साहित्य एक नज़र , अंक - 371 , 16/05/2022 , सोमवार , कविता - 23(62)

साहित्य एक नज़र   , अंक - 371 , 16/05/2022 , सोमवार , कविता - 23(62)

साहित्य एक नज़र   , अंक - 372 , 17/05/2022 , मंगलवार , कविता - 23(63)

  🌅 साहित्य एक नज़र  🌅
कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका 
अंक - 371 , वर्ष - 1 , वैशाख शुक्ल 15 संवत 2079 , सोमवार , 16 मई 2022
मो - 6290640716                 पृष्ठ -                   संपादक - रोशन कुमार झा
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बुद्ध पूर्णिमा

370 https://www.facebook.com/groups/287638899665560/permalink/518857556543692/?sfnsn=wiwspwa&ref=share

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10 K
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05/05/2022

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अंक - 1
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विश्व साहित्य संस्थान
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अंक - 70
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रोशन -05 मई 2022
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रोशन 2 -05 मई 2022

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कविता -  जीवन चल रही है ।

जीवन चल रही है ,
दुख से भरी पल कल रही है ।
धीरे - धीरे डर मर रही है ,
जीवन अपना कर्म कर रही है ।

✍️ रोशन कुमार झा
विद्यासागर विश्‍वविद्यालय ,
पश्चिम बंगाल
एम.ए ( हिन्दी ) सेमेस्टर - 2 ,
ग्राम - झोंझी , मधुबनी , मिथिला
बिहार  , भारत 🇮🇳
बिरला ओपेन माइंड्स इंटरनेशनल स्कूल
रोसड़ा , समस्तीपुर , बिहार , भारत 🇮🇳
संपादक - साहित्य एक नज़र 🌅
16/05/2022 , सोमवार
कविता - 23(62)
✍️ Roshan kumar jha , রোশন কুমার ঝা
77/R Mirpara Road Liluah Howrah - 711204 , Aasirvad bhawan
51/9 kumar para Lane Liluah
🌅 साहित्य एक नज़र 🌅 
सागर रोशन , रोशन लहर
दैनिक साहित्य समाचार पत्रिका
विश्‍व साहित्य संस्थान
विश्‍व न्यूज़ ,
मधुबनी इकाई - साहित्य एक नज़र 🌅 - মিথি LITERATURE , मिथि लिट्रेचर

वैशाख पूर्णिमा के दिन ही भगवान् बुद्ध का जन्म लुंबिनी में हुआ था, जो बुद्धत्व की प्राप्ति के बाद गौतम बुद्ध के नाम से प्रसिद्ध हुए. गौतम बुद्ध का जन्म वैशाख पूर्णिमा के दिन होने के कारण इस तिथि को बुद्ध पूर्णिमा भी कहा जाता है. भगवान बुद्ध ने सत्य की खोज के बाद लोगों को उपदेश दिए, उन उपदेशों को हमें याद रखना चाहिए।


लिंक
[16/05, 10:21] Roshan Kumar Jha: https://online.fliphtml5.com/axiwx/rmls/
[16/05, 10:49] Roshan Kumar Jha: http://roshanjha9997.blogspot.com/2022/05/371-16052022-2362.html
[16/05, 10:49] Roshan Kumar Jha: http://roshanjha9997.blogspot.com/2022/05/361-06052022-2353.html
[16/05, 10:49] Roshan Kumar Jha: http://roshanjha9997.blogspot.com/2022/05/2022.html
[16/05, 10:49] Roshan Kumar Jha: http://roshanjha9997.blogspot.com/2022/05/360-05052022-2352.html
[16/05, 10:50] Roshan Kumar Jha: http://roshanjha9997.blogspot.com/2022/04/1204-2022.html
[16/05, 10:50] Roshan Kumar Jha: http://roshanjha9997.blogspot.com/2022/03/09032022.html
[16/05, 10:50] Roshan Kumar Jha: http://roshanjha9997.blogspot.com/2022/01/14012022.html
[16/05, 10:50] Roshan Kumar Jha: http://roshanjha9997.blogspot.com/2022/02/blog-post.html
[16/05, 10:50] Roshan Kumar Jha: http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/11/2198-01122021-205.html
[16/05, 10:51] Roshan Kumar Jha: http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/11/blog-post.html
[16/05, 10:51] Roshan Kumar Jha: http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/11/2195-28112021-202.html
[16/05, 10:51] Roshan Kumar Jha: http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/11/2180-187-13112021.html







साहित्य एक नज़र   , अंक - 371 , 16/05/2022 , सोमवार , कविता - 23(62)





  अंक - 370 , 369
🌅 साहित्य एक नज़र  🌅
कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका 
अंक - 370 , वर्ष - 1 , वैशाख शुक्ल 14 संवत 2079 , रविवार , 15 मई 2022
मो - 6290640716                 पृष्ठ -                   संपादक - रोशन कुमार झा
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10 K
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05/05/2022

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अंक - 1
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अंक - 70
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रोशन -05 मई 2022
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रोशन 2 -05 मई 2022

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D
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कविता - पानी

मैं पानी,
मेरे से आप ने क्या सीखा ,
मैं पानी ,
बहते ही रहना सीखा ।
बह रहा हूँ ,
कह रहा हूँ  ।
वर्ष , दिन , मास ,
बूझाता हूँ प्यास ।

✍️ रोशन कुमार झा
विद्यासागर विश्‍वविद्यालय ,
पश्चिम बंगाल
एम.ए ( हिन्दी ) सेमेस्टर - 2 ,
ग्राम - झोंझी , मधुबनी , मिथिला
बिहार  , भारत 🇮🇳
बिरला ओपेन माइंड्स इंटरनेशनल स्कूल
रोसड़ा , समस्तीपुर , बिहार , भारत 🇮🇳
संपादक - साहित्य एक नज़र 🌅
15/05/2022 , रविवार
कविता - 23(61)
✍️ Roshan kumar jha , রোশন কুমার ঝা
77/R Mirpara Road Liluah Howrah - 711204 , Aasirvad bhawan
51/9 kumar para Lane Liluah
🌅 साहित्य एक नज़र 🌅 
सागर रोशन , रोशन लहर
दैनिक साहित्य समाचार पत्रिका
विश्‍व साहित्य संस्थान
विश्‍व न्यूज़ ,
मधुबनी इकाई - साहित्य एक नज़र 🌅 - মিথি LITERATURE , मिथि लिट्रेचर

आज दिन खाना में आलू कल वाला दिया रहा , कोई नहीं खा पाया , मैरी मेम पूछी हमसे , फिर प्रिंसपल मेम हमसे फोन पर बात की बताये , शाम में हम गंगा , सौरभ सर बिरयानी खाने गये .

[15/05, 22:47] +91 94344 53934: Namaskar
[15/05, 22:47] Roshan Kumar Jha: नमस्ते - नमस्ते 🙏
[15/05, 22:47] +91 94344 53934: _____
तारकेश कुमार ओझा,
लेखक व पत्रकार
भगवानपुर, जनता विद्यालय के पास
वार्ड नंबरः09 (नया) खड़गपुर ( प शिचम बंगाल) पिन ः721301 जिला प शिचम
मेदिनीपुर संपर्कः 09434453934 ( w )9635221463*
[15/05, 22:48] +91 94344 53934: Patrika ki mail id denge pls
[15/05, 22:48] Roshan Kumar Jha: स्वागतम् 🙏 जी
[15/05, 22:48] Roshan Kumar Jha: Follow this link to join my WhatsApp group: https://chat.whatsapp.com/D7fFPpnOiAU6idh3d7qthn
[15/05, 22:49] +91 94344 53934: Kya ye daily hai
[15/05, 22:50] Roshan Kumar Jha: जी दैनिक है
[15/05, 22:50] +91 94344 53934: कुछ भेजना होगा तो इसी में भी देना होगा
[15/05, 22:51] +91 94344 53934: वह मुझे नहीं पता था
[15/05, 22:51] Roshan Kumar Jha: जी या हमें पर्सनली भी भेज सकते है ।
[15/05, 22:51] +91 94344 53934: ओके

गगन जी -
[15/05, 22:12] Roshan Kumar Jha: https://online.fliphtml5.com/axiwx/ygfi/
[15/05, 22:14] +91  35425: धन्यवाद शुकिया सर जी नमस्कार शुभ रात्रि
[15/05, 22:27] Roshan Kumar Jha: प्रकाशित हो गई
[15/05, 22:36] +91  35425: धन्यवाद सर जी

प्रभात जी
[15/05, 22:10] +91  28447: बहुत बहुत धन्यवाद् भैया आपका🌷🌷
[15/05, 22:10] Roshan Kumar Jha: https://online.fliphtml5.com/axiwx/ygfi/
[15/05, 22:18] Roshan Kumar Jha: स्वागतम्🙏🏼 भाई जी
[15/05, 22:19] +91  28447: धन्यवाद् भाई आपका 🌷🌷
[15/05, 22:20] +91  28447: पी डी एफ मैने प्रभात समाचार पी डी एफ ग्रुप में भेजा हैं।और वहा लिखा है मैने आप सब अपनी रचनाएँ दिये गये नं पर भेज कर प्रकाशित के लिए
[15/05, 22:20] +91  28447: जो कि निशुल्क हैं।या 14 रूपीस लगता है जो वो
[15/05, 22:20] +91  28447: देना होगा
[15/05, 22:21] Roshan Kumar Jha: सादर आभार भईया जी
[15/05, 22:21] Roshan Kumar Jha: इच्छा के अनुसार रचनाकर सहयोग कर सकते है ।
[15/05, 22:27] +91  28447: जी भाई

गुरुदीन
[15/05, 22:19] +91  70847: साहित्य एक नजर पत्रिका में रचना या समाचार देने के नियम और माध्यम बताये प्लीज
[15/05, 22:19] Roshan Kumar Jha: ग्रुप है आदरणीय
[15/05, 22:20] Roshan Kumar Jha: Follow this link to join my WhatsApp group: https://chat.whatsapp.com/D7fFPpnOiAU6idh3d7qthn
[15/05, 22:24] +91  70847: क्या इस ग्रुप में भेजी रचना या समाचार , आपकी इस दैनिक पत्रिका में जरूर प्रकाशित होंगे या फिर उनमें से छंटनी होगी
[15/05, 22:25] Roshan Kumar Jha: नहीं जो भी आते है उसे हम प्रकाशित करते है ।
[15/05, 22:26] +91  70847: Ok ,थैंक्स सर , आप मेरे न्यूज़ पीडीएफ ग्रुप में आपकी यह पत्रिका रोजाना जरूर शेयर करें🙏
[15/05, 22:27] Roshan Kumar Jha: जी सर जी
[15/05, 22:28] +91  70847: आप क्या पुलिस में सर्विस करते हैं क्या
[15/05, 22:28] Roshan Kumar Jha: नहीं जी , मैं एनसीसी कैडेट रह चुका हूँ ।
[15/05, 22:29] +91  70847: तब तो बहुत ही गर्व की बात है सर
[15/05, 22:30] Roshan Kumar Jha: बस आपलोगों का आशीर्वाद है सर जी ।
[15/05, 22:32] +91  70847: आशीर्वाद तो ईश्वर का है हम सभी पर , हम एक मंच (साहित्य मंच)के एक साथी है
[15/05, 22:32] Roshan Kumar Jha: जी 🙏 सर जी

[05/05, 22:24] Monuyadav: Happy Birthday bhaiya 🎂🍫🎂🍫🎂
[06/05, 06:09] Roshan Kumar Jha: Thanks 🙏you
[15/05, 15:27] Monuyadav: Bhaiya
[15/05, 15:27] Monuyadav: Mai apni kavita aapko bheju
[15/05, 17:18] Roshan Kumar Jha: हाँ भईया जी 🙏

दीपक झा
[12/05, 20:21] Ansu: Aaj
[12/05, 21:28] Roshan Kumar Jha: Ha
[12/05, 21:59] Ansu: Gam Nahi aao ge
[13/05, 03:38] Roshan Kumar Jha: abhi nhi aa yange
[15/05, 17:39] Roshan Kumar Jha: कहाँ से लाया
[15/05, 17:40] Ansu: Golu ne lagayatha
[15/05, 17:43] Roshan Kumar Jha: Ohh
[15/05, 17:53] Ansu: Aur sab kahiye

[13/05, 12:25] Roshan Kumar Jha: PNR-6302681550
Trn:13021
Dt:13-05-22
Frm HWH to SPJ
Cls:2S
P1-WL,7
Chart Prepared
For Enquiry/Complaint/Assistance,please dial 139
Indian Railway
Your Tickets are not confirmed.
[13/05, 12:26] Roshan Kumar Jha: Ticket aaj ka tha
[13/05, 12:26] Roshan Kumar Jha: Hmm kal titi ko datt bhi diya
[15/05, 08:57] Rajan Jha: Aaj milega results
[15/05, 08:57] Roshan Kumar Jha: ohh
[15/05, 08:57] Roshan Kumar Jha: Roll no
[15/05, 09:00] Roshan Kumar Jha: Ok
[15/05, 09:00] Rajan Jha: Dekh lena
[15/05, 09:01] Roshan Kumar Jha: 716981N No - 0115
8211-194249
[15/05, 09:01] Roshan Kumar Jha: Thik hai
[15/05, 12:47] Roshan Kumar Jha: Result kaha aaya
[15/05, 12:47] Roshan Kumar Jha: 21 ka ticket kar de mithila ka

कल स्कूल बच्चों साथ कबड्ड़ी खेले रहे
आज कक्षा - 2 वीडियो पर संजय अंक्ल कामेंट किए रहे .
https://youtu.be/ZOScGhVgfh8

https://youtu.be/iJ4tjwJCyFY

पूजा बहन भोली व्हाट्सएप पर  स्टेटस लगाई हम नहीं देखे , कल से दिखाने लगी हम पूजा को बोले वह बोली देखो .

