कविता :- 17(40) , हिन्दी

कविता :- 17(40) , हिन्दी

नमस्ते 🙏 :- कलम ✍️ बोलती है साहित्य समूह
विषय क्रमांक :-196
दिवस :- सोमवार
दिनांक :- 31-08-2020
विधा :- कविता
विषय :- शिक्षा , शिक्षक
संचालक :- प्रीति शर्मा पूर्णिमा जी

शिक्षा से शिक्षक , शिक्षक ही हमारी समाज की निर्माता है ,
हम रोशन क्या , ब्रह्मा विष्णु भी शिक्षक के गुण गाता है ।
भले ईश्वर हमें धरती पर दुनिया दिखाने के लिए लाता है ,
पर माता पिता के साथ गुरु ही राह पर चलना सीखाता है ।।

दोस्त यार साथ छोड़ देते पर गुरु साथ निभाता है ,
क्या सही , क्या ग़लत ये तो गुरुदेव ही बताता है ।
इसीलिए बढ़ चढ़कर मान सम्मान गुरु ही पाता है ,
क्योंकि मंजिल की ओर हम, पर रास्ता गुरु ही दिखाता है ।।

दान देने वाला नहीं , ज्ञान देने वाला सच्चा दाता हैं ,
शिष्य के कर्मों से ही गुरु नाम कमाता है ,
तब समाज में सर्वश्रेष्ठ स्थान पर गुरु आता है ,
क्योंकि गुरु ही समाज की निर्माता है ।।

✍️       रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज, कोलकाता
ग्राम :- झोंझी , मधुबनी , बिहार,
मो :-6290640716


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आपकी रचना में अब भी टंकण त्रुटि और शब्द और लिंग दोष हैं, कृपया पुनः सुधार कर भेजें
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On Sun, Aug 30, 2020, 07:46 Rajan Kumar Jha <rajanjha9874@gmail.com> wrote:

सुवासित पत्रिका सितंबर माह के लिए ,

कविता -

तुम्हारी यादें !:-

आँखों से मेरे आँसू बहने दों  ,

मत रहो मेरे पास, बस अपनी यादें रहने दों ,
चाँदनी रातें में जो बांटे थे सुख ,  वे रहने दों ,
अंधेरी रात में जो दुख देकर गयी वे अब सहने दों ।
पार्क , बाग़ में बैठकर किये थे, जो बातें,
अब उस बातें को रहने दों ,

जो पूरा नहीं हुआ चाहत , उन चाहत को रहने दों ।
तुम्हारे आने की जो आगाज़ थी , उस पल को रहने दों ,
तुम्हारे जाने से जो हम कोमल को गम मिला,
अब उस ग़म को सहने दों ,

तुम्हारी जो घुँघरू की आवाज थी, उस आवाज को सुनने दों ,
जो तुम्हारे लिए रखें थे प्रेम की बातें ,
अब उन बातों को कहने दों ।

तुम्हारी जो आने की मार्ग थी, उस मार्ग को निखारते रहने दों ,
तुम आओ या मत आओ , बस हमारी इंतज़ार जारी रहने दों ।

पतझड़ में दी थी होंठों पर मुस्कान, उस मज़े को रहने दों ,
भरी बंसत में जो देकर गयी सजा , उस सजे को सहने दों ।
पास रहो या मत रहों ,
बस मेरी आँखों से आँसू बहने दो ।।

✍️ कोमल पाण्डेय
लिलुआ , हावड़ा , पश्चिम बंगाल

On 28-Aug-2020 9:08 PM, "साहित्य वसुधा" <suvasitpatrika@gmail.com> wrote:
कुछ जगह टंकण त्रुटियां हैं, पुनः सुधार कर भेजें| सदैव स्वागत

On Tue, Aug 25, 2020, 17:55 Rajan Kumar Jha <rajanjha9874@gmail.com> wrote:
सुवासित पत्रिका सितंबर माह के लिए ,
कविता -

तुम्हारी यादें !:-

आंखों से मेरे आंसू बहने दो ,
मत रहो मेरे पास, बस अपनी यादें रहने दो ।

चांदनी रातें में जो बांटे थे सुख ,   वे रहने दो ,
अंधेरी रात में जो दुख देकर गयी वे अब सहने दो ।

पार्क , बाग़ में बैठकर किये थे, जो बातें,
अब उस बातें को रहने दो ,
जो पूरा नहीं हुआ चाहत , उन चाहत को रहने दो ।

