कविता :-16(30) प्रकाशित 6 रचना :-
कविता :-:16(30) हिन्दी ✍️ रोशन कुमार झा 🇮🇳
13-05-2020 बुधवार 07:07
-: माँ बाप के लिए वृद्धाश्रम नहीं ! :-
ये हमारा धर्म नहीं ,
वृद्धाश्रम में माँ बाप को दें आना हमारा कर्म नहीं !
मैं रोशन बेहया, कौन कहा हम बेशर्म नही ,
घर है मां-बाप का , माँ बाप के लिए वृद्धाश्रम नहीं ।
पत्नी के कहने पर माता-पिता को वृद्धाश्रम दे
आया उसे शर्म नहीं ,
कोई हमें तो कहें उसे ही दे आऊंगा,
मैं औरों की तरह नरम नहीं ,
जिसकी आशीर्वाद से आज हमें कोई गम नहीं ,
मात-पिता के लिए वृद्धाश्रम नहीं ।।
मां-बाप प्रधान हम परम नहीं ,
उनके छाया में ठंड ही ठंड, कभी गर्म नहीं !
आज-कल के बेटे को मां-बाप पर रहम नहीं ,
दे आते वृद्धाश्रम ,
तो मैं कहता मां बाप के लिए वृद्धाश्रम नहीं ।।
🙏 धन्यवाद ! 💐🌹
® ✍️ रोशन कुमार झा 🇮🇳
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज , कोलकाता
मो :- 6290640716
-: मां हम मनाएं न तुम्हारी दिवस ! :- :-16(29)
मां व्यर्थ है दुनिया तेरे बिना ,
एक दिन का पर्व दिखाने के लिए हम नहीं मनाएं
तू तो रखी हमें पेट में नौ महीना ।
उसी नौ महीने से देखें और देख रहे हैं संसार ,
तू न होती , तो कैसे होता मेरा रक्त संचार ।
तुझे क्या दूं तोफा, और क्या दूं उपहार ,
समझ के बाहर है , मां तुम्हारी प्यार ।।
क्षमा करना मां, हम मनाएं न तुम्हारी त्यौहार ,
कौन ? हम तेरा ज्येष्ठ पुत्र रोशन कुमार ।
तुम्ही तो बनाई हमें होशियार ,
क्या दूं तुझे , देने के लिए जो सोचता हूं, वह
व्यर्थ है मेरी सवाल ।।
बस प्रस्तुत किया हूं , मां तुम पर दो विचार ,
सुखमय बीता है , और सुखमय ही बीतेगी
मां तुम्हारी वज़ह से हमारी भविष्य काल ।
हर इच्छा पूरा की , अगल-बगल से लेकर उधार ,
तब बताओ ऐ दुनिया कब और कहां मिलता ,
मां के अलावा मां की प्यार ।।
® ✍️ रोशन कुमार झा 🇮🇳
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज , कोलकाता
12-05-2020 मंगलवार 10:21 मो:-6290640716
রোশন কুমার ঝা, Roshan Kumar Jha
http://roshanjha9997.blogspot.com/2020/05/1629-ncc.html
[13/05, 12:57] R: माँ बाप के लिए वृद्धाश्रम नहीं maa baal ke lie vriddha ashram nhi >> http://kalamlive.blogspot.com/2020/05/maa-baal-ke-lie-vriddha-ashram-nhi.html
: मां हम मनाएं न तुम्हारी दिवस Mother day hum nhi manayenge >> http://kalamlive.blogspot.com/2020/05/mother-day-hum-nhi-manayenge.html
http://roshanjha9997.blogspot.com/2020/05/6.html
https://allpoetry.com/poem/15165047-%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B6%E0%A4%BF%E0%A4%A4-6-%E0%A4%B0%E0%A4%9A%E0%A4%A8%E0%A4%BE---by-Roshan-Kumar-jha
प्रकाशित 6 रचना :-
कोलकाता समाज्ञा समाचार पत्र में प्रकाशित (रविवार
4 सितम्बर, 2016 हमारी पहली कविता व (प्रभात खबर में प्रकाशित मेरी पहली रचना) :--
रेलगाड़ी की उचित व्यवहार
कितनी प्यारी , कितनी सुहावनी है रेलगाड़ी ,
जब आती स्टेशन पर ,
रूक - रूक कर यात्री चढ़ते जाते
कितनी भी भीड़ होती, वह नहीं पछताती , न ही उदास होती
अपने समान वेग से प्रतिदिन की भागती जाती ।
हरी बत्ती का सिग्नल पाते ही
स्टेशन पर सीटी देकर चल पड़ती ।
नहीं किसी के लिए रूकती , न किसी का इंतजार करती
अपनी रास्ते से चलती जाती ,
पटरी पार करते समय, जो नहीं देते ध्यान
सभी को देते समान न्याय
न किसी से दोस्ती , न किसी से दुश्मनी
नदी- तालाब जंगल , पेड़-पौधे सभी को पार करती जाती
नहीं रूकती अपनी मनमानी से .
