कविता :- 14(89) हिन्दी 15(03), 15(06),कविता :-14(92) भोजपुरी ,:-14(87), 10(07) ✍️ रोशन कुमार झा 🇮🇳
कविता :- 14(89) हिन्दी 15(03), 15(06),
कविता :-14(92) भोजपुरी, 14(87),10(07)
✍️ रोशन कुमार झा 🇮🇳
रामधारी सिंह दिनकर जी के कविता :-
नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं ! के आधार पर लिखें है !
-: नव वर्ष हमारा पर्व नहीं !:-
मैं रोशन मुझे अपने घर गर्व नहीं ,
मनाने की सब्र नहीं !
नव वर्ष पर मेरा कोई संदर्भ नहीं ,
क्योंकि ये अपना पर्व नहीं !!
चल रही है ठंडी-ठंडी है गर्म हवा नहीं ,
सूर्य बिना खिली हुई फूल सूर्यमुखी जवा नहीं !
मानव तो मानव जीव-जंतु भी दबे हैं , ठंड से
बचने के लिए कोई दवा नहीं ,
तब कैसे मनाऊं नव वर्ष, नया साल मनाने के लिए लगी
हुई कहीं सभा नहीं !!
पुरानी पत्ती ,अभी खिला सा वन नहीं ,
पौष माघ अभी बसंत और सावन नहीं !
आग नहीं तो बिस्तर, उसके बाहर मां बहन नहीं ,
क्यों मनाऊं, मनाने की मन नहीं ,
क्योंकि ये नव वर्ष अपना पावन नहीं !!
घर से निकलने वाली शाम नहीं ,
घर के अंदर कोई काम नहीं !
पेट के लिए निकलना ही होगा , ठंड से विश्राम नहीं ,
सच में नव वर्ष को मेरी ओर से प्रणाम नहीं !!
अभी जाने दो समय की गति ,
नव वर्ष मनाएंगे अभी नहीं , खिलने दो नव पत्ती !
आने दो बसंत , लेकर आ रही है मां सरस्वती ,
तब मनाएंगे नव वर्ष जलाकर दिया और मोमबत्ती !!
नव वर्ष मनाएंगे पहले चलें ,तो जाये ठंड की
पकवान चौखा लिट्टी !!
केक नहीं बनाएंगे जलेबी वह भी मीठी-मीठी ,
है अपना ये हिन्दुस्तान ,विद्यापति, कबीर,दिनकर की मिट्टी,
उस पर नव वर्ष मनाएंगे, अभी नहीं, आने दो अपना तिथि !!
अभी काफी ठंड है , ठंड की कोई दण्ड नहीं ,
पूजा पाठ करने के लिए कैसे नहाऊ ,गर्म जल की प्रबंध नहीं !
बढ़ते ही जाते ठंड, ठंड की गति मंद नहीं ,
कैसे मनाऊं नव वर्ष, नव वर्ष मनाने की कोई सुगंध नहीं !!
ठंड में यानि आज नहीं ,
कोयल की मीठी आवाज नहीं !
शीत के कारण समय कैसे बीती अंदाज नहीं ,
तब कैसे मनाऊं नव वर्ष,ये हमारा रीति रिवाज नहीं !!
कुहासा में नया साल मनाना ,अपनी कर्त्तव्य नहीं ,
वह भी अब नहीं !
नव वर्ष पर हमें गर्व नहीं ,
है अपना ये पर्व नहीं !!
🙏 धन्यवाद ! 💐🌹
® ✍️ रोशन कुमार झा 🇮🇳
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज , कोलकाता
08-01-2020 बुधवार 08:47 मो:-6290640716
রোশন কুমার ঝা, Roshan Kumar Jha
03-05-2020 रविवार कविता:-16(15)
कविता :- 15(03) हिन्दी ✍️ रोशन कुमार झा 🇮🇳
http://roshanjha9997.blogspot.com/2020/05/1504.html
-: तू मेरी मैं तेरी थी !:-
मैं रोशन यह ज़िन्दगी तेरी थी ,
तब ही अपना मानती थी , जब तू अकेली थी !
तू तो लुटी ही और तुम्हारी लुटने वाली सहेली थी ,
आज किसी और की हो गई यह तुम्हारी नहीं मेरी
क़िस्मत की फेरी थी !!
तब ही पूजा करने योग्य फूल तू चम्पा और चमेली थी ,
जब तू मेरी थी !