तुम्हारे आने की जो आगाज़ था , उस पल को रहने दो ,
तुम्हारे जाने से जो हम कोमल को ग़म मिली,
अब उस गम को सहने दो ।

तुम्हारी जो घुँघरू की आवाज थे , उस आवाज को सुनने दो,
जो तुम्हारे लिए रखें थे प्रेम की बातें ,
अब उन बातों को कहने दो ।

तुम्हारी जो आने की मार्ग था, उस मार्ग को निखारते रहने दो,
तुम आओ या मत आओ , बस हमारी इंतजार जारी रहने दो ।

पतझड़ में दी थी होंठों पर मुस्कान, उस मज़े को रहने दो ,
भरी बंसत में जो देकर गयी सज़ा , उस सज़े को सहने दो ।

पास रहो या मत रहो ,
बस मेरी आंखों से आंसू बहने दो ।।

✍️ कोमल पाण्डेय
लिलुआ , हावड़ा , पश्चिम बंगाल

कविता :- 16(84) नमन 🙏  :- साहित्य उत्थान
विषय :- अस्तित्व
विधा :- कहानी
दिनांक :- 06/07/2020
दिवस :- सोमवार

नमन 🙏 :- साहित्य उन्नयन मंच
#साप्ताहिक_प्रतियोगिता_010
❆ काव्य सृजन - 010
❆ विषय -   अस्तित्व
     विधा :- कहानी
❆ तिथि - 31/08/2020
❆ दिवस - सोमवार

क्या बताऊं , हम उस दादी माँ की अस्तित्व बताने जा रहा हूं जो माँ की अस्तित्व ले ली । दो बहन और एक भाई के बाद दुनिया में आई आनंदनी , वही आनंदनी आनंद का बहन,उसी झोंझीफूलदाई दादी माँ की बात है, आनंदनी के जन्म लेते ही उसकी जीवन रोशन से अंधकार हो गया, वह कैसे ? तो जानिए जन्म लेते ही दो वर्ष की उम्र में ही दिल्ली में आनंदनी की माँ सुधा की मृत्यु हो गई, पिता अरुण दिल्ली में कमाने के लिए रह गया, और दादी अपने बेटे अरूण को छोड़कर अपनी पोती आनंदनी को लेकर गांव आ गई, आनंदनी जन्म से ही विकलांग या उपचार न होने के कारण कमज़ोर हो गई रही , माथा बड़ा पर हाथ पांव पतला पतला , आस-पास के लोग न चलने के कारण उसे लोटिया ,लोटिया कहने लगे यहां तक कि अब ये जिन्दा न रह पायेगी ,मर जायेगी और भी कुछ , ये सब सुनने के बाद भी दादी माँ हार नहीं मानी ।  तनु वक्ष स्थल से धन्यवाद उस दादी माँ को देना चाहता हूँ , जो वृद्धावस्था में भी आनंदनी को बिना दवा दिए, खुद के मेहनत सरसों तेल से मालिश कर करके आनंदनी को चलाने की प्रयास में लगी रही, और एक दिन ऐसा आया वह चलने फिरने लगी और अपने आसपास के लोगों के काम में वह बेचारी आनंदनी हाथ बढ़ाने लगी, इस तरह आनंदनी अपने गांव में बिना माँ की ही दादी माँ की सहयोग से अपनी अस्तित्व बना ली जो कि अधिकांश बच्चे माँ के रहते हुए भी वह अस्तित्व नहीं बना पाते ।

✍️ रोशन कुमार झा
            कोलकाता
☛ #साहित्य_उन्नयन
★ यह रचना हमारी स्वरचित, मौलिक व अप्रकाशित है ।

https://misternkdaduka.blogspot.com/2020/08/22.html?m=1

नमन 🙏 :- राष्ट्रीय अग्रसर पत्रिका, अंक -23 के लिए रचना --
दिनांक :- 31/08/2020,  सोमवार
विषय :- कहानी
शीर्षक :-  वह तीन दोस्त  !:-