क्योंकि कुछ दिन पहले पूजा मना की रही भोली को कि उसे हटाकर लगाना .

हिन्दी वाले संजीव सर से बात किये वे हिन्दी और गणित पढ़ाते है , हम पूछे कवि सम्मेलन इधर होता है क्या ? , बोले मैं एक साल से यहाँ हूँ पहले छत्तीसगढ़ में रहते थे ।

  🌅 साहित्य एक नज़र  🌅
कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका 
अंक - 369 , वर्ष - 1 , वैशाख शुक्ल 13 संवत 2079 , शनिवार , 14 मई 2022
मो - 6290640716                 पृष्ठ -                   संपादक - रोशन कुमार झा
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https://youtu.be/iJ4tjwJCyFY
https://youtu.be/ZOScGhVgfh8

https://youtu.be/pMDog_RtOLk
https://youtu.be/CgE3hv03Bs8

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https://www.facebook.com/groups/1113114372535449/permalink/1350981702082047/

https://youtu.be/qUzlsPgZTZk
https://sundervan.com/
https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=930016654457801&id=100023484264613&sfnsn=wiwspwa

https://online.fliphtml5.com/axiwx/jhvw/

https://online.fliphtml5.com/axiwx/ubrp/

https://youtu.be/Hx5csS80Hjk

https://youtu.be/UqfyjWUP8Vg
https://youtu.be/av_mWIkfjUs

https://youtu.be/Bwc2YLvBHLE
https://youtu.be/9Lp0OufVqfk
https://youtu.be/rBbD91zg13E

https://youtu.be/nStWC93GiDM

https://www.facebook.com/107146945102824/posts/160789683071883/?sfnsn=wiwspmo

10 K
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05/05/2022

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BIRLA OPEN MINDS INTERNATIONAL SCHOOL Rosera , Samastipur , Bihar , India
Mother's Day E - Magazine
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अंक - 2
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अंक - 1
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अंक - 70
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रोशन -05 मई 2022
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रोशन 2 -05 मई 2022

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कविता - जीवन के राहों पर चलना

जीवन के राहों पर चलना नहीं आसान है ,
जो चलता उसी का पहचान है ।
गिर जाऊं , गिरकर न उठूं
वैसा मैं न इंसान हैं  ,
लोगों से मैं नहीं
कुछ लोग मेरे से परेशान हैं ।।

✍️ रोशन कुमार झा
विद्यासागर विश्‍वविद्यालय ,
पश्चिम बंगाल
एम.ए ( हिन्दी ) सेमेस्टर - 2 ,
ग्राम - झोंझी , मधुबनी , मिथिला
बिहार  , भारत 🇮🇳
बिरला ओपेन माइंड्स इंटरनेशनल स्कूल
रोसड़ा , समस्तीपुर , बिहार , भारत 🇮🇳
संपादक - साहित्य एक नज़र 🌅
14/05/2022 , शनिवार
कविता - 23(60)
✍️ रोशन कुमार झा , Roshan kumar jha , রোশন কুমার ঝা
77/R Mirpara Road Liluah Howrah - 711204 , Aasirvad bhawan
51/9 kumar para Lane Liluah
🌅 साहित्य एक नज़र 🌅 
सागर रोशन , रोशन लहर
दैनिक साहित्य समाचार पत्रिका
विश्‍व साहित्य संस्थान
विश्‍व न्यूज़ ,
मधुबनी इकाई - साहित्य एक नज़र 🌅 - মিথি LITERATURE , मिथि लिट्रेचर

BIRLA OPEN MINDS
INTERNATIONAL SCHOOL
Rosera , Samastipur , Bihar , India
बिड़ला ओपेन माइंड्स इंटरनेशनल स्कूल
रोसड़ा , समस्तीपुर , बिहार , भारत 🇮🇳
मधुबन सदाबहार कहानियाँ
   सहायक पुस्तकमाला - 2
3. मोर  , कक्षा - 2

उमड़ - घुमड़ जब आएँ बादल
तुम भी तब आ जाते हो
ताक धिना धिन  , थिरक - थिरककर
अपना नाच दिखाते हो ।

पंख तुम्हारे लंबे - लंबे
नाच - नाच छितराते हो
नीलम जैसे पंख फैलाकर
सबका मन हरषाते हो ।

सिर पर ताज लगा राजा - सा
राजा - से ही सजते हो
सुंदर मोहक रूप है इतना
राष्ट्र पक्षी कहलाते हो ।

के रखतै माँ कोर में
  गायक - दीपक झा

http://roshanjha9997.blogspot.com/2022/05/361-06052022-2353.html

  Roshan Kumar Jha: https://www.facebook.com/groups/1653994421452422/permalink/2068891139962746/?sfnsn=wiwspmo&ref=share
[11/05, 20:36] Roshan Kumar Jha: https://online.fliphtml5.com/axiwx/doya/


_____

14/05/2022 , शनिवार
आज बच्चे सब रोसड़ा मिथिला दूध डेयरी में गये रहे - 7,8 , क्लास - 2 वाले मोर वीडियो मेम बोली दिखाओ , हम भी मदर डेयरी डानकुनी गये रहे , यूट्यूब पर रहा स्काउट वाला , जे.सी मेमोरियल मेम का फोन लग गया रहा वे की बोले बिरला में पढ़ा रहे है बोले वाह , दीपक का वीडियो का लिंक साहित्य एक नज़र  में दिए , सोमनाथ सर फोन किये हम बायोडाटा भेजे बोले एक स्कूल में हिन्दी टीचर लगेगा , उनका भाई भी छोड़ दिया , आंतनु सर का जो अपना दमदम वाले आयोन सर भी छोड़ दिये , लड़का लोग बोला रोशन सर से बात करेंगे , कल करेगा ,

[14/05, 07:59] Depak Jhonjhee: https://youtu.be/nStWC93GiDM
[14/05, 09:24] Roshan Kumar Jha: 👌👌👌👌👌
[14/05, 20:26] Depak Jhonjhee: Wah bahut sundar
[14/05, 20:26] Depak Jhonjhee: Roshan
[14/05, 20:26] Depak Jhonjhee: Dhanyawad
[14/05, 20:28] Roshan Kumar Jha: स्वागतम्🙏🏼💐

दीपक स्टेट्स -
आई बहुत खुश भेल हमर आवाज में भगवती गीत के कोलकाता ( कोलकता )
दैनिक पत्रिका में प्रकाशित केलो ।
🙏🏼 बहुत बहुत धन्यवाद .... रौशन

[14/05, 20:41] Roshan Kumar Jha: 🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼

3 से घनश्याम को बुलाएं वीडियो बनाया 2 में

BIRLA OPEN MINDS INTERNATIONAL SCHOOL

हमारी नाव चली
✍️ एस पी खत्री

आओ भैया तुम्हें सुनाएँ , सुन्दर एक कहानी
मगर नहीं राजा रानी की , पर है बहुत पुरानी ।

छोटी - छोटी नावें देखो , हमको सैर करातीं
पानी पर अठखेली करतीं ,सभी ओर ले जातीं ।

कुछ पुरखे थे बसे हमारे , नदियों के ही तीर ,
कंद , मूल , फल खाकर जीते , पीते निर्मल नीर ।

सोचो तो जब नाव नहीं थी , तब हम क्या कर सकते ?
लंबी - लंबी , गहरी नदियाँ कैसे पार उतरते ?

लड़के खेला करते थे नित , बैठ नदी किनारे
तैर कभी कुछ पार उतरते , कुछ रहते मन मारे ।

एक खिलाड़ी लड़का आया , लिए पेड़ की टहनी
ज़ोर लगा पानी में फेंकी , रही तैरती टहनी ।

हुआ अचंभा सबको बेहद , टहनी ज़रा न डूबी
इधर - उधर मँडराती जाती , यह थी उसकी खूबी ।

लड़के सब हो गए इकट्टे , करने को खिलवाड़
लगे फेंकने लंबी शाखें , पीपल हो या ताड़ ।

वे सब के सब रहे तैरते , बड़े मौज से बहते ,
लड़के उनको देख खुशी से , आपे में क्या रहते !

पानी पर क्या तैर सकेगी मोटी लकड़ी भारी
बड़े पेड़ का तना काटने की तब हुई तैयारी ।

रहा तैरता बड़ी शान से , बड़े पेड़ का लट्ठा
उसके बाद गया तैराया , बड़े तने का गट्ठा  ।

बनने लगी तभी से नावें , छोटी, बड़ी हमारी
पानी से क्यों कर डर लगता , विजय हुई थी भारी ।

सागर हमने जीत लिया है , छूट गया डर सारा ।
चले चीरता उसकी छाती , बड़ा जहाज़ हमारा ।

अगर नहीं वह छोटा लड़का , टहनी को तैराता ,
बनती कैसे ये नौकाएँ , क्या जहाज़ बन पाता ?

✍️ एस.पी.खत्री





वितान , कक्षा - 4

पाठ मूल्यांकन अभ्यास
शब्द - अर्थ

अठखेली - खेल , इठलाकर चलना
पुरखे - पूर्वज
तीर - नदी का किनारा
कंद - गाँठदार जड़

निर्मल - साफ़
नीर - पानी
अचंभा - हैरानी
खूबी - गुण

मुहावरे -
मन मारना - इच्छा को दबाना
आपे में न रहना - अपने पर काबू न रहना

कविता से ....
1. इन प्रश्नों के उत्तर दो -
* मौखिक
क. इस कविता में किसकी कहानी है ?
उत्तर - इस कविता में नाव कैसे बनी इसकी कहानी है ।
ख. हमारे पूर्वज कहाँ बसे हुए थे ?
उत्तर - हमारे पूर्वज नदियों के किनारे बसे हुए थे ।
ग. एक खिलाड़ी लड़के ने क्या किया ?
उत्तर - एक खिलाड़ी लड़के ने खेल - खेल में
पानी में एक टहनी फेंक दी ।
घ. लड़के क्या देखकर खुश हुए ?
उत्तर - लड़के टहनी को पानी में तैरता देखकर खुश हुए ।

* लिखित

क. जब नावें नहीं थी तो नदियाँ कैसे पार करते होंगे ?
उत्तर - जब नावें नहीं थी तब लोग तैरकर
नदी पार करते थे।
ख. हमने सागर को कैसे जीत लिया ?
उत्तर - सागर पर बड़े - बड़े जहाज़ तैराकर
हमने उसे जीत लिया है।
ग. अगर छोटा लड़का टहनी को












कविता - हमारी रेल चली ...
साहित्य एक नज़र 🌅 -

आओ विद्यार्थी तुम्हें सुनाऊं , एक अविष्कार की कहानी ,
चली हमारी रेल ,  है बात बहुत पुरानी ।

एक बच्चा ने रसोई में माँ को देखा,
बनाते खाना चावल ,
बर्तन की पानी भाप बनकर
दें रहे थे ढक्कन को टक्कर ।

कविता - हमारी रेल चली ...
साहित्य एक नज़र 🌅 -

आओ विद्यार्थी तुम्हें सुनाऊं , एक अविष्कार की कहानी ,
चली हमारी रेल ,  है बात बहुत पुरानी ।

एक बच्चा ने रसोई में माँ को देखा,
बनाते खाना चावल ,
बर्तन की पानी भाप बनकर
दें रहे थे ढक्कन को टक्कर ।

देख ढक्कन के टक्कर को
बच्चे के मन में आया सुझाव ,
उस सुझाव से इंजन बनी
तब ट्रेन घूमा रही है
शहर और गाँव ।।

बिछी
जगह - जगह
लोहे की पटरी ,
ये देखों प्लेटफार्म पर है जो ट्रेन खड़ी ।
पहले कोयले पर , फिर डीजल , अब
उपयोग होने लगी है बिजली ,
आज चली है कलकत्ता से कल पहुँचेगी दिल्ली ।।

