में रहते हैं कि श्रमजीवियों का कैसे और क्या करके श्रेय अपने माथे मढ़ लें। वे सदैव *बुद्धिर्यस्य बलम्तस्य* को अपनी नीति बनाकर जीवन जीते हैं। सब ऐसे नहीं होते। बहुत से महान लोग ऐसे भी होते हैं कि जिन्हें देख श्रद्धा स्वत: जन्म लेती है। आधेय के विमोचन कार्यक्रम में राजस्थान के जो कुलपति महोदय आ० प्रधान साहब पधारे थे, उनका व्यक्तित्व पूरी दुनिया के महान व्यक्तियों को अपनाना चाहिए। इतने सरल, इतने विनीत और सहज कि विद्या उनमें शोभा पाती है, विद्या ददाति विनयम्।  आज *बुद्धिर्यस्य बलम्तस्य*  वालों के लिए बहुत बड़ा सबक महामारी ने दिया है कि श्रम करो, पसीना बहाओ, वरना रोगप्रतिरोधक क्षमता नहीं बचेगी। अतः अब *बुद्धिर्तस्यबलम्यस्य* सही और समसामयिक सूक्ति हो गई है। सतत साधना की शक्ति और निष्ठावानों की भक्ति और अनुकरण ईमानदारी से अब करना ही होगा। जो विश्व नमस्ते करने वालों पर हंसता था(मेरे बचपन के दोस्त भूपेंद्र की शादी में साली ने बड़ी गर्मजोशी से हाथ आगे करते हुए कहा- "हैलो जीज्जा जी" तो भूपेंद्र ने हाथ जोड़कर नमस्ते किया। बराती लोफड़ जो नागिन डांस पर खूब धूल और जमीन पर लोट- लोटकर नाचे थे, उन्होंने बड़ी तफरी ली। बोले "यार मुझे कोई ऐसे हैलो करता तो मैं तो गले ही लगा लेता)😀 आज न केवल नमस्ते कर रहा है अपितु हवन और प्राणायाम करके जान बचा रहा है। हल्दी, फिटकरी, दालचीनी आदि आयुर्वैदिक औषधियां आजकल हर घर में शोभा पा रही हैं।


विंडो फैन बनें, एसी का जमाना लद गया। श्रम ही जीवन की कथा रही। जो नहीं कही वह जाय कही। कहावत को चरितार्थ कीजिए। इसी में भलाई है।


✍️ राज वीर सिंह 'मंत्र'

साहित्य संगम संस्थान नई दिल्ली

     ( राष्ट्रीय अध्यक्ष )


23.

जय माँ सरस्वती


🌅 साहित्य एक नज़र 🌅

कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका

     


🏆 सम्मान - पत्र 🏆


प्र. पत्र . सं - _ _ 002 दिनांक -  _ _  21/05/2021


🏆 सम्मान - पत्र 🏆


आ.  _ _ _ डॉक्टर देवेंद्र  तोमर  _ _ _  जी


ने साहित्य एक नज़र , कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका अंक  _ _ 1 - 10 _ _ _ _ _ _  में अपनी रचनाओं से योगदान दिया है । आपको 


         🏆 🌅 साहित्य एक नज़र रत्न 🌅 🏆

सम्मान से सम्मानित किया जाता है । साहित्य एक नज़र आपके उज्ज्वल भविष्य की कामना करता है ।


रोशन कुमार झा   , मो :- 6290640716

आ. प्रमोद ठाकुर जी

अलंकरण कर्ता - रोशन कुमार झा


हिन्दू धर्म में सीता नवमी बहुत बड़ा महत्व रखतीं है। हिंदू धर्म में सीता नवमी का उतना ही महत्व है, जितना राम नवमी का है। चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को भगवान श्रीराम का जन्म हुआ था, तो पवित्र नारी , मिथिला पुत्री व माता सीता वैशाख शुक्ल नवमी को प्रकट हुई थी । वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को सीता नवमी या जानकी नवमी कहा जाता है।  पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इसी तिथि को पुष्य नक्षत्र में मिथिला के महाराजा जनक यज्ञ की भूमि तैयार करने हेतु हल से जमीन जोत रहें थे, तभी भूमि से कन्या प्रकट हुई, जिनका नाम सीता रखा गया। 


जन्म ली रहीं आज ही के दिन मिथिला पुत्री सीता ,

मिलें आदर्श पति श्रीराम , कहलाएं मिथिला के राजा जनक पिता ।।


सीता नवमी आज गुरुवार 20 मई एवं 21 मई 2021 शुक्रवार दो दिन मनाई जा रही है इस वर्ष ।

साहित्य एक नज़र , अंक - 11

( कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका )


https://online.fliphtml5.com/axiwx/qlzb/


 🌅 साहित्य एक नज़र  🌅

Sahitya Eak Nazar

21 May , 2021 , Friday

Kolkata , India

সাহিত্য এক নজর


अंक - 11

21 मई 2021

   शुक्रवार

वैशाख शुक्ल 9 संवत 2078

पृष्ठ -  1

प्रमाण पत्र -  10

कुल पृष्ठ -  11


1.


साहित्य संगम संस्थान साक्षात्कार संगम मंच पर एक मुलाक़ात उमा मिश्रा और ज्योति सिन्हा के बीच ।


साहित्य एक नज़र 🌅 , शुक्रवार , 21 मई 2021


साहित्य संगम संस्थान नई दिल्ली के साक्षात्कार संगम मंच पर शुक्रवार 21 मई 2021 को दोपहर बारह बजे मंच संचालक व सांस्कृतिक प्रचार सचिव नारी मंच के  आ. उमा मिश्रा प्रीति जी और साक्षात्कार सदस्य व साहित्य संगम संस्थान बिहार इकाई के अध्यक्षा आदरणीया ज्योति सिन्हा के बीच एक मुलाक़ात के दौरान परिचर्चा हुई । महागुरुदेव डॉ. राकेश सक्सेना जी (अध्यक्ष उत्तर प्रदेश इकाई) । राष्ट्रीय अध्यक्ष महोदय आ. राजवीर सिंह मंत्र जी , कार्यकारी अध्यक्ष आ. कुमार रोहित रोज़ जी , सह अध्यक्ष आ. मिथलेश सिंह मिलिंद जी, संयोजिका आ. संगीता मिश्रा जी ,  पश्चिम बंगाल इकाई अध्यक्षा आ. कलावती कर्वा जी ,  राष्ट्रीय सह मीडिया प्रभारी व पश्चिम बंगाल इकाई सचिव रोशन कुमार झा  ,आ. अर्चना जायसवाल जी , अलंकरण कर्ता आ. स्वाति जैसलमेरिया जी, आ. मनोज कुमार पुरोहित जी,आ. रजनी हरीश , आ. रंजना बिनानी जी, आ. सुनीता मुखर्जी , आ. मधु भूतड़ा 'अक्षरा' जी , आ. रीतु गुलाटी जी ,आ. भारत भूषण पाठक जी , आ. अर्चना तिवारी जी , संगम सवेरा के संपादक आ. नवल किशोर सिंह जी , वंदना नामदेव जी एवं समस्त सम्मानित पदाधिकारियों व साहित्यकारों उपस्थित होकर कार्यक्रम को सफल बनाएं ।।


2.


साहित्य संगम संस्थान के महासचिव आदरणीय. तरुण सक्षम जी को उनके अवतरण दिवस एवं आदरणीया दीप माला तिवारी जी को वैवाहिक वर्षगांठ पर समस्त साहित्य संगम संस्थान परिवार की ओर से हार्दिक शुभकामनाएं सह बधाई 🙏🏻🙏🏻🌹🎁💐🎉🍰🎈🎂🎂🎉🎂


3.

हिंददेश परिवार के पदाधिकारियों -

4.


मिथिला / मधुबनी पेंटिंग 


✍️ पूजा कुमारी


रामकृष्ण महाविद्यालय मधुबनी बिहार

राष्ट्रीय सेवा योजना


5.


* खेल *


काश, जिंदगी भी एक खेल  जैसी होती..

जब चाहते,  नए सिरे से सुरु होती..


काश होती बचपन की जिद जैसी, 

रोते ही मिल जाती, चीज मनचाही..


होती क्रिकेट या फुटबाल के खेल सी

अपने टीम में कौन , कौन नहीं बता देती,


या, होती जिंदगी लूडो के खेल सी, 

कौन आगे कौन पीछे,  

कौन करने वाला वार,

हर बार,हर बात  दिखला देती,


असली रंग हर किसिके ,

होली के रंगों सी बता देती...


काश जिंदगी भी खेल सी होती.. 

जब चाहे नए सिरे से सुरु होती.......


रचनाकार ✍️  सौ अल्पा कोटेचा,

जलगांव, महाराष्ट्र।


6.


* सौंदर्य बोध *


सौंदर्य के मापदंड  क्या हैं?

कोई जानता है क्या ? 

तन की धवलता या मन की धवलता ? 

क्या स्त्री है सौंदर्य की प्रतिमूर्ति,

यदि है गौरांगी?

तो क्या नहीं जीना चाहिए  

श्याम वर्णी स्त्रियों को?

जो बनाती हैं मजबूत हाथों से,

मकानों की दीवारें।

सिर पर रखकर टोकरियां ।

हाथों को धूल मिट्टी से सानकर 

बना देती हैं अट्टालिकाएं

विशाल रंगीली इमारतों के शीशों से,

झलकते सौंदर्य को गौर से देखना।

श्वेत श्याम की परिपाटी से मुक्त होकर

तभी होगा सच्चा सौंदर्य बोध।


✍️ रचनाकार

डॉ. दीप्ति गौड़ "दीप" 

शिक्षाविद् एवम् कवयित्री

ग्वालियर मध्यप्रदेश भारत 

सर्वांगीण दक्षता हेतू राष्ट्रपति भवन 

नई दिल्ली की ओर से भारत 

के भूतपूर्व राष्ट्रपति 

महामहिम स्व. डॉ. शंकर दयाल शर्मा 

स्मृति स्वर्ण पदक, विशिष्ट प्रतिभा सम्पन्न 

शिक्षक के रूप में राज्यपाल

 अवार्ड से सम्मानित


7.


नहीं सुनता  मेरी, मुझसे कहानी छीन लेता है

कतारों में लगाकर ये जवानी छीन लेता है

*

उसे बहता हुआ पानी कभी अच्छा नहीं लगता

बना कर बांध नदियों की रवानी छीन लेता है

*

कहां ढूंढे, तलाशें अब नदी के इन मुहानों पर

मरे बेमौत लोगों से निशानी छीन लेता है

*

नहीं खुद का कोई विरसा,यही तकलीफ है उसकी

सभी से इसलिए चीजें पुरानी छीन लेता है

*

बड़ी मुश्किल से होता है गुजारा आजकल अपना

कमाई पाई पाई तो अडानी छीन लेता है

*

तुझे दिखता नहीं है, या कि तू देखा नहीं करता

हमारे रंग सारे आसमानी छीन लेता है

*


✍️  राकेश अचल


8.


******** दादी माँ का प्यार *******

******************************


 भुलाए नहीं  भूलता दादी माँ का प्यार,

नसीबों से है मिलता दादी माँ का प्यार।


याद आती रहती परियों की कहानियाँ,

पास बस रह गई अम्मा की निशानियाँ,

बहती नैनों में अश्रुधारा,दादी का प्यार।

नसीबों से है मिलता दादी माँ का प्यार।


गोदी में सुलाती थी गा गा कर लोरियाँ,

माथे पर कभी भी  देखी नहीं त्योरियाँ,

पल आएंगे न दुबारा दादी माँ का प्यार।

नसीबों से है मिलता दादी माँ का प्यार।


चुपके से देती  खाने को मीठी गोलियाँ,

शरारत  करने  पर मिलती थी गालियाँ,

खट्टा  मीठा  नजारा दादी माँ का प्यार।

नसीबो से हैं मिलता दादी माँ का प्यार।


साहूकार को जैसे मूल से प्यारा ब्याज,

दादी का था हमारे राग से बजता साज,

राग मल्हार था जैसा दादी माँ का प्यार।

नसीबों से है मिलता दादी माँ का प्यार।


मनसीरत को दिल से लाड़ था लड़ाया,

दिन में ना जाने  कितनी बार नहलाया,

दुलार से  पुचकारा  दादी माँ का प्यार।

नसीबों से है मिलता दादी माँ का प्यार।


भुलाए नही भूलता  दादी माँ का प्यार।

नसीबों से है मिलता दादी माँ का प्यार।

******************************

✍️ सुखविंद्र सिंह मनसीरत 

खेड़ी राओ वाली (कैथल)


9.


* जिंदगी के रंग *


जीवन में हालातों के उलटफेर से

जो उतार-चढ़ाव जीवन में आते हैं

यही उतार-चढ़ाव जीवन के,,,,

जिंदगी के रंग कहलाते हैं !!!


कभी जीवन में रंग रलियाँ होती हैं

कभी मातम के बादल छाते हैं !!!

कभी महफ़िल में गुजरतीं हैं शामें

कभी तन्हाई से घबराते हैं !!!!


कभी गुस्से में लाल हो जाते हैं

कभी करुणा सब पर बरसाते हैं

कभी डर से पीले पड़ जाते हैं

कभी दबंग रूप दिखाते हैं!!!


कभी स्वार्थ के वश अंधे होकर

अपनों को धोखा दे जाते हैं !!!

कभी छद्म वेश धारण करके 

मुँह काला भी कर जाते हैं !!!!


अपराध बोध से ग्रसित हो फिर

मन ही मन पछताते हैं!!!

और मारे शर्म के सारी दुनियाँ से

चेहरा भी अपना छुपाते हैं !!!!


शर्मो-हया ईर्ष्या-द्वेश घृणा, कृपणता

हर्षोल्लास ,मातम , प्रेम , चपलता

कभी हेकड़ी , कभी भय ग्रस्तता

कभी दयालुता , कभी निकृष्टता 


यही तो जिंदगी के रंग हैं सारे 

जिनमें हम रंग जाते हैं !!!!

कोई नहीं इनसे है अछूता 

सबके जीवन में असर ये दिखाते हैं 


वक्त का पहिया जैसा घूमे

वैसे हम चलते जाते हैं !!

कभी उठते कभी गिरते हैं हम 

इन रंगों में रँगते जाते हैं !!!


एक रंग अभिमान का भी है

पर इसमें रँगना ठीक नहीं !!

वक्त कभी ना एक सा रहता

इसलिए अकड़ना ठीक नहीं ।


मानवता का रंग सबसे चोखा

इस रंग में सराबोर जो होता

वही इहलोक-परलोक दोनों में

जीवन के रंगों का आनंद लेता !!

जीवन के रंगों का आनंद लेता!!


लेखिका/कवयित्री- 

✍️ प्रतिभा द्विवेदी मुस्कान ©

सागर मध्यप्रदेश 


10.


शीर्षक- आँखे 👁️👁️


आँखों में हज़ारों ही ख़्वाब बसते हैं

बहुत उलझे हुए से आँखों के रस्ते हैं.. 


आँख से ही ख़ूबसूरत से नज़ारे मिले 

आँख से ही नटखटी से इशारे मिले

जोड़ती हैं दिलों को ये आँखे हमारी

आँखे से ही देख कुछ अपने हमारे मिले..

नैना ही अपनो को देखने को तरसते है 

आँखों में हज़ारों ही ख़्वाब बसते हैं.. 


अंगुलियों पर नचाती हैं आँखे किसी को

कभी देख शर्माती हैं ये आँखे किसी को

दस्ताने शुरू हो मोहब्बत की आँखों से ही 

रात भर जगती और जगाती किसी को..

आँखों में ही इश्क़ के सुहाने चित्र सजते है

आँखों में हज़ारों ही ख़्वाब बसते हैं.. 


आँखें इश्क में दिल की जुबानी कहे

इशारों में ये कितनी ही कहानी कहे

बेचैन बेताब रहती ये यार के दीदार बिन

भावनाओं को ये पागल दिवानी कहे..

आँखों में मोहब्बत की नई दुनिया बसती है 

आँखों में हज़ारों ही ख़्वाब बसते हैं.. 


आँखों की नजाकत सभी लगती शराबी

मन की करती शैतानियाँ जैसे हो नवाबी

नाज़ुक बहुत ये, इनमें आकर्षण का हुनर 

नूर आँखों का लगता है जैसे आफताबी..

आँखे पलकों की ख़ूबसूरती से सजती हैं

आँखों में हज़ारों ही ख़्वाब बसते हैं.. 


आँखों के नशे के कितने ही दीवाने हुए

डूब झील सी आँखों में जग से बेगाने हुए

दौर गुज़र गया सदियों पहले ही इश्क़ का 

पर न भूले वो आँखें प्यारी हम ज़माने हुए..

रात सोता तन पर आँखे मन संग जगती हैं 

आँखों में हज़ारों ही ख़्वाब बसते हैं.. 


आँखें ख़ुशी ग़म दोनों में साथ देती

अश्रुओं से परे सुकूं का हाथ देती

आँखों से ही उतरे चित में चितेश्वर 

सौभाग्यशाली दरस में नाथ देती..

आँखे रंगीं खूबसूरती का महत्व बताती हैं

आँखों में हज़ारों ही ख़्वाब बसते हैं.. 


✍️ अनामिका वैश्य आईना

लखनऊ

11.