वह तीन दोस्त, आख़िर में क्या रहा उन तीन दोस्तों में, कौन रहा वह तीन दोस्त, तो आइए जानते हैं, कहानी लिलुआ की पनौतीपण्डित, धर्मेन्द्र और मोनू की है , वह दोस्त मानों तो एक अटल, तो दूसरा कलाम,और तीसरा मनमोहन, मतलब ? मतलब यह कि तीनों उन्हीं महानों के राह पर चल पड़े थे, पनौतीपण्डित साहित्य से जुड़े अर्थात अटल जी जिसके खिलाड़ी थे, दूसरा धर्मेन्द्र विज्ञान से पढ़ने वाले, और वह देश दुनिया के लिए अब्दुल कलाम की तरह विज्ञान से कुछ करना
चाहते थे , और तीसरा मोनू तो वे मनमोहन जी के विषय वाणिज्य पर चल पड़े थे, तीनों की मंजिल एक ही, पर राह अलग थे , तीनों का मानना था, जब जीवन पाये है , तो क्यों न मानव सेवा में लगाऊं, सेवा करने के लिए तन मन के साथ धन की भी जरूरत होती है, धन की उत्पत्ति के लिए तीनों ने विद्या को ही सर्वोत्तम मानें ,तीनों के घर की आर्थिक स्थिति ख़राब ही था , इसी भावना के साथ पनौतीपण्डित अपने घर की आर्थिक स्थिति ख़राब होने के बावजूद भी लोक कल्याण में
लगा दिए वह कैसे उनके पास धन तो थे नहीं, पर मन और अपने कला, ज्ञान से निःशुल्क में विद्यार्थियों को पढ़ाने लगे , तीनों की दिल की पूजा पाठ भी हुआ रहा ,राजा रानी की तरह मिलन की रात भी हुआ रहा, ने... हा से यानि सीमा रेखा पार भी हुआ रहा ,तब जाकर उन तीनों में नव जीवन की कृति हुआ रहा,पता न किस लिए तीनों अपने सुख-सुविधा को त्यागकर मानव सेवा में लगाना चाहते थे , या प्रकृति का ही देन रहा होगा, अब बात करते उन दिनों की, जब तीनों अपने होंठों पर मुस्कान भरने के लिए दिन के दो से  तीन घण्टे इधर-उधर भटकते रहते थे, और जो धर्मेंद्र जिसको प्यार से लोग डीके कहते थे , इतना मज़ाक करते थे कि पूछो मत, और मोनू बेचारा हमेशा मुस्कुराते ही रहते थे, और पनौतीपण्डित तो खाली बकबक ही करता रहता था, और कैसे न करता साहित्य प्रेमी भी तो था .और तीनों में एक और चीज मिलता था, कैसा भी परिस्थिति क्यों न हो हमेशा मुस्कुराते हुए रहता था , पता न एक का और धर्मेन्द्र और मोनू पढ़ते-पढ़ते कितना भी रात क्यों न हो जाएं , बिना पिता परमेश्वर यीशु की प्रार्थना किये हुए सोता नहीं था , और वह जो एक पनौतीपण्डित था वह विवेकानंद के विचार धारा के,वे सर्व धर्म में विश्वास करते थे, कभी राम,कभी खुदा को तो कभी मसीहा को तो कभी गौतम तो कभी महावीर को याद कर लेते थे ,और तीनों में एक और चीज मिलता था, कैसा भी परिस्थिति क्यों न हो हमेशा मुस्कुराते हुए रहता था , समय अपने गति से चलता गया , अब तीनों में ऐसा बदलाव आ गया की, पूछो मत पहले कहां दो से तीन घण्टे बीताते रहते थे , अब सप्ताह में अगल दस मिनट के लिए भी मिलते हैं तो प्रतीत होता है कि फूल है पर पत्तें नहीं, वही डीके लोगों से इतना मज़ाक करता था, आज वही
चाणक्य की तरह गंभीर रहने लगे हैं, ऐसा नहीं है कि बोलते नहीं है , वही बोलते हैं जो सटीक रहता,और मोनू उन दोनों की तरह कल भी कम और आज भी बहुत कम ही बोलते हैं , शायद किसी महानों के यह कथन उससे मिलता , "जो गरजते हैं , वह बरसते नहीं और जो बरसते हैं वह गरजते नहीं , ऐसा लक्षण उसमें दिखता था , शायद उसका मन में ये रहा हो कि कुछ करके ही मुंह खोलेंगे ! इस तरह तीनों में बदलाव आया, और तीनों अपने मंजिल तक जानें में सफल रहे हैं , और रहेंगे भी !

सीख :- बीत जायेगी अन्धेरी रात, राह रोशन होगा और होगी प्रभात, कब जब अन्दर से हो जज़्बात , जो चलता राह पर
उसी का देता ऊपर वाला साथ !