गुजरती है  पर्वत , पहाड़ , नदी , वन , होकर ,
सभी मिलकर यात्रा करते , चाहे मालिक हो या नौकर ।

आगे से ही सब करवा लेते है टिकट ,
रेल हमें ले जाती हैं अपनों के निकट ।

दूर - दूर तक जाने का भी
ज़्यादा नहीं लगते भाड़ा ,
रेल है हमारी राष्ट्रीय संपत्ति
इसकी रक्षा करना
कर्तव्य है हमारा ।

✍️ रोशन कुमार झा
02/05/2022 , सोमवार
वैशाख शुक्ल 2 संवत 2079
https://youtu.be/UqfyjWUP8Vg

https://youtu.be/00wietkpyYk
https://www.facebook.com/groups/287638899665560/permalink/336938744735575/?sfnsn=wiwspmo&ref=share
आओ बच्चे तुम्हे ..
आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं झांकी हिंदुस्तान की
https://youtu.be/Wj9O1xnE7Vo

https://www.facebook.com/groups/1653994421452422/permalink/2062806997237827/?sfnsn=wiwspmo&ref=share
हमारी नाव चली एस पी खत्री

आओ भैया तुम्हें सुनाएँ , सुन्दर एक कहानी
मगर नहीं राजा रानी की , पर है बहुत पुरानी ।

छोटी - छोटी नावें देखो , हमको सैर करातीं
पानी पर अठखेली करतीं ,सभी ओर ले जाती ।
वितान , कक्षा - 4

विश्व न्यूज़
https://youtu.be/Y4uqmBG58hU

02.05.2022

Full enjoy Birla open Minds International school , Teachers & Mam
Hotel Aathithi Satkar
Rosera , Samastipur , Bihar

याद आज भी आते हो ।

मानव बनकर धरती पर आएँ
क्यों न मानव के कर्म कर पाते हो ,
इधर - उधर भटकर समय बीताते
क्यों न हरि के गुण गाते हो ।।

माता - पिता के सपनों को
क्यों न साबित कर दिखाते हो ,
बदलते ज़माने के साथ
तू यूँ क्यों बदल जाते हो ।

बदलकर तुम पुत्र कर्म को
यूँ तो भूल जाते हो ,
प्रेम जाल में फँसकर
तू अपनों से दूर हो जाते हो ।।

दूर प्रदेश में जाकर दोनों प्राणी
अपना घर बसाते हो ,
आधुनिकता में जीकर
अपना संस्कृति सभ्यता मिटाते हो ।।






योद्धा कर्ण

अर्जुन को अर्जुन बनने में
मिला हुआ सब देवताओं का गुण था ,
पर कर्ण को कर्ण बनने में सिर्फ़
कर्ण का ही जुनून था ।।
माता कुंती गंगा में बहा दी
उन्हीं का वह कर्ण  ( बेटा ) सून था ,
भाई - भाई में लड़ा दिए श्रीकृष्ण
एक ही माँ का तो खून था ।।   ( 1 )

सून - बेटा

योद्धा कर्ण 

ज्ञान दिए ज्ञान छीने कैसा गुरु परशुराम था ,
विवश परशुराम भी
क्योंकि धर्म की रक्षा करना ही उनका काम था ।।
कहाँ साथ दिए मर्यादा पुरुषोत्तम राम ?
जो श्रीकृष्ण के रूप अवतार लिए हुए राम था
लाख मुसीबत के बाद भी न घबड़ाएं
वह वीर योद्धा,  कर्ण  उनका नाम था ।।

कर्ण के रहते दुर्योधन को एक पल का भी न भय था ,
विवश श्रीकृष्ण भी
क्योंकि धर्म का विषय था ।।
कालों के काल क्या बिगाड़ सकता था कर्ण को
क्योंकि कर्ण इतना किया हुआ दान पुण्य था ,
पांडवों के गुण उनमें सम्पूर्ण था ।।

जन्म देकर माता कुंती बहा दी गंगा में
मिटा ली कलंक सारी ,
एक माता धरती ने एक तीर की चोट से
शाप दे डाली  ।
एक ही सच्चा माँ थी
राधा जो कर्ण को पाली ,
तो हे ! श्रीकृष्ण आप अपनी प्रस्ताव हमें
न सुनाओ
क्योंकि मैं कर्ण अब हूँ न हस्तिनापुर
सिंहासन की उत्तराधिकारी ।।

तू अपनी किरणों से जगत को रोशन करता ,
पर तू कैसे तात है ,
रणभूमि में भी कहाँ पुत्र कर्ण का दिया
हुआ तू साथ है ।
अर्जुन को जीताने में माता कुंती और देवताओं का हाथ है ।।
कभी मना ली होती कुंती माता कि
आज मेरा ज्येष्ठ पुत्र कर्ण का वर्षगांठ है ।।

भरी सभा में तू अर्जुन
सूर्य पुत्र कर्ण
को सूत पुत्र कहकर किया अपमानित ,
हरि न होता तेरे साथ तो होता न तेरा जीत ।
बता दिया दुनिया को कर्ण
दुनिया की रीत ,
जब आप कहलायेंगे विजेता
तब दुश्मन भी बना लेंगे आपको मित्र ।।

कविता - आओ करते है बात
आओ करते है बात  ,
बात के बहाने ही होगी मुलाक़ात ।
जल्दी आना नहीं तो हो जायेगी रात ,

तुम्हें पाएं हुए आज महीना हुए तीन ,
एक साथ गुजारे रात और दिन /
हम अपने में , तुम रहती हो मेरे में लीन ,
अंधकार राह भी रोशन न हो पाते , पूजा आपके बिन ,


याद आज भी आते हो ।



मानव बनकर धरती पर आएँ 

क्यों न मानव के कर्म कर पाते हो ,

इधर - उधर भटकर समय बीताते

क्यों न हरि के गुण गाते हो ।।


माता - पिता के सपनों को 

क्यों न साबित कर दिखाते हो ,

बदलते ज़माने के साथ 

तू यूँ क्यों बदल जाते हो ।


बदलकर तुम पुत्र कर्म को

 यूँ तो भूल जाते हो ,

प्रेम जाल में फँसकर

तू अपनों से दूर हो जाते हो ।।


दूर प्रदेश में जाकर दोनों प्राणी

अपना घर बसाते हो ,

आधुनिकता में जीकर

अपना संस्कृति सभ्यता मिटाते हो ।।









योद्धा कर्ण 


अर्जुन को अर्जुन बनने में

मिला हुआ सब देवताओं का गुण था ,

पर कर्ण को कर्ण बनने में सिर्फ़

 कर्ण का ही जुनून था ।।

माता कुंती गंगा में बहा दी

उन्हीं का वह कर्ण  ( बेटा ) सून था ,

भाई - भाई में लड़ा दिए श्रीकृष्ण

एक ही माँ का तो खून था ।।   ( 1 )


सून - बेटा 


योद्धा कर्ण  


ज्ञान दिए ज्ञान छीने कैसा गुरु परशुराम था ,

विवश परशुराम भी 

क्योंकि धर्म की रक्षा करना ही उनका काम था ।।

कहाँ साथ दिए मर्यादा पुरुषोत्तम राम ?

जो श्रीकृष्ण के रूप अवतार लिए हुए राम था

लाख मुसीबत के बाद भी न घबड़ाएं

वह वीर योद्धा,  कर्ण  उनका नाम था ।।


कर्ण के रहते दुर्योधन को एक पल का भी न भय था ,

विवश श्रीकृष्ण भी 

क्योंकि धर्म का विषय था ।।

कालों के काल क्या बिगाड़ सकता था कर्ण को

क्योंकि कर्ण इतना किया हुआ दान पुण्य था ,

पांडवों के गुण उनमें सम्पूर्ण था ।।


जन्म देकर माता कुंती बहा दी गंगा में

मिटा ली कलंक सारी ,

एक माता धरती ने एक तीर की चोट से

शाप दे डाली  ।

एक ही सच्चा माँ थी 

राधा जो कर्ण को पाली ,

तो हे ! श्रीकृष्ण आप अपनी प्रस्ताव हमें

न सुनाओ

क्योंकि मैं कर्ण अब हूँ न हस्तिनापुर 

सिंहासन की उत्तराधिकारी ।।




तू अपनी किरणों से जगत को रोशन करता ,

पर तू कैसे तात है ,

रणभूमि में भी कहाँ पुत्र कर्ण का दिया

 हुआ तू साथ है ।

अर्जुन को जीताने में माता कुंती और देवताओं का हाथ है ।।

कभी मना ली होती कुंती माता कि

आज मेरा ज्येष्ठ पुत्र कर्ण का वर्षगांठ है ।।


भरी सभा में तू अर्जुन 

सूर्य पुत्र कर्ण

को सूत पुत्र कहकर किया अपमानित ,

हरि न होता तेरे साथ तो होता न तेरा जीत ।

बता दिया दुनिया को कर्ण 

दुनिया की रीत ,

जब आप कहलायेंगे विजेता 

तब दुश्मन भी बना लेंगे आपको मित्र ।।




कविता - आओ करते है बात 

आओ करते है बात  ,

बात के बहाने ही होगी मुलाक़ात । 

जल्दी आना नहीं तो हो जायेगी रात ,



तुम्हें पाएं हुए आज महीना हुए तीन , 

एक साथ गुजारे रात और दिन /

हम अपने में , तुम रहती हो मेरे में लीन ,

अंधकार राह भी रोशन न हो पाते , पूजा आपके बिन ,


विजय , चन्द्रा कॉम्प्लेक्स,
मामी की भोजपुरी गाना पर वीडियो बनाई रही उनका स्टेटस लगाया रहा ,
Sach me bhabhi ji - 16.05.2022

BIRLA OPEN MINDS INTERNATIONAL SCHOOL

हमारी नाव चली
✍️ एस पी खत्री

आओ भैया तुम्हें सुनाएँ , सुन्दर एक कहानी
मगर नहीं राजा रानी की , पर है बहुत पुरानी ।

छोटी - छोटी नावें देखो , हमको सैर करातीं
पानी पर अठखेली करतीं ,सभी ओर ले जातीं ।

कुछ पुरखे थे बसे हमारे , नदियों के ही तीर ,
कंद , मूल , फल खाकर जीते , पीते निर्मल नीर ।

सोचो तो जब नाव नहीं थी , तब हम क्या कर सकते ?
लंबी - लंबी , गहरी नदियाँ कैसे पार उतरते ?

लड़के खेला करते थे नित , बैठ नदी किनारे
तैर कभी कुछ पार उतरते , कुछ रहते मन मारे ।

एक खिलाड़ी लड़का आया , लिए पेड़ की टहनी
ज़ोर लगा पानी में फेंकी , रही तैरती टहनी ।

हुआ अचंभा सबको बेहद , टहनी ज़रा न डूबी
इधर - उधर मँडराती जाती , यह थी उसकी खूबी ।

लड़के सब हो गए इकट्टे , करने को खिलवाड़
लगे फेंकने लंबी शाखें , पीपल हो या ताड़ ।

वे सब के सब रहे तैरते , बड़े मौज से बहते ,
लड़के उनको देख खुशी से , आपे में क्या रहते !

पानी पर क्या तैर सकेगी मोटी लकड़ी भारी
बड़े पेड़ का तना काटने की तब हुई तैयारी ।

रहा तैरता बड़ी शान से , बड़े पेड़ का लट्ठा
उसके बाद गया तैराया , बड़े तने का गट्ठा  ।

बनने लगी तभी से नावें , छोटी, बड़ी हमारी
पानी से क्यों कर डर लगता , विजय हुई थी भारी ।

सागर हमने जीत लिया है , छूट गया डर सारा ।
चले चीरता उसकी छाती , बड़ा जहाज़ हमारा ।

अगर नहीं वह छोटा लड़का , टहनी को तैराता ,
बनती कैसे ये नौकाएँ , क्या जहाज़ बन पाता ?