* बाल श्रम *


आओ मिलकर हम सब

सुंदर भारत का निर्माण करें....


किसी बच्चे का दामन

न छूटे अपने बचपन से

रोंदे न कोई उसके सपनों को

बाल श्रम के घन से

कोई छीने न इनसे इनका भोलापन

फिर न कोई छोटू मज़बूर हो 

 दुकान पर दिन रात 

काम करता दिखे....

कड़कड़ाती ठंड में 

काँपते हाथों से लोगों को 

चाय बाँटता मिले ....


...ऐसी ही कहानी 

लक्ष्मी की भी होगी

गुड्डों से खेलने की उम्र में

दूसरों के यहाँ

झाड़ू- पोंछा करना होता होगा

दिल उसका भी पसीजता होगा..

ज़रा ज़रा सी बात पर

रोज़ मार वह खाती होगी....


..चन्दू की भी यही कहानी होगी

पढ़ने लिखने की बजाए

सड़कों पे पेन, किताब बेचता फिरेगा

यक़ीनन मन उसका भी करता होगा

वह भी कागज़ पर कुछ अपनी 

मन की लिखे....

....पर भूखा ज़िस्म लिखना भूल 

काम पर फिर लग जाता होगा।


आओ सब संकल्प करें

अब संकल्प करें

मिटायें देश से बाल श्रम को

थामकर इनका हाथ

इनका सहारा हम बनें...


देश में ऐसा माहौल बनाऐं

बचपन हो खुशहाल

शिक्षा पर सबका अधिकार


ऐसे प्यारे भारत का ध्यान करें 

आओ मिलकर हम सब

सुंदर भारत का निर्माण करें....

  

       

 ✍️  सपना  " "नम्रता"

           दिल्ली


12.


एक तो जनता भूखी है दूजी बेरोजगारी है

उस पर भी निर्दोषों का दमन सीधा गद्दारी है


दमन चक्रों का प्रतिफल क़भी विकास नहीं होता

सीधी साधी जनता का इस तरह उद्धार नहीं होता


मजहबी दंगों से जब जब समाज जलाया जाता है

तब तब आरोप अपनों पर ही लगाया जाता है


इतनी सी समझदारी बस अबके  दिखा देना

कातिलों के बदले निर्दोषों को सजा मत देना।


✍️  पी के सैनी

राजस्थानी


13.


आरोप प्रत्यारोप


मैं कौन? तुम कौन?

ये शासन और प्रशासन कौन?

हम या हममें से कौन?

आखिर इन तैरती लाशों का

मानवता पर तमाचे का

जिम्मेदार कौन?


सब बताते किसकी ज़िम्मेदारी?

पर अपनी ज़िम्मेदारी लेगा कौन?

मानव कहलाने वाला कौन?

इसका जवाब देगा कौन?


दूसरों से सवाल हुआ बहुत

अब खुद से जवाब मांगेगा कौन?


✍️ मनोरंजन कुमार श्रीवास्तव

संपादक विविधा सृजन संगम 

मासिक ई पत्रिका एवम् पुस्तक श्रृंखला

तथा संस्थापक मनोहर साहित्यिक

 क्रिएशंस प्रकाशन,

लखनऊ, उत्तर प्रदेश

8787233718


14.


*(जीवन सन्देश)* गौतम बुद्ध ने एक बार अपने शिष्यों से कहा था, 'तुम वीणा के तारों को इतना न कसो कि वे टूट जाएं और न ही इतना ढीला छोड़ो कि उनसे स्वर न निकले'। कहने का आशय यह है कि हमें हमेशा भावनात्मक रूप से संतुलित एवं विवेकशील होना चाहिए। 


अपनी भावनाओं को संतुलित कर पाना कोई आसान काम नहीं है, लेकिन ऐसा कर पाने में हम सक्षम हुए, तो लगभग आधी समस्याओं से छुटकारा मिल जाता है, क्योंकि इंसान अपनी भावनाओं को नियंत्रित करना सीख लेता है तो वह स्वत: भावनात्मक परिपक्वता अर्थात समझदारी की ओर बढ़ने लगता है और सही निर्णय लेने में सक्षम होता है। 


यदि हम शांतिपूर्वक अकेले बैठे हों तब तटस्थ हो कर दूसरों की नजर से स्वयं का आत्मविश्लेषण करें, तो हम अपनी भावनाओं को अच्छी तरह समझने में सक्षम हो सकते हैं। इससे अपने मनोभावों को नियंत्रित और संतुलित करना हमारे लिए सहज होगा।


साथ ही प्रेरक विचार/लेख पढ़ें, सकारात्मक दृष्टिकोण एवं अनुशासित जीवनशैली अपनाएं तो भावनाओं को एक सीमा तक संतुलित कर सकते हैं और दुःख-संताप-क्रोध-ईर्ष्या-द्वेष जैसी भावनाओं से काफी हद तक ऊपर उठ सकते हैं।


✍🏻 * सत्यम सिंह बघेल *

       * लखनऊ (उ.प्र.) *

15.


✍🏻 मेरी कलम गद्दार लिखेगी ✍🏻


करनी थी आपदा से लड़ाई

करने लगे है आपदा में कमाई,


ऐसे गद्दारों को ग़द्दार ही लिखूंगा

बार-बार ही सही हर बार लिखूंगा,


इस आपदा को वो अवसर समझ बैठा

कोरोना मरीजों को मजबूर समझ बैठा,


मरीजों में लहू की लहर जमने लगी है

जमते लहू के थप्पों से "जाने" जाने लगी है,


बच्चें-बुढ्ढे और जवान सब अपनी जान गवाने लगे है

ऐसे में ये काली कमाई करने वाले अपनी जेबें भरने लगे है,


फल से लेकर दवाइयां और बेड से लेकर ऑक्सीजन

यहां तक कि मंहगें दामों में बिक रहे है आज इंजेक्शन,


लगता है ऐसे की मानो लहू से चुपड़ी चपातियां

और

ये रुपया-पैसा नहीं जैसे नोंच खा रहे है बोटियां,


करने वाले काला-बाजारियों का जिस्म-ज़मीर जैसे मर गया है

धिक्कार है ऐसे गद्दारो को जो मद्दत की जगह लुटेरों है,


मैं और मेरी कलम तुम पर  "थू" लिखेगी

एक बार नहीं हजार बार गद्दार लिखेगी,


ये मत समझो गद्दारो हिसाब तो तुम्हें भी देना पड़ेगा

यहां नहीं तो उसको एक दिन हिसाब तो देना पड़ेगा !!


✍🏻 चेतन दास वैष्णव

गामड़ी नारायण

बाँसवाड़ा , राजस्थान


  16.              

             

"" मैं चाहता हूं ""


मैं चाहता हूं कि 


वसुंधरा पर रहें सदा


एकता और भाईचारा


बहती रहें इस धरा पर 


प्रेम


उल्लास


सद्भभावना 


शांति उमंग की


अविरल धारा


होगा हमारे जीवन में


खुशियों संग


अनेक तरह का 


उजियारा।।


✍️ मनोज बाथरे चीचली 

जिला नरसिंहपुर मध्य प्रदेश


17.


मैंने भी 

सितारों से दोस्ती कर ली है

उन्मुक्त आकाश में

तन्हां तन्हां अपनों की तलाश में

अतीत की यादें भुलाने

पुराने दोस्तों से हाथ मिलाने

 मैंने भी

सितारों से दोस्ती कर ली है...

छोड़ दिया 

अब सपनों का पीछा करना

अपनों से दूर रहकर

आंखें नम करना

अब न हैं वो उलाहनें

न शिकायतें न दूरी

ना ही कोई वितृष्णा या मजबूरी...

छुपी छूपाई के खेल में जहां

जो छुप गए न जाने कहां

मुझे पूछना है.....

उन आधे अधूरे सपनों का क्या...

जो  टूट गये

उन रिश्तों का क्या..

जो निभाने से पहले 

ही छूट गये...

तुम हवा में घूल गये हो

या मिट्टी में मिल गये हो

चले गए हो कहीं

इस किनारे से उस किनारों तक

आकाश या पाताल से दूर

या चले गये हो सितारों तक...

देखना मैं तुम्हें ढूंढ ही लूंगा......


✍️ पुष्प कुमार महाराज ,

 गोरखपुर

18.


रवि कई दिनों से 

लुकाछिपी खेल रहे थे

 कभी छुपे पर्वत पीछे 

,कभी तरूवर पिछे


बरखा रानी भी कम नहीं थी , 

ढूंढती रही खोजती रही

बस सब जगह बूंदों से 

बरखा रानी भिगोती रही


कि रवि दिख जाएं  

पर नहीं दिखे , कहने लगे

ठंडी हवा चल रही है, 

मैं नहीं आऊंगा बहार


बरखा भी कम न थी , 

मेंघ से लड़ पड़ी  मेघों को

भी धक्का दिया 

वे बेचारे डर गये,


छोड़ रवि दादा को 

बरखा संग चले गए

तभी स्वर्णिम प्रकाश हुआ , 

सुप्रभात सवेरा हुआ


बरखा कि बूंदें मेरे पास 

आई , झरोखे से झांककर

कह उठी देखो अर्चना 

मैंनै रवि को 

खोज लिया    


अब तुम भी जाग जाओ 

सुप्रभात की बेला में

सुप्रभात कह जाओ , 

रवि दादा भी हंस पड़ें


प्रभात की बेला में 

मुस्कुरा कर सुप्रभात कह उठे

कहने लगे मान लिया अर्चना जी

आप ने हमें खोज लिया , 

चलो सुप्रभात कहा जाए


बहुत दिनों से चाय नहीं पी , 

चलो चाय हो जाए।


✍️ अर्चना जोशी

भोपाल मध्यप्रदेश


19.


अब जो बात चली है तो दूर तक जाएगी

वो आए, ना आए उनकी यादें जरूर आएगी

जब आएगा यादों के दौर का  सिलसिला

तो हिचकियाँ और सिसकियाँ भी साथ लाएगी

मान लेंगे, हिचकियों में याद किया उन्होंने हमें

और सिसकियों में...

उनके अनकहे अल्फ़ाज़ खुल हमसे कुछ कह जाएगी

अब जो बात चली है तो दूर तक जाऐगी

वो आए, ना आए उनकी याद जरूर आएगी


●●●

✍️ ज्योति झा

बेथुन कॉलेज, कोलकाता


20.


अपना स्वदेश


वह वक्त भी कितना अच्छा होगा

जब मंदिर में कुरान और

 मस्जिद में रामायण होगा

ना होगा हिंदू-मुस्लिम में कोई फासला

तब हर तरफ इंसान होगा।।


यह जाति धर्म मजहब 

नाम के रह जाएंगे

जब पूरी दुनिया अपना परिवार होंगे

ना होंगे कोई विवाद आपस में

तब घर घर में खुशियां हजार होंगे।।


तब होंगे हर घर में प्रेमचंद की ईदगाह

होंगे रसखान के कृष्ण

गाए जाएंगे गुणगान हर घर में

तो मिलेंगे हर घर में राम और रहीम ।।


ना कोई घृणा होगा 

ना होगा कोई द्वेष

पूरी जहां एक होगा

तब बनेगा अपना स्वदेश ।।


वह वक्त भी कितना अच्छा होगा

जब ये जहां अपना होगा

जब हर इंसान सच्चा होगा ।।


✍️ संजीत कुमार निगम

फारबिसगंज अररिया , बिहार

मोबाइल:  7070773306


21.


विषय :- रिश्तों में फूहड़ता ।।

विधा :- कविता


मेरे प्यारें पाठकों आज दें 

रहा हूँ एक बात बता  ,

कैसे हो रही है रिश्तों में फूहड़ता ।।


छोटी साली आधी घरवाली 

कहना हमारा संस्कार नहीं ,

माँ समान होती थी भाभी ,

पर अब मानव में 

वह तनिक विचार नहीं ।।


कोई लड़की भाई कहें तो हमें

उसका ख्य़ाल नहीं ,

पर कोई लड़की , प्रिय कह दें

तो उसके अलावा मेरा कोई संसार नहीं ।।


इस तरह हो रहीं हैं

 रिश्तों में फूहड़ता ।।

तब कैसे न लिखूँ

इस विषय पर एक 

कविता और कथा ।।


✍️ रोशन कुमार झा

सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज,कोलकाता

ग्राम :- झोंझी , मधुबनी , बिहार, 

मो :-6290640716, कविता :- 20(03)


🌅 साहित्य एक नज़र  🌅

Sahitya Eak Nazar

21 May , 2021 , Friday

Kolkata , India

সাহিত্য এক নজর

22.


😀🙏 विंडो फैन🙏😀


विंडो एसी की तरह विंडो फैन भी होता है। एसी लगवाने की सामर्थ्य जिनकी नहीं होती वे विंडो फैन से काम चला लेते हैं। यह बहुत छोटा, सस्ता और देखने में अत्यंत प्यारा होता है। एक दिन मेरी नज़र पड़ गई विंडो फैन पर तो मैं भी फैन हो गया विंडो फैन का। पैसे नहीं थे तो ख़रीद नहीं सका। पर मन में था कि एक दिन इसे खरीदूंगा ज़रूर। जैसे ही मासिक वेतन मिला सबसे पहले मैं उसी दुकान पहुंचा और सगर्व उसे खरीद लाया। रात में विंडो में लगाकर रख दिया तो सुबह तक मेरी हालत खस्ता हो गई। रात भर कांपता रहा मैं। अगले दिन मैंने दो कंबल निकालने का आग्रह गृहलक्ष्मी से जोर देकर किया। दरअसल जहां मैं रहता हूँ यहां नदी, पहाड़ और एसिया ( एशिया ) का सबसे बड़ा वनप्रदेश है। अब तो लोहे की असीमित खानों के खुल जाने के कारण वातावरण प्रदूषित हो गया है, नहीं तो कभी गर्मियों में यहां पसीना नहीं आता था। आज विकास के नाम पर विनाश की ओर अग्रसर हैं हम। विंडो फैन इतना शालीन और श्रमजीवी है कि बड़ी शांति से चलता है पर बाहर की सारी फ्रेस हवा अंदर ले आता है और स्वास्थ्य वर्धन का कार्य करता है। उसकी कर्मठता और उपयोगिता को देख गृहशोभा ने कहा कि एक और विंडो फैन ले आइए, अतिथि कक्ष के लिए। गृहशोभा की बात मुझे भी जंची। क्योंकि लॉकडाउन में हॉस्टल से बेटियों के घर आ जाने के कारण अब मेरा शयनकक्ष वहीं हो गया है। पर मेरे स्वास्थ्य और लॉकडाउन के कारण दूसरे विंडो फैन की अगवानी नहीं हो पा रही थी। मैंने दुकानदार को दसियों बार फोन करके उसका जीना हराम कर दिया। आख़िर में बड़े अहसान के साथ दुकानदार ने एक और विंडो फैन पहुंचा दिया। जैसे ही उसे चलाने की कोशिश की वह अड़ गया, नहीं चला। मैंने पुनः दुकानदार को परेशान करना शुरू कर दिया। दुकानदार अच्छा मिस्त्री भी है। उसके आते ही और छूते ही श्रीमान जी चल पड़े, जैसे किसी जादूगर ने छू लिया हो, बड़ा आश्चर्य हुआ। दुकानदार ने कहा सर, "इसे आप दो चार दिन चलाकर देख लीजिए पैसे उसके बाद ही देना।"


शाम को मैंने उसे विंडो पर सेट किया और चलाया तो फिर नहीं चला। अब तो बड़ा क्रोध आ रहा था उस पर। वहां से उठाकर दूसरे प्वाइंट पर लगाया तो थोड़ा हिला। दुकानदार ने कहा था कि दिक्कत करे तो ले आना, मैं हूँ न! पर मैं जोश में आ गया। उसे नीचे से खोलकर उसके लूज प्वाइंट टाइट किए और फिर चलाया तो चल पड़ा। इस विंडो फैन की इतनी स्पीड है कि रातभर में अपने सारे बोल्ट ढीले कर लिए और कुछ तो निकलकर गिर पड़े, उद्घोष ऐसा जैसे बज्रपात हो रहा हो। रातभर सोने नहीं दिया। मैनें जहां - जहां के बोल्ट निकल गए थे, वहां उसे तार से उसे बांध दिया। जब चालू किया जाता है तो वह बड़ी जोर से पहले हिलता है, फिर ऐसे भागता है जैसे उसके पीछे कोई कुत्ता पड़ा हो। बेचारे ने अपनी इस स्पीड के कारण अपना अस्ति-पंजर पूरा ढीला कर लिया। इतना कि जहां बेल्डिंग थी वह भी खुल गई। इसका निर्माता/असेंबलकर्ता/जनक कोई निकम्मा मिस्त्री रहा होगा। ऐसे लोग अपनी संतानों का निर्माण और परवरिश सही से नहीं करते। जबकि पहले वाला विंडो फैन एकदम सही है। उसका जनक मेहनती और लगनशील रहा होगा। ऐसे ही जब कोई मास्टर पढ़ाता नहीं तो अपनी कक्षा में पहुंचते ही अपने विद्यार्थियों को जोर से डांटता है और कुछ काम देकर या तो फरार हो जाता है या फिर अपने काम में मशगूल हो जाता है या मोबाइल में लग जाता है। ऐसे उदाहरण ही समाज में निष्ठावानों को भी बदनाम करते हैं और ऐसे लोग डींगे इतनी बड़ी- बड़ी हांकते हैं कि मेहनती लोगों की बोलती बंद हो जाती है। वे जो समाज में अच्छे मिस्त्री, अच्छे मास्टर, अच्छे पिता होते हैं वे ऐसे लोगों के कारण बदनाम होते हैं। समाज में उनकी छवि धूमिल होती है। मेरे स्कूल से २२ किमी दूर एक मास्टर ने दुर्व्यवहार किया तो हम लोग शर्म से पानी-पानी हो रहे थे। खैर, उसकी जहां से बेल्डिंग हट गई थी वहां भी मैंने उसे तार से बांध दिया। अब वह चल तो ठीक रहा है। पर मैं उसे देखकर अंदर ही अंदर इतना आह्लादित होता हूँ कि जितनी औकात नहीं उससे ज़्यादा सेवा दे रहा है। जब उसे बंद करता हूँ तो पूरा हिल जाता है और चालू करने पर भी कुछ यही हाल होता है। उसका साथी जिसे फर्राटा कहते हैं वह उसके सामने अब वैसा प्रतीत होता है जैसे कोई बुजुर्ग थक और शिथिल होकर अपने अस्तित्व के लिए जान हथेली पर रखकर नवयुवकों के साथ दौड़ लगाता है। जद्दोजोहद करके जीवनयापन कर रहा है।