® ✍️ रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज , कोलकाता 
ग्राम :- झोंझी , मधुबनी , बिहार , कविता :- 16(20)
05-05-2020 मंगलवार 08:40 मो:-6290640716
রোশন কুমার ঝা ,Roshan Kumar Jha,

कहानी :-  16(20) हिन्दी ✍️ रोशन कुमार झा 🇮🇳
कहानी :- 1(02) हिन्दी  ✍️ रोशन कुमार झा 🇮🇳
05-05-2020 मंगलवार 08:40 मो:-6290640716
Roshan Kumar Jha
http://roshanjha9997.blogspot.com/2020/05/1620-102.html
R: वह तीन दोस्त http://kalamlive.blogspot.com/2020/05/teen-dosto-ki-kahani.html
R: घर को बनायें प्राथमिक शिक्षा का केंद्र  https://kalamlive.blogspot.com/2020/05/ghar-ko-banaye-prathmik-shiksha-ka-kendr.html
[ R: मत मनाएं अभी वर्षगांठ Abh>> https://kalamlive.blogspot.com/2020/05/abhi-mat-manao-varshganth.html
R: रहें नहीं श्री नथुनी साह जी  http://kalamlive.blogspot.com/2020/05/blog-post_5.html
हमारी पहली रचना

नमन 🙏 :- साहित्य संगम संस्थान
तिथि :- 31/08/2020
दिन :- सोमवार
विषय :- अभिव्यक्ति की आज़ादी
विधा :- संवाद
विषय प्रदाता :- आ. कपुराराम मेघवाल मेघसेतू  जी
विषय प्रवर्तन :- आ. ज्योति मिश्रा प्रभा जी

(1) लड़का :- (जगमोहन का लड़का लालमोहना,  :-
ओई सुन इधर तू किसकी बेटी है  ? कहां से आयी है !

(2) लड़की :- (नागेन्द्र महिन्द्र घोष की बेटी पूजा :-
:- मैं यही की बेटी हूं, नागेन्द्र महिन्द्र घोष की तुम्हारे पिता
की दोस्त की !

(3) लड़का :- तो क्या ? हुआ , कहां जा रही हो ?

(4) लड़की :- तुम्हें कोई मतलब ? !

(5) लड़का :- मतलब , तू मतलब कहती हो ,अब ?
कहती हो तुम्हारे पिता के दोस्त की बेटी हूं, फिर इस
तरह का सवाल !

(6) लड़की :- हां. हां अंक्ल कहा करते थे , तुम्हारे बारे में
तुम दही चोर हो ,! छी छी छी ...

(7) लड़का :- ( उऊ उऊ उऊ ) का बोली दही ,
दही नहीं ले बही !

(8) लड़की :- का बही गंगा की यमुना !

(9) लड़का :- अरे ! बही खाता,खाता !.

(10) लड़की :- वही तो मैं भी कहती , कि तू दही
चुरा कर खाता !

(11) लड़का :- खाता यानि कॉपी रे ! कॉपी !

(12) लड़की :- कॉफी पीने के लिए दही बेचता, आ
जाना मेरे घर पिला दूंगी कॉफी !

(13) लड़का :- लिखने वाला कॉपी

(14) लड़की :- ओ दही जो बेचता है वह लिखता है
काफी में  क्या ?

(15) लड़का :- हां जा जा जा .. कहीं जा रही थी न

(16) लड़की :- हां जा तो रहीं थी !

✍️      रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज, कोलकाता
ग्राम :- झोंझी , मधुबनी , बिहार,
मो :-6290640716

http://roshanjha9997.blogspot.com/2020/08/1719.html
https://misternkdaduka.blogspot.com/2020/08/19.html?m=1

इंक़लाब न्यूज़, मुंबई                  रोशन कुमार झा
31/08/2020 , सोमवार
कोलकाता , पश्चिम बंगाल

साहित्य संगम संस्थान

पूर्व राष्ट्रपति , भारतरत्न प्राप्त कर्ता प्रणब मुखर्जी का निधन, बेटे अभिजीत ने दी जानकारी

