कविता :- 17(64) , 17(63) , हिन्दी

रोशन कुमार झा

कविता :- 17(64) , 17(63) , हिन्दी

नमन 🙏 :- कलम ✍️ बोलती है साहित्य समूह
तिथि :- 24/09/2020
विषय क्रमांक :- 206
दिवस :- वृहस्पतिवार
विषय :-  वो लम्हें
विधा :-  कविता
संचालक :- आ. डॉ कन्हैया लाल गुप्त जी

याद आती आज भी वो लम्हें की बात ,
जब रहते रहे दोस्त यार के साथ ।।
मिलते , मिलकर मनाते रहे
एक दूसरे का वर्षगांठ ,
अब कहाँ रहा वह प्रभात ।।

बचपना बीते आयी ऐसी रात
सिर्फ याद ही कर सकते रातों में
उन लम्हों की बात ,
जब एक साथ
स्नान करने जाते रहे
नदी तालाब के घाट ।।
गिरते , गिरते वक्त पकड़ता हाथ ,
अब तो सिर्फ सभी के साथ
सपनों में ही होती मुलाक़ात ।।

✍️       रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज, कोलकाता
ग्राम :- झोंझी , मधुबनी , बिहार,
मो :-6290640716

नमन 🙏 :-  साहित्य संगम संस्थान
तिथि :- 23/09/2020
दिवस :- बुधवार
विषय :-  जीवन संघर्ष
विधा :- कविता
विषय प्रदाता :- आ. सौनी गौतम जी
विषय प्रवर्तन :- आ. सरिता त्रिपाठी जी

संघर्ष ही जीवन है ,
वही जीने की लक्षण है ।
संघर्ष प्रति क्षण है ,
तब संघर्ष से ही
ज्ञान और धन है ।।

कुछ करने की मन है ,
जो किया संघर्ष
वही प्रसन्न हैं ,
बिना संघर्ष के
यह जीवन वन है ,
तब संघर्ष के राह पर
चलने के तैयार हम रोशन है ।।

संघर्ष से जुड़ा जन जन है ,
बिना संघर्ष के
व्यर्थ जीवन है ।।

✍️       रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज, कोलकाता
ग्राम :- झोंझी , मधुबनी , बिहार,
मो :-6290640716

आज रंगोली मोल पास खिलौना फैक्टरी , कल माँ गांव से आयी, टिकट हावड़ा से पटना 07/10/2020 बुधवार , 532 KM , seat no :- 13, Coach no :- D-7, Rs:- 236, , आज राष्ट्रीय सेवा योजना दिवस , वृहस्पतिवार , 24/09/2020
0300001700035401 PNB account, पूजा :- 5000 भेजी आज
http://roshanjha9997.blogspot.com/2020/09/1763.html



हिन्दी !

हिन्द की जागीर हूं  , जयमाल    हिंदी हूं  ।
विजय श्री मनुजात्व की , पहचान हिंदी हूं ।
श्रीनगर से फैलती , कन्या - कुमारी   तक ।
डालती जन - गण मनस , में जान हिंदी हूं ।।

एक हैं हम , हिंदवी  ,  भाषा   हमारी है    ।
एकता के सूत्र  में  ,  गाथा     हमारी  है    ।
अरब सागर से  शुरू, बंगाल - खाड़ी तक ,
गर्व से  उन्नत  हुआ  ,  सम्मान हिंदी  हूं   ।।

राज - सदनों के मनस , में मै निवसती हूं ।
प्राथमिक विद्यालयों में , मै पनपती    हूं ।
उमगती हिमवान से हूं, गंग - सागर  तक,
भारती - संस्कार  की,जय - गान हिंदी हूं।।

मैं सिमटती जा रही हूं, साजिशों में आज।
आंतरिक - विद्वेष के, इन बंदिशों  में साज।
अचल - संस्कृति,सभ्यताओं की धरोहर मै,
हिन्द के अवतार  की , प्रतिमान हिंदी हूं  ।।
---- गिरीश इन्द्र,
    श्री दुर्गा शक्ति पीठ, अजुवाॅ ,आजमगढ़,
    ऊ ०प्र०-276127.
    दूरभाष :8896239704/945969124.
    Email ojhag274@gmail.com
    दि०-06-09-2020 ई ०.
०००
उक्त रचना नितान्त मौलिक और अप्रकाशित है। इसके प्रकाशन का अधिकार   विश्व साहित्य संस्थान   को होगा।--- गिरीश इन्द्र।
[छवि 98.jpg]

आज रंगोली मोल पास खिलौना फैक्टरी , कल माँ गांव से आयी, टिकट हावड़ा से पटना 07/10/2020 बुधवार , 532 KM , seat no :- 13, Coach no :- D-7, Rs:- 236, , आज राष्ट्रीय सेवा योजना दिवस , वृहस्पतिवार , 24/09/2020
0300001700035401 PNB account, पूजा :- 5000 भेजी आज



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