संसार गरीबों और श्रमजीवियों के श्रम और निष्ठा से चलता है। दुनिया के जितने भी बड़े प्रतिष्ठान हैं वे किसी न किसी गरीब-लाचार श्रमजीवी महामानव के श्रम की गाथा हैं। एक - एक ईंट *राज* मिस्त्री जोड़ता है और मज़दूर कड़ी धूप में खून-पसीना एक करके ताजमहल खड़ा करते हैं। उसके बाद महान ऐसे मिस्त्रियों के हाथ कटवा वह ताजमहल अपनी मुमताज़ को गिफ्ट कर देते हैं। लोग ज़्यादातर इस फ़िराक़ में रहते हैं कि श्रमजीवियों का कैसे और क्या करके श्रेय अपने माथे मढ़ लें। वे सदैव *बुद्धिर्यस्य बलम्तस्य* को अपनी नीति बनाकर जीवन जीते हैं। सब ऐसे नहीं होते। बहुत से महान लोग ऐसे भी होते हैं कि जिन्हें देख श्रद्धा स्वत: जन्म लेती है। आधेय के विमोचन कार्यक्रम में राजस्थान के जो कुलपति महोदय आ० प्रधान साहब पधारे थे, उनका व्यक्तित्व पूरी दुनिया के महान व्यक्तियों को अपनाना चाहिए। इतने सरल, इतने विनीत और सहज कि विद्या उनमें शोभा पाती है, विद्या ददाति विनयम्।  आज *बुद्धिर्यस्य बलम्तस्य*  वालों के लिए बहुत बड़ा सबक महामारी ने दिया है कि श्रम करो, पसीना बहाओ, वरना रोगप्रतिरोधक क्षमता नहीं बचेगी। अतः अब *बुद्धिर्तस्यबलम्यस्य* सही और समसामयिक सूक्ति हो गई है। सतत साधना की शक्ति और निष्ठावानों की भक्ति और अनुकरण ईमानदारी से अब करना ही होगा। जो विश्व नमस्ते करने वालों पर हंसता था(मेरे बचपन के दोस्त भूपेंद्र की शादी में साली ने बड़ी गर्मजोशी से हाथ आगे करते हुए कहा- "हैलो जीज्जा जी" तो भूपेंद्र ने हाथ जोड़कर नमस्ते किया। बराती लोफड़ जो नागिन डांस पर खूब धूल और जमीन पर लोट- लोटकर नाचे थे, उन्होंने बड़ी तफरी ली। बोले "यार मुझे कोई ऐसे हैलो करता तो मैं तो गले ही लगा लेता)😀 आज न केवल नमस्ते कर रहा है अपितु हवन और प्राणायाम करके जान बचा रहा है। हल्दी, फिटकरी, दालचीनी आदि आयुर्वैदिक औषधियां आजकल हर घर में शोभा पा रही हैं।


विंडो फैन बनें, एसी का जमाना लद गया। श्रम ही जीवन की कथा रही। जो नहीं कही वह जाय कही। कहावत को चरितार्थ कीजिए। इसी में भलाई है।


✍️ राज वीर सिंह 'मंत्र'

साहित्य संगम संस्थान नई दिल्ली

     ( राष्ट्रीय अध्यक्ष )


23.

जय माँ सरस्वती


🌅 साहित्य एक नज़र 🌅

कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका

     


🏆 सम्मान - पत्र 🏆


प्र. पत्र . सं - _ _ 002 दिनांक -  _ _  21/05/2021


🏆 सम्मान - पत्र 🏆


आ.  _ _ _ डॉक्टर देवेंद्र  तोमर  _ _ _  जी


ने साहित्य एक नज़र , कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका अंक  _ _ 1 - 10 _ _ _ _ _ _  में अपनी रचनाओं से योगदान दिया है । आपको 


         🏆 🌅 साहित्य एक नज़र रत्न 🌅 🏆

सम्मान से सम्मानित किया जाता है । साहित्य एक नज़र आपके उज्ज्वल भविष्य की कामना करता है ।


रोशन कुमार झा   , मो :- 6290640716

आ. प्रमोद ठाकुर जी

अलंकरण कर्ता - रोशन कुमार झा


हिन्दू धर्म में सीता नवमी बहुत बड़ा महत्व रखतीं है। हिंदू धर्म में सीता नवमी का उतना ही महत्व है, जितना राम नवमी का है। चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को भगवान श्रीराम का जन्म हुआ था, तो पवित्र नारी , मिथिला पुत्री व माता सीता वैशाख शुक्ल नवमी को प्रकट हुई थी । वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को सीता नवमी या जानकी नवमी कहा जाता है।  पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इसी तिथि को पुष्य नक्षत्र में मिथिला के महाराजा जनक यज्ञ की भूमि तैयार करने हेतु हल से जमीन जोत रहें थे, तभी भूमि से कन्या प्रकट हुई, जिनका नाम सीता रखा गया। 


जन्म ली रहीं आज ही के दिन मिथिला पुत्री सीता ,

मिलें आदर्श पति श्रीराम , कहलाएं मिथिला के राजा जनक पिता ।।


सीता नवमी आज गुरुवार 20 मई एवं 21 मई 2021 शुक्रवार दो दिन मनाई जा रही है इस वर्ष ।



साहित्य एक नज़र , अंक - 11

( कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका )


https://online.fliphtml5.com/axiwx/qlzb/


 🌅 साहित्य एक नज़र  🌅

Sahitya Eak Nazar

21 May , 2021 , Friday

Kolkata , India

সাহিত্য এক নজর


अंक - 11

21 मई 2021

   शुक्रवार

वैशाख शुक्ल 9 संवत 2078

पृष्ठ -  1

प्रमाण पत्र -  10

कुल पृष्ठ -  11


1.


साहित्य संगम संस्थान साक्षात्कार संगम मंच पर एक मुलाक़ात उमा मिश्रा और ज्योति सिन्हा के बीच ।


साहित्य एक नज़र 🌅 , शुक्रवार , 21 मई 2021


साहित्य संगम संस्थान नई दिल्ली के साक्षात्कार संगम मंच पर शुक्रवार 21 मई 2021 को दोपहर बारह बजे मंच संचालक व सांस्कृतिक प्रचार सचिव नारी मंच के  आ. उमा मिश्रा प्रीति जी और साक्षात्कार सदस्य व साहित्य संगम संस्थान बिहार इकाई के अध्यक्षा आदरणीया ज्योति सिन्हा के बीच एक मुलाक़ात के दौरान परिचर्चा हुई । महागुरुदेव डॉ. राकेश सक्सेना जी (अध्यक्ष उत्तर प्रदेश इकाई) । राष्ट्रीय अध्यक्ष महोदय आ. राजवीर सिंह मंत्र जी , कार्यकारी अध्यक्ष आ. कुमार रोहित रोज़ जी , सह अध्यक्ष आ. मिथलेश सिंह मिलिंद जी, संयोजिका आ. संगीता मिश्रा जी ,  पश्चिम बंगाल इकाई अध्यक्षा आ. कलावती कर्वा जी ,  राष्ट्रीय सह मीडिया प्रभारी व पश्चिम बंगाल इकाई सचिव रोशन कुमार झा  ,आ. अर्चना जायसवाल जी , अलंकरण कर्ता आ. स्वाति जैसलमेरिया जी, आ. मनोज कुमार पुरोहित जी,आ. रजनी हरीश , आ. रंजना बिनानी जी, आ. सुनीता मुखर्जी , आ. मधु भूतड़ा 'अक्षरा' जी , आ. रीतु गुलाटी जी ,आ. भारत भूषण पाठक जी , आ. अर्चना तिवारी जी , संगम सवेरा के संपादक आ. नवल किशोर सिंह जी , वंदना नामदेव जी एवं समस्त सम्मानित पदाधिकारियों व साहित्यकारों उपस्थित होकर कार्यक्रम को सफल बनाएं ।।


2.


साहित्य संगम संस्थान के महासचिव आदरणीय. तरुण सक्षम जी को उनके अवतरण दिवस एवं आदरणीया दीप माला तिवारी जी को वैवाहिक वर्षगांठ पर समस्त साहित्य संगम संस्थान परिवार की ओर से हार्दिक शुभकामनाएं सह बधाई 🙏🏻🙏🏻🌹🎁💐🎉🍰🎈🎂🎂🎉🎂


3.

हिंददेश परिवार के पदाधिकारियों -

4.


मिथिला / मधुबनी पेंटिंग 


✍️ पूजा कुमारी


रामकृष्ण महाविद्यालय मधुबनी बिहार

राष्ट्रीय सेवा योजना


5.


* खेल *


काश, जिंदगी भी एक खेल  जैसी होती..

जब चाहते,  नए सिरे से सुरु होती..


काश होती बचपन की जिद जैसी, 

रोते ही मिल जाती, चीज मनचाही..


होती क्रिकेट या फुटबाल के खेल सी

अपने टीम में कौन , कौन नहीं बता देती,


या, होती जिंदगी लूडो के खेल सी, 

कौन आगे कौन पीछे,  

कौन करने वाला वार,

हर बार,हर बात  दिखला देती,


असली रंग हर किसिके ,

होली के रंगों सी बता देती...


काश जिंदगी भी खेल सी होती.. 

जब चाहे नए सिरे से सुरु होती.......


रचनाकार ✍️  सौ अल्पा कोटेचा,

जलगांव, महाराष्ट्र।


6.


* सौंदर्य बोध *


सौंदर्य के मापदंड  क्या हैं?

कोई जानता है क्या ? 

तन की धवलता या मन की धवलता ? 

क्या स्त्री है सौंदर्य की प्रतिमूर्ति,

यदि है गौरांगी?

तो क्या नहीं जीना चाहिए  

श्याम वर्णी स्त्रियों को?

जो बनाती हैं मजबूत हाथों से,

मकानों की दीवारें।

सिर पर रखकर टोकरियां ।

हाथों को धूल मिट्टी से सानकर 

बना देती हैं अट्टालिकाएं

विशाल रंगीली इमारतों के शीशों से,

झलकते सौंदर्य को गौर से देखना।

श्वेत श्याम की परिपाटी से मुक्त होकर

तभी होगा सच्चा सौंदर्य बोध।


✍️ रचनाकार

डॉ. दीप्ति गौड़ "दीप" 

शिक्षाविद् एवम् कवयित्री

ग्वालियर मध्यप्रदेश भारत 

सर्वांगीण दक्षता हेतू राष्ट्रपति भवन 

नई दिल्ली की ओर से भारत 

के भूतपूर्व राष्ट्रपति 

महामहिम स्व. डॉ. शंकर दयाल शर्मा 

स्मृति स्वर्ण पदक, विशिष्ट प्रतिभा सम्पन्न 

शिक्षक के रूप में राज्यपाल

 अवार्ड से सम्मानित


7.


नहीं सुनता  मेरी, मुझसे कहानी छीन लेता है

कतारों में लगाकर ये जवानी छीन लेता है

*

उसे बहता हुआ पानी कभी अच्छा नहीं लगता

बना कर बांध नदियों की रवानी छीन लेता है

*

कहां ढूंढे, तलाशें अब नदी के इन मुहानों पर

मरे बेमौत लोगों से निशानी छीन लेता है

*

नहीं खुद का कोई विरसा,यही तकलीफ है उसकी

सभी से इसलिए चीजें पुरानी छीन लेता है

*

बड़ी मुश्किल से होता है गुजारा आजकल अपना

कमाई पाई पाई तो अडानी छीन लेता है

*

तुझे दिखता नहीं है, या कि तू देखा नहीं करता

हमारे रंग सारे आसमानी छीन लेता है

*


✍️  राकेश अचल


8.


******** दादी माँ का प्यार *******

******************************


 भुलाए नहीं  भूलता दादी माँ का प्यार,

नसीबों से है मिलता दादी माँ का प्यार।


याद आती रहती परियों की कहानियाँ,

पास बस रह गई अम्मा की निशानियाँ,

बहती नैनों में अश्रुधारा,दादी का प्यार।

नसीबों से है मिलता दादी माँ का प्यार।


गोदी में सुलाती थी गा गा कर लोरियाँ,

माथे पर कभी भी  देखी नहीं त्योरियाँ,

पल आएंगे न दुबारा दादी माँ का प्यार।

नसीबों से है मिलता दादी माँ का प्यार।


चुपके से देती  खाने को मीठी गोलियाँ,

शरारत  करने  पर मिलती थी गालियाँ,

खट्टा  मीठा  नजारा दादी माँ का प्यार।

नसीबो से हैं मिलता दादी माँ का प्यार।


साहूकार को जैसे मूल से प्यारा ब्याज,

दादी का था हमारे राग से बजता साज,

राग मल्हार था जैसा दादी माँ का प्यार।

नसीबों से है मिलता दादी माँ का प्यार।


मनसीरत को दिल से लाड़ था लड़ाया,

दिन में ना जाने  कितनी बार नहलाया,

दुलार से  पुचकारा  दादी माँ का प्यार।

नसीबों से है मिलता दादी माँ का प्यार।


भुलाए नही भूलता  दादी माँ का प्यार।

नसीबों से है मिलता दादी माँ का प्यार।

******************************

✍️ सुखविंद्र सिंह मनसीरत 

खेड़ी राओ वाली (कैथल)


9.


* जिंदगी के रंग *


जीवन में हालातों के उलटफेर से

जो उतार-चढ़ाव जीवन में आते हैं

यही उतार-चढ़ाव जीवन के,,,,

जिंदगी के रंग कहलाते हैं !!!


कभी जीवन में रंग रलियाँ होती हैं

कभी मातम के बादल छाते हैं !!!

कभी महफ़िल में गुजरतीं हैं शामें

कभी तन्हाई से घबराते हैं !!!!


कभी गुस्से में लाल हो जाते हैं

कभी करुणा सब पर बरसाते हैं

कभी डर से पीले पड़ जाते हैं

कभी दबंग रूप दिखाते हैं!!!


कभी स्वार्थ के वश अंधे होकर

अपनों को धोखा दे जाते हैं !!!

कभी छद्म वेश धारण करके 

मुँह काला भी कर जाते हैं !!!!


अपराध बोध से ग्रसित हो फिर

मन ही मन पछताते हैं!!!

और मारे शर्म के सारी दुनियाँ से

चेहरा भी अपना छुपाते हैं !!!!


शर्मो-हया ईर्ष्या-द्वेश घृणा, कृपणता

हर्षोल्लास ,मातम , प्रेम , चपलता

कभी हेकड़ी , कभी भय ग्रस्तता

कभी दयालुता , कभी निकृष्टता 


यही तो जिंदगी के रंग हैं सारे 

जिनमें हम रंग जाते हैं !!!!

कोई नहीं इनसे है अछूता 

सबके जीवन में असर ये दिखाते हैं 


वक्त का पहिया जैसा घूमे

वैसे हम चलते जाते हैं !!

कभी उठते कभी गिरते हैं हम 

इन रंगों में रँगते जाते हैं !!!


एक रंग अभिमान का भी है

पर इसमें रँगना ठीक नहीं !!

वक्त कभी ना एक सा रहता

इसलिए अकड़ना ठीक नहीं ।


मानवता का रंग सबसे चोखा

इस रंग में सराबोर जो होता

वही इहलोक-परलोक दोनों में

जीवन के रंगों का आनंद लेता !!

जीवन के रंगों का आनंद लेता!!


लेखिका/कवयित्री- 

✍️ प्रतिभा द्विवेदी मुस्कान ©

सागर मध्यप्रदेश 


10.


शीर्षक- आँखे 👁️👁️


आँखों में हज़ारों ही ख़्वाब बसते हैं

बहुत उलझे हुए से आँखों के रस्ते हैं.. 


आँख से ही ख़ूबसूरत से नज़ारे मिले 

आँख से ही नटखटी से इशारे मिले

जोड़ती हैं दिलों को ये आँखे हमारी

आँखे से ही देख कुछ अपने हमारे मिले..