लाल बत्ती पाकर रूक जाती , करती थोड़ा आराम
फिर हरी बत्ती के ईशारा पाते ही
सीटी देकर आगे निकल जाती ।
हमें भी रेलगाड़ी की तरह आगे बढ़ना चाहिए
न किसी से दोस्ती , न किसी से दुश्मनी ।
सभी के साथ समान व्यवहार करना चाहिए ।
रोशन कुमार झा
कक्षा - 12, विभाग- आट्रर्स
विद्यालय :
सलकिया विक्रम विद्यालय (मेन )
##### प्रभात खबर #######
(मो :- 6290640716 ) पहला प्रभात खबर :- सोमवार
7 दिसंबर, 2015
10-05-2020 रविवार कविता:-16(27)
कविता :- 16(18)
हिन्दी -: घर को बनायें प्राथमिक शिक्षा का केंद्र ! :-
बदलते परिवेश में शिक्षा प्रणाली, परिपाटी व परंपरा भी
बदलती जा रही है. आज अभिभावक दो वर्षीय बच्चे
को प्ले स्कूल में डाल कर कर्त्तव्य की शुरुआत कर देते
हैं, बच्चें को जल्द ही समझदार बनाना अपनी जिम्मेदारी
समझते हैं, लेकिन अनजाने में वे अपने बच्चों को समाज
और परिवार से दूर करने का भी काम करते हैं.
बच्चे का प्राथमिक स्कूल घर, परिवार और समाज ही है ,
जो नैतिकता, सामाजिकता व भाईचारे का पाठ पढ़ाता
है. बालक माता-पिता, दादा-दादी , भाई-बहन,
रिश्तेदारों आदि से मातृभाषा सीखता है, इससे संस्कार
भी मिलता है, लेकिन कच्ची उम्र में ही स्कूलों के दरवाज़े
तक पहुंचा देने पर वे व्यावहारिक ज्ञान से अछूत रह जाते
हैं, इसलिए जरूरी है कि अभिभावक बच्चों को स्कूल
भेजने के पहले घर को ही प्राथमिक शिक्षा का केंद्र बनाएं,
🙏 धन्यवाद ! 💐🌹
® ✍️ रोशन कुमार झा 🇮🇳
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज , कोलकाता
04-05-2020 सोमवार मो :-6290640716
রোশন কুমার ঝা, Roshan Kumar Jha
• रोशन कुमार, हावड़ा
05-12-2015 शनिवार लिखकर ईमेल किये
लिलुआ से 07-12-2015 सोमवार को प्रभात खबर
में प्रकाशित हुआ ! यह मेरी पहली रचना है !
कोलकाता सोमवार 7, दिसंबर,2015 मार्ग शीर्ष
कृष्ण 11 संवत 2072 ( फ्लैग डे )
सशस्त्र सेना झंडा दिवस !