✍️ एस.पी.खत्री





वितान , कक्षा - 4

पाठ मूल्यांकन अभ्यास
शब्द - अर्थ

अठखेली - खेल , इठलाकर चलना
पुरखे - पूर्वज
तीर - नदी का किनारा
कंद - गाँठदार जड़

निर्मल - साफ़
नीर - पानी
अचंभा - हैरानी
खूबी - गुण

मुहावरे -
मन मारना - इच्छा को दबाना
आपे में न रहना - अपने पर काबू न रहना

कविता से ....
1. इन प्रश्नों के उत्तर दो -
* मौखिक
क. इस कविता में किसकी कहानी है ?
उत्तर - इस कविता में नाव कैसे बनी इसकी कहानी है ।
ख. हमारे पूर्वज कहाँ बसे हुए थे ?
उत्तर - हमारे पूर्वज नदियों के किनारे बसे हुए थे ।
ग. एक खिलाड़ी लड़के ने क्या किया ?
उत्तर - एक खिलाड़ी लड़के ने खेल - खेल में
पानी में एक टहनी फेंक दी ।
घ. लड़के क्या देखकर खुश हुए ?
उत्तर - लड़के टहनी को पानी में तैरता देखकर खुश हुए ।

* लिखित

क. जब नावें नहीं थी तो नदियाँ कैसे पार करते होंगे ?
उत्तर - जब नावें नहीं थी तब लोग तैरकर
नदी पार करते थे।
ख. हमने सागर को कैसे जीत लिया ?
उत्तर - सागर पर बड़े - बड़े जहाज़ तैराकर
हमने उसे जीत लिया है।
ग. अगर छोटा लड़का टहनी को












कविता - हमारी रेल चली ...
साहित्य एक नज़र 🌅 -

आओ विद्यार्थी तुम्हें सुनाऊं , एक अविष्कार की कहानी ,
चली हमारी रेल ,  है बात बहुत पुरानी ।

एक बच्चा ने रसोई में माँ को देखा,
बनाते खाना चावल ,
बर्तन की पानी भाप बनकर
दें रहे थे ढक्कन को टक्कर ।


साहित्य एक नज़र , अंक - 9
( कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका )

https://online.fliphtml5.com/axiwx/myoa/

🌅 साहित्य एक नज़र  🌅
Sahitya Eak Nazar
19 May , 2021 , Wednesday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর

अंक - 9
19 मई 2021
   बुधवार
वैशाख शुक्ल 7 संवत 2078
पृष्ठ - 1

कुल पृष्ठ - 12

______

साहित्य संगम संस्थान जम्मू-कश्मीर इकाई के समस्त पदाधिकारियों एवं सक्रिय सदस्यों साहित्यकारों को सम्मानित किया गया ।

साहित्य एक नज़र 🌅 , बुधवार , 19 मई 2021

बुधवार , 19 मई 2021 को साहित्य संगम संस्थान के संयोजिका आ. संगीता मिश्रा जी की करकमलों से
साहित्य संगम संस्थान जम्मू-कश्मीर इकाई  के पदाधिकारियों व सक्रिय सदस्यों को सम्मानित किया गया । आ. प्रदीप मिश्र अजनबी जी ,आ. भूपेंद्र कुमार भूपी जी , आ. मदन गोपाल शाक्य जी , आ. हर किशोर परिहार जी , आ. शिव सन्याल जी को साहित्य मणि सम्मान से विभूषित किया गया, सक्रिय सदस्यों
आ. अर्चना श्रीवास्तव जी , आ. अजय तिरहुतिया जी , आ. बेलीराम कंसवाल जी , आ. गिरीश पांडे जी , आ. हंसराज सिंह हंस जी को उत्तर प्रदेश संगम सलिला सम्मान से सम्मानित किया गया । महागुरुदेव डाॅ० राकेश सक्सेना जी (अध्यक्ष उत्तर प्रदेश इकाई) इकाई की प्रगति में समस्त सर्वाधिक सक्रिय सदस्यों का भी अहम योगदान मानते हैं इसलिए सक्रिय सदस्यों को संगम सलिला से सम्मानित किया जाता है। राष्ट्रीय अध्यक्ष महोदय आ. राजवीर सिंह मंत्र जी , कार्यकारी अध्यक्ष आ. कुमार रोहित रोज़ जी , सह अध्यक्ष आ. मिथलेश सिंह मिलिंद जी, संयोजिका आ. संगीता मिश्रा जी ,  पश्चिम बंगाल इकाई अध्यक्षा आ. कलावती कर्वा जी ,  राष्ट्रीय सह मीडिया प्रभारी व पश्चिम बंगाल इकाई सचिव रोशन कुमार झा , आ. स्वाति पाण्डेय 'भारती' जी  ,आ. अर्चना जायसवाल जी , अलंकरण कर्ता आ. स्वाति जैसलमेरिया जी, आ. मनोज कुमार पुरोहित जी,आ. रजनी हरीश , आ. रंजना बिनानी जी, आ. सुनीता मुखर्जी , आ. मधु भूतड़ा 'अक्षरा' जी , आ. रीतु गुलाटी जी ,आ. भारत भूषण पाठक जी , आ. अर्चना तिवारी जी , संगम सवेरा के संपादक आ. नवल किशोर सिंह जी , वंदना नामदेव जी समस्त सम्मानित पदाधिकारियों व साहित्यकारों उपस्थित होकर  सम्मानित हुए पदाधिकारियों व सक्रिय सदस्यों को बधाई दिए ।

________
20 मई 2021 को हिंददेश परिवार गाजियाबाद इकाई का उद्घाटन समारोह ।

साहित्य एक नज़र 🌅 , बुधवार , 19 मई 2021

हिंददेश परिवार गाजियाबाद इकाई का उद्घाटन समारोह 20 मई 2021, गुरुवार को है। यह कार्यक्रम सुबह आठ बजे से रात्रि दस बजे तक होंगे । इस कार्यक्रम में अध्यक्ष व संस्थापिका आ. डॉ अर्चना पांडेय 'अर्चि' जी , सह अध्यक्ष आ. डॉ स्नेहलता द्विवेदी जी , महासचिव आ. बजरंगलाल  केजडी़वाल जी , अंतरराष्ट्रीय मीडिया प्रभारी आ. राजेश कुमार  पुरोहित जी, पश्चिम बंगाल मीडिया प्रभारी रोशन कुमार झा, हिंददेश परिवार के समस्त सम्मानित पदाधिकारियों व साहित्यकारों उपस्थित होकर काव्य पाठ करेंगे, अतः आप सभी सम्मानित साहित्यकार व साहित्य प्रेमी आमंत्रित हैं ।।

__________
काल के गाल में समाती ज़िन्दगीयां।
चीख चीत्कार की आवाज़ें और सिसकियां।
तुम अदृश्य शत्रू से इंसानियत को रौंदते।
अपनी भयाभय के वो स्हाय चिह्न छोड़ते।
विष के झागों से भरी,
सारे विश्व को डसती फुवारें।
अपने गरल दन्त से,
दुनियाँ में खड़ी करते मौत की दीवारें।
ये इंसा का फैलाया , है तांडव नर्तन।
हो रहा विश्व का करुण विवर्तन।
मतकर बेज़ुबानों का भक्षण।
मतकर प्रकृति का उल्लंघन।
पाट दिया धरा को,
परमाणू बारूदी हथियारों से।
आसमां भी पाट दिया,
अंतरिक्ष के अम्बरों से।
प्रकृति की मानव से जंग जारी है।
ये तो धरा का प्रकोप है,
संभल ये इंसा, अब आसमां की बारी है।
ये तो कोरोना है, अभी कितनी और फैलनी महामारी हैं।

✍️ प्रमोद ठाकुर
    ग्वालियर
________

✍🏻 अब तो कलम भी हार गई है ✍🏻

ये कैसी बवा धरा पर आई है,
हर घर-हर पल मौत तांडव कर रही है,
दवा और दुवा कुछ भी काम नहीं कर रही है,
न अस्पताल में और ना ही श्मशान में जगह मिल रही है,
चारों ओर मानव त्राहि-त्राहि माम् हो रहे है,
कोई-सा दिन या कोई-पहर नहीं खाली जाता है,
किस न किसी के अजीज की मरने की खबर आती है,
अब तो अश्कों से आँसू भी इस तरह भयभीत है,
इनसे अब तो रोया नहीं जाता है
*ॐ शांति ॐ* और श्रद्धांजलियां दे कर,
लिख-लिख अब तो कलम भी गई है हार,
मत कर ऐ मौत ! तू इतना भी तांडव अब ठहर जा,
बिना कसूर किसी के अपनों को यूं ही उठाती रही जा,
शर्म कर तू अब थोडा-सा शर्म नहीं आती तुझे क्या ?
बे-शर्मी से उजाड़ती है किसी का भी घर तू क्यों?
 

✍️ चेतन दास वैष्णव
      गामड़ी नारायण
         बाँसवाड़ा , राजस्थान
__________
             
अंक - 9
19 मई 2021
   बुधवार
वैशाख शुक्ल 7 संवत 2078
पृष्ठ -  3

विषय :- हम धरती के संतान है ,

हम धरती के संतान है ,
पवित्र हमारा जन्मस्थान है ।
जहाँ राम , कृष्ण भगवान है ,
कर कर्म , कर्म करने वाला हम इंसान है ।

कला और विज्ञान है ,
सीखाने के लिए विद्वान हैं ।
सच में हमारा देश महान ,
हम हिन्दुस्तानी
देश हमारा हिन्दुस्तान है ।

धरती के हम संतान है ,
धरती से ही हमारा मान है ।
सीखना और हमें ज्ञान है ,
क्योंकि धरती पर
हम बुद्धिजीवी इंसान है ।।

✍️ रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज,कोलकाता
कलकत्ता विश्वविद्यालय
ग्राम :- झोंझी , मधुबनी , बिहार,
मो :- 6290640716, कविता :- 19(99)

🌅 साहित्य एक नज़र 🌅 अंक - 9
Sahitya Eak Nazar
19 May , 2021 , Wednesday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর

"आओ!संभाल लें"

कभी आरोह, कभी अवरोह सी है जिंदगी,
कभी सुलझी , कभी उलझी है जिदंगी,
मैं हूं, तुम भी, वे भी , सब भीड़ से
दुनिया सी बन जाती है जिदंगी,
कोई बात मन भाती, कोई तुझ भाती, और कुछ प्रकृति भाती है,
इस उहापोह को ही दे पाते हैं नाम जिदंगी,
आज है, कल नहीं ,यही सत्य समझाती है जिदंगी,
सुनो मित्र! पल का विश्वास संभाल लें,
आओ संभाल लें यह टिमटिमाती सी जिदंगी।

✍️ डॉ. मंजु अरोरा
लेखिका/प्रचार्या.सी.सै़.स्कूल.जांलधर।
जालंधर,पंजाब।                      
_____

वह अप्रतिम देश कहाँ है!

समस्त घृणा और विभेद को त्याग
मानवता के प्रति जगा कर राग
किया अशुभ का क्षय और नाश
विश्वगुरु बन किया तिमिर का ह्यास
भारत ने देकर मंत्र महान
रचा धरा पर स्वर्गीय अधिष्ठान

धर्म का मर्म समझा कर जग को
आत्मज्ञान से उज्ज्वल कर मन को
भर स्वयंप्रकाश चिरंतन असीम
दिया ज्ञान दर्शन चरित्र अप्रतिम
सत्य अहिंसा शुचिता का संदेश
भारत मानवता का पावन देश

बढ़ा अधर्म तमस अंधविश्वास जब
दुराचार अन्याय अपहरण दमन जब
जन जन का मन जब गया हार
तब तब मनुष्यता ने लिया अवतार
प्रकट हुआ धरती के सीने को फाड़
बन प्रलयंकारी प्रकोप विकराल
मिटा देने को समस्त धरा से
दुर्नीतियों का असह्र भार

राजतंत्र में प्रजा सबल थी
जनहित की धारणा प्रबल थी
राजधर्म और कर्तव्य पालन हित
सीता तक निर्वासित होती थी

राजा रंक बने फिरते थे
जन के सम्मुख मुकुट झुकते थे
तृण सदृश थे राज त्यागते
भिक्षुक बने थे प्रजा पालते
राजसिंहासन एक प्रतीक मात्र था
राजा के हाथों दानपात्र था।

पर यह क्या सब मिथकमात्र है
होता यदि ऐसा कोई भारत तो
कांप रहा क्यों आज जनगात्र है

चारों ओर हिंसा मार-काट
नारी उत्पीड़न बलत्कार
दिन-दहाड़े शिरोच्छेदन अत्याचार
कहाँ गया वह सारा आदर्श
राजधर्म का महापतन
लोकतंत्र में वंशवाद
विदूषक बने हैं कर्णधार
नहीं! अतीत का सब झूठ है
आज हमारा देश ठूंठ है।

ऋजुता सत्यता हो रही कलंकित
पतित पापप्रिय निद्र्वंद्व अशंकित
तमस आज छाया चतुर्दिक
अनीति ही सम्मानित सर्वदिक
भ्रष्टाचार का विस्तीर्ण फलक है
लोकतंत्र का सूख रहा हलक है

अराजकता अनाचार का साम्राज्य है
देश को अपने अतीत की तलाश है
भारत का जन जन ढूँढ़ रहा है
वह अप्रतिम हमारा देश कहाँ है!