नैना ही अपनो को देखने को तरसते है 

आँखों में हज़ारों ही ख़्वाब बसते हैं.. 


अंगुलियों पर नचाती हैं आँखे किसी को

कभी देख शर्माती हैं ये आँखे किसी को

दस्ताने शुरू हो मोहब्बत की आँखों से ही 

रात भर जगती और जगाती किसी को..

आँखों में ही इश्क़ के सुहाने चित्र सजते है

आँखों में हज़ारों ही ख़्वाब बसते हैं.. 


आँखें इश्क में दिल की जुबानी कहे

इशारों में ये कितनी ही कहानी कहे

बेचैन बेताब रहती ये यार के दीदार बिन

भावनाओं को ये पागल दिवानी कहे..

आँखों में मोहब्बत की नई दुनिया बसती है 

आँखों में हज़ारों ही ख़्वाब बसते हैं.. 


आँखों की नजाकत सभी लगती शराबी

मन की करती शैतानियाँ जैसे हो नवाबी

नाज़ुक बहुत ये, इनमें आकर्षण का हुनर 

नूर आँखों का लगता है जैसे आफताबी..

आँखे पलकों की ख़ूबसूरती से सजती हैं

आँखों में हज़ारों ही ख़्वाब बसते हैं.. 


आँखों के नशे के कितने ही दीवाने हुए

डूब झील सी आँखों में जग से बेगाने हुए

दौर गुज़र गया सदियों पहले ही इश्क़ का 

पर न भूले वो आँखें प्यारी हम ज़माने हुए..

रात सोता तन पर आँखे मन संग जगती हैं 

आँखों में हज़ारों ही ख़्वाब बसते हैं.. 


आँखें ख़ुशी ग़म दोनों में साथ देती

अश्रुओं से परे सुकूं का हाथ देती

आँखों से ही उतरे चित में चितेश्वर 

सौभाग्यशाली दरस में नाथ देती..

आँखे रंगीं खूबसूरती का महत्व बताती हैं

आँखों में हज़ारों ही ख़्वाब बसते हैं.. 


✍️ अनामिका वैश्य आईना

लखनऊ

11.


* बाल श्रम *


आओ मिलकर हम सब

सुंदर भारत का निर्माण करें....


किसी बच्चे का दामन

न छूटे अपने बचपन से

रोंदे न कोई उसके सपनों को

बाल श्रम के घन से

कोई छीने न इनसे इनका भोलापन

फिर न कोई छोटू मज़बूर हो 

 दुकान पर दिन रात 

काम करता दिखे....

कड़कड़ाती ठंड में 

काँपते हाथों से लोगों को 

चाय बाँटता मिले ....


...ऐसी ही कहानी 

लक्ष्मी की भी होगी

गुड्डों से खेलने की उम्र में

दूसरों के यहाँ

झाड़ू- पोंछा करना होता होगा

दिल उसका भी पसीजता होगा..

ज़रा ज़रा सी बात पर

रोज़ मार वह खाती होगी....


..चन्दू की भी यही कहानी होगी

पढ़ने लिखने की बजाए

सड़कों पे पेन, किताब बेचता फिरेगा

यक़ीनन मन उसका भी करता होगा

वह भी कागज़ पर कुछ अपनी 

मन की लिखे....

....पर भूखा ज़िस्म लिखना भूल 

काम पर फिर लग जाता होगा।


आओ सब संकल्प करें

अब संकल्प करें

मिटायें देश से बाल श्रम को

थामकर इनका हाथ

इनका सहारा हम बनें...


देश में ऐसा माहौल बनाऐं

बचपन हो खुशहाल

शिक्षा पर सबका अधिकार


ऐसे प्यारे भारत का ध्यान करें 

आओ मिलकर हम सब

सुंदर भारत का निर्माण करें....

  

       

 ✍️  सपना  " "नम्रता"

           दिल्ली


12.


एक तो जनता भूखी है दूजी बेरोजगारी है

उस पर भी निर्दोषों का दमन सीधा गद्दारी है


दमन चक्रों का प्रतिफल क़भी विकास नहीं होता

सीधी साधी जनता का इस तरह उद्धार नहीं होता


मजहबी दंगों से जब जब समाज जलाया जाता है

तब तब आरोप अपनों पर ही लगाया जाता है


इतनी सी समझदारी बस अबके  दिखा देना

कातिलों के बदले निर्दोषों को सजा मत देना।


✍️  पी के सैनी

राजस्थानी


13.


आरोप प्रत्यारोप


मैं कौन? तुम कौन?

ये शासन और प्रशासन कौन?

हम या हममें से कौन?

आखिर इन तैरती लाशों का

मानवता पर तमाचे का

जिम्मेदार कौन?


सब बताते किसकी ज़िम्मेदारी?

पर अपनी ज़िम्मेदारी लेगा कौन?

मानव कहलाने वाला कौन?

इसका जवाब देगा कौन?


दूसरों से सवाल हुआ बहुत

अब खुद से जवाब मांगेगा कौन?


✍️ मनोरंजन कुमार श्रीवास्तव

संपादक विविधा सृजन संगम 

मासिक ई पत्रिका एवम् पुस्तक श्रृंखला

तथा संस्थापक मनोहर साहित्यिक

 क्रिएशंस प्रकाशन,

लखनऊ, उत्तर प्रदेश

8787233718


14.


*(जीवन सन्देश)* गौतम बुद्ध ने एक बार अपने शिष्यों से कहा था, 'तुम वीणा के तारों को इतना न कसो कि वे टूट जाएं और न ही इतना ढीला छोड़ो कि उनसे स्वर न निकले'। कहने का आशय यह है कि हमें हमेशा भावनात्मक रूप से संतुलित एवं विवेकशील होना चाहिए। 


अपनी भावनाओं को संतुलित कर पाना कोई आसान काम नहीं है, लेकिन ऐसा कर पाने में हम सक्षम हुए, तो लगभग आधी समस्याओं से छुटकारा मिल जाता है, क्योंकि इंसान अपनी भावनाओं को नियंत्रित करना सीख लेता है तो वह स्वत: भावनात्मक परिपक्वता अर्थात समझदारी की ओर बढ़ने लगता है और सही निर्णय लेने में सक्षम होता है। 


यदि हम शांतिपूर्वक अकेले बैठे हों तब तटस्थ हो कर दूसरों की नजर से स्वयं का आत्मविश्लेषण करें, तो हम अपनी भावनाओं को अच्छी तरह समझने में सक्षम हो सकते हैं। इससे अपने मनोभावों को नियंत्रित और संतुलित करना हमारे लिए सहज होगा।


साथ ही प्रेरक विचार/लेख पढ़ें, सकारात्मक दृष्टिकोण एवं अनुशासित जीवनशैली अपनाएं तो भावनाओं को एक सीमा तक संतुलित कर सकते हैं और दुःख-संताप-क्रोध-ईर्ष्या-द्वेष जैसी भावनाओं से काफी हद तक ऊपर उठ सकते हैं।


✍🏻 * सत्यम सिंह बघेल *

       * लखनऊ (उ.प्र.) *

15.


✍🏻 मेरी कलम गद्दार लिखेगी ✍🏻


करनी थी आपदा से लड़ाई

करने लगे है आपदा में कमाई,


ऐसे गद्दारों को ग़द्दार ही लिखूंगा

बार-बार ही सही हर बार लिखूंगा,


इस आपदा को वो अवसर समझ बैठा

कोरोना मरीजों को मजबूर समझ बैठा,


मरीजों में लहू की लहर जमने लगी है

जमते लहू के थप्पों से "जाने" जाने लगी है,


बच्चें-बुढ्ढे और जवान सब अपनी जान गवाने लगे है

ऐसे में ये काली कमाई करने वाले अपनी जेबें भरने लगे है,


फल से लेकर दवाइयां और बेड से लेकर ऑक्सीजन

यहां तक कि मंहगें दामों में बिक रहे है आज इंजेक्शन,


लगता है ऐसे की मानो लहू से चुपड़ी चपातियां

और

ये रुपया-पैसा नहीं जैसे नोंच खा रहे है बोटियां,


करने वाले काला-बाजारियों का जिस्म-ज़मीर जैसे मर गया है

धिक्कार है ऐसे गद्दारो को जो मद्दत की जगह लुटेरों है,


मैं और मेरी कलम तुम पर  "थू" लिखेगी

एक बार नहीं हजार बार गद्दार लिखेगी,


ये मत समझो गद्दारो हिसाब तो तुम्हें भी देना पड़ेगा

यहां नहीं तो उसको एक दिन हिसाब तो देना पड़ेगा !!


✍🏻 चेतन दास वैष्णव

गामड़ी नारायण

बाँसवाड़ा , राजस्थान


  16.              

             

"" मैं चाहता हूं ""


मैं चाहता हूं कि 


वसुंधरा पर रहें सदा


एकता और भाईचारा


बहती रहें इस धरा पर 


प्रेम


उल्लास


सद्भभावना 


शांति उमंग की


अविरल धारा


होगा हमारे जीवन में


खुशियों संग


अनेक तरह का 


उजियारा।।


✍️ मनोज बाथरे चीचली 

जिला नरसिंहपुर मध्य प्रदेश


17.


मैंने भी 

सितारों से दोस्ती कर ली है

उन्मुक्त आकाश में

तन्हां तन्हां अपनों की तलाश में

अतीत की यादें भुलाने

पुराने दोस्तों से हाथ मिलाने

 मैंने भी

सितारों से दोस्ती कर ली है...

छोड़ दिया 

अब सपनों का पीछा करना

अपनों से दूर रहकर

आंखें नम करना

अब न हैं वो उलाहनें

न शिकायतें न दूरी

ना ही कोई वितृष्णा या मजबूरी...

छुपी छूपाई के खेल में जहां

जो छुप गए न जाने कहां

मुझे पूछना है.....

उन आधे अधूरे सपनों का क्या...

जो  टूट गये

उन रिश्तों का क्या..

जो निभाने से पहले 

ही छूट गये...

तुम हवा में घूल गये हो

या मिट्टी में मिल गये हो

चले गए हो कहीं

इस किनारे से उस किनारों तक

आकाश या पाताल से दूर

या चले गये हो सितारों तक...

देखना मैं तुम्हें ढूंढ ही लूंगा......


✍️ पुष्प कुमार महाराज ,

 गोरखपुर

18.


रवि कई दिनों से 

लुकाछिपी खेल रहे थे

 कभी छुपे पर्वत पीछे 

,कभी तरूवर पिछे


बरखा रानी भी कम नहीं थी , 

ढूंढती रही खोजती रही

बस सब जगह बूंदों से 

बरखा रानी भिगोती रही


कि रवि दिख जाएं  

पर नहीं दिखे , कहने लगे

ठंडी हवा चल रही है, 

मैं नहीं आऊंगा बहार


बरखा भी कम न थी , 

मेंघ से लड़ पड़ी  मेघों को

भी धक्का दिया 

वे बेचारे डर गये,


छोड़ रवि दादा को 

बरखा संग चले गए

तभी स्वर्णिम प्रकाश हुआ , 

सुप्रभात सवेरा हुआ


बरखा कि बूंदें मेरे पास 

आई , झरोखे से झांककर

कह उठी देखो अर्चना 

मैंनै रवि को 

खोज लिया    


अब तुम भी जाग जाओ 

सुप्रभात की बेला में

सुप्रभात कह जाओ , 

रवि दादा भी हंस पड़ें


प्रभात की बेला में 

मुस्कुरा कर सुप्रभात कह उठे

कहने लगे मान लिया अर्चना जी

आप ने हमें खोज लिया , 

चलो सुप्रभात कहा जाए


बहुत दिनों से चाय नहीं पी , 

चलो चाय हो जाए।


✍️ अर्चना जोशी

भोपाल मध्यप्रदेश


19.


अब जो बात चली है तो दूर तक जाएगी

वो आए, ना आए उनकी यादें जरूर आएगी

जब आएगा यादों के दौर का  सिलसिला

तो हिचकियाँ और सिसकियाँ भी साथ लाएगी

मान लेंगे, हिचकियों में याद किया उन्होंने हमें

और सिसकियों में...

उनके अनकहे अल्फ़ाज़ खुल हमसे कुछ कह जाएगी

अब जो बात चली है तो दूर तक जाऐगी

वो आए, ना आए उनकी याद जरूर आएगी


●●●

✍️ ज्योति झा

बेथुन कॉलेज, कोलकाता


20.


अपना स्वदेश


वह वक्त भी कितना अच्छा होगा

जब मंदिर में कुरान और

 मस्जिद में रामायण होगा

ना होगा हिंदू-मुस्लिम में कोई फासला

तब हर तरफ इंसान होगा।।


यह जाति धर्म मजहब 

नाम के रह जाएंगे

जब पूरी दुनिया अपना परिवार होंगे

ना होंगे कोई विवाद आपस में

तब घर घर में खुशियां हजार होंगे।।


तब होंगे हर घर में प्रेमचंद की ईदगाह

होंगे रसखान के कृष्ण

गाए जाएंगे गुणगान हर घर में

तो मिलेंगे हर घर में राम और रहीम ।।


ना कोई घृणा होगा 

ना होगा कोई द्वेष

पूरी जहां एक होगा

तब बनेगा अपना स्वदेश ।।


वह वक्त भी कितना अच्छा होगा

जब ये जहां अपना होगा

जब हर इंसान सच्चा होगा ।।


✍️ संजीत कुमार निगम

फारबिसगंज अररिया , बिहार

मोबाइल:  7070773306


21.


विषय :- रिश्तों में फूहड़ता ।।

विधा :- कविता


मेरे प्यारें पाठकों आज दें 

रहा हूँ एक बात बता  ,

कैसे हो रही है रिश्तों में फूहड़ता ।।


छोटी साली आधी घरवाली 

कहना हमारा संस्कार नहीं ,

माँ समान होती थी भाभी ,

पर अब मानव में 

वह तनिक विचार नहीं ।।


कोई लड़की भाई कहें तो हमें

उसका ख्य़ाल नहीं ,

पर कोई लड़की , प्रिय कह दें

तो उसके अलावा मेरा कोई संसार नहीं ।।


इस तरह हो रहीं हैं

 रिश्तों में फूहड़ता ।।

तब कैसे न लिखूँ

इस विषय पर एक 

कविता और कथा ।।


✍️ रोशन कुमार झा

सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज,कोलकाता

ग्राम :- झोंझी , मधुबनी , बिहार, 

मो :-6290640716, कविता :- 20(03)


🌅 साहित्य एक नज़र  🌅

Sahitya Eak Nazar

21 May , 2021 , Friday

Kolkata , India

সাহিত্য এক নজর

22.


😀🙏 विंडो फैन🙏😀


विंडो एसी की तरह विंडो फैन भी होता है। एसी लगवाने की सामर्थ्य जिनकी नहीं होती वे विंडो फैन से काम चला लेते हैं। यह बहुत छोटा, सस्ता और देखने में अत्यंत प्यारा होता है। एक दिन मेरी नज़र पड़ गई विंडो फैन पर तो मैं भी फैन हो गया विंडो फैन का। पैसे नहीं थे तो ख़रीद नहीं सका। पर मन में था कि एक दिन इसे खरीदूंगा ज़रूर। जैसे ही मासिक वेतन मिला सबसे पहले मैं उसी दुकान पहुंचा और सगर्व उसे खरीद लाया। रात में विंडो में लगाकर रख दिया तो सुबह तक मेरी हालत खस्ता हो गई। रात भर कांपता रहा मैं। अगले दिन मैंने दो कंबल निकालने का आग्रह गृहलक्ष्मी से जोर देकर किया। दरअसल जहां मैं रहता हूँ यहां नदी, पहाड़ और एसिया ( एशिया ) का सबसे बड़ा वनप्रदेश है। अब तो लोहे की असीमित खानों के खुल जाने के कारण वातावरण प्रदूषित हो गया है, नहीं तो कभी गर्मियों में यहां पसीना नहीं आता था। आज विकास के नाम पर विनाश की ओर अग्रसर हैं हम। विंडो फैन इतना शालीन और श्रमजीवी है कि बड़ी शांति से चलता है पर बाहर की सारी फ्रेस हवा अंदर ले आता है और स्वास्थ्य वर्धन का कार्य करता है। उसकी कर्मठता और उपयोगिता को देख गृहशोभा ने कहा कि एक और विंडो फैन ले आइए, अतिथि कक्ष के लिए। गृहशोभा की बात मुझे भी जंची। क्योंकि लॉकडाउन में हॉस्टल से बेटियों के घर आ जाने के कारण अब मेरा शयनकक्ष वहीं हो गया है। पर मेरे स्वास्थ्य और लॉकडाउन के कारण दूसरे विंडो फैन की अगवानी नहीं हो पा रही थी। मैंने दुकानदार को दसियों बार फोन करके उसका जीना हराम कर दिया। आख़िर में बड़े अहसान के साथ दुकानदार ने एक और विंडो फैन पहुंचा दिया। जैसे ही उसे चलाने की कोशिश की वह अड़ गया, नहीं चला। मैंने पुनः दुकानदार को परेशान करना शुरू कर दिया। दुकानदार अच्छा मिस्त्री भी है। उसके आते ही और छूते ही श्रीमान जी चल पड़े, जैसे किसी जादूगर ने छू लिया हो, बड़ा आश्चर्य हुआ। दुकानदार ने कहा सर, "इसे आप दो चार दिन चलाकर देख लीजिए पैसे उसके बाद ही देना।"