##### भारत एक नज़र #######
कविता :-
नदी की जीवन
पर्वत से जन्म लेती हूं ,
वही रहती मेरी बचपना की उमंग
तीव्र गति से आगे बढ़ती ,
मार्ग में आये बड़े - बड़े पत्थर दूर फेक
फिर आती समतल भाग में ,
नई गति से भागती हूं
अनेक मंदिर, घाटी , ब्रीज ,
को पीछे छोड़ते जाते ।।
उनके मार्ग में कितने
नहरे- नालियां मिलती
सभी को अपनी सहेली बना लेती ,
उसे भी अपने साथ ले जाती
पर्वत से जन्म लेती हूं ,
मार्ग में जीवन बिताती हूं ।
अन्त समय में गति रुक जाती कम
फिर सागर में मोक्ष पा लेती हूं .
रोशन कुमार झा
कक्षा: 12
विद्यालय: सलकिया
विक्रम विद्यालय
भारत एक नज़र कोलकाता समाचार पत्र में
प्रकाशित पहली (दुसरी ) कविता :- रविवार
18 सितम्बर 2016 (मो :- 6290640716 )
11-05-2020 सोमवार कविता:-16(27)
###### रोशन कुमार झा 🇮🇳 #########
प्रदुषण मुक्त : करता साईकिल
चलती है गाड़ी तो होती
पर्यावरण प्रदुषित,
चलती है साईकिल तो
होती पर्यावरण स्वच्छ .
दो चक्के से बनी , बिना
इंजन के , कितनी तेजी से
भागती है .
गली हो या सड़क पर वह रोशन कुमार झा
नहीं शर्माती कक्षा : 12
सड़क के किनारों से निडर विद्यालय: सलकिया
होकर चली जाती . विक्रम विद्यालय
मार्ग लम्बा हो या चौड़ा ,
भीड़ हो या जाम ,
वह रुकती नहीं किनारों से मुस्कुरा जाती.
नहीं डीजल, नहीं पेट्रोल, नहीं इंजन, नहीं हार्न
बस पैदल मारने से वह झूमती हुई आगे बढ़ते जाती.
पैदल मारने से खुद थक जाते, रुक जाते पर वह नहीं
थकती, न ही रुकती.
नहीं धुंआ न ही जहरिली गैस उत्पन्न करती,
नहीं प्रदूषित बिमारियों को उत्पन्न करती .
प्रदूषण युक्त बिमारियों को ,
हमारे अन्दर नहीं आने देती ..
अधिक मात्रा में साईकिल का उपभोग करेंगे ,
डीजल, पेट्रोल, इंजन का बहिष्कार करेंगे ,
इसकी कीमत हो जाएगी कम ,
बीमारी होगी कम , बचेगी पर्यावरण बचेंगे हम ..
रोशन कुमार झा
कक्षा :-12 (क्रमांक :-11)
सलकिया विक्रम विद्यालय
भारत एक नज़र कोलकाता समाचार पत्र में
प्रकाशित दुसरी कविता :- रविवार
25 सितम्बर 2016 (मो :- 6290640716 )
10-05-2020 रविवार कविता:-16(27)
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कविता
हम चाह रहे थे जिसे
वह किसी और से वफा निभा रहे थें .
हम उनके साथ का सपना सजा रहे थे ,
वह किसी के साथ सपनो को हकीकत बना रहे थे .
हम अभी प्यार की धुन (छुन ) ही बना रहे थे ,
वह किसी के साथ प्यार का गीत गा रहे थे .
हम इजहार -ए- ईश्क चाह रहे थे ,
वह किसी के साथ बहारे - ए - ईश्क (इश्क ) लुटा रहे थे .
हुआ जो हकीकत से सामना ,
दिल मुझे अपना पड़ा धामना .
उनके बागों में फुल (फूल ) खिले ,
हमारी बागियों में कॉटो के सिल सिले .