पश्चिम बंगाल के प्रणव मुखर्जी का जन्म 11 दिसंबर 1935 को पश्चिम बंगाल के वीरभूमि जिले के किरनाहर के निकट मिटरी गाँव के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ। इनके पिता का नाम कामदा किंकर मुखर्जी था। इनके पिता एक स्वतंत्रता सेनानी थे। जिन्होंने 10 वर्ष से अधिक जेल की सज़ा भी काटी थी। वे पश्चिम बंगाल की विधान परिषद में 1952 से 1964 तक सदस्य रहे और वीरभूमि जिला कांग्रेस कमेटी के सदस्य भी रह चुके थे। इनकी माता का नाम राजलक्ष्मी मुखर्जी था।भारत के तेरहवें राष्ट्रपति रह चुके हैं। 2008 में पद्म विभूषण  से 26 जनवरी 2019 को प्रणब
मुखर्जी को भारत रत्न से सम्मानित किया गया है! वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे हैं।भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन ने उन्हें अपना उम्मीदवार घोषित किया। सीधे मुकाबले में उन्होंने अपने प्रतिपक्षी प्रत्याशी पी.ए. संगमा को हराया। उन्होंने 25 जुलाई 2012 को भारत के तेरहवें राष्ट्रपति के रूप में पद और गोपनीयता की शपथ ली। प्रणब मुखर्जी ने किताब 'द कोलिएशन ईयर्स: 1996-2012' लिखा है । प्रणव मुखर्जी की कलकत्ता विश्वविद्यालय से शिक्षा ग्रहण किये रहें , प्रणव मुखर्जी की शादी शुभ्रा मुखर्जी से 1957 में हुए रहें , उनके पत्नी की निधन 2015 में हो गया , इनके बच्चें शर्मिष्ठा , अभिजीत , इन्द्रजीत हैं ,  
बीते कुछ समय से बीमार चल रहे देश के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का सोमवार 31 अगस्त 2020 को नई दिल्ली में निधन हो गया। उनके बेटे अभिजीत मुखर्जी ने यह जानकारी दी। दिल्ली कैंट स्थित आर्मी रिसर्च एंड रेफरल अस्पताल में उनका इलाज किया जा रहा है। आज सुबह ही अस्पताल की तरफ से बताया गया था कि फेफड़ों में संक्रमण की वजह से वह सेप्टिक शॉक में थे। 84 वर्षीय मुखर्जी लगातार गहरे कोमा में थे और उन्हें वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखा गया था। सेप्टिक शॉक की स्थिति में रक्तचाप काम करना बंद कर देता है और शरीर के अंग पर्याप्त ऑक्सीजन प्राप्त करने में विफल हो जाते हैं। उन्हें 10 अगस्त को दिल्ली कैंट स्थित सैन्य अस्पताल में भर्ती कराया गया था। इससे पहले उनकी कोरोना रिपोर्ट भी पॉजिटिव आई थी। मुखर्जी के मस्तिष्क में खून के थक्के जमने के बाद उनका ऑपरेशन किया गया था। अस्पताल में भर्ती कराए जाने के समय वह कोविड-19 से भी संक्रमित पाए गए थे। इसके बाद उन्हें श्वास संबंधी संक्रमण हो गया था। मुखर्जी भारत के 13वें राष्ट्रपति के रूप में वर्ष 2012 से 2017 तक पद पर रहे। 

    रोशन कुमार झा
विश्व साहित्य संस्थान
महिला सुरक्षा संगठन बंगाल
BOC , N.N.B&G.S


कविता :- 


बीत जाते है सफलता की पद



दे रहे हैं वे अपनी स्मृति की ज़िक्र ,

उन्हें पद त्यागने का थोड़ा सा भी नहीं है फिक्र ।।

हो रही है विदाई की भाषण ,

अपने समय में किये थे आदर्श शासन ।।


इंदिरा गाँधी जैसे नेताओं से मैंने कुछ सीखा था ,

अपने पद ग्रहण करते समय कुशलता की शासन मैंने लिखा था ।।


बीत गई पूरे पाँच साल ,

बदल दिए कुछ भारत का हाल ।।


आये नहीं थे हम अपनी पसंद से ,

आज जा रहें हैं इस कुशलता की संसद से ।।


आदर्श शासन की मिसाल पेश की ,

अपनी शासन में दुख तकलीफ़ हटाये देश की ।।


आये थे वे बंगाल से ,

आज अमर बन गये, वे इस संसार से ।।


✍️     रोशन कुमार झा

सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज, कोलकाता

25/07/2017 मंगलवार 00:14 , कविता :- 2(26)

भारत एक नज़र में 24 जुलाई 2017

51/9 , कुमार पाड़ा लेन लिलुआ हावड़ा

आज 31/08/2020 सोमवार , कविता :- 17(40)

77/ R mirpara road ashirbad bawan Liluah

  


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