शाम को मैंने उसे विंडो पर सेट किया और चलाया तो फिर नहीं चला। अब तो बड़ा क्रोध आ रहा था उस पर। वहां से उठाकर दूसरे प्वाइंट पर लगाया तो थोड़ा हिला। दुकानदार ने कहा था कि दिक्कत करे तो ले आना, मैं हूँ न! पर मैं जोश में आ गया। उसे नीचे से खोलकर उसके लूज प्वाइंट टाइट किए और फिर चलाया तो चल पड़ा। इस विंडो फैन की इतनी स्पीड है कि रातभर में अपने सारे बोल्ट ढीले कर लिए और कुछ तो निकलकर गिर पड़े, उद्घोष ऐसा जैसे बज्रपात हो रहा हो। रातभर सोने नहीं दिया। मैनें जहां - जहां के बोल्ट निकल गए थे, वहां उसे तार से उसे बांध दिया। जब चालू किया जाता है तो वह बड़ी जोर से पहले हिलता है, फिर ऐसे भागता है जैसे उसके पीछे कोई कुत्ता पड़ा हो। बेचारे ने अपनी इस स्पीड के कारण अपना अस्ति-पंजर पूरा ढीला कर लिया। इतना कि जहां बेल्डिंग थी वह भी खुल गई। इसका निर्माता/असेंबलकर्ता/जनक कोई निकम्मा मिस्त्री रहा होगा। ऐसे लोग अपनी संतानों का निर्माण और परवरिश सही से नहीं करते। जबकि पहले वाला विंडो फैन एकदम सही है। उसका जनक मेहनती और लगनशील रहा होगा। ऐसे ही जब कोई मास्टर पढ़ाता नहीं तो अपनी कक्षा में पहुंचते ही अपने विद्यार्थियों को जोर से डांटता है और कुछ काम देकर या तो फरार हो जाता है या फिर अपने काम में मशगूल हो जाता है या मोबाइल में लग जाता है। ऐसे उदाहरण ही समाज में निष्ठावानों को भी बदनाम करते हैं और ऐसे लोग डींगे इतनी बड़ी- बड़ी हांकते हैं कि मेहनती लोगों की बोलती बंद हो जाती है। वे जो समाज में अच्छे मिस्त्री, अच्छे मास्टर, अच्छे पिता होते हैं वे ऐसे लोगों के कारण बदनाम होते हैं। समाज में उनकी छवि धूमिल होती है। मेरे स्कूल से २२ किमी दूर एक मास्टर ने दुर्व्यवहार किया तो हम लोग शर्म से पानी-पानी हो रहे थे। खैर, उसकी जहां से बेल्डिंग हट गई थी वहां भी मैंने उसे तार से बांध दिया। अब वह चल तो ठीक रहा है। पर मैं उसे देखकर अंदर ही अंदर इतना आह्लादित होता हूँ कि जितनी औकात नहीं उससे ज़्यादा सेवा दे रहा है। जब उसे बंद करता हूँ तो पूरा हिल जाता है और चालू करने पर भी कुछ यही हाल होता है। उसका साथी जिसे फर्राटा कहते हैं वह उसके सामने अब वैसा प्रतीत होता है जैसे कोई बुजुर्ग थक और शिथिल होकर अपने अस्तित्व के लिए जान हथेली पर रखकर नवयुवकों के साथ दौड़ लगाता है। जद्दोजोहद करके जीवनयापन कर रहा है।


संसार गरीबों और श्रमजीवियों के श्रम और निष्ठा से चलता है। दुनिया के जितने भी बड़े प्रतिष्ठान हैं वे किसी न किसी गरीब-लाचार श्रमजीवी महामानव के श्रम की गाथा हैं। एक - एक ईंट *राज* मिस्त्री जोड़ता है और मज़दूर कड़ी धूप में खून-पसीना एक करके ताजमहल खड़ा करते हैं। उसके बाद महान ऐसे मिस्त्रियों के हाथ कटवा वह ताजमहल अपनी मुमताज़ को गिफ्ट कर देते हैं। लोग ज़्यादातर इस फ़िराक़ में रहते हैं कि श्रमजीवियों का कैसे और क्या करके श्रेय अपने माथे मढ़ लें। वे सदैव *बुद्धिर्यस्य बलम्तस्य* को अपनी नीति बनाकर जीवन जीते हैं। सब ऐसे नहीं होते। बहुत से महान लोग ऐसे भी होते हैं कि जिन्हें देख श्रद्धा स्वत: जन्म लेती है। आधेय के विमोचन कार्यक्रम में राजस्थान के जो कुलपति महोदय आ० प्रधान साहब पधारे थे, उनका व्यक्तित्व पूरी दुनिया के महान व्यक्तियों को अपनाना चाहिए। इतने सरल, इतने विनीत और सहज कि विद्या उनमें शोभा पाती है, विद्या ददाति विनयम्।  आज *बुद्धिर्यस्य बलम्तस्य*  वालों के लिए बहुत बड़ा सबक महामारी ने दिया है कि श्रम करो, पसीना बहाओ, वरना रोगप्रतिरोधक क्षमता नहीं बचेगी। अतः अब *बुद्धिर्तस्यबलम्यस्य* सही और समसामयिक सूक्ति हो गई है। सतत साधना की शक्ति और निष्ठावानों की भक्ति और अनुकरण ईमानदारी से अब करना ही होगा। जो विश्व नमस्ते करने वालों पर हंसता था(मेरे बचपन के दोस्त भूपेंद्र की शादी में साली ने बड़ी गर्मजोशी से हाथ आगे करते हुए कहा- "हैलो जीज्जा जी" तो भूपेंद्र ने हाथ जोड़कर नमस्ते किया। बराती लोफड़ जो नागिन डांस पर खूब धूल और जमीन पर लोट- लोटकर नाचे थे, उन्होंने बड़ी तफरी ली। बोले "यार मुझे कोई ऐसे हैलो करता तो मैं तो गले ही लगा लेता)😀 आज न केवल नमस्ते कर रहा है अपितु हवन और प्राणायाम करके जान बचा रहा है। हल्दी, फिटकरी, दालचीनी आदि आयुर्वैदिक औषधियां आजकल हर घर में शोभा पा रही हैं।


विंडो फैन बनें, एसी का जमाना लद गया। श्रम ही जीवन की कथा रही। जो नहीं कही वह जाय कही। कहावत को चरितार्थ कीजिए। इसी में भलाई है।


✍️ राज वीर सिंह 'मंत्र'

साहित्य संगम संस्थान नई दिल्ली

     ( राष्ट्रीय अध्यक्ष )


23.

जय माँ सरस्वती


🌅 साहित्य एक नज़र 🌅

कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका

     


🏆 सम्मान - पत्र 🏆


प्र. पत्र . सं - _ _ 002 दिनांक -  _ _  21/05/2021


🏆 सम्मान - पत्र 🏆


आ.  _ _ _ डॉक्टर देवेंद्र  तोमर  _ _ _  जी


ने साहित्य एक नज़र , कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका अंक  _ _ 1 - 10 _ _ _ _ _ _  में अपनी रचनाओं से योगदान दिया है । आपको 


         🏆 🌅 साहित्य एक नज़र रत्न 🌅 🏆

सम्मान से सम्मानित किया जाता है । साहित्य एक नज़र आपके उज्ज्वल भविष्य की कामना करता है ।


रोशन कुमार झा   , मो :- 6290640716

आ. प्रमोद ठाकुर जी

अलंकरण कर्ता - रोशन कुमार झा


हिन्दू धर्म में सीता नवमी बहुत बड़ा महत्व रखतीं है। हिंदू धर्म में सीता नवमी का उतना ही महत्व है, जितना राम नवमी का है। चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को भगवान श्रीराम का जन्म हुआ था, तो पवित्र नारी , मिथिला पुत्री व माता सीता वैशाख शुक्ल नवमी को प्रकट हुई थी । वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को सीता नवमी या जानकी नवमी कहा जाता है।  पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इसी तिथि को पुष्य नक्षत्र में मिथिला के महाराजा जनक यज्ञ की भूमि तैयार करने हेतु हल से जमीन जोत रहें थे, तभी भूमि से कन्या प्रकट हुई, जिनका नाम सीता रखा गया। 


जन्म ली रहीं आज ही के दिन मिथिला पुत्री सीता ,

मिलें आदर्श पति श्रीराम , कहलाएं मिथिला के राजा जनक पिता ।।


सीता नवमी आज गुरुवार 20 मई एवं 21 मई 2021 शुक्रवार दो दिन मनाई जा रही है इस वर्ष ।

शीर्षककविता:-12(23)ह,विषय सामग्री:हिन्दी कविता:-12(23)

21-05-2019 मंगलवार 17:45

*®• रोशन कुमार झा

-: कर्म पर है परिणाम !:-


जीत-हारकर बढ़ाते अपना नाम,

होते सागरों बदनाम,

फिर करते अपना सारा काम,

और इंतज़ार में लगे रहते कि अब

आयेंगी परिणाम!


जीत नहीं तो मिलेंगी हार भरी घास,

और क्या होंगे निराश!

बढायेंगे आश

उसी को पायेंगे जो है ना अभी मेरे पास!


यानी सफलता

राह रोशन करता!

हार जीत से हम न डरता

गिर गये तो गिर गये

गिरकर सँभलकर उठकर मैं

फिर से चलता!


फिर गिरता

पर मैं ना हिलता!

क्योंकि सूर्य के प्रकाश में ही

कमल खिलता

और किसी और से नहीं हार से ही

सफलता मिलता!


कितने से आगे कितने से पीछे छूटता

छुटने के बाद फिर से उठता!

उठने के बाद सफलता लूटता

और क्या दुनिया से पूछता !


मेरी हार,

सिर्फ गँवाया एक साल

हारा हूँ फ़िलहाल,

हार-हार से हुआ है आविष्कार

वर्तमान में हारा हूँ पर बदल

सकता हूँ भविष्य काल!


*®• रोशन कुमार झा

सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज कोलकाता भारत

मो:-6290640716,(8420128328)

9433966389(कविता-12(23)

21-05-2019 मंगलवार 17:45

10 Result:-AK:-197,Sonu:-189

Bithu:-231,बंटी अंजली फेल

1st Dk,2 (2y)Rt:-3rd हम फिर मोनू

694-Topper(Pmkvy)

हिन्दी कविता:-12(22)

20-05-2019 सोमवार 13:45

*®• रोशन कुमार झा

-:यह जीवन यह है !:-


यह जीवन रेलगाड़ी है

सुख-दुख सारी है!

जिसे तन-मन से पाली है

सच में यह जीवन भारी है!


फिर भी चलाना है

जीवन के पार जाना है!

सुख दुख खाना है

अंधकार में रोशन करने को माना है!


होगी प्रकाश

यह जीवन है मालिक और दास!

जो है आपके पास

अपने आप को मानीयें कि हम भी है ख़ास!


और है हम रेल की पटरी

जाना है गली-गली!

आज फूल कल रहें कली

सुख-दुख से ही यह जीवन है भरी!


जो समाज में बसती है

जो दुख में भी हँसती है!

वही मानव की जीवन हीरा की बस्ती है

जीवन महँगी है कौन कहा

है कि सस्ती है !


जीवन रेलगाड़ी है

जो हम नर और नारी है!

एक-दूसरे पर नज़र डाली है

जीया हूँ जी रहा हूँ और जीने की चाँह

जारी है!


*®• रोशन कुमार झा

सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज कोलकाता भारत

मो:-6290640716,(8420128328)

9433966389(कविता-12(22)

20-05-2019 सोमवार 13:45

Roshan Kumar Jha(31st Bengal

Bn Ncc Fortwilliam Kolkata-B

Reg no-WB17SDA112047

Narasinha Dutt college St John

Ambulance(Pmkvy Liluah

Eastern Railway Scouts Howrah

सियालदह मुन्ना मिली मुनचुन राहुल भाई

घर में


साहित्य एक नज़र , अंक - 11
( कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका )

https://online.fliphtml5.com/axiwx/qlzb/

🌅 साहित्य एक नज़र  🌅
Sahitya Eak Nazar
21 May , 2021 , Friday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর

अंक - 11
21 मई 2021
   शुक्रवार
वैशाख शुक्ल 9 संवत 2078
पृष्ठ -  1
प्रमाण पत्र -  10
कुल पृष्ठ -  11

साहित्य एक नज़र , अंक - 10
( कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका )

https://online.fliphtml5.com/axiwx/kwzu/

https://fliphtml5.com/axiwx/kwzu


अंक - 10

जय माँ सरस्वती

🌅 साहित्य एक नज़र 🌅
कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका
    

🏆 सम्मान - पत्र 🏆

प्र. पत्र . सं - _ _ 001 दिनांक -  _ _  20/05/2021

🏆 सम्मान - पत्र 🏆

आ.  _ _ _  प्रमोद ठाकुर _ _ _  जी

ने साहित्य एक नज़र , कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका अंक  _ _ 1 - 10 _ _ _ _ _ _  में अपनी रचनाओं से योगदान दिया है । आपको

         🏆 🌅 साहित्य एक नज़र रत्न 🌅 🏆
सम्मान से सम्मानित किया जाता है । साहित्य एक नज़र आपके उज्ज्वल भविष्य की कामना करता है ।

रोशन कुमार झा   , मो :- 6290640716
अलंकरण कर्ता - रोशन कुमार झा

___________

साहित्य एक नज़र 🌅 , अंक - 13
( कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका )

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🌅 साहित्य एक नज़र  🌅
Sahitya Eak Nazar
23 May , 2021 , Sunday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর

अंक - 13
23 मई 2021
   रविवार
वैशाख , शुक्ल पक्ष , 12 , संवत 2078
पृष्ठ -  1
प्रमाण पत्र -  11
कुल पृष्ठ -  12

रचनाएं व साहित्य समाचार आमंत्रित -
साहित्य एक नज़र 🌅
अंक - 13
दिनांक :- 23/05/2021
दिवस :- रविवार
इसी पोस्ट में अपनी नाम के साथ एक रचना और फोटो प्रेषित करें ।

सादर निवेदन 🙏💐

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आपका अपना
✍️ रोशन कुमार झा

साहित्य एक नज़र 🌅 , अंक - 12
( कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका )
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दिनांक :- 22/05/2021 , शनिवार

कोलफील्ड मिरर आसनसोल व साहित्य एक नज़र में प्रकाशित
22/05/2021 , शनिवार
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiOVDTQDeS0MV3XyoZNi_A7GOYUr9mahelArSDDSHieciUs2Gp88Y_hr_MG5iRLezs8eNLuGY_CKt7kJgLwwMV-q3frfRGwXYQYjdQPp3XzGTybPmlIT98-NSufDXanwGVp3eA9u9hsP9M/s2048/CFM+HINDI+22.05.2021+8.jpg

साहित्य एक नज़र , अंक - 10

https://online.fliphtml5.com/axiwx/kwzu/
साहित्य संगम संस्थान नई दिल्ली द्वारा आयोजित दैनिक लेखन ने फिर रचा एक नई इतिहास -

साहित्य संगम संस्थान नई दिल्ली द्वारा दैनिक लेखन के अंतर्गत बुधवार 19 मई 2021 को जीवन विषय पर कविता लिखना रहा । जिसके विषय प्रदाता आ. संगीता मिश्रा जी व विषय प्रवर्तन कार्यकारी अध्यक्ष आ. कुमार रोहित रोज़ जी के करकमलों से किया गया ‌ । देशभर के सम्मानित साहित्यकारों ने भाग लिए रहें एवं एक दूसरे की रचनाएं पढ़कर सार्थक टिप्पणी करते हुए लगभग  1700  कॉमेंट्स आएं जो कि संस्थान के लिए एक बड़ी उपलब्धि है । इस उपलब्धि में महागुरुदेव डॉ. राकेश सक्सेना जी (अध्यक्ष उत्तर प्रदेश इकाई) । राष्ट्रीय अध्यक्ष महोदय आ. राजवीर सिंह मंत्र जी , कार्यकारी अध्यक्ष आ. कुमार रोहित रोज़ जी , सह अध्यक्ष आ. मिथलेश सिंह मिलिंद जी, संयोजिका आ. संगीता मिश्रा जी ,  पश्चिम बंगाल इकाई अध्यक्षा आ. कलावती कर्वा जी ,  राष्ट्रीय सह मीडिया प्रभारी व पश्चिम बंगाल इकाई सचिव रोशन कुमार झा  ,आ. अर्चना जायसवाल जी , अलंकरण कर्ता आ. स्वाति जैसलमेरिया जी, आ. मनोज कुमार पुरोहित जी,आ. रजनी हरीश , आ. रंजना बिनानी जी, आ. सुनीता मुखर्जी , आ. मधु भूतड़ा 'अक्षरा' जी , आ. रीतु गुलाटी जी ,आ. भारत भूषण पाठक जी ,  समस्त सम्मानित पदाधिकारियों व साहित्यकारों का हाथ हैं ।।

हिन्दी कविता:-12(24)
22-05-2019 बुधवार 20:38
*®• रोशन कुमार झा
-: आराम मिला पाकर !:-

दूर जाकर,
आराम मिला पाकर!
नमक रोटी खाकर,
मैं दुख में रहूँ पर दुनिया को रखूँ हँसाकर!