तुम्हारी जिन्दगी में किसी के आने की देरी थी ,
बदल गई तू , ऐसा कौन सा पहेली थी !!
तू मेरी मैं तेरी थी ,
कैसे भूलें वह दिन , जब तू मेरे साथ खेली थी !
सुन्दर रूप, सुन्दर चाल चलने वाली तुम्हारी एड़ी थी ,
छोड़कर चली गई, क्या इतने ही दिन की सफ़र मेरी थी !!
मेरी डांट फटकार सब झेली थी ,
कब ? जब तू अकेली थी !
छोड़कर जाना रहा ,यह सोच तेरी थी ,
तुम खुश हो न , फुटा क़िस्मत तो मेरी थी !!
🙏 धन्यवाद ! 💐🌹
® ✍️ रोशन कुमार झा 🇮🇳
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज , कोलकाता
21-01-2020 मंगलवार 12:01
03-05-2020 रविवार 00:01 मो:-6290640716
রোশন কুমার ঝা, Roshan Kumar Jha
कविता :- 15(06) हिन्दी ✍️ रोशन कुमार झा 🇮🇳
-: हम सब अतिथि है !:-
सब यहां अतिथि है ,
सुख-दुख से जीवन बीती है !
आना-जाना ही तो रीति है ,
अमीर हो या गरीब अंतिम संस्कार के लिए
तो यही मिट्टी है !!
जीव-जंतु हाथी और चींटी है ,
क्या कहूं मैं रोशन यह ज़िन्दगी भी मीठी है !
जन्म लिए तो मरने का भी एक तिथि है ,
क्या हम क्या आप , हम सभी यहां के अतिथि है !!
जो कल जवान रहें, वही आज बूढ़ा हुए ,
समय के साथ कृष्ण-राधा भी जुदा हुए !
अमृत भी विष, विष भी समय के साथ सुधा हुए ,
समय की बात है यारों , समय बदलते होशियार भी बेहूदा हुए !
एक मां की ही बेटा सम्पत्ति बांटने में भाग लेते ,
पत्नी आते ही मां-बाप को त्याग देते !
जिसे पाल पोस कर बड़ा करते वही संतान अंतिम
वक्त आग देते ,
सब मतलबी है यारों , सिर्फ अपना काम पर ही दिमाग़ देते !!
तो कोई दिमाग़ लगाकर भी हारा , कोई हार
के बाद भी जीती हैं ,
सफलता-असफलता ही तो जिन्दगी की नीति है !
जिंदगी पूजा पाठ,लेखन कार्य ,अर्थ व्यवस्था, संस्कृति
और राजनीति में ही बीती है ,
तब हम आप नहीं ,कहों यारों हम सब अतिथि है !!
🙏 धन्यवाद ! 💐🌹
® ✍️ रोशन कुमार झा 🇮🇳
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज , कोलकाता
03-05-2020 रविवार कविता:-16(15)
24-01-2020 शुक्रवार 12:01 का मो:-6290640716
রোশন কুমার ঝা, Roshan Kumar Jha
कविता :- 14(87) हिन्दी ✍️ रोशन कुमार झा 🇮🇳
-: मां तुमसे ही है मेरी उत्पत्ति !:-
मां तूने जन्म दी, पर गर्लफ्रेंड के बिना दिन कटी ,
हम रोशन हमें बनना है न किसी के पति !
बस इसी तरह बढ़ते रहे मेरी सफलता की गति ,
मां तूने मुझे उत्पन्न की और मैं तेरा पुत्र हर रोज़ करता
हूं एक कविता की उत्पत्ति !!
मां सुन लो मेरी कविता , अगले साल की कविता
पर लिखा हूं ये कविता ,
सुन लीजिए आप , पूजने योग्य है पिता !
लिखता हूं पूजा पाठ व करके योग कविता ,
हे ईश्वर,खुदा, मसीहा मत मेरे रोग मिटा ,
हे जिन्दगी तू हमें हरा , हमें न तू जीता !!
हार के आऊं हमें हार से है न आपत्ति ,
चाहे मुझ पर आये लाख विपत्ति !
रहें या न रहे मेरी आंख की गति ,
बस मां तुम्हारी दया बना रहे , जिससे मैं रोज़ करते
रहूं एक कविता की उत्पत्ति !!
सुख-दुख सबके जीवन में है सटी ,
कुछ बनना है , इसलिए सुनता हूं, करता हूं न
कभी किसी का बेइज्जती !
