कविता :-16(38) संस्मरण, 13185, ग़ज़ल पहला
कविता :- 16(38) हिन्दी
नमन 🙏 :- साहित्य लाइव
कविता :- 16(38) हिन्दी ✍️ रोशन कुमार झा 🇮🇳
-: 🙏 देख लो ! 🙏 :-
जा सकते हो तो जाकर देखों रेलवे स्टेशन ,
ऐसा लग रहा है कि हुआ है उसका आपरेशन !
और अस्पताल में भर्ती है जिसे कहते रहे जंक्शन
पटरी पर रूकी रेलगाड़ी भी पा रही हैं पेंशन !
कोरोना से हुआ है दुनिया की सत्यानाश ,
प्रिय-प्रियतम के बिना बाग़ सुना है लग ही नहीं रहा है
कि अभी है वैशाख की मास !
घर बैठे मानव बनें है जिन्दा लाश ,
अब पता चल रहा है क़ैद ज़िन्दगी होती है कितनी बकवास !
अब जाकर देखो अदालत ,
अदालत तो अदालत उससे भी ज्यादा बिगड़ी है
वकील की हालत !
इसलिए हम रोशन प्रस्तुत किया हूं अपना मत ,
क्योंकि कोरोना के कारण दुनिया के साथ बंद पड़े हैं भारत !
🙏 धन्यवाद ! 💐🌹
® ✍️ रोशन कुमार झा 🇮🇳
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज कोलकाता भारत
রোশন কুমার ঝা, Roshan Kumar Jha
21-05-2020 वृहस्पतिवार 09:05 मो:-6290640716
नमन 🙏 :- " कलम ✍️ बोलती है " साहित्य समूह
रोशन कुमार झा
क्रमांक :- 133
तिथि :- 21-05-2020
दिन :- वृहस्पतिवार
आज का विषय :- वो खुशी के पल
विधा :- संस्मरण
प्रदाता :- आ. डॉ कन्हैयालाल गुप्त जी
यादें एशिया का सबसे बड़ा किताब बाज़ार कोलकाता की !:-
कहा जाता है कोलकाता के कॉलेज स्ट्रीट एशिया का सबसे बड़ा क़िताबो का बाज़ार हैं, जी हां, कैसे न रहे बगल में भारत के सबसे पूराने विश्वविद्यालय कलकत्ता विश्वविद्यालय, दरभंगा
बिल्डिंग , प्रेसीडेंसी यूनिवर्सिटी , संस्कृत विश्वविद्यालय
,सुरेन्द्रनाथ इवनिंग, डे, वूमेन, उमेशचंद्र, जलान गर्ल्स कॉलेज, चितरंजन, बांगोबासी, सेंट पाल, विद्यासागर,सिटी राजाराममोहन , आंनद मोहन, गिरिशचन्द्र, खुदीराम, जगदीश चन्द्र, शिक्षायतन, गोयनका, स्कॉटिश चर्च,महराजा मनिंद्र चंद्रा मानों तो कुछ ही किलोमीटर में महाविद्यालय ही महाविद्यालय है, तब हम अपने संस्मरण पर चलते है, बस से जाते तो घर से सिर्फ दस किलोमीटर दूर रहा ,पर बस से जाने से अच्छा पैदल जाना , क्योंकि हावड़ा तक तो ठीक पर रवीन्द्रनाथ सेतु पार करते ही वह जाम और वह भी एम. जी यानी महात्मा गांधी रोड की क्या बताऊं , इसलिए बीस किलोमीटर दमदम होते हुए ट्रेन से ही जानें का विचार किये, उन लोगों को बारहवीं की किताब लेना रहा । बात पाँच जून दो हजार सत्ररह शुक्रवार विश्व पर्यावरण दिवस दिन की बात है, अपने एकतरफा प्यार के प्रिय नेहा व शिष्या बारहवीं कक्षा कला विभाग की जूली नहीं अणू के साथ लिलुआ से बाली गये बैण्डेल लोकल मेन लाइन से फिर डानकुनी सियालदह लोकल पकड़े बाली हल्ट से यहां आने के लिए सीढ़ी चढ़ना पड़ता ,क्या कहूं वैसे हम तो कॉलेज हावड़ा ब्रिज होते हुए बड़ा बाज़ार बी.