मीठा स्वर गाकर,
अंधकार से रोशन राह में आकर!
आराम मिला जाकर,
सबको हँसाया मैं बुलाकर!

वही बना दुश्मन,
जिस पर लूटाये तन और मन!
दुख में कोई नहीं सुख में आया
जन के जन,
सब मतलबी निकला कैसे रहूँ मैं प्रसन्न!

सबका किये पूर्ण इच्छा,
वही लोग लिया परीक्षा!
पर बदले नहीं अपनी दिशा,
मेरा क्या कुछ भी नहीं जो है
वह है मेरी शिक्षा!

खुश हूँ जिसे पाकर
दुख दर्द खाकर!
हासिल किया हूँ सफलता गाकर
जीया हूँ जी रहा हूँ और जीने की इच्छा
है कि लोगों को रखूँ हँसाकर!

*®• रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज कोलकाता भारत
मो:-6290640716,(8420128328)
9433966389(कविता:-12(24)
22-05-2019 बुधवार 20:38
गंगाराम कुमार झा झोंझी मधुबनी बिहार
सलकिया विक्रम विधालय
Roshan Kumar Jha(31St Bengal
Bn Ncc Fortwilliam Kolkata-B
Reg no:-WB17SDA112047
E.Rly.scouts
नया पंखा-1950(33|91 B.G.Road
लिलुआ ड्यूटी नेहा ड्यूटी Cosmic:-
टिकियापाड़ा रोबीन मोनू नशा पढ़ाये


साहित्य एक नज़र , अंक - 14
( कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका )
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Sahitya Eak Nazar
24 May , 2021 , Monday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর

अंक - 14
24 मई 2021
   सोमवार
वैशाख शुक्ल 13 संवत 2078
पृष्ठ -  1
प्रमाण पत्र - 14 ( आ. संजीत कुमार निगम जी )
कुल पृष्ठ - 15
अंक - 14

साहित्य एक नज़र , अंक - 15

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अंक - 14
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साहित्य एक नज़र 🌅
अंक - 14
दिनांक :- 24/05/2021 , सुबह 11 बजे तक
दिवस :- सोमवार
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✍️ रोशन कुमार झा
अंक - 14

साहित्य एक नज़र 🌅 , अंक - 13
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साहित्य एक नज़र 🌅 , अंक - 13
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Sahitya Eak Nazar
23 May , 2021 , Sunday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর

अंक - 13
23 मई 2021
   रविवार
वैशाख , शुक्ल पक्ष , 12 , संवत 2078
पृष्ठ -  1
प्रमाण पत्र -  11
कुल पृष्ठ -  12

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साहित्य एक नज़र 🌅
अंक - 13
दिनांक :- 23/05/2021
दिवस :- रविवार
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कोलफील्ड मिरर आसनसोल व साहित्य एक नज़र में प्रकाशित
23/05/2021 , रविवार
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साहित्य एक नज़र

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साहित्य संगम संस्थान साक्षात्कार संगम मंच पर एक मुलाक़ात हुई आ. उमा मिश्रा जी और आ. ज्योति सिन्हा जी के बीच ।

साहित्य संगम संस्थान नई दिल्ली के साक्षात्कार संगम मंच पर शुक्रवार 21 मई 2021 को दोपहर बारह बजे मंच संचालक व सांस्कृतिक प्रचार सचिव नारी मंच के  आ. उमा मिश्रा प्रीति जी और साक्षात्कार सदस्य व साहित्य संगम संस्थान बिहार इकाई के अध्यक्षा आदरणीया ज्योति सिन्हा के बीच एक मुलाक़ात के दौरान परिचर्चा हुई । महागुरुदेव डॉ. राकेश सक्सेना जी (अध्यक्ष उत्तर प्रदेश इकाई) । राष्ट्रीय अध्यक्ष महोदय आ. राजवीर सिंह मंत्र जी , कार्यकारी अध्यक्ष आ. कुमार रोहित रोज़ जी , सह अध्यक्ष आ. मिथलेश सिंह मिलिंद जी, संयोजिका आ. संगीता मिश्रा जी ,  पश्चिम बंगाल इकाई अध्यक्षा आ. कलावती कर्वा जी ,  राष्ट्रीय सह मीडिया प्रभारी व पश्चिम बंगाल इकाई सचिव रोशन कुमार झा  ,आ. अर्चना जायसवाल जी , अलंकरण कर्ता आ. स्वाति जैसलमेरिया जी, आ. मनोज कुमार पुरोहित जी,आ. रजनी हरीश , आ. रंजना बिनानी जी, आ. सुनीता मुखर्जी , आ. मधु भूतड़ा 'अक्षरा' जी , आ. रीतु गुलाटी जी ,आ. भारत भूषण पाठक जी , आ. अर्चना तिवारी जी , संगम सवेरा के संपादक आ. नवल किशोर सिंह जी , वंदना नामदेव जी एवं समस्त सम्मानित पदाधिकारियों व साहित्यकारों उपस्थित होकर कार्यक्रम को सफल बनाएं ।।


कविता :- 20(05)

दिनांक :- 23/05/2021
दिवस :- रविवार
साहित्य एक नज़र 🌅 अंक - 13
शीर्षक :- तुम मेरी भीख हो ।

क्यों तुम मुझे
तुम से आप बनायी ,
प्यार की हमसे
पर अपने बच्चों का
किसी और को बाप बनाई ।।

लाख सपने दिखाई तोड़कर
गयी ख़्वाब ,
क्यों छोड़कर गयी
अभी तक दी न जवाब ।।

खुद पढ़ी हमसे अपने
सहेलियों को भी पढ़ाई ,
दूर गयी हमसे
मेरी याद तुम्हें
अभी तक न आई ।।

तो तुम अब ठीक हो ,
तुम जिसके नज़दीक हो ।।
उसका भी गुरु
पर तुम हमारे लिए भीख हो ,
मैं भिक्षुक नहीं
मैं दानी हूँ
मैं रोशन तुम्हें हारा हूँ
मेरे नाम का तुम्हारा
हर एक छींक हो ।।


✍️ रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज,कोलकाता
ग्राम :- झोंझी , मधुबनी , बिहार,
मो :-6290640716, कविता :- 20(05)
23/05/2021, रविवार
🌅 साहित्य एक नज़र  🌅
Sahitya Eak Nazar
23 May , 2021 , Sunday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর

अंक - 13
23 मई 2021
   रविवार
वैशाख , शुक्ल पक्ष , 12 , संवत 2078

कोलफील्ड मिरर व साहित्य एक नज़र में प्रकाशित -

दिनांक :- 22/05/2021
दिवस :- शनिवार

मैथिली , कविता

हम मिथिला पुत्र छी ,

गर्व अछि हमरा
कि हम छी मिथिला पुत्र ,
हमरा में शक्ति
अछि बहुत ।।
तहन हम मिथिलावासी
छी मजबूत ,
स्वर्ग सऽ सुन्दर अछि
अप्पन मिथिलांचल
रहन सहन अछि अद्‌भुत ।।

हम गंगाराम कहैत छि
हम मिथिला के छी संतान ।
माथ पर पाग अछि
इ तऽ अछि अप्पन पहचान ,
राह हेत रोशन , कर्म करूँ
हम इंसान ।
बार - बार हम जन्म ली
मिथिला में
और मिथिलांचल हुएअ
हमर जन्मस्थान ।।

✍️ गंगाराम कुमार झा
मधुबनी , बिहार
" चल गये छोड़कर पर्यावरण प्रेमी आदरणीय
सुंदरलाल बहुगुणा जी ,

" क्या हैं जंगल के उपकार, मिट्टी, पानी और बयार। मिट्टी, पानी और बयार, जिन्दा रहने के आधार। "

इनके इन बातों को सूना जी

तब हम सब पर्यावरण का रखें ख़्याल ,
आज कल और ये है भविष्य की सवाल ।। "

✍️ रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज,कोलकाता
ग्राम :- झोंझी , मधुबनी , बिहार,
मो :-6290640716,
22/05/2021, शनिवार , कविता - 20(04)

कविता :- 17(70) , बुधवार , 30/09/2020

भाषा :- बंगाली , कविता :-
ভাষা :- বাংলা , কবিতা

शीर्षक :- तुम मेरे पास आओ
শিরোনাম :- তুমি আসো
আমার কাছে ।

তুমি আমার কাছে আসো ,
এই রকম আমি ভালোবাসি ,
সে রকমই তুমিও
আমাকে ভালোবাসো ।
তুমি নিজের একা খাবার খাছো ,
ডাকলাম আমি তোমাকে
আর তুমি আমাকে ছেড়ে
কোথায় জাচ্ছে ।।

তোমার জন্য আমি রোশন
ঘুমিয়ে পারি না
জেখানে তুই ডাকলী,
আমি গেলাম ,
কিন্তু ওইতো তোর বাড়ি না ।।
আমি তোমাকে ভালোবাসি ,
তুমিও আমাকে ভালোবাসো
অতটুকু তাড়াতাড়ি না ।
আসো তুমি , আপনি
আমাকে নিজের
চোখে দিয়ে এখুন পর্যন্ত
দেখতে পাড়ি না ।।

এখূন ন তুই একটূ পরে আসবি ,
জানী আমি তারপরো
তুই আমাকে ভালোবাসবী ।।

      ✍️•••  রোশন কুমার ঝা
      

ঠিকানা :- লিলুয়া , হাওড়া , কোলকাতা , পশ্চিমবঙ্গ :-  ৭১১২০৪
पता :- लिलुआ , हावड़ा , कोलकाता ,
पश्चिम बंगाल :- 711204
মোবাইল নাম্বার :- ৬২৯০৬৪০৭১৬
मो :- 6290640716
तुमी आसो आमार काचे ।
तुमी आमार काचे आसो ,
ऐ रोकोम आमि भालो भासी ,
सेई रोकोम तूमीयो  आमाके भालो भासौ ।
तूमी निजे एका खाबर खाचो ,
डाखलम आमी तोमाके
आर तूमी आमाके छेड़े कोथाई जाछो ।।

तोमार जनों आमि रोशन घूमिए पारी न ,
जेखाने तूई डाकरी आमी गेलाम
किंतु ओई ता तोर बाड़ी न ,
आमि तोमाके भालो भासी
तूमीयो आमाके भालोभासो ओतुक तालातारी न ।
आसो तूमी , आपनी आमाके निजेर छोखे दिए ऐखून पर्यन्तो
देखते पाड़ी न ।।

ऐखून न तूई एकतू पोले आसबी ,
जानि आमि तालफोरे तूई आमाके भालोभासबी ।।

________________________
हिन्दी अनुवाद कविता -

शीर्षक :- तुम मेरे पास आओ

तुम मेरे पास आओ ,
जिस प्रकार मैं प्यार करता हूँ ,
उसी प्रकार तुम भी हमको प्यार करो ।।
तुम खुद अकेले ही खाना खाती हो ,
बुलाएं हम ,और तुम हमको छोड़कर कहां जाती हो ।।

तुम्हारे लिए हम रोशन सो न पाएं ,
जहां तुम बुलायी , हम गये किंतु वह तुम्हारा घर नहीं रहा ।
हम तुमसे प्यार करते हैं, तुम भी करो उतना हड़बड़ी नहीं है ,
आओ तुम , आप हमको अपने आंखों से अभी तक देख नहीं पाएं हैं ।

अभी नहीं , कुछ देर बाद आओगी ,
मैं जानता हूं , उसके बाद तुम भी प्यार करोगी ।।

✍️       रोशन कुमार झा
कविता :- 17(41) , बंगाली ,
दिनांक :- 01/09/2020 , दिवस :- मंगलवार
-----------------
दिनांक :- 23/05/2021
दिवस :- रविवार
साहित्य एक नज़र 🌅 अंक - 13
शीर्षक :- तुम मेरी भीख हो ।
___________________
हिन्दी कविता:-12(25)
23-05-2019 वृहस्पतिवार 18:48
*®• रोशन कुमार झा
-: लोकसभा के परिणाम !:-

छोड़-छाड़ के आये काम,
आज फिर चौदह की तरह गूँजे है मोदी
जी के नाम!
आ चुँका है लोकसभा के
उन्नीस के परिणाम,
अब कौन रोकेंगा लेने से हरि का नाम,
चलो कहते है भाई अब राम-राम!

रन्तिदेव सेनगुप्ता,हारे पर जीते है
केन्द्र में अपना उम्मीदवार,
क्या बिगाड़ेंगा दीदी आपकी
प्रसून भरी श्रृंगार!
बहुत जगह हारे है और बीत रही है
आपकी शासन की काल,
क्या मेरे भाषण पर आप करेंगे बवाल!

तो आये मैं तैयार हूँ,
आप वर्तमान तो मैं भविष्य काल हूँ!
आपकी नीति से बीमार हूँ,
अगल दीदी आप जड़ है तो मैं भी डाल हूँ!

हिला सकता हूँ,
गिरा सकता हूँ!
और क्या मिला सकता हूँ,
देखे ना बंगाल में खिलाये अब घर-घर
में कमल खिला सकता हूँ!

पता नहीं कहाँ गया हाथ
राह रोशन करने की है बात!
तो आये मेरे साथ
हम भारतीय एक है,जला दो ये
जात और पात!

*®• रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज कोलकाता भारत
मो:-6290640716,(8420128328)
9433966389(कविता-12(25)
23-05-2019 वृहस्पतिवार 18:48
31st Bengal Bn Ncc Fortwilliam
Kolkata-B
E.Rly,Scouts,St John Ambulance

नमन 🙏 :- हिन्दी काव्य कोश
तिथि :- 23-05-2020
दिन :- शनिवार
विषय :-  हार कहाँ हमने मानी है ।
विधा :- गीत

-: हार मानी नहीं । :-

राजा है और रानी है
हैं हम प्रजा की कहानी  ।
कुछ भी होते तो हमने कभी न हार मानी ,
कहो मिलकर कि हम हैं हिन्दुस्तानी ,ओ
हम है हिन्दुस्तानी ।।

प्यासे रहकर प्यासो को देते हैं हम पानी ,
सोचे न समझे न कि मेरी होगी कोई हानी ,
क्योंकि हम करते हैं मेहरबानी, हां ...
हम अभी हार नहीं है मानी ।।

यही एक से एक  बढ़कर हैं ज्ञानी ,
हम रोशन लिखें है गीत हैं माँ सरस्वती की वाणी....
तब लिखें जब की है मां मुझ पर मेहरबानी ,
कहो हम है हिन्दुस्तानी , हां हां हम है हिन्दुस्तानी ।।

बन रहें हैं और यही से बने हैं एक से एक विज्ञानी ,
लेते न देते हैं हम कहलाते हैं हम दानी ।
यही हैं हमारी मेहरबानी , हां हां हमने कभी न हार मानी ।
तब कहलाते हैं हम हिन्दुस्तानी , ओ हम... है हिन्दुस्तानी ।।
                                           
✍️ रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज , कोलकाता
मो :- 6290640716 कविता :-16(40)














  🌅 साहित्य एक नज़र  🌅
कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका
अंक - 378 , वर्ष - 1 , ज्येष्ठ कृष्ण 8 संवत 2079 , सोमवार , 23 मई 2022
मो - 6290640716                 पृष्ठ -                   संपादक - रोशन कुमार झा
https://online.fliphtml5.com/axiwx/wjlx/
https://youtu.be/H2URa3A42xk
https://youtu.be/LH81qclfrbg

https://youtu.be/YfgEFhh2yhY

https://online.fliphtml5.com/axiwx/kuhq/

अंक - 378
https://m.facebook.com/groups/287638899665560/permalink/523602612735853/?sfnsn=wiwspwa&ref=share

https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=935632943896172&id=100023484264613&sfnsn=wiwspwa

https://www.facebook.com/groups/1113114372535449/permalink/1356628221517395/


अंक - 377
https://www.facebook.com/groups/287638899665560/permalink/523269876102460/?sfnsn=wiwspwa&ref=share

https://youtu.be/iJ4tjwJCyFY
https://youtu.be/ZOScGhVgfh8
https://youtu.be/QkOpnMY_-m8

10 K
https://www.facebook.com/groups/287638899665560/permalink/336938744735575/?sfnsn=wiwspwa&ref=share
05/05/2022

https://m.facebook.com/groups/287638899665560/permalink/511977053898409/?sfnsn=wiwspmo&ref=share

अंक - 1
https://online.fliphtml5.com/axiwx/uxga

विश्व साहित्य संस्थान
https://online.fliphtml5.com/axiwx/vfjt/

अंक - 7
https://online.fliphtml5.com/axiwx/fwlk/#p=1

https://youtu.be/Y8D1KxT_bMM

अंक - 70
https://m.facebook.com/groups/287638899665560/permalink/330630155366434/?sfnsn=wiwspwa&ref=share

रोशन -05 मई 2022
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पहले
https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=880525869503488&id=100026382485434&sfnsn=wiwspwa

https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=844060913149984&id=100026382485434&sfnsn=wiwspwa

रोशन 2 -05 मई 2022

https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=555400492678235&id=100046248675018&sfnsn=wiwspwa

पहले
https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=434230741461878&id=100046248675018&sfnsn=wiwspwa

https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=401974648020821&id=100046248675018&sfnsn=wiwspwa