खुद को पहुंचता, पर पहुंचाता हूं न किसी को क्षति ,
हे माँ तुम्हारी दया बना रहे, मैं दुख में भी मुस्कुरा कर
करते रहूं हर रोज़ एक कविता की उत्पत्ति !!
🙏 धन्यवाद ! 💐🌹
® ✍️ रोशन कुमार झा 🇮🇳
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज , कोलकाता
03-05-2020 रविवार मो :-6290640716
রোশন কুমার ঝা, Roshan Kumar Jha
06-01-2020 सोमवार 12:10 का है यह
Realme c2)02-01-2019 बुधवार Intex
मोबाइल से कविता:-10(007) होना चाहिए
:- 10(07) मां सुन लो मेरी कविता ! पर है !
http://roshanjha9997.blogspot.com/2020/05/1504.html
Intex से रेलवे new year
कविता :-10(007) हिन्दी
-: मां सुन लो मेरी कविता !:-
मां मैं लिखा हूं एक कविता ,
सुन लो मेरी कविता !
कैसे सुनू बेटा मैं तेरी कविता ,
भुखमरी, बेरोजगारी से जल रही है चिता ,
कैसे सुनूं बेटा मैं तेरी कविता !
जाओ कविता पापा को सुनाना ,
तब तक मैं बनाकर रख रहीं हूं खाना !
पापा-पापा मैं लिखा हूं एक कविता ,
बोल बेटा कहां से जीता !
जीता नहीं पापा मैं लिखा हूं एक कविता ,
कहां है अब राम और सीता ,
ना पापा राम-सीता नहीं , मैं लिखा हूं एक कविता !
अरे ! खाना जुटता ही नहीं , मैं कैसे शराब पीता ,
न-न पापा आप शराबी नहीं, मैं लिखा हूं एक कविता !
अच्छा कविता,
सुनाओ वही सुनाना जो मेरे जीवन में बीता !
बस-बस पापा वैसा ही कविता !!
सूर्य के रोशन, चांद सितारों की शीतलता में आप
पर रहीं भुखमरी की ताप ,
उसके बावजूद भी बड़े स्नेह से हमें पाले पापा आप !
बड़े संघर्षमय से आपकी जिन्दगी बीता ,
हमें रहा नहीं गया, पापा
बस आप पर लिख बैठे एक कविता !!
🙏 धन्यवाद ! 💐🌹
® ✍️ रोशन कुमार झा 🇮🇳
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज , कोलकाता भारत
02-01-2019 बुधवार 07:50
Intex मोबाइल से कविता:-10(007) होना चाहिए
:- 10(07) मां सुन लो मेरी कविता !
রোশন কুমার ঝা, Roshan Kumar Jha
03-05-2020 रविवार मो:-6290640716
कविता :-14(92) भोजपुरी ✍️••• रोशन कुमार झा 🇮🇳
-: 🙏 अपन बिहार !🙏 :-
कहत वाणी हम रोशन,सोना के सिक्का मोती के हार ,
ओइयोह सअ सुन्दर हअ अपन बिहार !
लिट्टी और चोखा खाई अचार ,
तब लोउवा लोगेन जाई खेत बाजार !!
आम के बगान, मुज़फ्फरपुर के लीची और पाअ बे
जारअ लाल-लाल अनार ,
जहां से निकलर रहर श्रीराम, गौतम, महावीर के पुकार !
जकरा के जानेए लाअ अलग रूप से संसार ,
ओह हअ स्वर्ग सअ सुन्दर अपन बिहार !!
यही सअ बनलैत राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद स्वतंत्र भारत
के प्रथम सरकार ,
अबके चलावे लअ मोदी और नीतीश कुमार !
हिन्दी के सेवा कैरस दिनकर, नागार्जुन और यही के लाल,
हर क्षेत्र में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेलस अपन बिहार !!
सीता के पूजा पाठ करके जान लअ
अपन बिहार के हिम्मत ,
जीरो (0) दैलस आर्यभट्ट !
हीरो बनलस भारत ,
तब समझ जा होअ अपन बिहार के क़ीमत !!
🙏 धन्यवाद ! 💐🌹
® ✍️ रोशन कुमार झा 🇮🇳
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज , कोलकाता
10-01-2020 शुक्रवार 17:02 (Realme c2)
03-05-2020 रविवार मो:-6290640716
রোশন কুমার ঝা, Roshan Kumar Jha
कविता:-16(15)