के,साव मार्केट, कैनिंग स्ट्रीट पिता जी के मामा यानि दादा जी के यहां साईकिल रखकर वहां से कॉलेज पैदल ही जाते हैं, पर कभी भी अगर हम ट्रेन से जाते तो अपनी प्रिय की स्मरण में उसी सीढ़ी से आते जाते, जिस सीढ़ी से वह गुजरी थी ,टिकट संख्या :-31430426 हमारा रहा अंतिम का जो 26 है वह हमारा बी.ए प्रथम वर्ष हिन्दी आनर्स की क्रमांक रहा, और नेहा की टिकट की अन्तिम संख्या 27 व अणु की 28 रहा वह टिकट आज भी कविता शीर्षक "हम लोगों की सैर" के साथ है,पर हम लोगों के फोटो नहीं , कहती भी रहीं छवि खिंचवाने के लिए पर हम न खिंचवाएं, वे दोनों आपस में सेल्फी लेती रही,उस वक्त हमारा पहला कविता की डायरी लिखाता रहा, वह डायरी, डायरी नहीं एक मोटा रजिस्टर रहा, जो पिताजी अपने कार्यकाल से लाये रहे,उसमें हिसाब किताब हुआ रहा ,
फिर भी हम रोशन उसमें कविताएं लिखते रहें,और अभी हमारा यही कोरोना, कल आये अम्फान तूफान को लेकर हम सोलहवीं डायरी लिख रहे है, जिसमें, कविताएं ज्यादा, हिन्दी, अंग्रेजी, भोजपुरी, मैथिली,बंगाली में व अन्य विधा हिन्दी में आलेख,दोहा, ग़ज़ल, नाटक, व्यंग्य ,कहानी,गीत, शायरी, हाइकु लिखते हुए सफर कर रहे हैं।
चाउमीन, आईसक्रीम खाये व खिलाये फिर सियालदह से ट्रेन से चले शाम के चार बजे के करीब बाली हल्ट आये, जल्दी रहा दौड़ना पड़ा रहा फिर क्या उन दोनों का भी बस्ता भी लेना पड़ा ,पुराने से नया बाली में कर्ड लाइन की चार नम्बर प्लेटफार्म बनी रही पहले सामने पर अब थोड़ा दूर रहा फिर जैसे तैसे ट्रेन पकड़े लिलुआ पहुंचे, एक गज़ब की बात है वैसे मेरा तो टिकट लगता ही नहीं, कॉलेज की नाम ही काफी रहा , फिर भी इन लोगों के साथ जाना रहा टिकट कटवा लिए, फिर क्या मेरे पास ही टिकट रहा हम आगे वह दोनों पीछे-पीछे, टिटी साहब टिकट निरीक्षक उन दोनों को पकड़ लिए , फिर नेहा आवाज लगाई ,क्या वह आवाज रही ,गये टिकट दिखाये , साहब हस्ताक्षर किए, और नाम पूछे बताएं रोशन , शाय़द बेचारा कुछ जानते रहे ,प्रिय की तरफ देखकर हमें कहे कि अपना रोशनी को तो अपने साथ लेते जाओ ,दिल खुश हो गया रहा उन बातों से ।
जब बाली घाट से चली ट्रेन विवेकानंद सेतु गंगा,हुगली नदी पार करते हुए दक्षिणेश्वर जा रही थी तब हम माँ काली व गंगा माई से प्रार्थना करते रहे हे मां कभी हम भी तुम्हारी पूजा करने अपनी प्रिय के साथ आऊं, पर वह दिन अब तक न आया , शायद आएगा भी नहीं , यही है हमारी उसकी संस्मरण ।
✍️ रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज , कोलकाता भारत
मो :- 6290640716
21-05-2020 गुरुवार
आज पूजा भाई बहन भोला भोली जन्मदिन
कविता :- डायरी :-1
नमन 🙏 :- साहित्य संगम संस्थान
तिथि :- 21-05-2020
दिवस :- गुरुवार
आज का विषय :- खोफ़