✍️ नाम -  नेहा कुमारी चौधरी
पदनाम - विद्यार्थी
कक्षा -M. A (4 th semseter )
महाविद्यालय का नाम -कलकत्ता विश्वविद्यालय, हावड़ा नवज्योति।
फोन नंबर 7278036897
ईमेल -smartneha2397@gmail.com
जन्मतिथि-23/07/1997
पता - इच्छापुर डुमुरजाला  एच.आइ. टी.  क्वार्टर ब्लॉक 17 रूम नंबर 14 टाइप 3आर  हावड़ा 711104

__________
कविता

"" एक नज़र ""

आज मैंने
एक नजर
उन्हें देखा
सोचा और समझा
तो यही पाया कि
वो हमारे लिए व्याकुल है
और
हम उनके बिना
व्याकुल है
इसलिए कुछ
शब्द संयोजन करके
कुछ लिखा तो वो
कविता के रूप में
उदय हुआ
शायद यही हैं
मेरी नज़र में
साहित्य एक नज़र।।

✍️ मनोज बाथरे चीचली
जिला नरसिंहपुर मध्य प्रदेश

______

गीत रचना,,,,,,, घर से दफ्तर, दफ्तर से घर,
रचनाकार,,,,,,,,  डॉक्टर देवेंद्र तोमर

घर से दफ्तर, दफ्तर से घर,
यूं आना जाना रोज हुआ।
दिल से मिलना भूल गए हम
बस हाथ मिलाना रोज़ हुआ।

कागज की मुस्कानें लेकर
उत्सव में शामिल रोज हुए
जहर उगलती सांसें लेकर
फिर खड़े-खड़े ही भोज हुए
व्हिस्की, रम, उंगली में थामे
कुछ  कांटे खाना रोज हुआ।
दिल से मिलना भूल गए हम
बस हाथ मिलाना रोज हुआ।

चौपालों की रामधुनें तो
उस बीते युग की बात हुईं
हुई कहानी गुम नानी की
गुम टेसू की बारात हुई
डिस्को की थिरकन पर थिरके
फिर नंगा गाना रोज हुआ।
दिल से मिलना भूल गए हम
बस हाथ मिलाना रोज हुआ।

संस्कारों की गठरी बांधी
हैं परंपराएं खूंटी पर
पूजा घर में फूल नहीं है
अब सारा पैसा ब्यूटी पर
नीली पिक्चर वाली सीडी
घर  लेकर आना रोज हुआ।
दिल से मिलना भूल गए हम
बस हाथ मिलाना रोज हुआ।

घर से दफ्तर, दफ्तर से घर,
यूं आना जाना रोज हुआ।
दिल से मिलना भूल गए हम
बस हाथ मिलाना रोज हुआ।

✍️ डॉक्टर देवेंद्र तोमर
अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष
विश्व साहित्य सेवा संस्थान
_______

* लंकापति रावण बहुत था ज्ञानी *
**************************

लंकापति  रावण  बहुत  था  ज्ञानी,
चारों वेद  थे  उसको  याद जुबानी।

शक्तिशाली नृप  जग  में कहलाया,
शक्ति में अंधा बन बैठा अभिमानी।

शिव  की भक्ति करता लंका नरेश,
की नही कभी किसी संग बेईमानी।

स्वर्ण रजित सुन्दर  महल बनवाया,
सोने की नगरी का नहीं कोई सानी।

तेजस्वी,पराक्रमी, प्रतापी,रूपवान,
पाप,अधर्म,अनीति बनाया अज्ञानी।

सीता का धूर्तता से हरण कर लाया,
जीवन मे  यही कर बैठा वो नादानी।

पराई स्त्री  को  छुआ तक  नही था,
नही पंहुचाई  कोई  शारीरिक हानि।

हठधर्मिता के कारण ही  दैत्येन्द्र ने,
स्वर्ण नगरी  लंका  पड़ गई  हरानी।

मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम ने  हराया,
अहंकार वशीभूत पड़ी मात खानी।

पुतला  उनका  ही है जलता आया,
बहुत  रावण हैं जग में करें शैतानी।

हर जन मन में दशानन अब बसता,
राम समरूप नही,न सीता महारानी।

इंसान लगे  आज रावण से बदत्तर,
धूर्त,अधर्मी,करते पग पग बेईमानी।

मनसीरत कहे आज कोई राम नहीं,
रावण को बदनाम करेते महाज्ञानी।
***************************

✍️ सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)
_____
पूजा कुमारी
रामकृष्ण महाविद्यालय मधुबनी बिहार
राष्ट्रीय सेवा योजना
पेंटिंग

_______
एक कविता
चांदी का चम्मच

लाल बत्ती पर देखा उस लड़की को
गुब्बारे बेचते और
हाथों की आड़ी तिरछी रेखाओं में
कुछ खोजते हुए
कातर निगाहों से देख रही थी
मानो पूछ रही हो
चमचमाती वातानुकूलित गाड़ी में
बैठे बाबू से
दूर खड़ा
कनखियों से देखता
परिहास करता हुआ
मुक़द्दर
छांव में भी तपन का
अहसास करा गया
ये चांदी का चम्मच भी
अजीब अनसुलझी
पहेली है-----।

✍️ अल्पना नागर
नई दिल्ली।

________

" जवाब मांगता हूं "

देना कोन चाहता है, जब कोई हिसाब मांगता है!
करना तुझे ही बहाल है, फिर क्यो जवाब मांगता है!

सुनो ये खिचड़ी, दाल ,दलिया सब दलाली के साधन है
गांव का हर एक बच्चा अब किताब मांगता है!

ये मंदिर मस्जिद के बहाने बांटना अब बंद कर दो,
बदलता दौर है गली का हर हुनरअब खिताब मांगता है!

डूबता शक्स तिनके के सहारे कब संभलता है
पुराने कर्ज में डूबा किनारे के लिए अब नाव मांगता है!

बुरा है बक्त जबतक बख्श दो ना  जान उसकी
बिलखता भूख से बंदा कब कबाब मांगता है!

करीबी ना सही उपकार करके देख लेना
दुआए आपके खातिर रब से बेहिसाब मांगता है!

उखड़ती सांस अपनों की पड़ी लाशे तितर बितर
ये मंजर से भरा चेहरा अब तेज़ाब मांगता है!

सुबह का चीखता अख़बार तुम्हे धिक्कार लिखता है
चिताओ पर सुलगता लोकतंत्र जब चुनाव मांगता है!

               ✍️  -नीरज (क़लम प्रहरी)
                कुंभराज, गुना (म. प्र.)

_____
डा0 प्रमोद शर्मा प्रेम के मुक्तक   
  
                    1 
सभी को  कीमत हवा की बतायें सभी
सभी को देखकर अब  मुस्कुराये सभी
लगेगी प्यास तो पानी कहाँ से लाओगे
देर ज्यादा न हो जाये पेड लगायें सभी
      
                     2
बद से बदतर हुए ....जिन्दगी के रास्ते
आदमी मरता रहा..ख्वाहिशों के वास्ते
स्वार्थ के मोहपाश मे बाँध बैठे है जबां
है बुराई खुश 'करती है.. सच के नाश्ते
                     3
सभी को  कीमत हवा की बतायें सभी
सभी को देखकर अब  मुस्कुराये सभी
लगेगी प्यास तो पानी कहाँ से लाओगे
देर ज्यादा न हो जाये पेड लगायें सभी               
                      4
पेड से जब  भाऱी पके फल गिरने लगे
मुझ पर  इल्जाम रोज पानी क्यो दिया
कुछ लोगों ने रंजिश से मोहब्बत करके
खुद को नफरत के सागर ने डुबो दिया
                     5
याद आते है बहुत  दिन पुराने वाले
खुश नही  गाँव  से शहर जाने वाले
रहेगा कब  तलक ये मौत का मंजर
बता कुछ तू ही तकदीर बनाने वाले
                      6
हर तरफ लगता है  केवल खौफ बाकी
जहनो दिल रहे साफ  रखो होश बाकी
है वक्त के पहिये का रूख शामो सवेरा
कभी जिन्दगी मे छाँव कभी धूप बाकी
        
✍️ डॉ. प्रमोद शर्मा प्रेम
नजीबाबाद बिजनौर
_________
* माँ की आंचल *

माँ की आंचल की खुशबू
किसी उपवन में ना मिल पाती है,
सुलाती है मां जब थपकी देकर आज भी
भटके मन को जैसे जन्नत मिल जाती है।

बाल न बांका हो सकता कभी
मां की दुआ में असर है इतनी,
निफिक्र होकर निकलता हूं घर से
जब रखती है मां सर पर हाथ अपनी।

मां ही धरती मां ही आसमां
मां से ही सारा जहां है,
मां ही सरित मां ही प्यास
मां के बिन कहां कोई यहां है ।

कोई जन्म दात्री तो
कोई पालनकारी मां है,
दोनों का हक है बराबर बच्चों पर
दोनों ही कल्याणकारी मां है ।

मां के चरणों का धूल
यूं ही माथे पर लगाता रहूंगा,
खुदा करे मेरी उम्र भी लग जाए मां को
ताकि ताउम्र मां के आंचल में सोता रहूंगा ।।

संजीत कुमार निगम
फारबिसगंज, अररिया (बिहार)
मोबाइल - 7070773306

_________
ये जमीं रो रही,
   आसमान रो रहा है।
       लाशों का ढेर देख,
         यहाँ इंसान  रो रह है।

कब्रिस्तान में भी नहीं
    जगह कही खाली।
        शमसान भी रो रहे है,
            कब होगी जगह खाली।

चारो तरफ अंधेरा,
    सन्नाटा पसर गया है।
        त्राही त्राही करता
            इन्शा गुजर गया है।

तकती है निगाहें,
     कोई सुकून मिलता।
          सब कुछ खो गया है,
               सूनी राह सूना किनारा।

मत करना धमण्ड,
   काया और माया का।
       कुछ भी काम न आये,
            सब कुछ छूट जाता।

ये जमीं रो रही,
    आसमान रो रहा है।
        लाशों का ढेर देख कर,
             यहाँ इंसान रो रहा है।

                ✍️  *** कृष्णा शर्मा ***

ये जमीं रो रही,
आसमान रो रहा है।
लाशों का ढेर देख,
यहाँ इंसान  रो रह है।

कब्रिस्तान में भी नहीं
जगह कही खाली।
श्मसान भी रो रहे है,
कब होगी जगह खाली।

चारों तरफ अंधेरा,
सन्नाटा पसर गया है।
त्राही त्राही करता
इन्शा गुजर गया है।

तकती है निगाहें,
कोई सुकून मिलता।
सब कुछ खो गया है,
सूनी राह सूना किनारा।

मत करना घमण्ड,
काया और माया का।
कुछ भी काम न आये,
सब कुछ छूट जाता।

ये जमीं रो रही,
आसमान रो रहा है।
लाशों का ढेर देख कर,
यहाँ इंसान रो रहा है।

✍️  *** कृष्णा शर्मा ***
______
पर्यावरण

आओ मिलकर शपथ लें पर्यावरण बचाएँ हम।
चहुँओर हरियाली हो प्रकति को सुंदर बनाएँ हम।

ताजी, ठंडी, खुली हवा मिले मन में हो खुशहाली,
भारत भूमि के कण-कण में हरियाली फैलाएँ हम।

हरी-हरी धरती ये प्यारी और हरे-भरे हो खेत,
धरती की पावन मिट्टी लेकर बीज उगाएँ हम।

नव-पल्लव अंकुरित हुए कलियाँ भी खिलने लगी,
उपवन में खिले फूल और गुलज़ार सजाएँ हम।

मंद बयार चले पुरवैया सौधी-सौधी खुशबू फैले,
रंगीन है फिजायें और मौसम में बहार लाएँ हम।

पेड़ काटना बंद करो न करो प्रकति से खिलवाड़,
दस पेड़ लगाओ सभी, घर-घर अलख जगाएँ हम।

खुशनुमा वातावरण हर्षोल्लास है आज मेरा मन,
हर्षित हो झूमें मन मेरा खुशियों के गीत गाएँ हम।

✍️ सुमन अग्रवाल "सागरिका"
            आगरा
____

मेरे देश में ।

अचानक, पतझर का मौसम आ गया।
पता नही कहां से एक तुफान आ गया।
कोरोना खूद का नाम था ,उससे सबको रोना।
कितना किया जतन सबने दवाई, दारू ,टोना।
फिर भी जाने का नाम ना लेता, फूलो को गिराएं।
मसल मसल उन्हे चिल्लाएं मानव जन को हराएं।
तभी कुछ सेवा भावी ,उठ खडे हो गये।
दो दो हाथ इससे करने मानवता बचाने।
क्या शासन, और क्या प्रशासन लगे सभी मंत्रीजी
हर कही पर ऐसे जन जो रखते अच्छा तंत्रजी।
दिन रात लडने लगे, मानवो को बचाने लगे।
और ब्लेक फंगस से भी हाथ दो दो करने लगे।
तभी टाऊटे ने दिखलाया अपना बडा जोश।
पेड, पौधे, मकान धराशायी ,ऐसा किया विनाश।
पर इंसान ने प्रभू भजन मे अपने को लगाये
देख देख प्रभू भी हारे, और आशीष दे पाये ।
जाओं अब सब अच्छे से रहना इन दुष्टो को भगाता हूं।
मेरे बच्चो आज धरा पर आकर तुम्हे बचाता हूं।