अंधेरे रातो में भी उनके चेहरों पर उज्जवलता ,
कड़ी धूपो में भी हमारी चेहरों अंधकारो से भरी हुई .
पतझड़ में भी उनके होंठों पर मुस्कुराहट आयी ,
भरी बंसत में हमारी आंखें डब - डबाई .
क्यो उम्मीद टुटती नहीं प्यार पाने की ,
दर्द सहनी पड़ती है, दूर जाने की .
उसके आने से हर रोज एक आस जागती रही ,
उसके जाने से हर रोज़ एक-एक निराशा बढ़ती रही .
रोशन कुमार झा
कक्षा : 12 बी
विभाग : कला (आर्ट्रस )
विद्यालय : सलकिया विक्रम विद्यालय
कोलकाता, रविवार ,25 दिसंबर 2016
भारत एक नज़र में प्रकाशित कविता
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-: नोटबंदी की प्रभाव । :-
भारत के इतिहास में एक नया मोड़ आया है ,
नोटबंदी ने क्या भीषण तबाही मचाई है ।
बैचेन रहने वाले गरीब चैन से सो रहे है ,
चैन की बंसी बजाने वाले अमीर नोट ले के रो रहे हैं ।
ममता बनर्जी इस पर खूब कर रही शोर है ,
सारदा घोटाले की वो भी तो चोर है ।
मायावती की माया अब न चल पायेगी ,
अपने करोड़ों की माला अब कहाँ बच पायेगी ।
लोकतंत्र ने अपनी महिमा क्या खूब दिखायी है ,
प्रधानमंत्री की माँ भी अपने नोट बदलवाने आई है ।
वेशक जनता को थोड़ा कष्ट सहना पड़ा है ,
आज़ादी के लिए भी तो क्रांतिकारियों को जान देना पड़ा है ।
लगता है हिंदुस्तान से दु:ख भाग जाएगी ,
मोदी जी के नेतृत्व में सचमुच अच्छे दिन आएगी ।
- रोशन कुमार झा
कक्षा - 12
विद्यालय : सलकिया विक्रम विद्यालय
19 जनवरी 2017 News of Bengal में प्रकाशित
कविता श्रीमान अजय कुमार झा, सर द्वारा
शिवम भईया, सलकिया
Post office , 2nd floor
आज 13-05-2020 बुधवार कविता :- 16(30)
कविता:- आधुनिक प्यार की परिणाम
ज़िन्दगी में बहार है , सुखों का पहाड़ है ,
मोहब्बत की दरिया दिल से बह रही है.
ख्यालों में तो हमेशा वही रह रही हैं ,
उन्हें पता भी नहीं, और हम रोशन पर आशिक़ी चल रही है.
वह दूसरों के बाहों में झुल रही है,
हमारे दिल में अरमान फल फूल रही है.
वह किसी के होंठों के रस को पीती है,
हम उनके ख्यालों में ही जीते हैं,
वह सफल पायी किसी के प्यार में ,
हम धोखा पाये उसी के ख्याल में,
कल तो वह घुमेगी कार में,
हम रोयेंगे बाज़ार में !
वह कल जनसंख्या बढ़ायेगी, किसी के प्रेम लुटाकर ,
हम जनसंख्या नियंत्रित करेंगे खुद को मिटाकर
® ✍️ रोशन कुमार झा 🇮🇳
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज , कोलकाता
26-03-2017 रविवार मो:-6290640716
রোশন কুমার ঝা, Roshan Kumar Jha
26-03-2017 रविवार 12 राजनीतिक विज्ञान की 27
परीक्षा,नेहा को पढ़ाये 11, भारत एक नज़र समाचार पत्र
सच्चाई की ललकार में प्रकाशित (रोशन ) आज का 27-04-2020 सोमवार कविता :-16(07)
http://roshanjha9997.blogspot.com/2020/04/1607.html
-: प्रभु बुला रही है राधा,आकर दूर करो कोरोना भरी बाधा !:-
http://roshanjha9997.blogspot.com/2020/04/1606_26.html
अब करोना को मिटा जाओ। (19)
हरिओम चन्दीर एम ए़ ए़़ शोधार्थी ।
एल एन एम यू दरभंगा हिन्दी विभाग (बिहार)
000000000000000 (19 no) मेरा :-27 कुल:-36
wow well written very relevant to present conditions stay safe
https://allpoetry.com/Roshan_Kumar_jha
https://nojoto.com/profile/97b5a68f954092778473e1e14525e828/roshan-kumar-jha आज से कविता:-16(05)
कविता:-10(007) मां सुन लो मेरी कविता !