BIRLA OPEN MINDS INTERNATIONAL SCHOOL
Rosera , Samastipur , Bihar , India 🇮🇳
बिड़ला ओपेन माइंड्स इंटरनेशनल स्कूल
रोसड़ा , समस्तीपुर , बिहार , भारत 🇮🇳
कक्षा - 5 , हिन्दी

कविता - गर्मी छुट्टी आई है ।

गर्मी छुट्टी आई है ,
सबकी मन में खुशियाँ छाई है ।
शुभ हो गर्मी छुट्टी हमारा ।।
हम यूँ घर जायेंगे ,
छुट्टियां मनाएंगे ।
याद आयेगी बीताये
वक्त सारा ।।
ओ गर्मी की मिली है छुट्टी ,
करना है होमवर्क भरी ड्यूटी ।
गृहकार्य करके स्कूल हम आयेंगे ,
आकर , ओ पढ़ - लिखकर
हम भी बड़े हो जायेंगे ।
गर्मी छुट्टी आई है ,
सबकी मन में खुशियाँ छाई है ।
शुभ हो जीवन हमारा ।।

✍️ रोशन कुमार झा
विद्यासागर विश्‍वविद्यालय ,
पश्चिम बंगाल
एम.ए ( हिन्दी ) सेमेस्टर - 2 ,
ग्राम - झोंझी , मधुबनी , मिथिला
बिहार  , भारत 🇮🇳
बिरला ओपेन माइंड्स इंटरनेशनल स्कूल
रोसड़ा , समस्तीपुर , बिहार , भारत 🇮🇳
संपादक - साहित्य एक नज़र 🌅
23/05/2022 , सोमवार
कविता - 23(69)
✍️ Roshan kumar jha , রোশন কুমার ঝা
77/R Mirpara Road Liluah Howrah -
711204 , Aasirvad bhawan
51/9 kumar para Lane Liluah
🌅 साहित्य एक नज़र 🌅 
सागर रोशन , रोशन लहर
दैनिक साहित्य समाचार पत्रिका
विश्‍व साहित्य संस्थान
विश्‍व न्यूज़ ,
मधुबनी इकाई - साहित्य एक नज़र 🌅 -
মিথি LITERATURE , मिथि लिट्रेचर
  साहित्य एक नज़र  🌅
Sahitya Ek Nazar
23 May , 2021 , Monday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর

साहित्य एक नज़र , अंक - 14
https://online.fliphtml5.com/axiwx/eyqu/

साहित्य एक नज़र , अंक - 15

https://m.facebook.com/groups/287638899665560/permalink/295360868893363/?sfnsn=wiwspmo

अंक - 14
https://www.facebook.com/groups/287638899665560/permalink/294588365637280/?sfnsn=wiwspmo

साहित्य एक नज़र 🌅 , अंक - 13
https://online.fliphtml5.com/axiwx/ptrj/

https://m.facebook.com/groups/287638899665560/permalink/293982085697908/?sfnsn=wiwspmo

साहित्य एक नज़र 🌅 , अंक - 13

https://online.fliphtml5.com/axiwx/ptrj/


कोलफील्ड मिरर आसनसोल व साहित्य एक नज़र में प्रकाशित
23/05/2021 , रविवार
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiPxw1whPghq34Ywu8kKqrbATVvNFRkCSi17mr0z1dhEz4zjkwMkzAqzDYkTVpVbEUtMVmNclxPijhGOilfmiTQQgYVNJ9RJqEGigpGO3RSQ69JqZUkZna3Ghe0czaVcVMONf6lisCg3aU/s2048/CFM+HINDI+23.05.2021+8.jpg

साहित्य एक नज़र

https://online.fliphtml5.com/axiwx/qlzb/

http://roshanjha9997.blogspot.com/2022/05/372-17052022-2363.html

रोशन कुमार झा
BIRLA OPEN MINDS

___________

English Poem:-12(27)
Happy Brother's Day
*•र® Roshan Kumar Jha
24 th May 2019 Friday 20:45

-: Brother's Day :-

Oh very beautiful sun ray,
I understand brother's day,
Today.
I no say but the nature say.

So I happy all time grew up
My brother,
Peace house sister father
and mother.
Came by winning soldier,
and love each other,
Do not have go away to
My brother.

Enhanced Name,
Gain fame.
Then celebrate the day same,
Brother's Day is returned came.

*•र® Roshan Kumar Jha
Surendranath Evening College
Kolkata India
Part-2 Hindi Honours sec:-H4
Roll no:-9
Reg no:-117-1111-1018-17
Mob:-6290640716,(8420128328)
9433966389(Poem:-12(27)
24 th May 2019 Friday 20:45
31st Bengal Bn Ncc Fortwilliam
Kolkata-B
Reg no:-WB17SDA112047
IGNOU-BPP:-191081735
The Bharat scouts & Guides
Eastern Railway Howrah
Bamangachi(Pmkvy)
Narasinha Dutt college St John
Ambulance
Gangaram Kumar Jha Jhonjhee
Madhubani Bihar
Salkia Vikram Vidyalaya
(Nios Bithu praveen admission
Mob:-150)

साहित्य एक नज़र 🌅 अंक - 14
शीर्षक :- तुम मेरी भीख हो ।

क्यों तुम मुझे
तुम से आप बनायी ,
प्यार की हमसे
पर अपने बच्चों का
किसी और को बाप बनाई ।।

लाख सपने दिखाई तोड़कर
गयी ख़्वाब ,
क्यों छोड़कर गयी
अभी तक दी न जवाब ।।

खुद पढ़ी हमसे अपने
सहेलियों को भी पढ़ाई ,
दूर गयी हमसे
मेरी याद तुम्हें
अभी तक न आई ।।

तो तुम अब ठीक हो ,
तुम जिसके नज़दीक हो ।।
उसका भी गुरु
पर तुम हमारे लिए भीख हो ,
मैं भिक्षुक नहीं
मैं दानी हूँ
मैं रोशन तुम्हें हारा हूँ
मेरे नाम का तुम्हारा
हर एक छींक हो ।।


✍️ रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज,कोलकाता
ग्राम :- झोंझी , मधुबनी , बिहार,
मो :- 6290640716, कविता :- 20(05)
24/05/2021, सोमवार

🌅 साहित्य एक नज़र  🌅
Sahitya Eak Nazar
24 May , 2021 , Monday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর

कविता :- 20(06)

नमन 🙏 :- साहित्य संगम संस्थान पश्चिम बंगाल इकाई
दिनांक :- 24/05/2021 से 26/05/2021
दिवस :- मंगलवार से वृहस्पतिवार
विषय :- कविता
विधा :- कविता
विषय प्रदाता :- आ. मनोज कुमार पुरोहित जी
विषय प्रवर्तक :- आ. रोशन कुमार झा

माँ सरस्वती साहित्य संगम संस्थान पश्चिम बंगाल इकाई को नमन 🙏 करते हुए आप सभी सम्मानित साहित्यकारों को सादर प्रणाम । आज की विषय और विधा बहुत ही शानदार है , विषय प्रदाता आ. मनोज कुमार पुरोहित जी को धन्यवाद सह सादर आभार , एवं समस्त पदाधिकारियों को भी धन्यवाद जिन्होंने आज हमें विषय प्रवर्तन करने का मौक़ा  दिए हैं ।

विधा भी कविता ,
विषय भी कविता ।
लिखेंगे हम कविता ,
शब्द पड़े हैं मीठा - मीठा ।।

एक फ़िल्म बनाने में लाखों की ख़र्चा होती है और हम उस फिल्म को देखकर कुछ देर तक मनोरंजन कर लेते है फिर उस फिल्म उस फिल्म के पात्र को भूल जाते है । पर पता है आपको ? एक कविता आपके ज़िन्दग़ी को बदल सकती है , तो क्यों न मिलकर हम सभी साहित्यकार ऐसी कविता का निर्माण करें जो पाठकों को लाभदायक हो । कविता छंद के साथ भी और बिना छंद के भी लिखें जाते है ।

" अर्जुन को अर्जुन बनने में
मिला हुआ सब देवताओं का गुण था ,
पर कर्ण को कर्ण बनने में सिर्फ़
कर्ण का ही जुनून था ।।
माता कुंती गंगा में बहा दी
उन्हीं का वह कर्ण सून ( बेटा )  था ,
भाई - भाई में लड़ा दिए श्रीकृष्ण
एक ही माँ का तो खून था ।। "

कविता क्या है ?
अपने अंदर की भावनाओं / भाव अपने शब्दों में व्यक्त करना ही तो कविता है ।

कोई भी कहानी, लेख , निबंध बड़ी होती है तो उसे हम  कविता के माध्यम से छोटी कर सकते है, अंधा युग प्रसिद्ध साहित्यकार आ. धर्मवीर भारती जी द्वारा रचित एक काव्य नाटक है। इसका कथानक महाभारत के अठारहवें दिन से लेकर श्रीकृष्ण की मृत्यु तक के क्षण तक का वर्णन है। यदि हम इसे कहानी के माध्यम से जाने तो विस्तार से जानना होगा और कविता के माध्यम से हम कुछ ही पंक्तियों में समझ सकते है ।।

अतः आप सभी सम्मानित साहित्यकार आमंत्रित है , अपनी मन की भावनाओं को कविता के माध्यम से
24/05/2021 से 26/05/2021 मंगलवार से वृहस्पतिवार तक प्रेषित कीजिए । एवं अन्य रचनाकारों के रचना को पढ़कर सटीक टिप्पणी करके रचनाकारों को प्रोत्साहित कीजिए ।।

जय हिन्द , जय हिन्दी
धन्यवाद सह सादर आभार 🙏💐

आपका अपना
रोशन कुमार झा

#साहित्य संगम संस्थान पश्चिम बंगाल इकाई

नव कार्यक्रम करते हुए साहित्य संगम संस्थान हरियाणा इकाई रचा एक इतिहास -

साहित्य एक नज़र 🌅 , रविवार , 23 मई 2021

साहित्य संगम संस्थान हरियाणा इकाई 21 मई 2021 , शुक्रवार को माँ विषय पर कविता , गीत , ग़ज़ल विधा में सृजन करने के लिए साहित्यकारों को आमंत्रित किए । जैसा कि आपको विदित है कि नवरात्र में हमने अपना यूट्यूब चैनल आरंभ किया था और सर्वश्रेष्ठ वीडियोस यूट्यूब चैनल पर अपलोड की थी ।उसी श्रृंखला को आगे बढ़ाते हुए आज माँ विषय पर आपकी वीडियोस आमंत्रित हैं। मातृ दिवस पर हम सबने आलेख लिखकर माँ की महिमा पर अपना सृजन किया। आज माँ विषय  पर ही आप वीडियोस प्रेषित करेंगे। माँ को परिभाषित करना मुश्किल ही नहीं असंभव है -लेकिन फिर भी माँ की सहजता सरलता ममता की पराकाष्ठा माँ जन्नत है ,दुनिया है ,जन्नत है ,तक़दीर है ,ख़ुशी है ,सांत्वना है ,शान्ति है ,भावना है ,दुनिया का हर सुखमय शब्द है।
यह सर्वविदित है माँ सा कोई नहीं हो सकता ।माँ के समान कोई छाया नहीं ,कोई सहारा नहीं ,कोई रक्षक नहीं ,कोई प्रिय नहीं ,माँ कभी पलायन नहीं करती केवल जीवन सँवारती है। आईए माँ विषय पर सृजन  कर वीडियोस बनाएँ व यूट्यूब पर अपलोड करवाएँ ।
इस कार्यक्रम में मुख्य आयोजक अध्यक्ष हरियाणा इकाई आदरणीय विनोद वर्मा दुर्गेश जी आयोजक डॉ दवीना  अमर ठकराल जी , अलंकरण प्रमुख डॉ अनीता राजपाल जी डॉ दवीना अमर ठकराल जी महागुरुदेव डॉ. राकेश सक्सेना जी (अध्यक्ष उत्तर प्रदेश इकाई) । राष्ट्रीय अध्यक्ष महोदय आ. राजवीर सिंह मंत्र जी , कार्यकारी अध्यक्ष आ. कुमार रोहित रोज़ जी , सह अध्यक्ष आ. मिथलेश सिंह मिलिंद जी, संयोजिका आ. संगीता मिश्रा जी ,  पश्चिम बंगाल इकाई अध्यक्षा आ. कलावती कर्वा जी ,  राष्ट्रीय सह मीडिया प्रभारी व पश्चिम बंगाल इकाई सचिव रोशन कुमार झा  ,आ. अर्चना जायसवाल जी , अलंकरण कर्ता आ. स्वाति जैसलमेरिया जी, आ. मनोज कुमार पुरोहित जी,आ. रजनी हरीश , आ. रंजना बिनानी जी, आ. सुनीता मुखर्जी , आ. मधु भूतड़ा 'अक्षरा' जी , आ. रीतु गुलाटी जी ,आ. भारत भूषण पाठक जी ,  समस्त सम्मानित पदाधिकारियों व साहित्यकारों के सहयोग से एक दूसरे की रचनाएं को वीडियो के माध्यम से सुनकर सार्थक टिप्पणी करते हुए लगभग  1000  कॉमेंट्स आएं जो कि संस्थान के लिए एक बड़ी उपलब्धि है ।

हरियाणा इकाई

पानागढ़ की कवियत्री नेहा भगत "साहित्य एक नज़र रत्न " सम्मान से सम्मानित हुई -

साहित्य एक नज़र 🌅 , रविवार , 23 मई 2021

22 मई 2021 , शनिवार को  " साहित्य एक नज़र रत्न " सम्मान से बंगाल भूमि के पानागढ़ की कवियत्री नेहा भगत जी को "साहित्य एक नज़र रत्न " सम्मान से सम्मानित किया गया । नेहा जी पत्रिका के अंक 1 - 12 तक में  अपनी रचनाओं से योगदान करते हुए प्रचार प्रसार करने में भी अहम भूमिका निभाई है । साहित्य एक नज़र कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका है , जो नि: शुल्क में साहित्य संगम संस्थान नई दिल्ली , इंकलाब मंच मुंबई , हिंददेश परिवार , विश्व साहित्य संस्थान , माहेश्वरी साहित्यकार, विश्व न्यूज़ , विश्व साहित्य सेवा संस्थान एवं अन्य मंचों का साहित्य समाचार प्रकाशित व साहित्यकारों की रचनाएं , पेंटिंग ( चित्र ) प्रकाशित  साहित्य व कला की सेवा कर रहें हैं , इस पत्रिका का उद्घाटन रोशन कुमार झा के हाथों से 11 मई 2021 मंगलवार को हुआ रहा केवल एक सप्ताह में ही यह पत्रिका सोशल मीडिया पर छा गया । इस पत्रिका में साहित्य एक नज़र दैनिक पत्रिका में जिन - जिन रचनाकारों की रचनाएं प्रकाशित हुई है उन सभी को  हर एक दिन एक एक रचनाकार को " साहित्य एक नज़र रत्न " सम्मान पत्रिका के अंक के साथ सम्मानित किया जाएगा , नेहा जी को समस्त सम्मानित पदाधिकारियों व साहित्यकारों बधाई दिए ।

___________

English Poem:-12(27)
Happy Brother's Day
*•र® Roshan Kumar Jha
24 th May 2019 Friday 20:45

-: Brother's Day :-

Oh very beautiful sun ray,
I understand brother's day,
Today.
I no say but the nature say.

So I happy all time grew up
My brother,
Peace house sister father
and mother.
Came by winning soldier,
and love each other,
Do not have go away to
My brother.

Enhanced Name,
Gain fame.
Then celebrate the day same,
Brother's Day is returned came.