✍️ ममता वैरागी तिरला धार
_____

हौसला बनाए रखना

हर  मुसीबत में हौसला बनाए रखना
उम्मीद का दीप जलाए रखना

तुफान कितना ही बड़ा हो पर दीप की
लौ को सहारा हाथों का
हो बस हौसला बनाए रखना

माना कि होता है बुरा
वक्त ये भी टल जाऐगा
हो सकता है कि
कुछ पत्ते भी झड़ जाए

पर तरूवर तटस्थ
खड़ा रहता है,जिस दिशा
का  हो तुफान बस झुक जाता है

हौसला बनाए रखता है
पंछियों के निडर बचाएं
रखता है हौसला बनाए रखता है

गिरते पड़ते तुफान से लड़ते हुए आशा
उम्मीद का दीप जलाए
रखना हौसला बनाए रखना

माना कि ग़म है जीवन में पर थोड़ी खुशीया
दामन में सजाए रखना होंसला बनाए रखना

सूख्ता दरख़्त भी हरा हो जाता है ,
पंछियों ,
राहगीरों का सहारा हो जाता है ,
जो हौसला रख
लेता है

इसलिए प्रभु पर विश्वास
रखिए मन के भीतर
आस ,रात चाहे कितनी ही
अंधियारी हो पर
हौसला  बनाए रखती है

बस विजय होगे इसी
बात पर होंसला बनाए रखिए

✍️ अर्चना जोशी
भोपाल मध्यप्रदेश
_________
विषय -" मुस्कुराकर चल मुसाफिर "
विधा-  कविता

आओ जी ले जीवन के
,ये खूबसूरत पल,
"मुस्कुराकर चल मुसाफिर '
बीत न जाए ,खुशी के ये सुनहरे पल...।
खुशियों से भर लो,  झोली पल -पल,
क्योंकि ईश्वर ने दिया है,
हमें ये स्वर्णिम पल।

सुख- दुख जीवन में, आते -जाते हैं,
खुशियों के पल तो चुराये जाते हैं..।
खुशियों से झोली ,भर लो पल- पल,
कहीं बीत न जाए ,
जीवन के ये अनमोल पल।

अविस्मरणीय होते हैं ,
खुशी के ये पल,
बड़ी कठिनाई से ,
जीवन में आते हैं ये पल।
त्योहार से लगते हैं, खुशियों के पल,
"मुस्कुराकर चल मुसाफिर" ,
मन को सुकून, देते हैं यह पल.....।

ना जाने कब गम की,
छटा छा जाएगी,
यह जीवन है ,
सुख-दुख की छाया तो आएगी।
इस छाया में क्यों ना खोजे, खुशी के पल,
तपती रेत में भटकते
,कब तक ढूंढेगे खुशी के पल।
मुस्कुराकर  चल मुसाफिर,
मुस्कुरा कर चल....।।

✍️ रंजना बिनानी "काव्या"
गोलाघाट असम
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माँ की डांट
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मां तो मां ही होती है। जब वह नहीं होती तब उसका महत्व पता चलता है। मै तो बहुत नसीब वाली हूँ मुझे एक नहीं दो मांओं के आंचल की छांव मिली मेरी ताई जिन पर कोई बच्चा नहीं था । ताई ताऊ जी दोनों साथ रहते थे ।जन्म मां ने दिया सब बच्चों को और पाला बड़ी मां ने । सबसे छोटी थी तो शैतानियां भी भरपूर होती थी । डांट पड़ती छोटी मां से तो छिप जाती बड़ी मां के आंचल में पर बड़ी मां बड़े प्यार से समझाती और सिखाती कहती बेटा ससुराल जाओगी तब यह आंचल छिपने को नहीं मिलेगा मां डांटती है तुम्हारे भले के लिये ।
         छोटी उम्र में शादी हो गयी हर बात पर दोनों  मां की याद आती क्योंकि ससुराल में भरा पूरा परिवार सास ससुर ,जेठ जिठानी ,ननद देवर सब चाहते कि उनकी हर फरमाइश पूरी करू । सारे दिन काम करती कहां अपने घर में अपने कपड़े तक नहीं धोती थी । किसी कारण मेरी छोटी मां मेरी ससुराल आई बस मेरी जिठानी ने जम कर मेरी बुराई करी । जब मां जाने को थी और मै उन्हें दरवाजे तक छोड़ने आई वह बहुत चुप और सुस्त थी । मेरी आंखों में आंसू थे क्योंकि वह जा रही थी । जाते समय वह बोली बेटा मुझे तुमसे ये उम्मीद नहीं थी कि तुम मेरा नाम डुबो दोगी मै तुम्हारी बड़ी मां से क्या कहूंगी उन्हें बहुत दुख होगा। मै पूछती रही मां मेरी गलती क्या है पर वह चली गयी । मै तो खुल कर रो भी नहीं सकती थी । पति देव को मनाया और मायके आगयी आते ही बड़ी मां के कमरे में गयी और उनकी गोदी में सर रख कर रोने लगी उन्होंने मुझे चुप कराया और कहा बेटा तुम्हारी गलती नही उन लोगो की मानसिकता छोटी है अभी तुम छोटी हो थोड़ी पाक विधा में कमजोर बस नमक मिर्च लगा कर आलोचना कर दी । दूसरे दिन दोनों मांओ ने बस प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया दो महीने में बिलकुल निपुण होगयी आज मेरे खाने की सब बहुत तारीफ करते हैं और मै अपनी दोनो मां को नमन करती हूँ । हमेशा लगता मेरे आस पास हैं । मैने अपनी दोनों बेटियो और बेटे को भी हर कार्य को सिखाया है। इतना सब होने पर 20 - 25 साल बाद भी दोनों मां को नहीं भूल पाती ।
मैने स्वर्ग तो नहीं देखा , पर मां को देखा था,
अब भी जब रात को ,थक कर लेटती हूँ,
तो सच में मां बहुत याद आती हो,
वह रात को तुम्हारा सर को सहलाना,
और डांट कर सुला देना,दिनभर बेटा थकती हो
अब आराम करो ,
अब तो मै भी मां हूँ,
पर अब कोई बेटा नहीं कहता ..

✍️ डॉ . मधु आंधीवाल
____

साहित्य संगम संस्थान पश्चिम बंगाल इकाई अध्यक्षा आ. कलावती कर्वा जी को विवाह वर्षगांठ की हार्दिक शुभकामनाएं । 🙏💐🎂🎉🍰🎈🎁🌅
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"आपदा में अवसर" (लघुकथा)

वो एक बड़े अखबार में काम करता था । लेकिन रहता छोटे से कस्बेनुमा शहर में था। कहने को पत्रकार था ,मगर बिल्कुल वन मैन शो था ।
इश्तहार, खबर , वितरण , कम्पोजिंग सब कुछ उसका ही काम था । एक छोटे से शहर तुलसीपुर में वो रहता था । जयंत की नौकरी लगभग साल भर के कोरोना संकट से बंद के बराबर  थी ।
घर में बूढ़े माँ -बाप , दो स्कूल जाती बच्चियां और एक स्थायी बीमार पत्नी थी । वो खबर ,अपने अखबार को लखनऊ भेज दिया करता था ।इस उम्मीद में देर -सबेर शायद हालात सुधरें ,तब भुगतान शुरू हो।
लेकिन खबरें अब थी ही कहाँ ?
दो ही जगहों से खबरें मिलती थीं, या तो अस्पताल में या फिर श्मशान में।

श्मशान और कब्रिस्तान में चार जोड़ी कंधों की जरूरत पड़ती थी  । लेकिन बीमारी ने ऐसी हवा चलाई कि कंधा देने वालों के लाले पड़ गए।
हस्पताल से जो भी लाश आती ,अंत्येष्टि स्थल के गेट पर छोड़कर भाग जाते , जिसके परिवार में अबोध बच्चे और बूढ़े होते उनका लाश को उठाकर चिता तक ले जाना खासा मुश्किल हो जाता था ।
कभी श्मशान घाट पर चोरों -जुआरियों की भीड़ रहा करती थी ,लेकिन बीमारी के संक्रमण के डर से मरघट पर मरघट जैसा सन्नाटा व्याप्त रहता था ।
जयंत किसी खबर की तलाश में हस्पताल गया , वहां से गेटमैन ने अंदर नहीं जाने दिया , ये बताया कि पांच छह हिंदुओं का निधन हो गया है और उनकी मृत देह श्मशान भेज दी गयी है  ।

खबर तो जुटानी ही थी , क्योंकि खबर जुटने से ही घर में  रोटियां जुटने के आसार थे।सो वो श्मशान घाट पहुंच गया ।  वो श्मशान पहुंच तो गया मगर वो वहां खबर जैसा कुछ नहीं था ,जिसके परिवार के सदस्य गुजर गए थे ,लाश के पास वही इक्का दुक्का लोग थे ।
उससे किसी ने पूछा-
"बाबूजी आप कितना लेंगे "?
उसे कुछ समझ में नहीं आया । कुछ समझ में ना आये तो चुप रहना ही बेहतर होता है ,जीवन में ये सीख उसे बहुत पहले मिल गयी थी ।
सामने वाले वृद्ध ने उसके हाथ में सौ -सौ के नोट थमाते हुए कहा -
"मेरे पास सिर्फ चार सौ ही हैं ,बाबूजी । सौ रुपये छोड़ दीजिये ,बड़ी मेहरबानी होगी , बाकी दो लोग भी चार -चार सौ में ही मान गए हैं । वैसे तो मैं अकेले ही खींच ले जाता लाश को ,मगर दुनिया का दस्तूर है बाबूजी ,सो चार कंधों की रस्म मरने वाले के साथ निभानी पड़ती है। चलिये ना बाबूजी प्लीज "।

वो कुछ बोल पाता तब तक दो और लोग आ गए ,उंन्होने उसका हाथ पकड़ा और अपने साथ लेकर चल दिये।
उन सभी ने अर्थी को कंधा दिया  , शव चिता पर जलने लगा ।
चिता जलते ही दोनों आदमियों ने जयंत को अपने पीछे आने का इशारा किया । जयंत जिस तरह पिछली बार उनके पीछे चल पड़ा था ,उसी तरह फिर उनके पीछे चलने लगा ।
वो लोग सड़क पर आ गए । वहीं एक पत्थर की बेंच पर वो दोनों बैठ गए। उनकी देखा -देखी जयंत भी बैठ गया ।
जयंत को चुपचाप देखते हुये उनमें से एक ने कहा -
"कल फिर आना बाबू ,कल भी कुछ ना कुछ जुगाड़ हो ही जायेगा ।
जयंत चुप ही रहा।
दूसरा बोला -
"हम जानते हैं इस काम में आपकी तौहीन है ।हम ये भी जानते हैं कि आप पत्रकार हैं। हम दोनों आपसे हाथ जोड़ते हैं कि ये खबर अपने अखबार में मत छापियेगा , नहीं तो हमारी ये आमदनी भी जाती रहेगी। बहुत बुरी है , मगर ये हमारी आखिरी रोजी है । ये भी बंद हो गयी तो हमारे परिवार भूख से मरकर इसी श्मशान में आ जाएंगे। श्मशान कोई नहीं आना चाहता बाबूजी , सब जीना चाहते हैं ,पर सबको जीना बदा हो तब ना "।
जयंत चुप ही रहा ।वो कुछ समझ ही नहीं पा रहा था कि क्या उसने कर दिया ,क्या उसके साथ हो गया ?
दूसरा व्यक्ति धीरे से बोला -
"हम पर रहम  कीजियेगा बाबूजी ,खबर मत छापियेगा,आप अपना वादा निभाइये ,हम अपना वादा निभाएंगे । जो भी मिलेगा ,उसमें से सौ रुपए देते रहेंगे आपको फी आदमी के हिसाब से "।

जयंत ने नजर उठायी , उन दोनों का जयंत से नजरें मिलाने का  साहस ना हुआ ।
नजरें नीची किये हुए ही उन दोनों ने कहा -

"अब आज कोई नहीं आयेगा, पता है हमको। चलते हैं साहब , राम -राम "।

ये कहकर वो दोनों चले गए,थोड़ी देर तक घाट पर मतिशून्य बैठे रहने के बाद  जयंत भी शहर की ओर चल पड़ा।
शहर की दीवारों पर जगह -जगह इश्तिहार झिलमिला रहे थे और उन इश्तहारों को देखकर उसे कानों में एक ही बात गूंज रही थी ,
"आपदा में अवसर"।
समाप्त