https://youtu.be/YYhvZWUkTL0
http://roshanjha9997.blogspot.com/2020/04/1597-1598-1585.html
https://www.rachanakar.org/2020/04/blog-post_476.html
https://youtu.be/HWYK0_XY8l0 रचनाकार
https://youtu.be/tpKuaCMwauY :-16(06)
बचपना फोटो , मां,पापा,राजन, राहुल हम कल ,
-: बूढ़ापा में भी जोश । :-
उगते पल के साथ अरमान जागने लगे ,
बूढ़ापे में लोक - लाज भागने लगे ।
अभी तो बस देखें है डिजिटल इण्डिया के सपना ,
क्यों न मैं बूढ़ापे में बन जाऊं , उन संस्था का अपना ।
जियो (JIo ) ने दी है नि: शुल्क का तोफा ,
इसलिए मैंने अपना बूढ़ापा जियो पर ही सौंपा ।
चल रही है फेसबुक , व्हाट्सएप की दौड़ ,
क्यों न मैं बूढ़ापे में जाऊं उनमें जोड़ ।
स्मार्टफ़ोन बिना थे हम लंगड़ा ,
आज एहसास हो रही है, मेरा जवानी अभी भी है तगड़ा ।
बूढ़ापे में भी कई कॉमेंट आ गये ,
क्या कहूं मैं भी कितने के प्रोफल फाइल पर छा गये ।
✍️ रोशन कुमार झा 🇮🇳
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज, कलकत्ता विश्वविद्यालय
कोलकाता, भारत
14-09-2017 वृहस्पतिवार 17:21 (158)
डायरी :- 2 काफी लम्बा वाला
आज 13-05-2020 बुधवार कविता :-16(30)
http://roshanjha9997.blogspot.com/2020/04/1598.html
-: कलम !:-
कलम - कलम क्या मैं हूं हर एक के हाथ ,
लिख दे बंदे , मैं हूं तेरे साथ ।
रूप दे दें अपनी कोमल कंठो से ,
विजेता बनाऊंगा , तुम्हें बिना मोटे डण्टो से ।
लिखना दो चार शब्दों की बात ,
मैं कभी नहीं आने दूंगा ,तेरा जीवन में अंधेरी रात ।
है विश्वास तो लिख दे बंदे ,
निराश मत होना मैं खोल दूंगा, तेरा सफलता की धन्धे ।
नहीं रहोगे तुम, नहीं रहेंगे हम ,
तुम्हारे कण्ठों (हाथों ) की शब्द, मेरी लिखी हुई रंग
काग़ज़ की महत्त्व को कभी नहीं कर सकती कम ।
✍️ रोशन कुमार झा 🇮🇳
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज, कलकत्ता विश्वविद्यालय
कोलकाता, भारत
31-08-2017 वृहस्पतिवार 11:36
14-09-2017 वृहस्पतिवार (228)
अमित भाई छोड़ा youtube पर कांलेज में,
Amit Shaw नोटबंदी , कलम ये तीन कविता
यह कविता श्रीमान डॉ अशोक कुमार
सिंह सर पर लिखें ,महाशय 14-09-2020 हिन्दी
दिवस के दिन लिए रहें ! उन्हीं पर लिखें रहें,
आज 13-05-2020 बुधवार कविता :-16(30)