*•र® Roshan Kumar Jha
Surendranath Evening College
Kolkata India
Part-2 Hindi Honours sec:-H4
Roll no:-9
Reg no:-117-1111-1018-17
Mob:-6290640716,(8420128328)
9433966389(Poem:-12(27)
24 th May 2019 Friday 20:45
31st Bengal Bn Ncc Fortwilliam
Kolkata-B
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The Bharat scouts & Guides
Eastern Railway Howrah
Bamangachi(Pmkvy)
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Mob:-150)

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शीर्षक :- तुम मेरी भीख हो ।

क्यों तुम मुझे
तुम से आप बनायी ,
प्यार की हमसे
पर अपने बच्चों का
किसी और को बाप बनाई ।।

लाख सपने दिखाई तोड़कर
गयी ख़्वाब ,
क्यों छोड़कर गयी
अभी तक दी न जवाब ।।

खुद पढ़ी हमसे अपने
सहेलियों को भी पढ़ाई ,
दूर गयी हमसे
मेरी याद तुम्हें
अभी तक न आई ।।

तो तुम अब ठीक हो ,
तुम जिसके नज़दीक हो ।।
उसका भी गुरु
पर तुम हमारे लिए भीख हो ,
मैं भिक्षुक नहीं
मैं दानी हूँ
मैं रोशन तुम्हें हारा हूँ
मेरे नाम का तुम्हारा
हर एक छींक हो ।।


✍️ रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज,कोलकाता
ग्राम :- झोंझी , मधुबनी , बिहार,
मो :- 6290640716, कविता :- 20(05)
24/05/2021, सोमवार

🌅 साहित्य एक नज़र  🌅
Sahitya Eak Nazar
24 May , 2021 , Monday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর

कविता :- 20(06)

नमन 🙏 :- साहित्य संगम संस्थान पश्चिम बंगाल इकाई
दिनांक :- 24/05/2021 से 26/05/2021
दिवस :- मंगलवार से वृहस्पतिवार
विषय :- कविता
विधा :- कविता
विषय प्रदाता :- आ. मनोज कुमार पुरोहित जी
विषय प्रवर्तक :- आ. रोशन कुमार झा

माँ सरस्वती साहित्य संगम संस्थान पश्चिम बंगाल इकाई को नमन 🙏 करते हुए आप सभी सम्मानित साहित्यकारों को सादर प्रणाम । आज की विषय और विधा बहुत ही शानदार है , विषय प्रदाता आ. मनोज कुमार पुरोहित जी को धन्यवाद सह सादर आभार , एवं समस्त पदाधिकारियों को भी धन्यवाद जिन्होंने आज हमें विषय प्रवर्तन करने का मौक़ा  दिए हैं ।

विधा भी कविता ,
विषय भी कविता ।
लिखेंगे हम कविता ,
शब्द पड़े हैं मीठा - मीठा ।।

एक फ़िल्म बनाने में लाखों की ख़र्चा होती है और हम उस फिल्म को देखकर कुछ देर तक मनोरंजन कर लेते है फिर उस फिल्म उस फिल्म के पात्र को भूल जाते है । पर पता है आपको ? एक कविता आपके ज़िन्दग़ी को बदल सकती है , तो क्यों न मिलकर हम सभी साहित्यकार ऐसी कविता का निर्माण करें जो पाठकों को लाभदायक हो । कविता छंद के साथ भी और बिना छंद के भी लिखें जाते है ।

" अर्जुन को अर्जुन बनने में
मिला हुआ सब देवताओं का गुण था ,
पर कर्ण को कर्ण बनने में सिर्फ़
कर्ण का ही जुनून था ।।
माता कुंती गंगा में बहा दी
उन्हीं का वह कर्ण सून ( बेटा )  था ,
भाई - भाई में लड़ा दिए श्रीकृष्ण
एक ही माँ का तो खून था ।। "

कविता क्या है ?
अपने अंदर की भावनाओं / भाव अपने शब्दों में व्यक्त करना ही तो कविता है ।

कोई भी कहानी, लेख , निबंध बड़ी होती है तो उसे हम  कविता के माध्यम से छोटी कर सकते है, अंधा युग प्रसिद्ध साहित्यकार आ. धर्मवीर भारती जी द्वारा रचित एक काव्य नाटक है। इसका कथानक महाभारत के अठारहवें दिन से लेकर श्रीकृष्ण की मृत्यु तक के क्षण तक का वर्णन है। यदि हम इसे कहानी के माध्यम से जाने तो विस्तार से जानना होगा और कविता के माध्यम से हम कुछ ही पंक्तियों में समझ सकते है ।।

अतः आप सभी सम्मानित साहित्यकार आमंत्रित है , अपनी मन की भावनाओं को कविता के माध्यम से
24/05/2021 से 26/05/2021 मंगलवार से वृहस्पतिवार तक प्रेषित कीजिए । एवं अन्य रचनाकारों के रचना को पढ़कर सटीक टिप्पणी करके रचनाकारों को प्रोत्साहित कीजिए ।।

जय हिन्द , जय हिन्दी
धन्यवाद सह सादर आभार 🙏💐

आपका अपना
रोशन कुमार झा

#साहित्य संगम संस्थान पश्चिम बंगाल इकाई

नव कार्यक्रम करते हुए साहित्य संगम संस्थान हरियाणा इकाई रचा एक इतिहास -

साहित्य एक नज़र 🌅 , रविवार , 23 मई 2021

साहित्य संगम संस्थान हरियाणा इकाई 21 मई 2021 , शुक्रवार को माँ विषय पर कविता , गीत , ग़ज़ल विधा में सृजन करने के लिए साहित्यकारों को आमंत्रित किए । जैसा कि आपको विदित है कि नवरात्र में हमने अपना यूट्यूब चैनल आरंभ किया था और सर्वश्रेष्ठ वीडियोस यूट्यूब चैनल पर अपलोड की थी ।उसी श्रृंखला को आगे बढ़ाते हुए आज माँ विषय पर आपकी वीडियोस आमंत्रित हैं। मातृ दिवस पर हम सबने आलेख लिखकर माँ की महिमा पर अपना सृजन किया। आज माँ विषय  पर ही आप वीडियोस प्रेषित करेंगे। माँ को परिभाषित करना मुश्किल ही नहीं असंभव है -लेकिन फिर भी माँ की सहजता सरलता ममता की पराकाष्ठा माँ जन्नत है ,दुनिया है ,जन्नत है ,तक़दीर है ,ख़ुशी है ,सांत्वना है ,शान्ति है ,भावना है ,दुनिया का हर सुखमय शब्द है।
यह सर्वविदित है माँ सा कोई नहीं हो सकता ।माँ के समान कोई छाया नहीं ,कोई सहारा नहीं ,कोई रक्षक नहीं ,कोई प्रिय नहीं ,माँ कभी पलायन नहीं करती केवल जीवन सँवारती है। आईए माँ विषय पर सृजन  कर वीडियोस बनाएँ व यूट्यूब पर अपलोड करवाएँ ।
इस कार्यक्रम में मुख्य आयोजक अध्यक्ष हरियाणा इकाई आदरणीय विनोद वर्मा दुर्गेश जी आयोजक डॉ दवीना  अमर ठकराल जी , अलंकरण प्रमुख डॉ अनीता राजपाल जी डॉ दवीना अमर ठकराल जी महागुरुदेव डॉ. राकेश सक्सेना जी (अध्यक्ष उत्तर प्रदेश इकाई) । राष्ट्रीय अध्यक्ष महोदय आ. राजवीर सिंह मंत्र जी , कार्यकारी अध्यक्ष आ. कुमार रोहित रोज़ जी , सह अध्यक्ष आ. मिथलेश सिंह मिलिंद जी, संयोजिका आ. संगीता मिश्रा जी ,  पश्चिम बंगाल इकाई अध्यक्षा आ. कलावती कर्वा जी ,  राष्ट्रीय सह मीडिया प्रभारी व पश्चिम बंगाल इकाई सचिव रोशन कुमार झा  ,आ. अर्चना जायसवाल जी , अलंकरण कर्ता आ. स्वाति जैसलमेरिया जी, आ. मनोज कुमार पुरोहित जी,आ. रजनी हरीश , आ. रंजना बिनानी जी, आ. सुनीता मुखर्जी , आ. मधु भूतड़ा 'अक्षरा' जी , आ. रीतु गुलाटी जी ,आ. भारत भूषण पाठक जी ,  समस्त सम्मानित पदाधिकारियों व साहित्यकारों के सहयोग से एक दूसरे की रचनाएं को वीडियो के माध्यम से सुनकर सार्थक टिप्पणी करते हुए लगभग  1000  कॉमेंट्स आएं जो कि संस्थान के लिए एक बड़ी उपलब्धि है ।

हरियाणा इकाई

पानागढ़ की कवियत्री नेहा भगत "साहित्य एक नज़र रत्न " सम्मान से सम्मानित हुई -

साहित्य एक नज़र 🌅 , रविवार , 23 मई 2021

22 मई 2021 , शनिवार को  " साहित्य एक नज़र रत्न " सम्मान से बंगाल भूमि के पानागढ़ की कवियत्री नेहा भगत जी को "साहित्य एक नज़र रत्न " सम्मान से सम्मानित किया गया । नेहा जी पत्रिका के अंक 1 - 12 तक में  अपनी रचनाओं से योगदान करते हुए प्रचार प्रसार करने में भी अहम भूमिका निभाई है । साहित्य एक नज़र कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका है , जो नि: शुल्क में साहित्य संगम संस्थान नई दिल्ली , इंकलाब मंच मुंबई , हिंददेश परिवार , विश्व साहित्य संस्थान , माहेश्वरी साहित्यकार, विश्व न्यूज़ , विश्व साहित्य सेवा संस्थान एवं अन्य मंचों का साहित्य समाचार प्रकाशित व साहित्यकारों की रचनाएं , पेंटिंग ( चित्र ) प्रकाशित  साहित्य व कला की सेवा कर रहें हैं , इस पत्रिका का उद्घाटन रोशन कुमार झा के हाथों से 11 मई 2021 मंगलवार को हुआ रहा केवल एक सप्ताह में ही यह पत्रिका सोशल मीडिया पर छा गया । इस पत्रिका में साहित्य एक नज़र दैनिक पत्रिका में जिन - जिन रचनाकारों की रचनाएं प्रकाशित हुई है उन सभी को  हर एक दिन एक एक रचनाकार को " साहित्य एक नज़र रत्न " सम्मान पत्रिका के अंक के साथ सम्मानित किया जाएगा , नेहा जी को समस्त सम्मानित पदाधिकारियों व साहित्यकारों बधाई दिए ।

साहित्य एक नज़र , अंक - 14
( कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका )
https://online.fliphtml5.com/axiwx/eyqu/

🌅 साहित्य एक नज़र  🌅
Sahitya Eak Nazar
24 May , 2021 , Monday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর

अंक - 14
24 मई 2021
   सोमवार
वैशाख शुक्ल 13 संवत 2078
पृष्ठ -  1
प्रमाण पत्र - 14 ( आ. संजीत कुमार निगम जी )
कुल पृष्ठ - 15
अंक - 14

साहित्य एक नज़र , अंक - 15

https://m.facebook.com/groups/287638899665560/permalink/295360868893363/?sfnsn=wiwspmo

अंक - 14
https://www.facebook.com/groups/287638899665560/permalink/294588365637280/?sfnsn=wiwspmo

रचनाएं व साहित्य समाचार आमंत्रित -
साहित्य एक नज़र 🌅
अंक - 14
दिनांक :- 24/05/2021 , सुबह 11 बजे तक
दिवस :- सोमवार
इसी पोस्ट में अपनी नाम के साथ एक रचना और फोटो प्रेषित करें ।

सादर निवेदन 🙏💐

समस्या होने पर संपर्क करें - 6290640716

आपका अपना
✍️ रोशन कुमार झा
अंक - 14

साहित्य एक नज़र 🌅 , अंक - 13
( कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका )

https://online.fliphtml5.com/axiwx/ptrj/

https://m.facebook.com/groups/287638899665560/permalink/293982085697908/?sfnsn=wiwspmo

हिन्दी कविता-12(26)
24-05-2019 शुक्रवार 07:50
*®• रोशन कुमार झा
-:मैं हारा हूँ !:-

मत पूछो हमसे मैं हारा हूँ
अब मैं तुमसे दूर जा रहा हूँ!
हारकर भी नव गीत गा रहा हूँ
जगह बदलते ही मैं नया मित्र पा रहा हूँ!

सच में मैं हारा हूँ,
फिर भी राह में नज़र डाला हूँ!
रोशन राह करने वाला हूँ,
जीत कर भी जीत को मारा हूँ!

हमें हार चाहिए उसी लिए मैं बना
आवारा हूँ,
दिल से साफ पर देखने में मैं काला हूँ!
सच पूछो तो मैं बहुत बड़ा दिलवाला हूँ,
पर क्या मैं अपने आप से हारा हूँ!

फिर भी मैं खुला हुआ ताला हूँ,
सच कहो तो मैं दुख-दर्द से पाला हूँ!
और क्या वहीं पर हारा हूँ,
पर असफलता से मैं ना हिलने वाला हूँ!

हार से जीतने वाला हूँ,
और क्या उसी से मिटने वाला हूँ!
बहने वाली मैं धारा हूँ,
हारा हूँ पर अपनी हार की मैं खुद सहारा हूँ!

सफलता को मैं उजाड़ा हूँ,
असफलता पर नज़र डाला हूँ!
जीतना है यह ध्यान मैं अपने मन में पाला हूँ,
क्योंकि अमीर बनना है मुझे
मैं ग़रीब घर में रहने वाला हूँ

*®• रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज कोलकाता भारत
मो:-6290640716,(8420128328)
9433966389(कविता-12(26)
24-05-2019 शुक्रवार 07:50


Portrait sketch by :शिवशंकर लोध राजपूत (दिल्ली), व्हाट्सप्प no. 7217618716
Portrait of :roshan kumar jha
साहित्य संगम संस्थान उत्तर प्रदेश इकाई
25/05/2021 , मंगलवार
धन्यवाद सह सादर आभार 🙏
आ. शिवशंकर लोध राजपूत जी

रोशन कुमार झा
नमन 🙏 :- साहित्य संगम संस्थान पश्चिम बंगाल इकाई
दिनांक :- 24/05/2021 से 26/05/2021
दिवस :- मंगलवार से वृहस्पतिवार
विषय :- कविता
विधा :- कविता
विषय प्रदाता :- आ. मनोज कुमार पुरोहित जी
विषय प्रवर्तक :- आ. रोशन कुमार झा

एक जीवन जीना तो ही था ,
सुख - दुख में ये जीवन बीता ।
पढ़कर जाने राम और सीता ,
शब्द शब्द को जोड़ते गये
बनते रहा कविता ।।

शब्द पड़े हैं मीठा - मीठा ,
दर्द है कुछ नये , कुछ पुराने
लगातार ज़ख़्म को ही पीता ।
ज्ञानों का इच्छुक है हम
कभी कर्ण के बारे में
जानने के लिए पढ़ते महाभारत
तो कभी पढ़ लेते रामायण , गीता ,
फिर पढ़कर जो भाव आता
उस भाव को प्रकट करते
फिर बन जाता वही एक कविता ।।

कहीं हारा , कहीं जीता ,
शब्द - शब्द ने दिल और
दिमाग़ को पीटा ।
नहीं लिखते तो मन में
शांति नहीं था ,
व्याकुल कंठ
कैसे न उसकी प्यास बुझाऊं
लिखकर एक नई कविता ।।

✍️ रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज,कोलकाता
ग्राम :- झोंझी , मधुबनी , बिहार,
मो :-6290640716, कविता :- 20(07)
25/05/2021 , मंगलवार , अंक - 15
🌅 साहित्य एक नज़र  🌅
Sahitya Eak Nazar
26 May 2021 , Tuesday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর

होकर सूत पुत्र दान किया ,
मेरा न कोई अभिमान किया।
सारे देवता मिल जुल कर ,
एक वीर योद्धा को परास्त किया।
उस महाभारत के जंगल में
अर्जुन तो केवल एक पौधा था,
कर्ण चलता जहां , उसके
जैसा कहां कोई योद्धा था।

द्रोण कोई कसर छोड़ी नहीं
अर्जुन को श्रेष्ठ बतलाने में ,
माँ धरती ने भी श्राप दिया ,
अर्जुन को जीताने में।
परशुराम ने भी श्राप दिया ,
सारे विद्या भुलाने में ।
कुंती ने भी नहीं अपनाया ,
अपना बेटा मानने में।

इन्द्र ने भी छल किया ,
अर्जुन को बचाने में।
पांचों पाण्डव का गुण ,
अकेले मैं रखता हूँ।
अर्जुन जैसा धनुर्विद्या या
फिर भीम जैसा ताक़त हो,
सहदेव , नकुल जैसा
विवेक अकेले मैं गढ़ता हूं।
और युधिष्ठिर की दानविरता से ,
बढ़कर मैं दान देता हूं।
मैं चलता जहां हूं ,
विजय को भी पीछे आना पड़ता है।
और मुझ जैसा योध्दा को हराने में ,
कृष्ण को भी सुदर्शन उठाना पड़ता है।

  🙏🙏🙏.

✍️ धर्मेन्द्र साह
        
  ( DK )
अंक - 15

https://online.fliphtml5.com/axiwx/bvxa/
साहित्य एक नज़र , अंक - 15
( कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका )

साहित्य एक नज़र , अंक - 16
🌅 साहित्य एक नज़र 🌅
( कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका )
अंक - 16 के लिए इस लिंक पर जाकर रचना भेजें -

https://m.facebook.com/groups/287638899665560/permalink/296027035493413/?sfnsn=wiwspmo

🌅 साहित्य एक नज़र  🌅
Sahitya Eak Nazar
25 May , 2021 , Tuesday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর

अंक - 15
25 मई 2021
   मंगलवार
वैशाख शुक्ल 14 संवत 2078
पृष्ठ -  1
प्रमाण पत्र - 16 ( आ. डॉ प्रमोद शर्मा प्रेम जी )
कुल पृष्ठ - 17
अंक - 15

साहित्य एक नज़र , अंक - 15

साहित्य एक नज़र , अंक - 15

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( कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका )
अंक - 14

https://online.fliphtml5.com/axiwx/eyqu/

अंक - 14
https://www.facebook.com/groups/287638899665560/permalink/294588365637280/?sfnsn=wiwspmo

रचनाएं व साहित्य समाचार आमंत्रित -
साहित्य एक नज़र 🌅
अंक - 15
दिनांक :- 25/05/2021 , सुबह 11 बजे तक
दिवस :- मंगलवार
इसी पोस्ट में अपनी नाम के साथ एक रचना और फोटो प्रेषित करें ।

सादर निवेदन 🙏💐

समस्या होने पर संपर्क करें - 6290640716

आपका अपना
✍️ रोशन कुमार झा
अंक - 15

https://m.facebook.com/groups/287638899665560/permalink/295360868893363/?sfnsn=wiwspmo





















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