Written by
Dilip kumar।  Email-jagmagjugnu84@gmail.com

__________

* दिवंगत जैन मुनि तरुण सागर जी द्वारा रचित कविता "आदमी की औकात  "*

जब राष्ट्र संत तरुण सागर जी बालाघाट प्रवचन कार्यक्रम में पधारे थे तभी उनकी दिव्य प्रेरणा से मैने विश्व मे पहली बार मां वैनगंगा जी पर संस्कृत में अष्टक, स्त्रोत एवम हिंदी में मां वैनगंगा जी की चालीसा एवम मां वैनगंगा जी की आरती का सृजन किया था ।माँ वैनगंगा अष्टक, स्त्रोत एवम आरती का विमोचन भी तरुणसागर जी के कर कमलों स्थानीय दादा बाड़ी वारासिवनी के कक्ष में समारोहपूर्वक सम्पन्न हुआ था ।उनकी चरण सेवा का सौभाग्य भी मुझे प्रत्यक्ष प्राप्त हुआ ।मेरी लेखनी की दशा और दिशा दोनों ही परिवर्तित का दी महान विभूति आचार्य तरुण सागर जी महाराज ने ।किसे पता था कि उनसे यह पहली और अंतिम भेंट है ।उसके कुछ वर्षों पश्चात ही आप निर्वाण को प्राप्त हुए ।अदभुत व्यक्तित्व के विशाल  ज्ञान के सागर की एक कविता अवश्य ही पढ़िए और आत्म सात कीजिये ।।
सादर विनय सहित
प्रणय श्रीवास्तव ",अश्क "
कवि, व्यंग्यकार साहित्यकार
वारासिवनी जिला बालाघाट से ।।
*फिर घमंड कैसा*
घी का एक लोटा,
लकड़ियों का ढेर,
कुछ मिनटों में राख.....
बस इतनी-सी है

   *आदमी की औकात !!!!*

एक बूढ़ा बाप शाम को मर गया,
अपनी सारी ज़िन्दगी,
परिवार के नाम कर गया,
कहीं रोने की सुगबुगाहट,
तो कहीं ये फुसफुसाहट....
अरे जल्दी ले चलो
कौन रखेगा सारी रात.....
बस इतनी-सी है

       * आदमी की औकात !!!!*

मरने के बाद नीचे देखा तो
नज़ारे नज़र आ रहे थे,
मेरी मौत पे.....
कुछ लोग ज़बरदस्त,
तो कुछ ज़बरदस्ती
रोए  जा रहे थे।
नहीं रहा........चला गया.....
दो चार दिन करेंगे बात.....
बस इतनी-सी है

     *आदमी की औकात!!!!*

बेटा अच्छी सी तस्वीर बनवायेगा,
उसके सामने अगरबत्ती जलायेगा,
खुश्बुदार फूलों की माला होगी....
अखबार में अश्रुपूरित श्रद्धांजली होगी.........
बाद में शायद कोई उस तस्वीर के
जाले भी नही करेगा साफ़....
बस इतनी-सी है
    *आदमी की औकात ! ! ! !*

जिन्दगी भर,
मेरा- मेरा- किया....
अपने लिए कम ,
अपनों के लिए ज्यादा जिया....
फिर भी कोई न देगा साथ.....
जाना है खाली हाथ....
क्या तिनका ले जाने के लायक भी,
होंगे हमारे हाथ ???  बस
*ये है हमारी औकात....!!!!*

*जाने कौन सी शोहरत पर,*
*आदमी को नाज है!*
*जो आखरी सफर के लिए भी,*
*औरों का मोहताज है!!!!*

*फिर घमंड कैसा ?*

*बस इतनी सी हैं*
*हमारी औकात...*
दिव्य ओजस्वी विश्व
सुधारक संत तरु सागर
जी को शत शत नमन ।।

_______

प्रतिबिंब

  एक छोटा शहर था जिसमें एक सत्यजीत नामक लड़का रहता था । सत्यजीत दिखने में सांवला और उंचाई औसत बच्चों से ज्यादा, लोग प्यार से उसे सत्या कहते थे । सत्या पढने लिखने में होशियार था और खेलकुद में भी अव्वल। अपनी बात मनवानी खुब आती थी,अच्छी आवाज का भी मालिक था। धीरे धीरे वह बडा होने लगा, बाकी दो भाई और दो बहनें पढनेलिखने में ज्यादा तेज नहीं थे, इस वजह से भी सत्या का सम्मान घर में ज्यादा था। काॅलेज में था तब उसकी शादी राजश्री से हो गई। समय जैसे पंख लगाकर उडने लगा, सत्या एक प्राइवेट कंपनी में मॅनेजर की पोस्ट पर नियुक्ती हो गई।

            अपने काम में बहुत ही होशियार सत्या ने सबको खुश कर दिया, आफिस में कोई भी प्रोब्लेम हो, सत्या उसे चुटकीयों में हल कर देता। आफिस में कोई प्रोग्राम हो तो उसकी जिम्मेदारी बहिर्मुखी व्यक्तित्व के स्वामी सत्या की होती थी । ओलराऊन्डर सत्या के स्वभाव में एक हि कमी थी उसका गुस्सा, उसे गुस्सा बहुत ही जल्दी आ जाता था और उसके गुस्से के सामने कोइ ठहर भी नहीं पाता था। शादि के चार साल बाद उसके घर एक बेटा पैदा हुआ ऊसका नाम रवि रखा । सत्या ने सोचा उसका बेटा उसके गुण लेके ही पैदा हुआ है। लेकीन सत्य उससे विपरित था, रवि अंतःमुखी, शांत स्वभाव और खेलकुद में औसत था, सिर्फ एक बात में अपने पिता की तरह था वह थी पढाई लिखाई । वो क्लास में हमेशा अव्वल आता था, लेकीन उसे अपने पिता से कभी शाबाशी नहीं  मील पाई । सत्या हमेशा रविमें खुद को देखना चाहता था, उसके जैसा आत्मविश्वास, निर्णायकता, लेकीन रवि में इन सब गुणो की कमी थी ।

            रवि न तो अपने निर्णय ले पाता था न ही उसमें कोइ काम करने का आत्मविश्वास होता था। ईसी वजह से ऊसे सत्या से हमेशा डांट पडती, ऊसका सहारा थी ऊसकी मां राजश्री। राजश्री समझती थी अपने बेटे को लेकीन सत्या के गुस्से के आगे वो बेबस थी ।सत्या के गुस्से की वजह से रवि के आत्मविश्वास में और कमी आ गई, वह हमेंशा इस उधेडबुन में लगा रहता किस तरह पापा को खुश करे और उन्हें गुस्सा न आए । फिर ये उसके स्वभाव में आ गया की सबको खुश कैसे रखा जाए और कोइ उससे नाराज न हो जाए , कोइ दोस्त उससे नाराज हो जाए तो वो उसे मनाने लगता माफी मांगने लगता फिर चाहे गलती उसके दोस्त की हि क्यों न हो।

            धीरे धीरे रवि की छबी कमजोर व्यक्ति क


अंक - 7
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नारद - https://m.facebook.com/groups/1653994421452422/permalink/2073468142838379/?sfnsn=wiwspwa&ref=share
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17 संपादकों में से एक मैं भी , साहित्य एक नज़र
समस्त संपादकों को प्रणाम , इनमें हम ही सबसे कम उम्र के है ।
आज
आज की पत्रिका , दुनिया का पहला पत्रकार - नारद जी का जन्मोत्सव 🌍 🙏💐

फेसबुक से
हिन्दी कविता:-12(19)
17-05-2019 शुक्रवार 23:07
*®• रोशन कुमार झा
-: हम भी यह जीवन पाया !:-

गर्व है कि मैं इस धरती पर आया,
और यह मानव जीवन पाया!
अपना घर-द्वार बसाया,
खुद रोया पर दूसरें को हँसाया!

कुछ लेकर ना अकेला आया,
जीवन पथ पर चलते रहें कहाँ हरि
का गुण गाया!
जवानी में मौज़-मस्ती
बूढ़ापा में पछताया!
यही है भाई मिट्टी की काया!

जो अभी खिला है,
तुम्हें मिला है!
अंधकार में रोशन की सिलसिला है
कहीं पर भी क्यों ना हो पर
अपना भी एक जिला है!

जहाँ हुआ जन्म पालन पोषण,
तब चले है करने किसी का शोषण!
तब कमाये है धन
यह जीवन पाकर हूँ बड़ा प्रसन्न!

मरूँ पर फिर मिले धरती
भले अभी सँज जाये मेरी अर्थी!
पर अभी ये साँस है चलती
ख़ास चलते-चलते ही मेरी अर्थी जलती !

*®• रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज कोलकाता भारत
मो:-6290640716,(8420128328)
9433966389(कविता-12(19)
17-05-2019 शुक्रवार 23:07
31st Bengal Bn Ncc Fortwilliam
Kolkata-B,E.Rly,Scouts
माँ मिली शादी के लिए उसकी माँ
जीजा पापा गाड़ी पकड़ा
5 चिकेन रोल-77(100 सर कृष्णा भवन
रोबिन संध्या सुन्दरी नेहा घर में पढ़ाये!
बोली कल Sunday class आयेंगे!

हिन्दी कविता:-12(18)
16-05-2019 वृहस्पतिवार 19:15
*®• रोशन कुमार झा
-:नाखून की दाग!:-

दिल में लगाई है आग
कैसी है यह प्रेम की विभाग!
हाथ पर छायी है उसकी नाखून की दाग
कुत्ता तो हम है जो जाते उनके पास
हमें तो जाना चाहिए भाग!

पर भागने से डरता हूँ
उसके साथ हम नहीं चलता हूँ!
पर सूर्य की तरह जलता हूँ
राह रोशन करने के लिए लड़ता हूँ!

यही है मेरी बात
गाल पर खाया हूँ चाट!
नहीं विश्वास तो देख लो ये मेरी हाथ
यह कैसी है प्रेम की पाठ!

जिस पाठ का अध्ययन मैं भी किया हूँ
कई आयें कई गयें फिर भी जीया हूँ!
है दर्द फिर भी ज़ख्म पीया हूँ,
देख लो यारो आज फिर नाखून का दाग
हम लिया हूँ!

यह सही है की मै जीवन से खेला
पर क्या दोष मेरा!
लोग हमें इसलिए बेवकूफ़ बनाते कि
मैं हूँ अकेला!
जब भी कोई आयेंगी,वह आयेंगी
लगाकर मेला!

फिर बदलेगी भाग्य
पर अभी समझाकर रखा हूँ
दिल और दिमाग़!
जल रही है आग
देखकर यह नेहा (प्रेम) भरी
नाखून की दाग!

*®• रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज कोलकाता भारत
मो-6290640716,(8420128328)
9433966389(कविता-12(18)
16-05-2019 वृहस्पतिवार 19:15
कल नेहा पचनतला नाखून लगाई
कॉलेज बंद(कैंप Sunday



कोलफील्ड मिरर आसनसोल में प्रकाशित
19/05/2021, बुधवार को प्रकाशित
साहित्य एक नज़र
https://online.fliphtml5.com/axiwx/xbkh/

कोलफील्ड मिरर

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दोहा रत्नाकर सम्मान से सम्मानित किए साहित्य संगम संस्थान दोहा शाला  ।

साहित्य एक नज़र 🌅 , मंगलवार , 18/05/2021

साहित्य संगम संस्थान दोहा शाला में मंगलवार 18 मई 2021 को संयोजिका आ. संगीता मिश्रा जी के करकमलों से राष्ट्रीय अध्यक्ष महोदय राजवीर सिंह मंत्र जी को , सह अध्यक्ष आ . मिथलेश सिंह मिलिंद जी को , कार्यकारी अध्यक्ष आ. कुमार रोहित रोज़ जी को, आ. नेतराम जी को , आ. जय श्री बहन जी को एवं  आ. अनिता जी को दोहा रत्नाकर सम्मान से सम्मानित किया गया । महागुरुदेव डॉ राकेश सक्सेना जी  ,  पश्चिम बंगाल इकाई अध्यक्षा आ. कलावती कर्वा जी ,  राष्ट्रीय सह मीडिया प्रभारी व पश्चिम बंगाल इकाई सचिव रोशन कुमार झा , आ. स्वाति पाण्डेय 'भारती' जी  ,आ. अर्चना जायसवाल जी , अलंकरण कर्ता आ. स्वाति जैसलमेरिया जी, आ. मनोज कुमार पुरोहित जी,आ. रजनी हरीश , आ. रंजना बिनानी जी, आ. सुनीता मुखर्जी , आ. मधु भूतड़ा 'अक्षरा' जी , आ. रीतु गुलाटी जी ,आ. भारत भूषण पाठक जी , आ. अर्चना तिवारी जी , संगम सवेरा के संपादक आ. नवल किशोर सिंह जी , वंदना नामदेव जी, आ. सुनीता मुखर्जी समस्त सम्मानित पदाधिकारियों व साहित्यकारों हार्दिक शुभकामनाएं सह बधाई दिए ।