विधा :- ग़ज़ल
विषय प्रदाता :- आ. विनोद वर्मा दुर्गेश जी
समीक्षक :-
(1) आ. मनीष जौनपुरी जी
(2) आ. प्रदीप कुमार पाण्डेय जी
-: अम्फान तूफान तेरी खोफ़ । :-
ये खोफ़ झूठी सिर्फ दी जा रही है
अम्फान तूफान रूप दिखला रही है
बड़ी जटिल समस्या ये खोफ़ है
अभी महासागर से नदी घबरा रही है
प्राणी को न, रेलगाड़ी बांध रखी है
पर अम्फान रेल न घर बाड़ी उड़ा रही है
पशु पक्षी चुपचाप क्यों देख रही हैं
विज्ञान न, प्रकृति जोर हवा चला रही है
मानव घर में अम्फान की खोफ़ से
पर घोंसले में कितने बच्चें पला रहीं हैं
रोशन घर में बाहर न कोई खड़ा रही है ,
क्योंकि अम्फान अपना खोफ़ दिखला रही है ।
✍️ रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज कोलकाता
मो :- 6290640716
डायरी :- 5(14) हिन्दी कविता :-
-: 🇮🇳 हावड़ा से नेपाल । :-
हावड़ा में पकड़े 13021 मिथिला एक्सप्रेस ,
मिथिला की हिस्सा , बिहार और नेपाल मिलाकर है शेष ।
हावड़ा में देखें दो हजार अठारह की कैलेण्डर ,
चलें आये बैण्डेल ।
बैण्डेल में मिला गेहूं धान ,
चले गये बर्द्धमान ।
बर्द्धमान में खरीदें गुलाब की फूल ,
इसके बाद आये दुर्गापुर ।
दुर्गापुर में सब हमको पकड़ने के लिए लगाया दौड़ ,
क्या कहूं मैं न ट्रेन दौड़ते दौड़ते आ गया आसनसोल ।
आसनसोल में वह होंठों पर मुस्कान ली ,
इसी तरह आ गये जे .सी. डी ।
जे .सी. डी में खाये बाबा बैद्यनाथ के प्रसाद गुड़ ,
आ गये हम रोशन मधुपुर ।
मधुपुर में आवाज़ आई कलकत्ता से वापस गांव आ जा ,
हम झा चले गये झाझा ।
झाझा में खाना खाने के बाद पोंछने के लिए
निकाले गमछा टौनी ,
आ गये गंगा नदी सिमरिया घाट पार बरौनी ।
बरौनी में गये पांव धोने लगा था धुल ,
आ गये समस्तीपुर ।
मुजफ्फरपुर तक कुछ न किया ,
कल से आज तक ये कविता
लिखते - लिखते आ गये चकिया ।
चकिया में हुए थोड़ा खड़ा ,
चलें गये पीपरा ।
धीरे-धीरे हो रही थी सीट खाली ,
क्योंकि पहुंच चुके थे हमलोग बापूधाम मोतिहारी ।
मोतिहारी में रही मिठास बोली ,
हम लोग पहुंच गये संगोली ।
संगोली में सामने से कटकर पीछे लगा इंजन ,
सफलता की राह में बदल सकते है हर कोई अपना मन ।
संगोली में मेरे कर्म पर आपस में लोग कुछ रहा था बोल ,
मैं इस तरह हावड़ा से पहुंच गया मिथिला के रक्सौल ।
रक्सौल के टमटम से पार किये भारत नेपाल की सीमा ,
कहीं-कहीं कारवाई थी, टमटम तेज गति से भाग रही थी
कहां थी चाल धीमा ।
इस तरह पहुंच गये वीरगंज नेपाल ,
आज देख लिए मित्र राष्ट्र की एकत्रा की हाल ।।
✍️ रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज , कोलकाता भारत
मो :- 6290640716 , 903896372
12-03-2018 सोमवार :-5(14)
21-05-2020 गुरुवार कविता :-16(38)
Pmkvy :-4 बाद डायरी :- 5 उसी दिन लिए पॉल स्वीट