कविता :- डायरी :- 1

-: तुम्हारी यादें !:-

आंखों से मेरे आंसू बहने दो ,
मत रहो मेरे पास, बस अपनी यादें रहने दो ।

चांदनी रातें में जो बांटे थे सुख ,   वे रहने दो ,
अंधेरी रात में जो दुख देकर गयी वे अब सहने दो ।

पार्क , बाग़ में बैठकर किये थे, जो बातें,
अब उस बातें को रहने दो ,
जो पूरा नहीं हुआ चाहत , उन चाहत को रहने दो ।

तुम्हारे आने की जो आगाज़ थी , उस पल को रहने दो ,
तुम्हारे जाने से जो हम रोशन को गम मिला,
अब उस गम को सहने दो ।

तुम्हारी जो घुँघरू की आवाज थी, उस आवाज को सुनने दो,
जो तुम्हारे लिए रखें थे प्रेम की बातें ,
अब उन बातों को कहने दो ।

तुम्हारी जो आने की मार्ग थी, उस मार्ग को निखारते रहने दो,
तुम आओ या मत आओ , बस हमारी इंतजार जारी रहने दो ।

पतझड़ में दी थी होंठों पर मुस्कान, उस मजे को रहने दो ,
भरी बंसत में जो देकर गयी सजा , उस सजे को सहने दो ।

पास रहो या मत रहो ,
बस मेरी आंखों से आंसू बहने दो ।।

✍️ रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज कोलकाता
मो :-6290640716 कविता :- 16(34)
17-05-2020 रविवार
✍️ रोशन कुमार झा     (Pagal)  Neha singh
24-09-2016  शनिवार 16:25
कक्षा :- 12 वीं  क्रमांक :-11
विभाग :- आर्ट्रस (कला )
विद्यालय :- सलकिया विक्रम विद्यालय ( मेन )
मो :-8481   933873
51/9 Kumar para lane,अभी 77/R mirpara road
डायरी नहीं एक मोटा रजिस्टर रहा, जो पिताजी अपने कार्यकाल से लाये रहे, उसमें हिसाब किताब हुआ रहा ,

हिन्दी कविता:-12(20)
18-05-2019 शनिवार 22:12
*®• रोशन कुमार झा
-: जाने दो हमें !:-

कौन अब किसको अपना मानती
है क़ामयाबी तो उन्हें सब जानती,
पर हमें चाहिए शान्ति,
जग चुका हूँ अब मुझे करने दो क्रांति!

लड़ने दो,
है जुनून हमें चलने दो!
राह रोशन करने दो,
मेरे धन सम्पति को जलने दो!

त्यागने दो घर-द्वार,
मैं खुद हूँ अपना भविष्य काल!
हे नश्वर संसार,
ले सँभाल
अपना मोह-माया की जाल,
इसका प्रभाव मेरे ऊपर मत डाल!

मैं अपने कर्म से जा रहा दूर,
प्रकृति तू तो है फूल!
तेरा प्रभाव है भारी पर तेरा क्या क़सूर,
अपना रूप अपने पास रख
मैं अपने आप से हूँ मजबूर!

जाने दो मुझे सागर के तट
मैं बनूँ ग़रीब मज़दूर का भक्त!
सुख रहीं है ये मेरी शरीर का रक्त,
अब मेरी मृत्यु है निकट!

*®• रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज कोलकाता भारत
मो:-6290640716,(8420128328)
9433966389(कविता:-12(20)
18-05-2019 शनिवार 22:12
Roshan Kumar Jha(31st Bengal
Bn Ncc Fortwilliam Kolkata-B
Reg no:-WB17SDA112047
The Bharat scouts & Guides
Eastern Railway Howrah
Bamangachi
Narasinha Dutt College
St John Ambulance
2 बाइबल किताब पेन मोनू

कविता :- 20(00)
साहित्य एक नज़र , अंक - 8
डायरी - 20 वीं

नमन 🙏 :- साहित्य संगम संस्थान पश्चिम बंगाल इकाई
दिनांक :- 18/05/2021
दिवस :- मंगलवार
विषय प्रदाता :- आ. अर्चना जायसवाल जी
विषय प्रवर्तक :- आ. सुनीता मुखर्जी ।
विषय :-  ख़ौफ़ और विश्वास
विधा :- गीत

एक तरफ ख़ौफ़ और
दूसरे तरफ है विश्वास ,
संघर्ष करते रहूँ
जब तक है मेरी साँस ।।

करूँ वैसा कार्य ,
नाम लें समाज ।।
कल परसों नहीं
करना है आज ,
आज नहीं अब
लेकर नई अंदाज ।।

तब कैसे नुकसान पहुंचायेगी ये ख़ौफ़ ,
त्याग डर को , और ख़ौफ़ के जगह
विश्वास के बीज रोप ।

एक तरफ ख़ौफ़ और
दूसरे तरफ विश्वास ,
यही तो सीखाते
ये चलती हुई साँस ।।

✍️ रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज,कोलकाता
ग्राम :- झोंझी , मधुबनी , बिहार,
मो :-6290640716, कविता :- 20(00)
18/05/2021 , मंगलवार
साहित्य एक नज़र 🌅 अंक - 7
मिथिलाक्षर परीक्षा दूसरी बार परीक्षा हो गयी ।
77/R Mirpara Road Liluah Howrah Ashirbad Bhawan
कविता :- 20(00)
साहित्य एक नज़र , अंक - 8
डायरी - 20 वीं

नमन 🙏 :- साहित्य संगम संस्थान पश्चिम बंगाल इकाई
दिनांक :- 18/05/2021
दिवस :- मंगलवार
विषय प्रदाता :- आ. अर्चना जायसवाल जी
विषय प्रवर्तक :- आ. सुनीता मुखर्जी ।
विषय :-  ख़ौफ़ और विश्वास
विधा :- गीत

एक तरफ ख़ौफ़ और
दूसरे तरफ है विश्वास ,
संघर्ष करते रहूँ
जब तक है मेरी साँस ।।

करूँ वैसा कार्य ,
नाम लें समाज ।।
कल परसों नहीं
करना है आज ,
आज नहीं अब
लेकर नई अंदाज ।।

तब कैसे नुकसान पहुंचायेगी ये ख़ौफ़ ,
त्याग डर को , और ख़ौफ़ के जगह
विश्वास के बीज रोप ।

एक तरफ ख़ौफ़ और
दूसरे तरफ विश्वास ,
यही तो सीखाते
ये चलती हुई साँस ।।

✍️ रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज,कोलकाता
ग्राम :- झोंझी , मधुबनी , बिहार,
मो :-6290640716, कविता :- 20(00)
18/05/2021 , मंगलवार
साहित्य एक नज़र 🌅 अंक - 7
मिथिलाक्षर परीक्षा दूसरी बार परीक्षा हो गयी ।
77/R Mirpara Road Liluah Howrah Ashirbad Bhawan

कोलफील्ड मिरर आसनसोल , 18/05/2021
मंगलवार , कविता :- 20(00)
साहित्य एक नज़र दैनिक पत्रिका साहित्य जगत में दें रहें है योगदान ।
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साहित्य एक नज़र 🌅
अंक - 1
https://online.fliphtml5.com/axiwx/uxga/?1620796734121#p=3

अंक -2
https://online.fliphtml5.com/axiwx/gtkd/?1620827308013#p=2

अंक -3

https://online.fliphtml5.com/axiwx/ycqg/

अंक - 4

https://online.fliphtml5.com/axiwx/chzn/

अंक - 8

http://vishnews2.blogspot.com/2021/05/8-18052021.html

अंक - 5
https://online.fliphtml5.com/axiwx/qcja/
अंक - 6
https://online.fliphtml5.com/axiwx/duny/

अंक - 7
https://online.fliphtml5.com/axiwx/fwlk/ https://online.fliphtml5.com/axiwx/fwlk/#.YKJFU5FVC0M.whatsapp

https://online.fliphtml5.com/axiwx/fwlk/

कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका साहित्य एक नज़र साहित्य संगम संस्थान नई दिल्ली , इंकलाब मंच मुंबई , हिंददेश परिवार , विश्व साहित्य संस्थान , विश्व न्यूज़ , विश्व साहित्य सेवा संस्थान एवं अन्य मंचों का साहित्य समाचार प्रकाशित करके साहित्य की सेवा कर रहें हैं , इस पत्रिका में रोशन कुमार झा के साथ ग्वालियर के सम्मानित , लोकप्रिय साहित्यकार आ. प्रमोद ठाकुर जी अहम योगदान दें रहें है । इस पत्रिका का शुभारंभ 11 मई 2021 मंगलवार को हुआ रहा केवल एक सप्ताह में ही यह पत्रिका सोशल मीडिया पर छा गया । इस पत्रिका में साहित्यकारों के रचनाओं , पेंटिंग ( चित्र )  को निशुल्क में प्रकाशित किया जाता है , आशा है भविष्य में भी साहित्य एक नज़र पत्रिका इसी तरह साहित्य की सेवा करते रहें ।

हिन्दी कविता:-12(20)
18-05-2019 शनिवार 22:12
*®• रोशन कुमार झा
-: जाने दो हमें !:-

कौन अब किसको अपना मानती
है क़ामयाबी तो उन्हें सब जानती,
पर हमें चाहिए शान्ति,
जग चुका हूँ अब मुझे करने दो क्रांति!

लड़ने दो,
है जुनून हमें चलने दो!
राह रोशन करने दो,
मेरे धन सम्पति को जलने दो!

त्यागने दो घर-द्वार,
मैं खुद हूँ अपना भविष्य काल!
हे नश्वर संसार,
ले सँभाल
अपना मोह-माया की जाल,
इसका प्रभाव मेरे ऊपर मत डाल!

मैं अपने कर्म से जा रहा दूर,
प्रकृति तू तो है फूल!
तेरा प्रभाव है भारी पर तेरा क्या क़सूर,
अपना रूप अपने पास रख
मैं अपने आप से हूँ मजबूर!

जाने दो मुझे सागर के तट
मैं बनूँ ग़रीब मज़दूर का भक्त!
सुख रहीं है ये मेरी शरीर का रक्त,
अब मेरी मृत्यु है निकट!

*®• रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज कोलकाता भारत
मो:-6290640716,(8420128328)
9433966389(कविता:-12(20)
18-05-2019 शनिवार 22:12
Roshan Kumar Jha(31st Bengal
Bn Ncc Fortwilliam Kolkata-B
Reg no:-WB17SDA112047
The Bharat scouts & Guides
Eastern Railway Howrah
Bamangachi
Narasinha Dutt College
St John Ambulance
2 बाइबल किताब पेन मोनू

हिन्दी कविता:-12(19)
17-05-2019 शुक्रवार 23:07
*®• रोशन कुमार झा
-: हम भी यह जीवन पाया !:-

गर्व है कि मैं इस धरती पर आया,
और यह मानव जीवन पाया!
अपना घर-द्वार बसाया,
खुद रोया पर दूसरें को हँसाया!

कुछ लेकर ना अकेला आया,
जीवन पथ पर चलते रहें कहाँ हरि
का गुण गाया!
जवानी में मौज़-मस्ती
बूढ़ापा में पछताया!
यही है भाई मिट्टी की काया!

जो अभी खिला है,
तुम्हें मिला है!
अंधकार में रोशन की सिलसिला है
कहीं पर भी क्यों ना हो पर
अपना भी एक जिला है!

जहाँ हुआ जन्म पालन पोषण,
तब चले है करने किसी का शोषण!
तब कमाये है धन
यह जीवन पाकर हूँ बड़ा प्रसन्न!

मरूँ पर फिर मिले धरती
भले अभी सँज जाये मेरी अर्थी!
पर अभी ये साँस है चलती
ख़ास चलते-चलते ही मेरी अर्थी जलती !

*®• रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज कोलकाता भारत
मो:-6290640716,(8420128328)
9433966389(कविता-12(19)
17-05-2019 शुक्रवार 23:07
31st Bengal Bn Ncc Fortwilliam
Kolkata-B,E.Rly,Scouts
माँ मिली शादी के लिए उसकी माँ
जीजा पापा गाड़ी पकड़ा
5 चिकेन रोल-77(100 सर कृष्णा भवन
रोबिन संध्या सुन्दरी नेहा घर में पढ़ाये!
बोली कल Sunday class आयेंगे!

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[16/05, 10:21] Roshan Kumar Jha: https://online.fliphtml5.com/axiwx/rmls/
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साहित्य एक नज़र   , अंक - 371 , 16/05/2022 , सोमवार , कविता - 23(62)





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