पास से Chandan classes for Railway Exam poster छिपकाये बच्चन सर के पापा को लेकर आंख दिखाने गये रहे नेपाल 11-03-2018 रविवार टिकट रहा Ticket no :- 15554586 KM:- 693 Train no :-13021 PNR no :- 631-1915426 मिथिला एक्सप्रेस 15:45 Wl:-28,29 Age, 58 (मेरा 18) हावड़ा रक्सौल Rs:-730
कविता :- 5(15) हिन्दी
-: सियालदह जयनगर की यात्रा । :-
सियालदह जयनगर गंगासागर की यात्रा ,
मिथिला घूमने के लिए नहीं देखनी पड़ती है पतरा ।
सियालदह में 13185 गंगासागर एक्सप्रेस पर बैठी ,
विधाननगर, दमदम, होते हुए आ गये नैहाटी ।
नैहाटी में देखें एक छोटा सा गैस सिलेंडर ,
आ गये गरीफा होते हुए हुगली, गंगा नदी पार बैण्डेल ।
बैण्डेल में हुई खान पान ,
आ गये हावड़ा मेन लाइन होते हुए बर्द्धमान ।
बर्द्धमान के लोकल ट्रेन से होते गये दूर ,
न जाने कैसे एक ही बार में पहुंच गए दुर्गापुर ।
दुर्गापुर में हम रोशन पूछे समोसा का मोल ,
खाते - खाते रानीगंज होते हुए आ गये आसनसोल ।
गांव जाने की उल्लास से होंठों पर मुस्कान ली ,
उसके बाद आ गई जे.सी.डी ।
जे.सी.डी में खरीदें बाबा बैद्यनाथ धाम के लिए फूल ,
इस तरह आ गये मधुपुर ।
मधुपुर में हमको बोला गया राजा ,
इस तरह हम झा आ गये झाझा ।
झाझा किऊल में लगी हमारी कविता की परीक्षा होनी ,
सिमरिया घाट, राजेन्द्र पुल कवि दिनकर जी के गांव
होते हुए हम आ गये बरौनी ।
बरौनी से घर रहा न दूर ,
आ गये समस्तीपुर ।
समस्तीपुर में झाड़े पेन्ट और अंगा ,
आ गये अपना मिथिला के दरभंगा ।
दरभंगा में देखें पेड़ पौधा और बकरी ,
आ गये सकरी ।
सकरी में मुलाक़ात हुआ वह आदमी रहा धनी ,
विश्व में मशहूर है अपना पेंटिंग ,आ गये पण्डौल
होते हुए हम मधुबनी ।
मधुबनी से भी जा सकते रहे अपना घर ,
लेकिन चल गये हम राजनगर ।
राजनगर में हम पीये न शराब , पीये जल ,
आ गये खजौली होते हुए हम सियालदह से जयनगर ।
मधुबनी में गये मुंह हाथ धोने गंगासागर घाट पर ,
बस पकड़े कुछ ही देर में उतार दिया हमको लोहा हाट पर ।
लोहा में रिक्शावाला को बोले चलो जी ,
पहुंचा दिया हम को अपना गांव झोंझी ।।
✍️ रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज , कोलकाता भारत
मो :- 6290640716 , 903896372
12-03-2018 सोमवार :-5(14)
21-05-2020 गुरुवार कविता :-16(38)
http://roshanjha9997.blogspot.com/2020/05/1637.html
संस्मरण आज ही कलम लाइव पत्रिका में प्रकाशित
https://kalamlive.blogspot.com/2020/05/asia-ka-sabse-bada-pustak-mela-kolkata.html
स्वैच्छिक दुनिया में किताब सलकिया विक्रम विद्यालय वाला फोटो :-
https://swaikshikduniya.page/article/kitaab/2PfC9k.html
पहलवान :-
https://kalamlive.blogspot.com/2020/05/kavita-pahalwan.html कलम लाइव पत्रिका में